हाल में बिहार के मोतिहारी में करोड़ों रुपये के सरकारी अनाज का घोटाला उजागर हुआ. अब गरीबों का निवाला छीनने वाले घोटालेबाजों को बचाने के लिए नेताओं, अधिकारियों और माफिया का गठजोड़ कोई कसर नहीं छोड़ रहा. इर्शादुल हक की पड़ताल
उस दिन बीवी अमरुन निशा चौथी बार खाली हाथ वापस आ गई थीं. जनवितरण प्रणाली के डीलर जुबैर अहमद ने उस दिन भी उन्हें टका-सा जवाब दिया था कि अभी तक सरकार ने अनाज भेजा ही नहीं है तो वह उन्हें कैसे दे. पूर्वी चंपारण में मोतिहारी के छौड़ादानो प्रखंड में सेमरहिया गांव की अमरुन गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आती हैं और हर महीने 10 किलो गेहूं और 15 किलो चावल सस्ती दर (क्रमश: 6.60 रुपये और 6.78 रुपये) पर प्राप्त करने की हकदार हैं. अमरुन राज्य के उन लाखों लोगों में से एक हैं जिन्हें सरकार ने उनकी गरीबी को आधार बनाकर लाल कार्ड दिया है. इसी आधार पर सरकारी दुकान से उन्हें सस्ते में अनाज मिलता है ताकि वे और उनके बच्चे भूखे पेट न रहें.
पर अमरुन को कौन बताए कि उनके हिस्से का निवाला कागजों में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक तो उनके पेट में जा चुका है. उधर, हकीकत में यह अनाज माफिया, सरकारी अधिकारी और अनाज वितरण करने वाली एजेंसियों के दलाल खा-खा कर लाल हुए जा रहे हैं. यह तो समय का फेर कहिए कि किसी कारण जनवितरण प्रणाली का दुकानदार जुबैर अहमद 28 महीने के अनाज के गबन के आरोप में पकड़ा गया और उसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया. पर छह महीने पहले पकड़ा गया जुबैर अनाज घोटाले के समंदर की सबसे छोटी मछली है. घोटाले के इस समंदर की बड़ी मछलियां अब भी आजाद हैं.
गरीबों के निवालों को डकारने वाले बड़े माफियाओं के पकड़े जाने की घटना आम तौर पर सामने नहीं आती. लेकिन इस तरह के घोटालों में से एक का भंडाफोड़ करीब डेढ़ महीने पहले मोतिहारी में हुआ तो इसकी गूंज पूरे राज्य में सुनाई पड़ी, लेकिन घोटाले का उजागर हो जाना यहां उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि इसे दबाने, छिपाने और पचाने की अब भी हर स्तर से हो रही कोशिशें. वैसे भी इस घोटाले का भंडाफोड़ किया नहीं गया बल्कि अधिकारियों और अनाज माफियाओं द्वारा ‘मिल-बांट कर खाने’ के लिए निर्धारित तालमेल के अभाव के चलते यह मामला छलक कर सतह पर आ गया. फिर स्थिति ऐसी बनी कि इसे छिपाने की न तो अनाज माफियाओं और न ही सरकारी अमले की कोशिश कामयाब हो सकी.
31 अगस्त यानी ईद का दिन. प्रशासन के लिए ईद जैसे पर्व का महत्व कानून और व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखने की चुनौती के रूप में होता है. इसलिए उस दिन प्रशासन ने पूरी एकाग्रता इसी ओर केंद्रित कर रखी थी. कानून-व्यवस्था से जुड़े अधिकारी शहर के नगर थाने में बैठ कर शांति व्यवस्था बनाए रखने पर माथापच्ची में लगे थे. इतने में किसी मुखबिर ने यह खबर दी कि कुंआरी देवी चौक के निकट भारतीय खाद्य निगम के अनाज की बोरियों को निजी बोरियों में भरा जा रहा है. भारतीय खाद्य निगम की मुहर वाली ये बोरियां जनवितरण प्रणाली के दुकानदारों द्वारा जरूरतमंदों तक पहुंचाई जाती हैं. सूत्रों के मुताबिक चूंकि मुखबिर ने यह बात अनजाने में सभी के सामने बता दी थी इसलिए टाउन एसडीपीओ सुशांत सरोज को तुरंत छापामारी करनी पड़ी. तब एक-एक कर छह गोदामों का पता चलता गया और छापामारी होती रही. इस दौरान भारतीय खाद्य निगम के करीब 14 हजार बोरे निजी गोदामों से जब्त किए गए. जिले के पुलिस अधीक्षक गणेश कुमार के अनुसार इस कालाबाजारी में एक धनाढ़्य व्यवसायी शंभु प्रसाद का नाम भी शामिल है. एक बड़ी छापेमारी विशाल मिनी राइस मिल के गोदाम में हुई जिसके मालिक अजय कुमार बताये जाते हैं. इसी तरह मोहन सिंह के गोदाम पर हुई छापेमारी में करीब एक हजार बोरे जब्त किए गए.
प्रशासन के आंकड़ों पर ही जाएं तो हर महीने 50-80 हजार क्विंटल अनाज की हेराफेरी तो होती ही है
मोतिहारी सदर के अनुमंडल पदाधिकारी राधाकांत इसे डेढ़ करोड़ का घोटाला बताते हैं. स्थानीय पत्रकारों के अनुसार यह घोटाला इससे कई गुना बड़ा हो सकता है. अगर इस घोटाले के गणित को मामूली जोड़-घटाव से समझें और राधाकांत के अनुसार ही गुनाभाग करें तो हर महीने डेढ़ करोड़ का घोटाला तो होता ही है. चूंकि यह घोटाला साल दर साल होता आया है इसलिए इसकी व्यापकता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. खुद सदर अनुमंडल पदाधिकारी कहते हैं, ‘एक-डेढ़ साल पहले जनवितरण के दुकानदारों द्वारा मात्र 20-25 प्रतिशत अनाज का वितरण नियमपूर्वक हुआ करता था, जिसे हमने ठीक करने की कोशिश की है, लेकिन अब भी यह 60-75 प्रतिशत की सीमा तक ही पहुंच सका है.’ ध्यान देने की बात है कि पूर्वी चंपारण के लिए हर महीने औसतन लगभग दो लाख क्विंटल अनाज वितरण का कोटा है. यानी खुद जिला प्रशासन के आंकड़ों को अगर कम करके भी आंका जाए तो प्रति माह 50-80 हजार क्विंटल अनाज की हेराफेरी तो होती ही है.
यूं तो घोटाला 31 अगस्त को उजागर हुआ था, लेकिन अगले चार दिन तक पुलिस और खाद्यान्न आपूर्ति से जुड़े अधिकारी यह नहीं समझ पाए कि इस संबंध में किसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाए. चौथे दिन यानी तीन सितंबर को अनिल कुमार, कन्हैया साह, मुंशी राय और अजय कुमार नामक व्यवसायियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. हालांकि पहले ही दिन अधिकारियों को यह सूचना मिली थी कि शंभु प्रसाद, उमेश गुप्ता, गौरी शंकर और ट्रांस्पोर्टर राधेश्याम जैसे अमीरों और सत्ता के गलियारों में काफी प्रभाव रखने वाले व्यवसायियों की भी इस मामले में संलिप्तता है. लेकिन जब प्राथमिकी दर्ज की गई तो इन चार बड़े नामों के अलावा इस घोटाले में शामिल कुछ दूसरे व्यवसायियों के नाम पुलिस या प्रशासनिक कार्रवाई की सूची से गायब थे. इतना ही नहीं, छापामारी के दौरान हिरासत में लिए गए उस एक व्यवसायी पर भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई जिसे एसडीपीओ सुशांत कुमार सरोज ने हिरासत में लिया था. तहलका को एक साक्ष्य हाथ लगा है जिसमें सुशांत मुन्ना शाह नामक एक व्यवसायी को हिरासत में लेने के बाद कह रहे हैं कि ‘अब आपको अपने पक्ष में जो भी कहना है अदालत में कहिएगा.’ पुलिस ने विशाल राइस मिल के बगल वाले गोदाम में भी छापामारी की थी जिसके बारे में मुन्ना साह ने स्वीकार किया था कि वह उसी का है. हालांकि इस संबंध में जब सुशांत कुमार सरोज से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने टालू रवैया अपनाते हुए कहा कि किसी को भी हिरासत में लेकर नहीं छोड़ा गया है. लेकिन जब उन्हें याद दिलाया गया कि मुन्ना साह का नाम तो एफआईआर में शामिल ही नहीं है जिन्हें उन्होंने हिरासत में लिया था. इस पर सुशांत ने यह कह कर बात समाप्त कर दी कि आप इस मामले में अधिक जानकारी जिले के पुलिस अधीक्षक से मांगें. लेकिन पुलिस अधीक्षक गणेश कुमार ने छापामारी वाले दिन मीडिया के समक्ष यह स्पष्ट किया था कि घोटाले में शंभु प्रसाद का नाम भी शामिल है. अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि वह कौन-सी स्थितियां थीं जिनके कारण न तो व्यवसायी शंभु प्रसाद और न ही मुन्ना साह के खिलाफ मामला दर्ज हुआ.इस सवाल के जवाब में गणेश कुमार कहते हैं, ‘हम इस मामले में सबूत इकट्ठा कर रहे हैं और जल्द ही कार्रवाई होगी.’
क्या पुलिस अधीक्षक की यह बात गले उतरने वाली है? मोतिहारी जिला प्रशासन से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी की बात से कम से कम तो यही लगता है कि शंभु प्रसाद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने वाली. ये अधिकारी नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताते हैं कि शंभु प्रसाद के गिरेबान पर हाथ डालना जिला प्रशासन के बूते से बाहर की बात है क्योंकि उसकी पैठ न सिर्फ तिरहुत प्रमंडल के मुख्यालय बल्कि पटना के सचिवालय तक है.
निर्धारित एक हफ्ते की जगह कई हफ्ते बीत गए हैं, मगर घोटाले की जांच रिपोर्ट का अब तक कोई पता नहीं है
हर दामन में दाग उजागर होने के तीन सप्ताह बाद 24 सितंबर को खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री श्याम रजक अचानक मोतिहारी आ धमके. उन्होंने जिले के वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ बंद कमरे में घंटों बैठक की. विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि श्याम रजक ने सीधे तौर पर मोतिहारी के सदर एसडीओ राधाकांत, राज्य खाद्य निगम के जिला प्रबंधक सोमेश्वर पांडे और सहायक प्रबंधक राजेंद्र पांडे को घोटाले का जिम्मेदार ठहराया. बैठक में ही उन्होंने राधाकांत को तगड़ी फटकार लगाई और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही. लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने प्रेस वार्ता की तो राधाकांत और दूसरे अधिकारियों के प्रति उनका लहजा नर्म हो चुका था. श्याम रजक का कहना था, ‘प्रथम दृष्टि में ऐसा लगता है कि एसडीओ का आचरण इस मामले में संदेहास्पद है. इसलिए इनके खिलाफ जांच की जाएगी और उसी आधार पर कार्रवाई होगी.’ फिर उन्होंने तिरहुत प्रमंडल के कमिश्नर एसएम राजू को जांच की जिम्मेदारी सौंप कर एक हफ्ते में रिपोर्ट देने के लिए कहा.
लेकिन एक हफ्ता कौन कहे कई हफ्ते बीत गए और रिपोर्ट का कोई पता नहीं है. नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी बताते हैं कि कुछ अनाज माफिया, आला अधिकारियों के दलाल और नेताओं की जमात मामले को रफा-दफा करने के लिए मेलजोल में लगी है.
12 अक्टूबर को अचानक मामले में एक नया मोड़ आ जाता है. श्याम रजक तहलका को बताते हैं कि एसडीओ राधाकांत का तबादला नहीं किया जा रहा है और वे इस मामले को निगरानी ब्यूरो के हवाले कर रहे हैं. अचानक सरकार का यह बदला रुख हैरान करने वाला है क्योंकि जिन श्याम रजक ने प्रथम दृष्टि में एसडीओ राधाकांत समेत तीन अधिकारियों को दोषी पाया था और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बात की थी, वे उन्हें उनके पदों से हटाने की बात से ही मुकर गए. हद तो यह कि इसकी खबर एसएम राजू को भी नहीं है. जैसा कि राजू कहते हैं, ‘मुझे पता नहीं सरकार क्या चाहती है, पर मुझे यह जिम्मेदारी मिली है तो मैं इस पर काम कर रहा हूं.’
पर यहां लाख टके का सवाल यह है कि आखिर सरकार के इस रुख में बदलाव आया कैसे? क्या सरकार अनाज माफिया या किसी और की तरफ से आने वाले किसी दबाव में आ गई? इस सवाल के जवाब में श्याम रजक कहते हैं, ‘नहीं, सरकार किसी दबाव में नहीं आ सकती. हम इस जांच को और प्रभावी बनाने के लिए निगरानी विभाग को सौंप रहे हैं. तो फिर श्याम रजक को अपने ही अधिकारियों पर से अचानक कैसे विश्वास उठ गया कि उनसे जांच कराने की बजाय अब निगरानी विभाग से जांच कराने की बात कह रहे हैं? इस सवाल के जवाब में श्याम रजक कहते हैं, ‘निगरानी विभाग की जांच से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’
इस मामले में अचानक सरकार के बदले रुख से कई सवाल खड़े होने लगे हैं. सबसे अहम सवाल तो यही कि इस मामले को निगरानी विभाग को सौंप कर कहीं इसे ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश तो नहीं हो रही है. इस प्रकरण का एक सिरा स्थानीय नेताओं और अनाज माफिया की आपसी गुत्थमगुत्थी से भी जुड़ा है. मोतिहारी से भाजपा विधायक प्रमोद कुमार इस पूरे मामले में जहां सरकार के रुख से खफा हैं वहीं एसडीओ राधाकांत पर भी सीधा निशाना लगा रहे हैं. इस घोटाले को लेकर प्रमोद कुमार ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर राधाकांत के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है. साथ ही प्रमोद अनाज माफिया के सिंडीकेट पर प्रहार करते हुए कहते हैं कि सरकार माफिया गिरोह और स्थानीय अधिकारियों के गठजोड़ के खिलाफ कार्रवाई करे. वहीं इस पूरे मामले में जदयू के स्थानीय नेता और विधान पार्षद सतीश कुमार खुल कर अनाज माफिया शंभु प्रसाद के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं. सतीश साफ कहते हैं कि सरकार को शंभु प्रसाद के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि वे इस घोटाले के केंद्र में हैं.
इस प्रकरण का एक सिरा स्थानीय नेताओं और अनाज माफिया की आपसी गुत्थमगुत्थी से भी जुड़ा है.
उधर खाद्य एवं आपूर्ति विभाग और जिला व पुलिस प्रशासन अनाज माफिया के सिंडीकेट से जुड़े लोगों के खिलाफ कुछ भी खुल कर बोलने को तैयार नहीं है. गिरोह की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिला प्रशासन से जुड़े एक बड़े अधिकारी अपनी जान मुसीबत में डालना नहीं चाहते. नाम न छापने की शर्त पर वे बताते हैं कि इन कालाबाजारियों की पहुंच और पैठ इतनी है कि उनके खिलाफ कार्रवाई की कोई संभावना ही नहीं है.
अनाज घोटाले के साथ मोतिहारी में गोदाम घोटाला भी अपने आप में काफी निराला है. 31 अगस्त को जब पुलिस ने यहां छह गोदामों में छापामारी की तो यह रहस्य सामने आया. दरअसल राज्य खाद्य निगम के अधिकारी और निजी व्यवसायी साठ-गांठ से कालाबाजारी का खेल खेलने के लिए एक ही गोदाम को कभी सरकारी तो कभी निजी गोदाम बताते रहे हैं. जमाखोरी की सूचना पर जब निजी व्यवसायियों के गोदामों पर छापामारी होती है तो वे उन गोदामों को सरकारी बता कर बच जाते हैं.
गरीबों के निवाले छीनने वाले अनाज माफिया और उन्हें बढ़ावा देने वाले सरकार के अधिकारियों के खिलाफ क्या कोई कार्रवाई हो सकेगी? कार्रवाई के नाम पर जो कवायद अब तक चली है और जिस अंदाज में चली है उसे देखते हुए उम्मीद कम ही लगती है.