तत्कालीन सोवियत संघ में ‘ग्लासनोस्ट’ और ‘पेरेस्त्रोइका’ के जनक नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मिखाइल गोर्बाचेव का 30 अगस्त को निधन हो गया है। महज 53 साल की उम्र में 1985 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बनने वाले गोर्बाचेव को बिना रक्तपात शीत युद्ध ख़त्म करने का श्रेय दिया जाता है, हालांकि उनके आलोचक सोवियत संघ का पतन होने का जिम्मेवार उन्हें मानते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रूसी समाचार एजेंसियों ने अस्पताल के अधिकारियों के हवाले से तत्कालीन सोवियत संघ के उदारवादी राष्ट्रपति की 91 साल की उम्र में मौत होने की पुष्टि की है।
गोर्बाचेव महज 53 साल की उम्र में 1985 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बन गए थे और 1991 तक इस पद पर रहे जब पार्टी खुद भंग हो गई और फिर सोवियत संघ का भी पतन हो गया। उनकी ‘ग्लासनोस्ट’ और ‘पेरेस्त्रोइका’ की नीतियां दुनिया भर में चर्चा में रहीं जिसमें उन्होंने मुक्त बाज़ार और मुक्त भाषण की बात कही थी। इसे पहले राज्य और पार्टी की आलोचना लगभग अकल्पनीय बात थी।
उनकी नीति ने उन राष्ट्रवादियों को प्रोत्साहित किया जिन्होंने लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया और अन्य जगहों के बाल्टिक गणराज्यों में स्वतंत्रता के लिए दबाव डालना शुरू किया था। नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले गोर्बाचेव लम्बे समय से बीमार थे।
यह गोर्बाचेव ही थे जिन्होंने बिना रक्तपात ‘शीत युद्ध’ खत्म किया, हालांकि वो सोवियत संघ का विखंडन नहीं रोक सके। साल 1989 में साम्यवादी पूर्वी यूरोप के सोवियत ब्लॉक राष्ट्रों में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शन तेज हो गए, तब भी उन्होंने बल प्रयोग करने से परहेज किया।
क्रेमलिन ने 1956 में हंगरी और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में विद्रोह कुचलने के लिए टैंक भेजे थे, लेकिन मिखाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के 15 गणराज्यों में स्वायत्तता की आकांक्षाओं को कुचला नहीं बल्कि दो साल जो अराजकता फ़ैली उससे उपजे पतन को रोकने के लिए उन्होंने संघर्ष किया। रूस के कई नेताओं ने गोर्बाचेव को उस उथल-पुथल का दोषी माना और उन्हें कभी इसके लिए माफ नहीं किया।