इस बार गुज़रात के विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों के नेता-कार्यकर्ता जितना पसीना बहा रहे हैं, इससे पहले शायद ही उन्हें इतना पसीना कभी बहाना पड़ा हो। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इस बार गुज़रात में जो हिन्दू-मुस्लिम फैक्टर पिछले 27 साल से, ख़ासकर पिछले 20-22 साल से बहुत ही कारगर तरीक़े से काम कर रहा था, वह अब उतना काम नहीं कर रहा है। अब बड़ी संख्या में मतदाता गुज़रात में काम की बात करने लगे हैं और इस मामले में उन्हें आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सबसे ज़्यादा उम्मीदें नज़र आ रही हैं।
हालाँकि अब तक हुए विभिन्न सर्वे अलग-अलग आँकड़े बता रहे हैं। कुछ का कहना है कि 40 से 45 फ़ीसदी मतदाता आम आदमी पार्टी के चुनाव चिह्न झाड़ू का बटन दबाने के मूड में हैं। वहीं कुछ सर्वे सिर्फ़ 12 से 19 फ़ीसदी मतदाताओं को ही आम आदमी पार्टी के साथ बता रहे हैं, जबकि राज्य में फिर से भाजपा की सरकार बनने की बात कह रहे हैं। जो भी हो, यह सच है कि गुज़रात में आम आदमी पार्टी (आप) के कार्यकर्ताओं की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है। लेकिन आम आदमी पार्टी के बड़े-बड़े नेता, ख़ासकर अरविंद केजरीवाल जिस सिद्दत से गुज़रात में प्रचार में लगे हैं, उससे उनके आश्वासनों और दिल्ली व पंजाब मॉडल ने गुज़रात के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यह पहली बार है, जब बहुत-से लोग यह सवाल कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नरेंद्र मोदी ने उन्हें दिया क्या है? यह बातें लोग छिप-छिपाकर नहीं बोल रहे हैं, बल्कि ऑन कैमरा खुलकर बोल रहे हैं।
गुज़रात के लोगों के इसी रुख़ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पूरी भाजपा टीम की नींद उड़ाकर रख दी है। भाजपा के हालात यहाँ तक पहुँच गये हैं कि उसे भी काम करने की बात करनी पड़ रही है। केजरीवाल लोगों से किसी अपने की तरह बात कर रहे हैं, लोगों की समस्याएँ सुन रहे हैं और गुज़रात में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर उनके काम करने का वादा कर रहे हैं। इससे भाजपा के अनेक कार्यकर्ता चुपचाप तरीक़े से आम आदमी पार्टी के सपोर्ट में जाकर खड़े हो रहे हैं। हाल यह है कि अगर सत्ता बदलने की आहट हुई, तो भाजपा की गुज़रात इकाई के कई बड़े नेता भी आम आदमी पार्टी में जा सकते हैं। ये वे नेता हैं, जिनमें कुछ तो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बावजूद उनके गुज़रात में दख़ल से परेशान हैं, कुछ अपने मन मुताबिक मंत्रालय न पाने या मंत्रिमंडल में जगह न पाने से परेशान हैं, तो कुछ हार के डर से परेशान हैं। बता दें कि हिन्दू-मुस्लिम में फूट के दम पर भाजपा 2002 के गुज़रात दंगों के बाद से जबरदस्त जीत हासिल करती आ रही थी। लेकिन इस बार यह मुद्दा गौड़ होता दिखायी दे रहा है।
हिन्दू-मुस्लिम नहीं, काम चाहिए
अहमदाबाद के नारोल में कुछ लोगों से जब हमने पूछा कि इस बार उन्हें विधानसभा चुनाव में किसकी जीत नज़र आ रही है, तो उनमें से अधिकतर लोगों ने झाड़ू वाला बटन दबाने की बात कही। एक काका ने कहा कि युवावस्थाथी में भाजपानी सेवा करी छे, पण मणी कछु नथी। हवे बीजाने तक आपमा मांगु छुं। (मैंने अपनी जवानी के दिनों से भाजपा की सेवा की है, पर मिला कुछ नहीं। अब किसी और को भी मौक़ा देना चाहता हूँ।)
वहीं पास खड़े एक युवा आटो ड्राइवर ने सीधे-सीधे शब्दों में कहा कि तमारू कौण? जे काम पर आव्या हता। नरेंद्र भाई पण जाणे छे कि आपणी समस्या शुं छे। तेनो फोटो लेवा माटे ते नक़ली स्कूल बनावे छे। (अपना कौन? जो अपने काम आये। नरेंद्र भाई को कुछ पता भी है कि हमारी समस्या क्या है? वो तो नक़ली स्कूल बनाता है।) जब ऑटो चालक से पूछा कि कहाँ है नक़ली स्कूल, तो उसने भडक़ते हुए कहा कि मैडम तमने ख़बर नथी? आखी दुनियामां हंगामो मची गयो छे। (मैडम तुम्हें ख़बर नहीं है? पूरी दुनिया में तो हंगामा मचा है।) एक युवक ने कहा कि उसे तो नौकरी चाहिए, उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा चाहिए और यह सब केजरीवाल देंगे। जब युवक से पूछा कि तुम्हें केजरीवाल पर भरोसा है, तो उसने कहा कि भरोसा तो अपने तोड़ते हैं। बाहर वाले को पता है कि अगर वो काम नहीं करेगा, तो उसे लोग भगा देंगे। इसी तरह कुछ अन्य लोगों ने भी भाजपा और नरेंद्र मोदी से नाराज़गी जतायी; लेकिन एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने किसी भी हाल में भाजपा को ही वोट देने की बात कही। उन्होंने कहा कि नरेंद्र भाई आपणाज भाई छे। अने ज्याँ सुधी नरेंद्र भाई छे त्याँ सुधी आपणे बीजा कोईनो विचार पण करी शकता नथी। (नरेंद्र भाई अपने हैं और जब तक नरेंद्र भाई हैं, तब तक हम किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकते।)
ऐसा लगता है कि गुज़रात में अब हिन्दू-मस्लिम के नाम पर नहीं, बल्कि काम पर मतदान ज़्यादा होगा। ज़्यादातर लोगों की बातों और इच्छा के बारे में जाने के बाद तो यही लगता है। लेकिन अभी बहुत ज़्यादा लोग खुलकर नहीं बता रहे हैं कि वो किस पार्टी के पक्ष में वोट डालेंगे। फिर भी जितने लोग खुलकर सामने आ रहे हैं, उनमें साफ़तौर पर देखा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी के प्रशंसक ज़्यादा हैं। भाजपा नेताओं में इसी को लेकर एक डर बना हुआ है। लेकिन गुज़रात में भाजपा को भी हल्के में लेना ठीक नहीं है, क्योंकि अब गुज़रात को भाजपा का गढ़ माना जाता है। साथ ही गुज़रात में जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए गुज़रात नाक का सवाल है।
वर्तमान हालात
अब तक गुज़रात में भाजपा को क़रीब 8 फ़ीसदी मुसलमान मतदाता, तो 60 फ़ीसदी से ज़्यादा हिन्दू मतदाता वोट देते आ रहे थे, जिसमें पिछले साल कुछ घाटा हुआ था और गुज़रात की 182 सीटों में से कांग्रेस ने 80 सीटें हासिल कर ली थीं, जो कि पिछले कई विधानसभा चुनावों के बाद उसकी एक बड़ी जीत रही। लेकिन इस बार भाजपा को टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी आ चुकी है। ज़्यादातर चुनावी विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि आम आदमी पार्टी या तो 125 सीटों से आगे जाएगी या फिर 35 से 37 सीटें लेकर राज्य में अपना खाता खोलेगी।
हालाँकि कुछ सर्वे यह बताने में जुटे हैं कि आम आदमी पार्टी 0 से 4 सीटें ही जीत सकेगी। लेकिन जिस तरह से लोगों में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के लिए दीवानगी उमड़ रही है, उससे तो यही लगता है कि आम आदमी पार्टी के डर से ऐसे आँकड़े जानबूझकर पेश किये जा रहे हैं, ताकि जो लोग आम आदमी पार्टी के पक्ष में खड़े हैं, वो पलटकर भाजपा के पाले में चले जाएँ। कुछ विश्लेषक कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी इस बार बड़ी संख्या में भाजपा के वोट तो काटेगी ही कांग्रेस के भी काफ़ी संख्या में कांग्रेस के भी वोट काटेगी और इस प्रकार उसका मत फ़ीसद, जो अभी तक के अनुमान में सबसे अधिक 37 फ़ीसदी है; और बढ़ सकता है। क्योंकि इसमें कुछ मसले आग में घी का काम कर रहे हैं।
नक़ली स्कूल, ड्रग्स और शराब
भाजपा को नुक़सान पहुँचाने वाली जिन मसलों का ऊपर ज़िक्र किया गया है, उनमें एक मसला हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोटोशूट के लिए टैंट में तैयार किया गया नक़ली स्कूल है। इस स्कूल को लेकर गुज़रात में चर्चा इतनी बढ़ गयी है कि जिसे देखो, वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी ओछी राजनीति को लेकर निशाने पर ले रहा है। लोग उनकी इस हरकत को बहुत ओछी और गिरी हुई बता रहे हैं।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा छ: बच्चों का एक छोटा सा नक़ली कमरा बनवाकर वहाँ फोटोशूट कराना उनकी छवि पर कालिख पोतने वाला एक ऐसा मुद्दा बन गया है, जिसकी लोग कहीं निंदा कर रहे हैं, तो कहीं मज़ाक़ बना रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने शासन काल में और अब दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी राज्य में एक भी ऐसा स्कूल नहीं बनवा सके, जिसमें जाकर वह लोगों से कह सकें कि यह स्कूल उन्होंने बनवाया है। लोग सवाल कर रहे हैं कि अगर वह गुज़रात में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के डोनाल्ड ट्रंप के आने पर ग़रीबों को ढकने के लिए लाखों रुपये ख़र्च करके दीवार बनवा सकते हैं, तो एक स्कूल उनसे आज तक क्यों नहीं बना? इसका मतलब साफ़ है कि उनकी नीयत लोगों को शिक्षा और रोज़गार देने की नहीं है। वहीं गुज़रात में हर साल नक़ली शराब से लोगों के मरने से और राज्य में नक़ली शराब, ड्रग्स आदि के फलते-फूलते धंधे से भी लोग काफ़ी परेशान हैं। इसके अलावा और भी कई मुद्दे लोगों को अब याद आने लगे हैं, जिनमें बर्बाद होता कपड़ा उद्योग भी है, जिसके सहारे एक बड़ी आबादी अपना पेट भरती आयी है। बहुत-से लोगों के सिर से स्टेच्यु ऑफ यूनिटी का भूत भी उतर चुका है और वे मान रहे हैं कि इससे राज्य के लोगों को कोई ख़ास फायदा नहीं हो रहा है, उन्हें तो रोज़गार चाहिए, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ चाहिए।
उधर भाजपा के बड़े नेता लगातार बैठकें कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि भाजपा की इन बैठकों में आम आदमी पार्टी के काट पर ही बात होती है। ऐसी ख़बरें हैं कि हाल ही में देश के गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा है कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को हल्के में न लें। इसका मतलब साफ़ है कि भाजपा में एक डर आम आदमी पार्टी ने बैठा दिया है। इधर मोरबी पुल हादसे में क़रीब दो सौ लोगों की मौत हो गयी, जिसका असर भी गुजरात चुनाव में दिखेगा। देखना यह है कि गुज़रात का ऊँट किस करवट बैठता है?