गुजरात के सूरत कोर्ट से सज़ा पा चुके कांग्रेस नेता राहुल गाँधी अमेरिका दौरे पर हैं। भाजपा नेता राहुल गाँधी को उनके बयानों को लेकर घेरे हुए हैं। उनका आरोप है कि राहुल गाँधी देश की अस्मिता से खिलवाड़ कर रहे हैं। दरअसल भाजपा नेता राहुल गाँधी पर एक ऐसी लगाम कसना चाहते हैं, जिससे वह भारत की राजनीति से बाहर हो जाएँ। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। सूरत के सेशन कोर्ट से सज़ा पाने और सज़ा में इसी कोर्ट से राहत न मिलने के बावजूद राहुल गाँधी की विदेश यात्रा भाजपाइयों की आँख की किरकिरी बनी हुई है और वे अब राहुल गाँधी पर गुजरात हाई कोर्ट का फ़ैसले के इंतज़ार में हैं। कांग्रेस के नेताओं को भी गुजरात हाई कोर्ट के फ़ैसले का बेसब्री से इंतज़ार है।
बता दें कि राहुल गाँधी ने सूरत कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाने के लिए गुजरात हाई कोर्ट में अर्जी लगायी थी, जिस पर बीती 2 मई को सुनवाई तो पूरी हो गयी; लेकिन कोर्ट की गर्मी की छुट्टियों की वजह से फ़ैसला नहीं आ पाया है। अन्तिम सुनवाई में हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एच.एम. प्राच्छक ने अंतरिम ऑर्डर देने से मना कर दिया था और कहा था कि इस मामले में 4 जून के बाद फ़ैसला सुनाया जाएगा। अब राहुल गाँधी वाले मामले के साथ-साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों की सुनवाई जारी है।
बता दें कि राहुल गाँधी के मोदी सरनेम वाले 2019 के बयान को लेकर उन पर मानहानि मामले की हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी होने के बाद कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल गाँधी की सज़ा ख़ारिज हो जाएगी। जबकि भाजपा नेता इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि सज़ा माफ़ नहीं होगी। दरअसल भाजपा नेताओं को राहुल की सज़ा से मतलब नहीं है, बल्कि इस बात से ज़्यादा मतलब है कि किस तरह से राहुल गाँधी को राजनीति से बाहर किया जाए। भाजपा नेता अच्छी तरह जानते हैं कि राहुल गाँधी कांग्रेस का प्रमुख चेहरा हैं और कांग्रेस का भविष्य उन पर बहुत हद तक निर्भर करता है। जबसे राहुल गाँधी भाजपा की केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले करने लगे हैं, तबसे वह भाजपा नेताओं को और भी चुभने लगे हैं।
सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना राहुल गाँधी के राजनीति में सक्रिय रहते कभी पूरा नहीं होगा। सोनिया गाँधी भी भाजपा के इस सपने में रोड़ा हैं; लेकिन वह उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहाँ से अब उनका राजनीतिक सफ़र बहुत लम्बा नहीं है। वैसे भी वह बीमार रहती हैं। लेकिन राहुल गाँधी और उनकी बहन प्रियंका गाँधी राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हैं, जिसमें राहुल गाँधी केंद्र हैं। कांग्रेस के नेताओं और राहुल गाँधी की वकीलों को भी यह उम्मीद है कि फ़ैसला राहुल गाँधी के पक्ष में होगा; लेकिन कब यह अभी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि अभी इस मामले हाई कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार सभी को है कि वो कब फ़ैसला सुनाएगा? भाजपा नहीं चाहती कि राहुल गाँधी के हक़ में फ़ैसला हो, साथ ही वह राहुल के संसदीय क्षेत्र वायनाड लोकसभा के उप चुनाव से भी राहुल गाँधी को दूर देखना चाहती है।
इस लड़ाई में दिलचस्प मोड़ यही है कि एक तरफ़ राहुल गाँधी पर गुजरात हाई कोर्ट में फ़ैसला नहीं आया है, तो दूसरी तरफ़ राहुल गाँधी की सांसदी छिन जाने के बाद ख़ाली हुई वायनाड सीट पर उप चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने प्रक्रिया शुरू कर दी है। कांग्रेस इस मामले में चुनाव आयोग पर आरोप लगा रही है कि आयोग ने यह क़दम उठाकर भाजपा के पक्ष में एक चाल चली है, ताकि राहुल गाँधी चुनाव में हिस्सा न ले सकें। क्योंकि जब तक राहुल गाँधी सज़ा से मुक्त नहीं हो जाते, उनकी संसद सदस्यता बहाल नहीं हो सकेगी। अगर इस बीच उनकी सीट पर उपचुनाव हो जाते हैं और भाजपा जीत हासिल कर लेती है, तो राहुल गाँधी की सांसदी, जिसकी उम्मीद अभी तक कोर्ट के फ़ैसले पर टिकी है, ख़त्म हो जाएगी। इसमें भी दिक्क़त यह है कि अगर राहुल गाँधी की सज़ा बरक़रार रहती है, तो फिर वो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मैदान में नहीं उतर सकेंगे। लेकिन राहुल गाँधी के पास हाई कोर्ट से नाउम्मीद होने पर सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता बचा रहेगा।
कांग्रेस का कहना है कि चुनाव आयोग ने गुजरात हाई कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार किये बग़ैर वायनाड लोकसभा क्षेत्र में उप चुनाव की तैयारी करके यह बता दिया है कि वह एक रहस्यमय और संदिग्ध भूमिका में भाजपा के साथ है। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से पूछा है कि उसने वायनाड लोकसभा क्षेत्र में उप चुनाव के लिए किस प्राधिकरण के निर्देश पर काम करना शुरू किया है? कांग्रेस ने अडानी समूह के साथ केंद्र सरकार के संदिग्ध रिश्ते पर भी उँगलियाँ उठायी हैं। कांग्रेस ने कहा है कि भाजपा को राहुल गाँधी से डर है, इसलिए वह किसी भी हाल में वायनाड लोकसभा क्षेत्र में 2019 के राहुल गाँधी के भाषण के बाद उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जल्दबाज़ी करती रही है।
वायनाड सीट पर उप चुनाव की हलचल ने कांग्रेस और भाजपा के बीच नोंकझोंक का एक और रास्ता ऐसे समय में खोला है, जब राहुल गाँधी विदेश में हैं और प्रधानमंत्री मोदी पर निरंकुशता का आरोप लगा रहे हैं। इधर देश में साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा सबसे ज़्यादा सक्रिय है। गुजरात में भाजपा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सभी 26 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार उसे कुछ ख़तरा नज़र आ रहा है, जिसके लिए उसने यहाँ चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए गुजरात में मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। क्योंकि गुजरात में कांग्रेस कमज़ोर है और राहुल गाँधी को सज़ा भी गुजरात से ही मिली है, इसलिए कांग्रेस के पैर उखाडऩे की आख़िरी कोशिश भाजपा गुजरात से ही कर रही है। लेकिन उसकी मुश्किल यह है कि इस बीच कांग्रेस ने कर्नाटक जीतकर भाजपा को एक बड़ी पछाड़ मार दी है।
गुजरात की बात करें, तो विधानसभा चुनावों में भाजपा को रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले भाजपा गुजरात अध्यक्ष सीआर पाटिल कांग्रेस के सभी नेताओं पर ख़ुद को भारी मान रहे हैं। पाटिल ने गुजरात की सभी लोकसभा सीटों को पाँच लाख वोटों के अंतर से जीतने की योजना बनायी है, जिसके लिए भाजपा मिशन हैवीवेट हंट शुरू कर चुकी है। इसके तहत भाजपा नेता दूसरे दलों में शामिल अच्छे जनाधार वाले पूर्व भाजपा नेताओं को अपने साथ शामिल करने की कोशिश में लगे हैं। यह काम भाजपा उन क्षेत्रों में ख़ासतौर पर कर रही है, जहाँ कांग्रेस मज़बूत है। भाजपा के निशाने पर दूसरे नंबर की पार्टी आम आदमी पार्टी है, जिसे वो मज़बूत नहीं होने देना चाहती। कांग्रेस से 35 साल से जुड़े और सात बार के विधायक गोवाभाई रबारी की भाजपा में जाने की चर्चा है, क्योंकि उनकी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल से दो मीटिंग हो चुकी हैं। अगर गोवाभाई भाजपा में जाते हैं, तो बनासकांठा सीट पर कांग्रेस की हार तय है। हालाँकि बनासकांठा की विधानसभा सीट इस समय भाजपा के क़ब्ज़ें में है, क्योंकि यहाँ से गोवा भाई के बेटे संजय रबारी इस बार मैदान में थे और हार गये थे।
दूसरी ओर कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व अध्यक्ष दिवंगत अहमद पटेल के बेटे फ़ैज़ल पटेल द्वारा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल से मुलाक़ात की तस्वीरें जारी करना भी कांग्रेस के लिए एक झटका है। हालाँकि अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल कांग्रेस में ही हैं। कांग्रेस के विधायक दल के नेता अमित चावड़ा पूरी कोशिश में हैं कि गुजरात में लोकसभा चुनावों में पार्टी किसी तरह अपनी इज़्ज़त बचा सके। विधानसभा चुनावों में हार की वजह जानने के लिए कांग्रेस ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन भी किया था; लेकिन उसे अभी तक सही कारणों का पता नहीं चल सका है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनावों में उलझे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के अध्यक्ष पद सँभालने के बाद कांग्रेस में का$फी ऊर्जा आयी है, कर्नाटक चुनाव जीतने के बाद और भी। लेकिन गुजरात में कांग्रेस की मुश्किलें अभी कम नहीं हो रही हैं, जिससे दूसरे चुनावों में उस पर दबाव बनेगा। दिलचस्प यह है कि गुजरात और राजस्थान दोनों पड़ोसी राज्य हैं। एक तरफ़ गुजरात में कांग्रेस के पैर उखड़े हुए हैं, तो दूसरी तरफ़ राजस्थान में भाजपा के पैर उखड़े हुए हैं। राजस्थान में लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा के चुनाव हैं।
भाजपा चाहती है कि राजस्थान पर किसी भी तरह से उसका क़ब्ज़ा हो, ताकि गुजरात के साथ-साथ वह लोक सभा मे राजस्थान से भी कांग्रेस को पूरी तरह उखाडक़र फेंक सके। भाजपा इसके लिए हर एंगल से रणनीति बनाकर काम कर रही है। इसलिए कांग्रेस नेताओं को बहुत सावधान और सक्रिय होने की ज़रूरत है।