गांव और शहर में महंगाई का अंतर अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगा

महंगाई के असर की मार सबसे ज्यादा मौजूदा समय में अगर कहीं पड़ रही है तो वो है देश के गांव। गांव के लोगों ने तहलका संवाददाता को बताया कि शहर में महंगा ही सही पर सामान मिल जाता है।पर गांव में महंगे से महंगे दर पर सामान नहीं मिल पा रहा है। इसकी मूल की जड़ में अगर कोई है तो शासन-प्रशासन की अनदेखी है।
गांव के लोगों का कहना है कि एक तो डीजल-पेट्रोल के दाम रोज बढ़ रहे है। सो किराया भाड़ा बढ़ा है। लेकिन जो ट्रांसपोर्ट वाले है वे गांवों में जाने से बचते है। इसकी वजह है सड़कों का गांव संपर्क का टूटा जाना और अर्थव्यवस्था का सही नहीं होना।
गांव में फसल आने पर गांव वालों के पास ही नगद में पैसा होता है। ग्रामीण मंच से जुड़े परम सिंह का कहना है कि सबसे दुखद और मनमर्जी का आलम ये है कि जो रेट ट्रांसपोर्ट वालों ने तय किये है वे बढ़ा कर जिससे अधिक भाड़ा लग रहा है। वे इन दिनों गांव में सामान की सप्लाई सुचारू करने से बच रहे है। उनका कहना है कि सड़कों की जर्जर हालत का होना है। इसलिये तो गांव में साबुन, बिस्कुट सहित अन्य सामानों की बिक्री महंगे दामों पर हो रही है। किसान भी अपनी फसल शहरों में आकर बेंचने से बच रहे है। जिसकी वजह है किराया भाड़ा का बड़ जाना।
बताते चले, इन दिनों जो किराया भाड़ा के बढ़ने से असंतुलन बढ़ा है। उससे देश में प्रत्येक दिन महंगाई बढ रही है। जिससे जमाखोरी करने वाले चांदी काट रहे है। आर्थिक मामलों के जानकार डाॅ रमन पचौरी का कहना है कि सरकार का दायित्व और जिम्मेदारी तो ये बनती है कि वे गांव और शहर के बीच फैली असमानता को दूर करें अन्यथा गांव और शहर के बीच महंगाई का अंतर देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगी।