देशभक्त, लेखक को माफ करें कि वेवेल (1943 से 1947 तक भारत का वायसरॉय) को भी स्वर्ग में दिखाया गया है, मगर मैं क्या करता अपने यहां परंपरा है कि घोर से घोर पापी भी स्वर्गवासी ही होता है
वेवेल: मिस्टर गैंडी, अब आप क्या कहेंगे? हमको तो आप सब बहुत ही जालिम कहता था. अब! आप क्या ये बताएगा कि जब आपका देश कभी हमारा गुलाम था, तब लाठी चार्ज अधिक हुआ था, कि अब जब आपका देश आजाद है? टेल मी, मिस्टर गैंडी, अब तो आपकी सरकार है, कोई अंग्रेज नहीं है फिर ऐसा क्यों… वाई डू सो? आप ने हमारे अगेंस्ट नान कोऑपरेशन मूवमेंट (असहयोग आंदोलन) किया, आपको याद होगा. मगर अब आपके आजाद हिंदुस्तान में क्या हो रहा है? देखिए, गवर्नमेंट ऑफिसेज में कैसा नान कोऑपरेशन चल रहा है! बिना रिश्वत, सिफारिश, चापलूसी के कोई काम ही नहीं होता. आपको याद होगा, आपने डिसओबीडियेंट मूवमेंट (सविनय अवज्ञा आंदोलन) चलाया था. बट आज उसकी क्या जरूरत है? जिधर देखो कानून को ब्रेक करता है. आपने एक और नारा दिया था, करो या मरो …डू और डाई वाला… इस स्लोगन ने हमारी नींद उड़ा दी थी. अब क्या हो रहा है? मैं पूछता हूं, जो सूचना मांगता है, तो उसे गोली से उड़ा दिया जाता है. आप तो देख ही रहा होगा, कितने आरटीआई एक्टिविस्ट्स मार दिया गया है. यह कैसा सिस्टम है? कुछ तो बोलिए, आप बोलते क्यों नहीं? मिस्टर गैंडी! प्लीज से समथिंग!
गांधी: हे राम!
वेवेल: आप लोगों का सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का है. आई मस्ट से. अरबन में थर्टी टू और रूलर एरिया में ट्वेंटी सिक्स, अगर रोज कमाता है, तो वह बिलो पॉवर्टी लाइन में नहीं माना जाएगा. हाऊ फनी! मैं जानना चाहता हूं, जब आप लोग हर चीज के लिए वेस्ट (पश्चिम) में देखता है, तो क्यों पॉवर्टी के लिए इंटरनेशनल नॉर्म्स नहीं अपनाता? मिस्टर गैंडी टेल मी वन थिंग… आप लोग कहता था कि हम अंग्रेज डिवाइड ऐंड रूल करता था. राइट है एप्सल्यूटली राइट. बट आप ये कहो कि हमारे टाइम दंगा अधिक हुआ कि अब? अब आपको यूनाइट होने से किसने रोका है? आप ही कहो कि इलेक्शन के टाइम पोलिटिकल पार्टीज कास्ट को देखकर कैंडिडेट को टिकट क्यों देता है? मिस्टर गैंडी, कुछ तो कहिए!
गांधी: हे राम!
वेवेल: हम तो विदेशी था, इसलिए आपके कंट्री को लूटा, ऐसे-वैसे लॉ बनाया जिससे ओनली हमें प्राफिट हो और हम अच्छी तरह से आप सबके ऊपर रूल कर सकें. बट मिस्टर गैंडी, अब भी आप सब हमारे बनाए हुए कानून, पॉलिसी पर क्यों चलता है? आज जगह-जगह लोग धरना कर रहा है, मगर पहले परमिशन लेकर. हमारे रूल में मार्च निकालने के लिए कोई परमिशन नहीं लेता था आप लोग. मगर आज इतना वॉयलेंस, एनार्की (अराजकता) क्यों दिखता है? आज किसी भी पब्लिक से पूछो वह कहेगा कि नेता नहीं सुनता, अफसर नहीं सुनता, इवेन सरकार नहीं सुनती. यही तो हमारे टाइम भी था. वेन (जब) आज भी सेम कम्प्लेन (वही शिकायतें), प्राब्लम सेम (समस्या वही), मूवमेंट भी ऑलमोस्ट (लगभग) वही, और आप सब खुद को आजाद कहता है. राजसत्ता के रूप में तो हम निकल ही गए हैं, लेकिन क्या आपके देशवालों ने हमें ‘प्रवृत्ति’ के रूप में नहीं पाल रखा है? अब तो आपको कुछ कहना ही पड़ेगा….
गांधी: हे राम!
– अनूपमणि त्रिपाठी