यह 2004 की बात है जब सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुनकर खुद के ‘त्याग’ से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच ख़ास जगह बना ली थी। अब 18 साल बाद जब पांच राज्यों में पार्टी की हार के कारण बने दबाव के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक रविवार को हुई तो सोनिया गांधी के खुद, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के कांग्रेस छोड़ देने की ‘पेशकश’ ने वहां उपस्थित नेताओं को सन्न कर दिया। और सोनिया गांधी की इस पेशकश का विरोध करने के लिए अपनी सीट से जो नेता सबसे पहले उठा वो और कोई नहीं गुलाम नबी आज़ाद थे, जिन्होंने एक रात पहले ही अपने घर में असंतुष्ट नेताओं की बैठक कर ‘गांधी परिवार’ पर हमला बोला था।
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक सोनिया गांधी ने जब यह पेशकश की तो आज़ाद अपनी सीट से उठ खड़े हुए और बहुत बेचैनी भरे शब्दों में ‘नो-नो’ कहते हुए कुछ आगे चले गए और हाथ ऊपर उठाते हुए सोनिया गांधी की पेशकश का विरोध किया। इसके बाद बैठक में कुछ पल शांति छा गयी। नेता सन्न से बैठे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहा जाए। सोनिया गांधी खुद इस पेशकश के बाद ‘इमोशनल’ दिख रही थीं।
सीडब्ल्यूसी सदस्य के नाते बैठक में जी-23 के कुछ नेता भी थे। एक रात पहले नतीजों पर अपना गुस्सा जाहिर करने वाले इन नेताओं की बोलती सोनिया गांधी की पेशकश के बाद बंद थी। कोई कुछ नहीं बोल पाया। बैठक में उपस्थित एक सदस्य ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर ‘तहलका’ को बताया कि बैठक में इसके बाद ‘बागी’ नेता कुछ नहीं बोल पाए और दूसरे विषयों पर बात हुई।
दरअसल सोनिया गांधी ने बैठक में कहा कि यदि हमारे सदस्यों को लगता है कि ‘गांधी परिवार’ के कारण कांग्रेस का नुकसान हो रहा है और परिवार के कारण कांग्रेस की हार हो रही है तो ‘मैं, राहुल और प्रियंका कांग्रेस छोड़ने के लिए तैयार हैं’। सोनिया गांधी के इतना कहते ही सीडब्ल्यूसी की बैठक में सन्नाटा छा गया। सबसे पहले आज़ाद उठे और उन्होंने इसका विरोध किया। सोनिया की पेशकश से खामोश हो कुछ समझ नहीं आया कि क्या कहें।
जी-23 के जो नेता बैठक में नेतृत्व का मुद्दा उठाने का प्रण करके गए थे, उनकी जुबां को ताला लग चुका था और वे कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहे। इसके बाद चुनाव पर चर्चा हुई और यह माना गया कि भाजपा की नाकामियों को पार्टी लोगों के सामने मजबूती से नहीं ला पाई।
सीडब्ल्यूसी की इस बैठक के बाद गांधी परिवार पर उठ रहे सवालों पर लगाम लग गयी है क्योंकि जो लोग खुद (जी-23) नेतृत्व के मसले पर सबसे ज्यादा मुखर थे, उन्होंने ही एक तरह से गांधी परिवार के नेतृत्व पर मुहर लगा दी। एक दिन पहले ही इन नेताओं ने गुलाम नबी आज़ाद के घर पर राजस्थान के युवा कांग्रेस नेता सचिन पायलट या इस तरह के किसी युवा और सक्रिय नेता को नेतृत्व सौंपने की जोरदार वकालत की थी।
जाहिर है कांग्रेस के भीतर अब नेतृत्व का मसला इसके संगठन चुनाव तक नहीं उठा पायेगा। हो सकता है उस समय यह नेता अपनी तरफ से किसी चुनाव में खड़ा करें। रविवार की बैठक में राहुल गांधी को अध्यक्ष का जिम्मा सौंपने की भी जोरदार वकालत हो गयी। फिलहाल तय है कि संगठन चुनाव तक कांग्रेस गांधी परिवार छत्रछाया में ही रहेगी और शायद संगठन चुनाव के बाद भी !