अरुणाचल के तीन खिलाडिय़ों को दिया स्टेपल वीजा, भारत को करनी चाहिए सख़्ती
चीन ने एक नक़्शा जारी कर एक महीना पहले भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताया था। अब उसने अरुणाचल के तीन खिलाडिय़ों को वीजा नहीं दिया, जिस कारण वे वहाँ के राज्य हांगझोऊ में चल रहे 19वें एशियाई खेलों में देश के अन्य खिलाडिय़ों के साथ नहीं जा सके। चीन एक के बाद एक विवाद खड़े करने का आदी रहा है। सीमा पर वह तनाव बनाये रखता है। ऐसे में बहुत-से भारतीय विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि भारत चीन के साथ भी वैसी ही सख़्ती दिखाए, जैसी सख़्ती उसने कनाडा के ख़िलाफ़ वहाँ के प्रधानमंत्री द्वारा खालिस्तानी कार्यकर्ता की हत्या का आरोप लगाने के विरोध में दिखायी है।
वीजा न देने की चीन की इस हरकत का नुक़सान उन भारतीय खिलाडिय़ों को हुआ, जो पूरी तैयारी करने के बावजूद 19वें एशियाई खेलों में हिस्सा लेने से वंचित हो गये। चीन के इस क़दम पर भारत ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को चीन न भेजकर विरोध ज़रूर दर्ज किया; लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है, जब चीन ने ऐसा किया हो। भारत के तीन खिलाडिय़ों- तेगा ओनिलु, लामगु मेपुंग और वांगसू न्येमान को हवाई अड्डे से वापस लौटना पड़ा। वैसे चीन ने जब अरुणाचल प्रदेश के इन तीनों एथलीट्स को वीजा जारी नहीं किया, तो सोशल मीडिया पर चीन की ख़ूब निंदा हुई। इससे पहले 26 जुलाई को भी विश्व विश्वविद्यालय खेलों के लिए इन्हीं तीनों खिलाडिय़ों को चीन ने नत्थी (स्टेपल) वीजा जारी कर दिया था। विरोध में भारत सरकार ने पूरी वूशु टीम को ही एयरपोर्ट से वापस बुला लिया था। उस समय भी चीन को फ़ज़ीहत झेलनी पड़ी थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस मुद्दे पर चीन पर निशाना साधते हुए कहा- ‘भारत सरकार को पता चला है कि चीनी अधिकारियों ने पूर्व-निर्धारित तरीक़े से अरुणाचल प्रदेश के कुछ भारतीय खिलाडिय़ों को चीन के हांगझोऊ में होने वाले 19वें एशियाई खेलों में मान्यता और प्रवेश से वंचित करके उनके साथ भेदभाव किया है। भारत दृढ़ता से जातीयता के आधार पर भारतीय नागरिकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार को अस्वीकार करता है।’
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस मसले पर कहा- ‘भारत सरकार को माँग करनी चाहिए कि चीन को भविष्य में किसी भी अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता की मेज़बानी के अधिकार से तब तक वंचित किया जाए, जब तक वह हर मान्यता प्राप्त एथलीट को अनुमति नहीं देता।’ एक्स (पहले ट्विटर) पर अपनी पोस्ट में थरूर ने लिखा- ‘हर कोई हांगझोऊ एशियाई खेलों में भारत के प्रतिदिन जीते जा रहे पदकों का जश्न मना रहा है; लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन ने अपमानजनक तरीक़े से तीन भारतीय एथलीटों को अपने देश में प्रवेश की अनुमति देने से इनकार कर दिया था; क्योंकि वे अरुणाचल प्रदेश में पैदा हुए हैं।’
ओलंपिक काउंसिल ऑफ एशिया (ओसीए) की भूमिका वीजा मामले में चीन सरकार समर्थक रही। ओसीए की ‘एथिक्स कमेटी’ के अध्यक्ष वेई जिजहोंग ने दावा किया- ‘इन भारतीय एथलीटों को चीन में प्रवेश करने के लिए पहले ही वीजा मिल चुका है। चीन ने किसी भी वीजा से इनकार नहीं किया। दुर्भाग्य से इन एथलीट ने इस वीजा को स्वीकार नहीं किया।’ जिजहोंग ने जो वीजा देने का दावा किया, वह स्टेपल वीजा था, जिसका भारत सरकार ने कड़ा विरोध जताया। स्टेपल वीजा के मायने हैं कि अरुणाचल को चीन भारत का हिस्सा न मानकर उसे विवादित क्षेत्र मानता है।
ओछी हरकतें करता रहता है चीन
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत सरकार को चीन पर दबाव बनाना चाहिए। चीन से विदेशी कम्पनियाँ इंडोनेशिया और भारत शिफ्ट हो रही हैं। ऐसे में यह सही समय है कि दबाव में चल रहे चीन की हेकड़ी का जबाव उसी भी भाषा में दिया जाए। कनाडा को भारत ने दबाव में लिया है; चीन को भी लिया जा सकता है। वैसे तो विदेश मंत्रालय ने इस मसले पर चीन से कड़ा ऐतराज़ जताया। हालाँकि जानकारों का कहना कि यह काफी नहीं है। चीन की इस दादागीरी को चुनौती देनी चाहिए; क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। चीन कभी भारत के अरुणाचल प्रदेश को अपने नक्शे में दिखाकर उसे अपना हिस्सा बता देता है; कभी कोई और हरकत कर देता है।