उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन को लेकर कांग्रेस के भीतर उठापटक का आलम यह है कि पार्टी के दो कद्दावर नेता प्रमोद तिवारी और रीता जोशी खुलकर एक-दूसरे के सामने आ गए हैं. पार्टी अब सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे वाली रणनीति खोजने में लगी है. जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट
कांग्रेस का मिशन 2012 यानी 22 साल पहले पार्टी उत्तर प्रदेश में जो सत्ता गंवा चुकी है उसे वापस पाने की जी-तोड़ कोशिश. लेकिन फिलहाल पार्टी में जो हो रहा है उससे वापसी की यह राह काफी फिसलन भरी दिखती है. विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया महीनों से चल रही थी. इसके बावजूद अगस्त के अंत में 73 लोगों की पहली सूची जारी होने के साथ ही विरोध की सुगबुगाहट होने लगी. दूसरी सूची की नौबत आने तक आलम यह हो गया कि पहली सूची के आने के बाद जो बगावत पार्टी की चारदीवारी के भीतर सुलग रही थी वह धधक कर सरेआम हो गई है.
दिलचस्प यह है कि यह बगावत और विरोध आम कार्यकर्ता में नहीं बल्कि प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी व पार्टी के दूसरे कद्दावर नेता प्रमोद तिवारी के बीच दिख रहा है. यह हाल तब है जब पार्टी के महासचिव राहुल गांधी व दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता बराबर प्रत्याशियों के चयन पर नजर गड़ाए हुए हैं और प्रदेश के नेताओं को बार-बार अनुशासन का पाठ पढ़ाते रहते हैं.
पहली सूची जारी होने के बाद विरोध की सुगबुगाहट राजधानी लखनऊ की उस कैंट सीट को लेकर शुरू हुई थी जिससे पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के चुनाव लड़ने की बात सार्वजनिक हुई. उक्त सीट पर लंबे समय से दावेदारी जता रहे पार्टी के सभासद राजेंद्र सिंह गप्पू ने इसका विरोध शुरू कर दिया. गप्पू कहते हैं, ‘1995 में मैं सबसे पहले कैंट विधानसभा क्षेत्र के ओमनगर वार्ड से सभासद बना. उसके बाद लगातार तीन बार उसी सीट से चुनाव जीता. 2002 के विधानसभा चुनाव में जब पार्टी का प्रदेश में कोई जनाधार नहीं था और ज्यादातर प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी उस समय मुझे कैंट सीट पर करीब 21 हजार वोट मिले थे. अब प्रदेश में जब पार्टी की स्थिति सुधर रही है तो प्रदेश अध्यक्ष रीता जोशी ने कैंट सीट अपने लिए रख लिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ से जब वे चुनाव लड़ी थीं तो कैंट विधानसभा क्षेत्र ही ऐसा था जहां से उन्हें अन्य पार्टियों से पांच हजार वोट अधिक मिले थे.’ गप्पू आगे बताते हैं, ‘कैंट सीट के लिए दिग्विजय सिंह व रीता जोशी दोनों ही नेताओं से काफी पहले ही बात हो चुकी थी. लेकिन जब यह पता चला कि कैंट से रीता जोशी खुद चुनाव लड़ेंगी तो मुझे लखनऊ की ही दूसरी विधानसभा सीट सरोजनीनगर से लड़ाने का आश्वासन प्रदेश अध्यक्ष की ओर से दिया गया. बाद में सरोजनीनगर सीट से भी प्रदेश अध्यक्ष मुकर गईं.’ जिस पार्टी में 16 साल बिताए उससे टिकट कटने का रंज गप्पू को ऐसा हुआ कि सितंबर के पहले सप्ताह में उन्होंने पुरानी पार्टी का दामन छोड़ साइकिल की सवारी करने का मन बनाया और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. कैंट सीट से रीता जोशी के मैदान में आने के बाद कुल तीन ब्राह्मण प्रत्याशी अभी तक मैदान में आ चुके हैं. बसपा ने इस सीट से जहां पप्पू त्रिवेदी को उम्मीदवार बनाया है वहीं भाजपा ने अपने वर्तमान विधायक सुरेश तिवारी को मैदान में उतारा है.
पार्टी का एक गुट वर्तमान अध्यक्ष के बराबर कार्यकारी अध्यक्ष बनवाने की जुगत में भी दिल्ली के कुछ बड़े नेताओं से संपर्क साधने में लगा हैकांग्रेस की पहली सूची में विरोध सिर्फ कैंट सीट को लेकर ही नहीं हुआ. पार्टी नेताओं के बीच बिजनौर की नगीना विधानसभा सीट पर फूल सिंह को प्रत्याशी बनाए जाने का भी खूब विरोध हुआ. पहली सूची में फूल सिंह का नाम आने के बाद से ही बिजनौर में कांग्रेस के एक खेमे ने विरोध शुरू कर दिया है. यह विवाद पार्टी कार्यालय से लेकर बिजनौर की सड़कों तक पर देखने को मिला.
पहली सूची से उपजे विवाद को कांग्रेस हाईकमान ने काफी हल्के में लिया जिसका नतीजा यह रहा कि दूसरी सूची को अंतिम रूप देने के लिए दिल्ली में हुई बैठक के दौरान प्रदेश अध्यक्ष रीता जोशी व विधायक प्रमोद तिवारी के बीच जो कुछ हुआ वह पार्टी को शर्मसार करने के लिए काफी था.
सूत्र बताते हैं कि पांच सितंबर को दिल्ली में जो बैठक हो रही थी उसमें 50-60 प्रत्याशियों के नाम तय होने थे. शुरू में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन बीच में तिवारी खेमे ने पूर्वी उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाली पार्टी के एक प्रवक्ता सहित कुछ अन्य लोगों को टिकट देने की वकालत शुरू कर दी. जिस पार्टी प्रवक्ता का समर्थन तिवारी और उनका खेमा कर रहा था उसका विरोध रीता जोशी ने यह कहते हुए किया कि पिछले कई चुनावों में उसे टिकट दिया गया लेकिन वह हार गया. इसी तरह उनका विरोध दूसरे नामों पर भी रहा. बैठक में आरोप-प्रत्यारोप इतना बढ़ गया कि एक-दूसरे पर रुपये लेकर टिकट बेचने तक की बात उठ गई. सूत्र बताते हैं कि बातचीत से शुरू हुई बैठक में बहस इतनी तल्ख हो गई कि रीता जोशी बैठक को बीच में ही छोड़ कर चली गईं.
बैठक में उत्तर प्रदेश के शीर्ष नेताओं ने जो फजीहत कराई उसकी जानकारी जब राहुल गांधी को हुई तो उन्होंने बीच-बचाव का जिम्मा खुद संभाला. लिहाजा प्रमोद तिवारी व रीता जोशी ने एक साथ आकर बयान दिया कि दिल्ली में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जैसी कि अफवाहें हैं. टिकट मिलने की आस लगाए एक पूर्व विधायक चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘सवाल यह उठता है कि जब दोनों नेताओं के बीच कोई विवाद हुआ ही नहीं तो आखिर सफाई देने की नौबत क्यों आ गई.’ उक्त नेता के मुताबिक प्रमुख विपक्षी पार्टियों सपा व बसपा ने अपने-अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं और कांग्रेस अभी पहली सूची के विवाद से ही नहीं उबर पा रही है. वे कहते हैं, ‘जरूरत विपक्षी पार्टियों से दो-दो हाथ करने की है तो हमारी पार्टी में टिकट को लेकर ही घमासान हो रहा है.’
टिकटों को लेकर प्रदेश के शीर्ष कांग्रेसियों के बीच मचे घमासान का असर पार्टी के दूसरे कार्यकर्ताओं पर भी देखने को मिल रहा है. पार्टी के उपाध्यक्ष व पूर्व मंत्री रणजीत सिंह जूदेव ने विधिवत बयान जारी करके बिना नाम लिए दिल्ली की बैठक में रीता जोशी पर आरोप लगाने वालों पर निशाना साधा. जूदेव के मुताबिक छानबीन समिति पूरी गंभीरता से प्रत्याशियों के नामों पर विचार कर रही है और टिकटों के बंटवारे के बारे में भ्रामक प्रचार केवल वे लोग कर रहे हैं जो हमेशा विरोधी दलों के साथ मिलकर कांग्रेस को कमजोर करने का प्रयास करते हैं. रीता जोशी के समर्थन में पूर्व मंत्री जूदेव ने पार्टी हाईकमान से यहां तक मांग कर डाली कि विरोधी दलों से सांठ-गांठ करके कमजोर प्रत्याशी खड़े करने वाले षड्यंत्रकारी तत्वों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाया जाए.
अपनी ही पार्टी के नेताओं पर विरोधी पार्टियों से सांठ-गांठ करने का आरोप पार्टी के ही एक पूर्व मंत्री द्वारा लगाया जाना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि हाईकमान की ़डांट-डपट का असर नीचे तक नहीं हुआ है और अंदरखाने में अब भी जबर्दस्त मतभेद बना हुआ है. चुनाव के समय भी पार्टी छोटे-छोटे खेमों में बंटी नजर आ रही है. सूत्र बताते हैं कि पार्टी का एक गुट वर्तमान अध्यक्ष के बराबर कार्यकारी अध्यक्ष बनवाने की जुगत में भी दिल्ली के कुछ बड़े नेताओं से संपर्क साधने में लगा है.
फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष रीता जोशी पार्टी के किसी भी नेता से टिकट के बंटवारे को लेकर हुए विवाद की बात को सिरे से नकारती हैं. लेकिन इतना जरूर कहती हैं कि दूसरी सूची में 17-18 नाम ऐसे थे जिनका उन्होंने विरोध किया था. वे कहती हैं, ‘कुछ लोग ऐसे लोगों को टिकट देना चाह रहे थे जो पिछले कई चुनाव तो लड़े लेकिन अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. इनमें कुछ ऐसे नाम भी थे जो बैकडोर से पार्टी में शामिल होकर सिर्फ चुनाव लड़ने ही आए हैं. इन लोगों के स्थान पर मैं उनको टिकट देने की मांग कर रही थी जो सालों से ब्लॉक प्रमुख आदि हैं या पूरी निष्ठा से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं.’
फिलहाल विवादों के बाद दूसरी सूची का मामला अधर में लटक गया है. कांग्रेस हाईकमान के सामने डैमेज कंट्रोल का संकट है. सांप भी मर जाए और लाठी भी बची रहे वाली रणनीति खोजना उसके लिए काफी मुश्किल होगा.