येवगेनी के विद्रोह के सूत्रधार को लेकर हैं कई चर्चाएँ
रूस में जून का आख़िरी पखवाड़ा काफ़ी हलचल वाला रहा। एक विद्रोह हुआ, जिसके बाद दुनिया भर में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। लेकिन पुतिन ने जिस रणनीति से इस कथित विद्रोह का सामना किया और बाग़ी हुए निजी सेना और वागनर ग्रुप के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन को उनके रूसी होने के ही हथियार से परास्त किया, वह अपने आप में अनोखा था।
अभी भी अपने देश में कई भीतरी ख़तरों के बावजूद पुतिन इस विद्रोह के बहाने कई निशाने साधने में सफल रहे हैं। वागनर ग्रुप ने जब अचानक विद्रोह किया, तो पुतिन ने इसे देश के ख़िलाफ़ विद्रोह की संज्ञा दी। उन्होंने कुछ ही घंटे के भीतर राष्ट्र को दो बार सम्बोधित किया और बाग़ियों के ख़िलाफ़ सख़्ती का सन्देश दिया। अभी 12 घंटे भी नहीं हुए थे कि वागनर ग्रुप के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन को पीछे हटते हुए हथियार डालने पड़े और उन्होंने एक समझौते के बाद अपने लड़ाकों को वापस जाने का निर्देश दिया। पश्चिमी मीडिया के एक हिस्से में रूस के राष्ट्रपति पुतिन के देश छोडऩे की ख़बरें भी ग़लत साबित हुईं।
येवगेनी पर तभी दबाव बन गया था, जब राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए पुतिन ने इसे विश्वासघात क़रार दिया। पुतिन ने लोगों और रूस की रक्षा करने का वादा किया। उन्होंने यह भी कहा कि रूस अपने भविष्य के लिए सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहा है। येवगेनी को इसकी सफ़ाई देनी पड़ी और उन्होंने अपने लड़ाकों को देशभक्त बताया। रूसी जनता का रुख़ पुतिन के साथ दिखा लिहाज़ा येवगेनी को अपने लड़ाकों को मॉस्को की तरफ़ आगे बढऩे से रुकने के आदेश देने पड़े।
इसके बाद रूस ने साफ़ किया कि इस घटनाक्रम से उसके यूक्रेन में ऑपरेशन पर कोई असर नहीं पड़ेगा और वह जारी रहेगा। सिर्फ़ 12 घंटे के भीतर विद्रोह को परास्त करने की पुतिन ने जैसी रणनीति अपनायी उससे उनके और ताक़तवर होने की संभावना है। उन्होंने विद्रोह के तुरन्त बाद ही बाग़ियों पर जिस तरह हमला कर उन्हें चेताया था, उस से ही ज़ाहिर हो गया था कि येवगेनी सफल नहीं होंगे।
येवगेनी के पीछे कौन?
येवगेनी की कथित बग़ावत को लेकर कई रिपोट्र्स सामने आयी हैं। पता नहीं इनमें कितने सच्चाई है? इनमें एक यह भी थी कि इस विद्रोह को लेकर येवगेनी प्रिगोझिन और अमेरिका के कथित तौर पर ‘सीक्रेट डील’ थी। कहा गया कि पुतिन के इतने भरोसेमंद येवगेनी का विद्रोह कथित रूप से सोची-समझी साज़िश थी। कुछ रिपोट्र्स में यह दावा किया गया कि रूस में जो कुछ भी हुआ उसके पीछे कथित तौर पर अमेरिका का हाथ था। यह भी दावा किया गया कि येवगेनी को इसके एवज़ में कथित रूप से अमेरिका की ओर से बड़ी राहत दी गयी।
सारे घटनाक्रम के दौरान अमेरिका वागनर को लेकर काफ़ी नरम दिखा। जानकारी के मुताबिक, वागनर ग्रुप पर अफ्रीकी देशों में सोने के खनन के आरोपों के मामले में प्रतिबन्ध लगना था। आरोप यह थे कि येवगेनी सोने के खनन की कमायी रूस के यूक्रेन के साथ युद्ध में इस्तेमाल कर रहा था। अब सुनने में आ रहा है कि अमेरिका प्रतिबंध टालने की सोच रहा है। वागनर के लड़ाके यूक्रेन युद्ध में ही नहीं, बल्कि लीबिया, माली और सूडान में भी काम करते हैं। उधर एक और थ्यूरी यह चली है कि येवगेनी का विद्रोह वास्तव में ‘पुतिन समर्थित’ था, जिसमें वह यह जानना चाहते थे कि ऐसे हालत में रूस के भीतर और बाहर कौन उनके ख़िलाफ़ आता है, ताकि उसकी पहचान की जा सके।
पुतिन ने जिस तरह येवगेनी के विद्रोह को देश से विश्वासघात बताया उससे रूस की जनता मज़बूती से उनके पीछे खड़ी दिखी। येवगेनी के विद्रोह से जुड़ा सारा घटनाक्रम भी काफ़ी नाटकीय रहा, जिस कारण यह सवाल उठा कि कहीं यह पुतिन की ही रणनीति का हिस्सा तो नहीं था? पुतिन को चालाक रणनीतिकार माना जाता है। यह कैसे हो सकता है कि रूस की जासूसी संस्था के प्रमुख रहे पुतिन को अपने ही वफ़ादार के विद्रोह की जानकारी न मिले?
पुतिन के साथ खड़े रहे सब
येवगेनी के विद्रोह के बावजूद रूस में तमाम नेता, सेना, जनता और रूसी राज्यों के नेता पूरी ताक़त से पुतिन के साथ खड़े रहे, जिससे संकेत मिलता है कि पश्चिमी मीडिया में पुतिन को लेकर रूस में नाराज़गी की जो ख़बरें आती रही हैं, वो सही नहीं थीं। इस विद्रोह के बहाने पुतिन ने यह भी जाँचने की कोशिश की कि क्या रूस के भीतर दूसरे लोग भी उनके ख़िलाफ़ विद्रोह की बात करेंगे? लेकिन ऐसा नहीं हुआ। होता, तो उनकी पहचान इस बहाने हो जाती।
पुतिन के दोस्त माने-जाने वाले बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने बाग़ी येवगेनी से बातचीत की। रूस की सरकारी समाचार एजेंसी स्पुतनिक न्यूज के मुताबिक, इस मध्यस्थता का अच्छा नतीजा निकला और प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए वागनर नेता ने तनाव कम करने का विकल्प चुना। इसके तुरन्त बाद उन्होंने अपने लड़ाकों को वापस लौटने का निर्देश दिया।
स्पुतनिक न्यूज के मुताबिक, क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव से जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या वागनर पीएमसी के साथ हुई घटनाओं का यूक्रेन में ऑपरेशन पर असर पड़ेगा? तो उनका जवाब था- ‘किसी भी परिस्थिति में नहीं। यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान जारी है। अग्रिम पंक्ति में हमारे सैनिक वीरता का प्रदर्शन कर रहे हैं। वे यूक्रेन के सशस्त्र बलों के जवाबी हमले का काफ़ी प्रभावी ढंग से और सफलतापूर्वक मुक़ाबला कर रहे हैं। ऑपरेशन जारी रहेगा।’
यहाँ यह बताना भी सही होगा कि यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध वास्तव में पूरे नाटो के साथ है और पुतिन ने इसे बेहतर तरीक़े से सँभाला है। तटस्थ रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यूक्रेन के पीछे अमेरिका सहित पूरी नाटो की ताक़त रही है। येवगेनी के विद्रोह के समय अमेरिका ने इस मामले पर सधा हुआ रुख़ अपनाया और कहा कि वह घटनाओं पर नज़र रखे हुए हैं। यह माना जाता है कि रूस की सेना यूक्रेन युद्ध में येवगेनी की मिशनरी के साथ मिलकर लडऩे में तालमेल की दिक़्क़त महसूस कर रही थी। येवगेनी के बेलारूस चले जाने के बाद अब शायद यह समस्या उन्हें न झेलनी पड़े। येवगेनी से समझौते में यह ज़ोर दिया गया कि तनाव में शामिल वागनर सैनिकों पर मुक़दमा नहीं चलाया जाएगा।
उधर रूस ने रूस में आईआरजीसी और अन्य मीडिया में पुतिन के देश से पलायन की ख़बरों को फ़र्ज़ीवाड़ा बताते हुए इन्हें पूरी तरह ख़ारिज कर दिया। येवगेनी प्रिगोझिन की स्थिति पर प्रवक्ता पेस्कोव ने कहा कि व्यवसायी को देश छोडऩे की अनुमति दी जाएगी। इससे पहले येवगेनी के जो वीडियो सामने आये थे, उनमें वह पुतिन सहित रक्षा मंत्री को भी चुनौती देते दिख रहे थे। समझौते के बाद रूस ने कहा कि प्रिगोझिन के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला समाप्त कर दिया जाएगा और वह बेलारूस के लिए रवाना हो जाएँगे। उन्होंने मीडिया के लोगों से कहा- ‘यदि आप पूछते हैं कि क्या गारंटी है कि प्रिगोझिन बेलारूस के लिए रवाना हो सकते हैं, तो आपको बता दें कि यह रूसी राष्ट्रपति के शब्द हैं।’
येवगेनी ने इससे पहले रूस के रक्षा मंत्रालय पर लगाया था कि उसने वागनर के शिविर पर मिसाइल हमला किया है। साथ ही जवाबी कार्रवाई की बात कही थी। हालाँकि रूस के रक्षा मंत्रालय ने इस आरोप से इनकार किया और उकसावे का आरोप लगाया। इसके कुछ घंटे बाद ही वागनर लड़ाकों के दक्षिणी रूसी शहर रोस्तोव-ऑन-डॉन में एक सैन्य फैसिलिटी पर क़ब्ज़ा करने की रिपोर्ट आयीं। इसके ही बाद येवगेनी प्रिगोझिन ने अपने लड़ाकों को मॉस्को की तरफ़ बढऩे का आदेश दिया था। अमेरिकी अख़बार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने भी सूत्रों के हवाले से लिखा- ‘विद्रोह से पहले अमेरिका के अधिकारियों को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इस ख़तरे के बारे में अलर्ट करने की कोई योजना नहीं थी, क्योंकि उन्हें डर था कि रूस उन पर त$ख्तापलट करने का आरोप लगा सकता है।’ रिपोट्र्स के मुताबिक, अमेरिकी अधिकारी कथित तौर पर इस संभावित संघर्ष को लेकर परेशान थे, क्योंकि उन्हें चिन्ता थी कि रूस में अराजकता से परमाणु जोखिम पैदा हो सकते हैं। वागनर के विद्रोह के बाद रूस के विदेश मंत्रालय ने पश्चिम को चेतावनी दी कि रूस के ख़िलाफ़ इस तरह की कोई भी कोशिश बेकार होगी। वहीं पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने कहा- ‘एक प्रमुख परमाणु शक्ति में त$ख्तापलट के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं और मॉस्को ऐसा कभी नहीं होने देगा।’