कर्नाटक चुनाव में हार के बाद भाजपा में गहन मंथन और चिन्तन चल रहा है कि किस तरह से राज्यों में होने वाले आगामी चुनावों के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की जा सकती है?
पाञ्चजन्य में छपे संघ के एक लेख और नीतीश के इस इशारे ने कि भाजपा पूर्व चुनाव की तैयारी में है; इस बात को और हवा दे दी है कि भाजपा में आगामी चुनावों में किसी भी तरह साम, दाम, दण्ड और भेद की नीति अपनाकर जीत के लिए कुछ अलग ही खिचड़ी पक रही है। भले ही इसकी सही-सही हवा बाहर नहीं पता चल पा रही है; लेकिन भाजपा के भीतर से ही छन-छन कर आ रही ख़बरें इस बार पूर्व चुनावों का शक़ बढ़ाती नज़र आ रही हैं। मसलन, चुनाव आयोग से केंद्र सरकार का यह पता करना कि क्या पहले चुनाव कराये जा सकते हैं? या फिर संघ का पाञ्चजन्य में लेख कि भाजपा को सिर्फ़ मोदी के जादू और हिन्दुत्व पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, पूर्व चुनाव कराने की दिशा में शक की सूई को और भी घुमाते नज़र आते हैं।
सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार ने इसकी तैयारी बहुत पहले से शुरू कर दी है? क्योंकि अभी चुनाव में क़रीब-क़रीब एक साल का समय बचा है; लेकिन मोदी सरकार ने अभी से अपने सभी मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और नेताओं, कार्यकर्ताओं को अपने नौ साल के कामों को गिनाने के लिए जनता के बीच भेज दिया है। जबकि होना यह चाहिए था कि मोदी सरकार अभी छ:-सात महीने का और इंतज़ार करती और अपने 10 साल के कामों को लेकर जनता के बीच जाती।
हालाँकि मोदी सरकार ने हमेशा तो नहीं; लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2019 में अपने पिछले पाँच वर्षों के कामकाज को जनता के बीच ले जाकर दोबारा सत्ता सौंपने के लिए वोट माँगे थे।
दरअसल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ग्रामीण विकास विभाग के मंत्रियों के साथ बैठक में इशारों-इशारों में 2024 के आगामी लोकसभा चुनावों को समय से पहले कराने के केंद्र की मोदी सरकार की मंशा को बताते हुए कहा है कि कभी भी चुनाव हो सकते हैं। इसके पीछे एक चिन्ता, चुनाव के प्रति तैयारी का संदेश छुपा है। इसके बाद से राजनीतिक गलियारों में पूर्व चुनाव की चर्चाओं का बाज़ार गरम है। लोग यह मान रहे हैं कि नीतीश ऐसे ही इतनी बड़ी बात नहीं कहते, क्योंकि वो राजनीति के मँझे हुए खिलाड़ी हैं, और उनका हर हाल में सत्ता में बने रहना, यहाँ तक कि बिहार में भाजपा वाले गंठबंधन के बंधनों को तोडक़र एक बार फिर लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ सरकार बना लेना, भाजपा की मंशा को भाँपने और उससे डर से बाहर निकलने का साहस दिखाना किसी छोटे-मोटे नेता की वश की बात नहीं थी। यही वजह है कि नीतीश के राजनीतिक चालों और बयानों पर लोग भरोसा करते हैं और राजनीतिक लोगों में उनकी अपनी एक साख है।
यह निर्देश अपने गठबंधन के दल, अपने सांगठनिक पदाधिकारी और कार्यकर्ता के अलावा ज़िम्मेदार सरकारी महकमे को देकर उनके प्रति ज़्यादा-से-ज़्यादा आशान्वित भी हो जाते हैं। ऐसा इसलिए कि यह नीतीश कुमार भी जानते हैं कि भाजपा राम मंदिर निर्माण के पहले लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरना नहीं चाहेगी। हो सकता है कि नीतीश कुमार की पूर्व चुनावों को लेकर भविष्यवाणी $गलत साबित हो; लेकिन अकेले नीतीश कुमार ही नहीं, बल्कि कई राजनीतिक जानकार और कई राजनीतिक लोग भी इस बात को दबी ज़ुबान से कह रहे हैं कि मोदी सरकार किसी भी हाल में जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। लेकिन सवाल यह है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले विधानसभा चुनावों को भी समय से पहले कराया जा सकता?
यह सवाल इसलिए भी, क्योंकि कर्नाटक में भाजपा की करारी हार के बाद अब यह बातें ख़ूब हो रही हैं कि भाजपा के हाथों से अब राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और इसके अलावा महाराष्ट्र और फिर तेलंगाना, तमिलनाडु जैसे राज्य भी भाजपा के हाथों से खिसकने वाले हैं। भाजपा नेतृत्व को भी यह बात अच्छी तरह पता है। मणिपुर में वैसे भी भाजपा के ख़िलाफ़ लोग प्रदर्शन करने लगे हैं। दिल्ली में भाजपा हर कोशिश कर रही है; लेकिन केजरीवाल का तोड़ उसके पास नहीं है। बंगाल में ममता बनर्जी का तोड़ नहीं है। पंजाब में भी कोई जुगाड़ नहीं है। बिहार में भी उसके लिए रास्ता नहीं है। हिमाचल भी खिसक चुका है भाजपा के हाथ से, गोवा में भी जोड़-तोड़ करके भाजपा ने सरकार बनायी है।
बहरहाल विपक्षी पार्टियाँ किसी भी हाल में मोदी को सत्ता से बाहर करने के लिए तैयार बैठी हैं; लेकिन उनमें एकजुटता का न होना, मोदी सरकार के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है। लेकिन ज़्यादातर जनता महँगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी और बढ़े टैक्स के चलते मोदी सरकार से नाराज़ है और ज़्यादातर लोग किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन, पेंशन के मुद्दे, सरकारी पदों पर भर्ती न होने के मुद्दे, शिक्षा व्यवस्था के ख़राब होने के मुद्दे, कालेधन के मुद्दे, देश का पैसा लेकर विदेश भागने वाले पूँजीपतियों के मुद्दे, बैंकों के ख़ाली होने के मुद्दे और नोटबंदी के क़रीब आठ साल बाद 2,000 के नोट के बन्द होने के मुद्दे और चीन के हिन्दुस्तान की ज़मीन पर पैर जमाने की कोशिश जैसे मुद्दे को लेकर मोदी सरकार से नाराज़ है। ऐसे में अगर 2024 के लोकसभा चुनाव को कुछ महीने पहले ही चुनाव आयोग कराने की घोषणा कर भी देता है, तो भी मोदी सरकार को उससे बहुत बड़ा फ़ायदा नहीं होने वाला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह भी सोच सकते हैं कि गुजरात में उन्होंने 2002 में होने वाले विधानसभा चुनावों को 2001 में कराकर जीत हासिल की थी। इसी प्रकार से वह यही प्रयोग यहाँ भी कर सकते हैं। हालाँकि इससे जीत की गारंटी नहीं है; लेकिन कांग्रेस भी इस तरह के प्रयोग कर चुकी है। ज़्यादातर पूर्व चुनावों में सत्ताधारी दल को फ़ायदा पहुँचता है; लेकिन कई बार सरकार गिरने के बाद समयावधि से पूर्व हुए चुनावों में सत्ताधारी पार्टी बुरी तरह हार भी जाती है। हालाँकि कहा जा रहा है कि मोदी सरकार हर एंगल से चिन्तन, मनन करके, और जीत के आँकड़ों के पूरे जोड़-तोड़ की रणनीति पर मंथन करके ही पूर्व चुनावों की कोशिश करेगी।
बहरहाल नीतीश कुमार ने एक सधे अंदाज़ में पके हुए राजनीतिक की तरह भाजपा की पूर्व चुनावों की रणनीति को भाँपते हुए अपनी कमर कस ली है और अभी से बिहार में भाजपा की लोकसभा सीटों पर जीतने की तैयारी शुरू कर दी है। वह जल्द ही सभाएँ करेंगे। वह अपने आवास पर महागठबंधन के जुटान से विपक्षी एकता की शुरुआत भी कर चुके हैं। यह सच है कि 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने से पहले भाजपा को उसके पहले होने वाले पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए जीत की रणनीति बनानी ही पड़ेगी। वन नेशन, वन चुनाव का राग अलापने वाली भाजपा आज उस मोड़ पर आकर खड़ी है, जहाँ उसका जादू काफी फीका पड़ा है और स्थानीय मुद्दों से वो भागती दिखती है। जबकि विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे अहम होते हैं। लोकसभा चुनावों में आज भी मोदी पर ही भरोसा किया जाता है कि वो ही अन्त में पार्टी की नैया पार लगा सकते हैं; लेकिन अपनी ख़राब होती छवि को लेकर मोदी भी चिन्ता में हैं। राजनीति के कुछ जानकार 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले राज्यों-मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों को 2024 का सेमीफाइनल मान रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए एक-डेढ़ महीने पहले चुनाव आयोग ने चुनावी तारीखों का ऐलान किया था। अगर इस बार भी समय पर चुनाव हुए, तो फिर पिछली बार की ही तरह एक-डेढ़ महीने ही चुनावी तारीखों की घोषणा होने की सम्भावना है। लेकिन अगर चुनाव पहले ही होने की तैयारी चल रही है, तो फिर तीन-चार महीने में ही पूरी तस्वीर साफ़ हो जाएगी और यह भी पता चल जाएगा कि भाजपा की आगामी चुनावों, ख़ासतौर पर लोकसभा चुनावों को लेकर क्या तैयारी है? देखना होगा कि इससे पहले भाजपा की दक्षिणी राज्यों, उत्तरी राज्यों में क्या तैयारी है। कहा तो यह जाता है कि उत्तरी राज्यों में भाजपा का वोट बैंक मज़बूत है; लेकिन दक्षिणी राज्यों में उसी एंट्री मुश्किल है। लेकिन इस बार मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान का रुख़ देखकर यह नहीं लगता कि उत्तरी राज्यों में भी अब भाजपा के लिए वो जन-समर्थन मिल सकेगा, जो साल 2014 और साल 2015 में मिला था। ज़ाहिर है इसकी वजह मोदी मैजिक का फीका होना है।
पूर्व चुनावों का होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि अगर 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार ने नये मंत्रिमंडल का गठन किया, तो चुनाव समय पर ही होंगे। हाँ, यह ज़रूर है कि मोदी सरकार का सारा का सारा तंत्र चुनावी तैयारी में लग चुका है और यह कोशिश की जा रही है कि जितने भी शिलान्यास, उद्घाटन करने हैं, वो 2024 के चुनावों से पहले ही कर लिए जाएँ। यहाँ तक कि पुराने संसद भवन को म्यूजियम बनाकर उसका उद्घाटन करने की भी तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं। इन सब चीज़ों के मद्देनज़र आगामी सभी चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाले हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक संपादक हैं।)