कांग्रेस लम्बी सुस्ती के बाद अचानक सक्रिय दिखने लगी है। पार्टी में अध्यक्ष पद स्थायी रूप से भरने की तैयारी नाराका नेताओं को मनाने की कोशिश से हुई है। इन नेताओं से सोनिया गाँधी की मुलाकात को काफी महत्त्व मिला है। बैठक से जो संकेत मिले हैं, उनका लब्बोलुआब यही है कि नाराका नेताओं में से काफी को राहुल गाँधी के नाम से कोई परहेका नहीं है। हालाँकि इनमें से किसी ने भी बैठक के बाहर इस बाबत कुछ कहा नहीं है, जिससे उन्हें लेकर संशय बना हुआ है। कांग्रेस जनवरी में अधिवेशन आयोजित करने की तैयारी कर रही है। हालाँकि उससे पहले बैठकों के कुछ और दौर हो सकते हैं, ताकि राहुल गाँधी के नाम पर सहमति बनायी जा सके। खुद राहुल गाँधी ने अब यह कह दिया है कि पार्टी उन्हें जो किाम्मेदारी देगी, वह उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। कााहिर है उन्होंने इसके लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया है। कांग्रेस के भीतर प्रियंका गाँधी वाड्रा को भी किसी अपरिहार्य स्थिति के लिए तैयार रखा गया है। हालाँकि पार्टी में नेताओं का ऐसा बड़ा वर्ग है, जो चाहता है कि राहुल गाँधी को ही अध्यक्ष बनना चाहिए। हाँ, यह कारूर सच है कि अहमद पटेल और मोती लाल वोरा जैसे बड़े नेताओं के देहांत के बाद प्रियंका गाँधी संगठन में अचानक बड़ी भूमिका में दिखने लगी हैं।
यही देखना सबसे दिलचस्प होगा कि क्या पार्टी के भीतर राहुल गाँधी को अध्यक्ष पद के लिए कोई चुनौती मिलेगी? इसकी सम्भावना बहुत कयादा नहीं है, लेकिन असन्तुष्ट अभी खुले रूप से राहुल के नाम पर सहमति जताते नहीं दिखे हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, नया अध्यक्ष चुने जाने के बाद सोनिया गाँधी यूपीए के अध्यक्ष पद को लेकर भी कोई फैसला कर सकती हैं। हो सकता है कि कांग्रेस के ही किसी वरिष्ठ नेता को यूपीए का नेता बनाया जाए। हालाँकि कांग्रेस में कई नेता चाहते हैं कि सोनिया गाँधी कम-से-कम एक भूमिका में तो रहें। कांग्रेस में हाल के समय में जो सबसे बड़ी बात देखने को मिली है, वो यह है कि पार्टी में प्रियंका गाँधी बड़ी भूमिका निभाने की तरफ बढ़ती दिख रही हैं। नाराका नेताओं को मनाने की जो कोशिश पिछले कई महीनों से नहीं हुई थी, वह 19 दिसंबर को हुई; जिसमें प्रियंका गाँधी ने बड़ी भूमिका निभायी। उनके अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर काफी सक्रिय किया है। ‘तहलका’ की पार्टी के विभिन्न नेताओं से जुटायी जानकारी कााहिर करती है कि प्रियंका पार्टी में एकता की जी-तोड़ कोशिश कर रही हैं।
कुछ बड़े नेताओं की नाराकागी के बावजूद यदि राहुल गाँधी को अध्यक्ष पद के चुनाव में चुनौती मिलती भी है, तो भी विरोध को कयादा समर्थन नहीं मिलेगा। कांग्रेस के निचले स्तर के कार्यकर्ता का यही मानना है कि गाँधी परिवार से बाहर जाना पार्टी के लिए नुकसानदेह होगा; क्योंकि परिवार से बाहर व्यापक जन-समर्थन वाला और कोई नेता नहीं। लेकिन इसके बावजूद इस बात से मना नहीं किया जा सकता कि कुछ विरोधी चुनाव पर काोर दें। ऐसा हुआ भी तो भी राहुल गाँधी चुनाव के लिए तैयार हो जाएँगे; क्योंकि उन्होंने सर्वसम्मति पर कभी काोर नहीं दिया है। हाँ, वे यह कारूर चाहेंगे कि उनके चुने जाने के बाद पूरी पार्टी, जिनमें वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं; उनके पीछे पूरी ताकत से खड़े हों।
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या कथित नाराका नेताओं का रूप (दल) सच में राहुल गाँधी के िखलाफ उम्मीदवार उतारने की कोशिश कर सकता है? हालाँकि इस रूप के पास ऐसा कोई नेता नहीं, जिसका देश तो दूर, अपने सूबे में भी कोई व्यापक जनाधार हो। गुलाम नबी आकााद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं; लेकिन बड़ा नेता होने के बावजूद उनका देशव्यापी जनाधार नहीं है। आनंद शर्मा तो अपने सूबे हिमाचल प्रदेश में एक ही बार विधानसभा का चुनाव लड़े थे, जिसमें वह बुरी तरह हार गये थे। कपिल सिब्बल ने भी अपने राजनीतिक जीवन में चुनाव जनसभाएं भी गिनती भर की की होंगी।
ऐसे में राहुल गाँधी के िखलाफ यह रूप आिखर आगे करेगा किसे? वैसे भी सोनिया गाँधी के साथ 19 दिसंबर की बैठक में जिस तरह इन नेताओं ने राहुल के नाम पर सहमति दिखायी है, उससे नहीं लगता कि यह नेता विरोध जैसा कुछ करेंगे। क्योंकि इससे वे संगठन में अलग-थलग भी पड़ सकते हैं। आनंद शर्मा तो जिस तरह अर्थ-व्यवस्था के वापस पटरी पर लौटने और इंफ्रास्ट्रक्चर और कोरोना पर नियंत्रण के लिए ढके-छिपे मोदी सरकार की तारीफ कर रहे हैं, उससे तो ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वह भाजपा का दामन थामने वाले हैं। आकााद कारूर ऐसे नेता हैं, जिनके भाजपा में जाने की कल्पना नहीं की जा सकती। भले कश्मीर में भाजपा शिद्दत से बड़ा मुस्लिम चेहरा तलाश रही है, लेकिन आकााद जैसा कट्टर भाजपा विरोधी नेता शायद ही भगवा पार्टी में जाना पसन्द करे।
कांग्रेस के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर ‘तहलका’ को बताया कि पार्टी के बीच राहुल गाँधी का कोई विरोध है, ऐसा नहीं है। दरअसल नेता चाहते हैं कि राहुल पूरे मन से अध्यक्ष का किाम्मा निभाएँ। हमारे सामने बड़ी चुनौती है। भाजपा साम्प्रदायिक तरीके अपनाकर खुद का विस्तार करना चाह रही है। देश की बड़ी आबादी इसके पक्ष में नहीं है, लेकिन जब तक हम मकाबूत विकल्प के रूप में सामने नहीं आते, जिसकी हममें पूरी क्षमता है; तब तक भाजपा को चुनौती नहीं दी जा सकती।
संकटमोचक की भूमिका में हैं प्रियंका!
क्या महासचिव प्रियंका गाँधी कांग्रेस में संकट मोचक की भूमिका में आ रही हैं? हाल में उनके कुछ कदमों से ऐसा साफ आभास मिलता है। पहली बार ऐसा सचिन पायलट की बगावत के समय दिखा था, जब प्रियंका ने समझौते में केंद्रीय भूमिका निभायी थी। अब असन्तुष्टों के साथ सोनिया गाँधी की बैठक के आयोजन में भी प्रियंका गाँधी भी भूमिका रही। िफलहाल प्रियंका को अहमद पटेल जैसी पर्दे से पीछे की भूमिका के लिए तैयार किया गया है; क्योंकि एक तो संवाद के मामले में वह माहिर हैं, दूसरे पार्टी के भीतर की घटनाओं की जानकारी के लिए उन्होंने अपना एक मकाबूत सूचना तंत्र विकसित कर लिया है। प्रियंका गाँधी की पहली कोशिश कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से करवाने की है और यह उनके लिए बड़ी चुनौती है। असन्तुष्टों को सँभालने का किाम्मा प्रियंका ने अपने ऊपर लिया है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि पार्टी नेताओं के लिए उनकी बात टालना आसान नहीं होगा; क्योंकि उनका पार्टी के भीतर काबरदस्त क्रेज है। उन्हें जानने वाले प्रियंका को राजनीतिक रूप से चतुर मानते हैं। उनका स्वभाव राहुल गाँधी के विपरीत है। हालाँकि वह पार्टी मामले में भावनाओं को राहुल की तरह बहुत कयादा तरजीह नहीं देतीं। साथ ही उनकी कोशिश नाराका नेताओं को साथ जोड़े रखने की रहती है, और इसके लिए तमाम राजनीतिक पैंतरे अपनाने में उनका विश्वास रहता है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। कमलनाथ और गहलोत दोनों फंड जुटाने का किाम्मा तो सँभालेंगे ही, कमलनाथ पार्टी के प्रबन्धन में भी प्रियंका के साथ रहेंगे। अशोक गहलोत चूँकि राजस्थान छोडऩा नहीं चाहते, पार्टी के प्रबन्धन में शायद उनकी भूमिका बड़ी न रहे। सोनिया गाँधी की 19 दिसंबर की बैठक से पहले कमलनाथ और गहलोत दोनों की प्रियंका गाँधी से मंत्रणा हुई थी। इस दौरान ही कथित असन्तुष्टों पर दबाव की रणनीति बुनी गयी। कमलनाथ ने ही असन्तुष्टों को सोनिया की बैठक के लिए तैयार किया। बैठक में राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाने की माँग राहुल के समर्थकों अजय माकन और भक्तचरण दास से उठवायी गयी और असन्तुष्टों को इसकी हामी भरनी पड़ी। वरिष्ठों में ए.के. एंटनी, अंबिका सोनी, अशोक गहलोत, कमलनाथ, पृथ्वीराज चव्हाण जैसे नेता गाँधी परिवार के साथ हैं। पी. चिदंबरम भी विरोध नहीं कर रहे हैं। सभी प्रियंका की सक्रियता से अच्छा मान रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘प्रियंका शुद्ध राजनीतिक जैसा व्यवहार करती हैं। रणनीति बनाने की उन्हें अच्छी समझ है और वह आक्रमक भी हैं। पार्टी के बीच एक राय यह भी रही है कि राहुल गाँधी यदि अध्यक्ष पद लेने से इन्कार करते हैं, तो बिना हिचक प्रियंका गाँधी को बागडोर सौंप देनी चाहिए।
कांग्रेस में मुझे मिलाकर 99.9 फीसदी लोग चाहते हैं कि राहुल गाँधी को पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाए।
रणदीप सुरजेवाला मीडिया प्रमुख, कांग्रेस
राहुल गाँधी के नेतृत्व को लेकर नेताओं के बीच कोई असन्तोष नहीं है। सभी लम्बित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए चिन्तन शिविर का आयोजन किया जाएगा।
पवन बंसल, वरिष्ठ नेता
कोई भी राष्ट्रीय पार्टी लम्बे समय तक अध्यक्ष के बगैर कैसे रह सकती है? राहुल गाँधी के प्रति विरोध नहीं, लेकिन इस्तीफे के बाद उन्होंने खुद यह कहा था कि अध्यक्ष गाँधी परिवार से बाहर का बनना चाहिए।
कपिल सिब्बल, वरिष्ठ नेता