अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एक सोची समझी साजिश के तहत ज़मीनें बेचने का काम चल रहा है।
मौजूदा वक्त में एम्स कई बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। एम्स में जो कैंसर संस्थान है वहां पर मरीज़ों की बढ़ती संख्या के सामने संस्थान काफी छोटा पडऩे लगा था। ऐसे में एम्स -प्रशासन और सरकार ने ज़मीन की कमी का हवाला देकर कैंसर संस्थान के विस्तार को रोक दिया था। इसके बाद झज्जर में सैकड़ों रुपए खर्च कर के अलग से कैंसर संस्थान खोला गया है। यही हाल दिल के रोगियों के लिए हार्ट विभाग के विस्तार का था जिसके लिए सरकार की योजना एक एकड़ ज़मीन झज्जर में लेकर इसे वहां शिफ्ट करने की थी। पर डाक्टरों के विरोध के कारण शिफ्ट न हो सका । एम्स कैंपस की ज़मीन बेच कर आवासीय बिल्डिंग बनाने का जो फैसला लिया गया है, वो भी सारे नियमों को ताक पर रख कर लिया गया है।
ऐसा नहीं कि स्वास्थ्य मंत्रालय अकेले इस काम को अंजाम दे रहा हो, इस काम में एम्स प्रशासन भी उसके साथ है। इसके लिये पिछले वर्ष पांच मई को दिल्ली के एक बड़े अखबार में एनबीसीसी ने टेंडर जारी किया था। तभी से एम्स के डाक्टर विरोध करते आ रहे हंै। पर उसका कोई असर न होने से अब मामला तूल पकडऩे लगा हैै। एम्स के कर्मचारियों का कहना है कि एम्स में मरीज़ों की बढ़ती तादाद को देखते हुए अभी तमाम विभागों का विस्तार करने की ज़रूरत है। इसके लिए ज़मीन की कमी सरकार बता रही है और वहीं लगभग चार हजार करोड़ रुपयों के लिए बड़ी ही कीमती ज़मीन को बेचने पर अमादा है। एम्स के सीनियर डाक्टरों का कहना है कि अंसारी नगर में बेस्ट की जिस ज़मीन का सौदा किया है उसकी कीमत दिल्ली की मार्किट में कई गुणा अधिक है।
एम्स में मरीज़ों को बेहतर सुविधाओं के अभाव में निजी अस्पताल वाले जमकर मुनाफा कमा रहे हंै। बताया जाता है कि कई बार बिस्तरों की कमी के कारण और तमाम मेडिकल सुविधाओं के अभाव में मरीज़ को भर्ती तक नहीं किया जाता है। ऐसे हालात में गंभीर हालत में आए मरीज़ों को दिल्ली के निजी अस्पतालों में महंगा इलाज कराने को मज़बूर होना पड़ता है। एम्स के डॉ कुलदीप का कहना है कि जिस ज़मीन को बेंच कर सरकार और एम्स प्रशासन अपनी उपलब्धि मान रही है वो पूरी तरह से देश के मरीज़ों के साथ धोखा है, क्योंकि इस समय एम्स में मरीज़ों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ओपीडी के कमरों की संख्या बढ़ाने की ज़रूरत है जिसमें डॉक्टर मरीज़ों का आसानी से इलाज कर सकें। क्योंकि अक्सर ओपीडी के कमरों के बाहर मरीज़ों के बैठने के लिए दिक्कत होती है।
ज़़मीन के मामले में एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया का कहना है ये सारा मामला सरकार का है । इसमें वह कुछ नहीं कर सकते।
जनहित अभियान के संयोजक राजनारायण ने बताया कि एम्स की ज़मीन को बेंचकर कार्मशियल पैलेस बनाये जाने का टेंडर जब जारी हुआ था, तभी से वे इसकी शिकायत केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक कर चुके हंै। उनका मानना है कि अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब एम्स का अस्तित्व खतरें में पड़ जाएगा। इलाज के दौरान मरीज़ों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है इस ओर सरकार व एम्स प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है बल्कि एम्स, सरकार के साथ मिलकर ज़मीन बेच कर चुपचाप है। राजनारायण ने सरकार को इस बात को लेकर चेताया भी है कि अगर ज़मीन नहीं रहेगी तो आने वाले दिनों में जब सारी दुनिया में चिकित्सा क्षेत्र में नई-नई खोजें होंगी तब सिर्फ ज़मीन के अभाव में कोई नया रिसर्च केन्द्र तक एम्स में नहीं खुल पाएगा। उन्होंने पत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि वे इस बेची जाने वाली ज़मीन का निर्णय निरस्त करें ताकि एम्स का अस्तित्व बना रहे।