कोविड-19 यानी कोरोना वायरस के फैलने को लेकर चीन बेनकाब होता जा रहा है। अब तक उसकी अनेक हरकतों पर से पर्दे उठ रहे हैं; लेकिन वह अपने अडिय़ल स्वभाव के आगे कोई भी बात मानने को तैयार नहीं है। यह चौंकाने वाली खबर ज़रूर है। लेकिन चीन अब तक जिस सच को दुनिया छिपा रहा है, वह सच आने वाले समय में सार्वजनिक और साबित हो सकता है। बता दें कि हाल ही में चीन ने वुहान शहर, जहाँ से कोरोना वायरस फैला था; में स्थित लैब की वेबसाइट पर से वैज्ञानिकों के नाम हटा दिये थे। इससे पहले भी चीन ने कई ऐसे काम किये हैं, जिससे उसकी तरफ दुनिया भर की संदेह की नज़र उठनी लाज़िमी है। हाल ही में बीजिंग शहर, जहाँ चीनी सैनिकों का बड़ा अड्डा भी है; से आयी एक खबर में दावा किया गया है कि चीन में कोरोना वायरस की शुरुआत पिछले साल के अन्त यानी दिसंबर, 2019 में हुई थी। दावे में कहा गया है कि तबसे लेकर अब तक चीन में केवल 82 हज़ार 919 मामले ही सामने आये हैं, जिनमें से 4 हज़ार 633 लोगों की मौत हो चुकी है।
बता दें कि चीन सरकार ने अपने यहाँ कोरोना से होने वाली मौतों और संक्रमित लोगों के आँकड़े कभी भी सही से नहीं दिये। एक बार खबर आयी थी कि चीन में कोरोना वायरस फैलने के बाद से लगभग 82 लाख लोगों के मोबाइल फोन बन्द हो चुके हैं। बाद में इस खबर को फेक बताया गया। इसी प्रकार चीन ने आज तक कोरोना वायरस को लेकर कभी एक ठोस बात नहीं कही। आज पूरी दुनिया उसे संदेह की नज़रों से देख रही है। ऐसे में विश्लेषकों, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को संदेह है कि चीन में कोरोना वायरस से मरने वालों और संक्रमितों की संख्या उसके द्वारा पेश किये जा रहे आधिकारिक आँकड़ों से बहुत ज़्यादा हो सकती है। अब आते हैं असली मुद्दे पर, दरअसल चीनी सेना की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ डिफेंस टेक्नोलॉजी ने कोरोना वायरस के मामलों पर एक डाटासेट तैयार किया है, जो मई के शुरुआत में लीक हो गया था। इस डाटा की डिटेल अमेरिकी अखबार फॉरेन पॉलिसी ने प्रकाशित किया था। इसमें कोरोना वायरस से चीन में हुई मौतों के साथ-साथ इस बात का भी ज़िक्र है कि बीजिंग द्वारा कैसे और कितनी चीनी आबादी पर कोरोना वायरस का डाटा एकत्र किया था। अब इस डाटा के आधार पर भी अमेरिका के साथ-साथ तमाम वैज्ञानिकों ने इस बात को भी अपनी खोज में शामिल कर लिया है। बताया जाता है कि यह डाटा नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ डिफेंस ऐंड टेक्नॉलजी से निकाला गया है, जो ऑनलाइन लीक जानकारी से मेल खाता है; जिसके कारण कोरोना वायरस को लेकर चीन पर संदेह गहराता जा रहा है। यह डाटासेट कोरोना वायरस पर रिसर्च कर रहे दुनिया भर के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिए एक बहुमूल्य जानकारी के रूप में काम कर सकता है।
डाटा में लाखों बार किया गया सुधार
चीन की तरफ संदेह की दृष्टि इसलिए भी उठती है, क्योंकि चीन द्वारा फरवरी की शुरुआत से लेकर अप्रैल के अन्त तक के इस डाटाबेस में दी गयी सूचनाओं में 6,40,000 बार सुधार किया गया है। इस डाटा में 230 शहरों से कोरोना वायरस के संक्रमण के आँकड़े लिये गये हैं। इतनी ही नहीं, 6,40,000 बार किये गये सुधार में चीन ने कुछ खास जगहों पर ही कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले यानी मरीज़ों की संख्या दिखाने का प्रयास किया है। इस डाटा में कोरोना से मरने वालों के अलावा स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या भी दी गयी है। हालाँकि यह साफ नहीं हो सका है कि यह डाटा कितना सही है और कितना गलत। वैज्ञानिक सूत्रों की मानें, तो इस बात का पता चीन के वुहान शहर की लैब, जहाँ से कोरोना वायरस लीक हुआ था; की जाँच और चीन के अस्पतालों के आँकड़े मिलने के बाद ही चल सकता है, जहाँ-जहाँ कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ों का इलाज हुआ था।
इसके अलावा इन आँकड़ों की समीक्षा के लिए चीन के होटलों, रेस्तरां, रेस्टोरेंटों, बाज़ारों (खासकर सुपरमार्केटों और वुहान में स्थित जानवरों के बाज़ार), रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, कोरंटाइन सेंटरों, अपार्टमेंट, रेस्टोरेंट्स और स्कूलों की जाँच अति आवश्यक है।
डाटा एकत्र करने के सूत्र नहीं स्पष्ट
यहाँ मुश्किल गुत्थी यह है कि अभी तक इस बात का पता नहीं चल पाया है कि चीन की सेना की नेशनल यूनिवर्सिटी ने यह डाटा कहाँ-कहाँ से और कैसे एकत्र किया? क्योंकि इस बात को डाटा में गोपनीय रखा गया है। ऑनलाइन संस्करण के मुताबिक, ये आँकड़े चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग, स्वास्थ्य मंत्रालय, मीडिया रिपोट्र्स और अन्य स्रोतों से एकत्र किये गये हैं। चीन के चांगशा शहर में स्थित इस यूनिवर्सिटी का नेतृत्व केंद्रीय सैन्य आयोग करता है, जिस पर युद्ध नीतियाँ तैयार करने का संदेह पहले से ही रहा है। सवाल यह भी है कि जब मामला स्वास्थ्य से जुड़ा है, तो चीन की सेना इस मामले में इतनी रुचि क्यों ले रही है? और क्यों उसने सैन्य सम्बन्धी कार्यों को छोडक़र वह काम किया, जिसका उससे कहीं-से-कहीं तक लेना-देना है ही नहीं? क्योंकि यह काम पूरी तरह स्वास्थ्य मंत्रालय का है; रक्षा मंत्रालय का नहीं। इससे यह संदेह उठना स्वाभाविक है कि कोरोना वायरस कहीं चीन के जैविक युद्ध का हिस्सा तो नहीं? जैसा कि पूरी दुनिया कई बार इस सवाल को उठा चुकी है।
विश्वसनीय हो सकता है डाटा
क्योंकि चीन की सेना की कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने में बड़ी भूमिका रही है। इसलिए वहाँ की सेना पर सीधे-सीधे संदेह भी नहीं किया जा सकता। जब चीन में कोरोना वायरस फैला, तब वहाँ की सेना ने क्वारंटाइन सेंटर, ट्रांसपोर्ट सप्लाई, लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने और मरीज़ों के लिए मदद में बड़ी भूमिका निभायी थी। इसलिए चीनी सेना की यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार और इस्तेमाल किया गया डाटा विश्वसनीय माना जा सकता है। हालाँकि सुरक्षा कारणों की वजह से अमेरिकी अखबार ने इस डाटाबेस को पूरी तरह सार्वजनिक नहीं किया है। क्योंकि इस पर वैज्ञानिक और डॉक्टर गहन अध्ययन कर रहे हैं, ताकि डाटा उपलब्ध कराने के तरीकों का पता लगाने के साथ-साथ कोरोना वायरस के लीक होने का कोई सुराख मिल सके।
मौके को भुना सकता था भारत
जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैल रहा था, तब भारत के पास सुनहरा अवसर था कि वह इस समय को चीन की तरह अपनी आॢथक स्थिति सुधारने में कैश में भुना सकता था। इसका कारण यह भी है कि भारत में कोरोना वायरस काफी देरी से पैर पसार पाया था। यदि दिसंबर, 2019 में ही भारत ने सजगता बरतते हुए सभी हवाई अड्डों पर आने वाले विदेशियों और अपने नागरिकों को वहीं से सीधे अस्पताल पहुँचाया होता, तो यहाँ लॉकडाउन की ज़रूरत ही नहीं होती। और अगर ऐसा करना भी पड़ता, तो एकाध शहर में ही करना पड़ता; वह भी बहुत कम समय के लिए। इसके साथ-साथ भारत में सैनिटाइजर, पीपीई किट, मास्क, ग्लब्स और दवाओं का निर्माण करके पूरी दुनिया को इनका निर्यात किया जा सकता था। हालाँकि यह मौका अब भी भारत के पास है; लेकिन अब इसे करने में थोड़ी मुश्किल ज़रूर आयेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत दुनिया में चीन की अपेक्षा ज़्यादा निर्यात कर सकता था। इसके तीन कारण हैं- एक यह कि चीन से कोरोना वायरस फैला; दूसरा यह कि चीन से नकली किट आने की खबरों के चलते सभी देशों का उस पर से विश्वास और कम हुआ है और तीसरा यह कि सभी देश पहले से ही चीन के सामानों को प्रतिबन्धित कर रहे हैं। लेकिन भारत सरकार ने इस अनमोल मौके को गँवाकर अपनी आॢथक स्थिति ही कमज़ोर नहीं की है, बल्कि विश्व बाज़ार में अपना दबदबा बढ़ाने का एक सुनहरा मौका भी गँवा दिया है।
डब्ल्यूएचओ में बढ़ा भारत का कद
अमेरिका और अन्य कई देशों को भारत ने हाइड्रॉक्सी क्लोरीन दवा भेजकर अपना मान बढ़ाया है, वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में भी भारत का कद बढ़ा है। इसका कारण है डब्ल्यूएचओ के 34 सदस्यीय एग्जीक्यूटिव बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का चुना जाना। दुनिया भर में कोरोना वायरस जैसी महामारी फैलने के दौरान भारत के स्वास्थ्य मंत्री को सम्मानपूर्वक यह ज़िम्मेदारी मिलना बेहद महत्त्वपूर्ण और गौरव का विषय है। डॉ. हर्षवर्धन ने 22 मई को अपना पदभार सँभाल लिया है और आशा की जाती है कि वह भारत का मान और बढ़ाएँगे। डॉ. हर्षवर्धन को जापान के डॉ. हिरोकी नकतानी की जगह चुना गया है। क्षेत्रीय समूहों के बीच अध्यक्ष का पद एक वर्ष के लिए रोटेशन द्वारा आयोजित किया जाता है। विदित हो कि भारत के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के राष्ट्रीय कार्यालय का मुख्यालय दिल्ली में है। इस कार्यालय के कार्य क्षेत्र का वर्णन
इसकी कंट्री को-ऑपरेशन स्ट्रेटजी (सीसीएस) 2012-2017 में दर्ज है।
भारत की मुश्किलें
वैसे कहने के लिए भले ही भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी अध्यक्ष ज़रूर बनाया गया है; लेकिन दुनिया के सबसे बड़े इस स्वास्थ्य संगठन में उनकी कितनी चलेगी, यह कहना बहुत मुश्किल है। इसका कारण यह है कि डब्ल्यूएचओ को भले ही वैश्विक संगठन कहा और माना जाता है; लेकिन यह हमेशा से बड़े देशों के दबाव में काम करता रहा है। यह बात अब पूरी दुनिया को और अच्छी तरह से समझ में आ चुकी है कि कोरोना वायरस मामले में अमेरिका के चीन पर आरोपों और डब्ल्यूएचओ को धमकियों के बावजूद चीन इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन में किस तरह अपनी मर्ज़ी चलाता है। जैसा कि विदित है कि इस बात से ही नाराज़ अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ से खुद को अलग कर लिया है, जिसका न तो डब्ल्यूएचओ पर कोई खास असर पड़ा है और न ही चीन पर। अब डब्ल्यूएचओ में चीन जैसे ताकतवर देश के साथ भारत किस तरह अपनी भूमिका निभाता है? यह देखना होगा। क्योंकि भारत इस डब्ल्यूएचओ को आगे बढ़ाने में अपनी बड़ी भूमिका तभी निभा सकता है, जब चीन की घुड़कियों और दबावों में न आये। हालाँकि ऐसा करना भारत के लिए आसान नहीं होगा।