कोइ भी व्यक्ति जब कोइ काम करता है तो इसके पीछे उसकी ज़रुरत धन की ही होती है ताकि वह अपना और परिवार का भरणपोषण कर सके। लेकिन यदि काम करके भी किसी को वेतन न मिले तो ? कुछ इसी तरह के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अहम् टिप्पणी की है।
मामला दिल्ली के एक निजी स्कूल के सात शिक्षकों का है। इन शिक्षकों ने आरोप लगाया कि उन्हें इस साल अप्रैल से वेतन ही नहीं मिला है जिससे उन्हें अपना खर्च चलने में दिक्कत आ रही है। इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय में मामला विचाराधीन है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि बिना वेतन किसी भी व्यक्ति (कर्मचारी) से काम लेना सभ्य समाज की भावना के खिलाफ है। इन शिक्षिकों की याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट की यह अहम् टिप्पणी सामने आई।
रिपोर्ट्स के मुताबिक मामला लोनी रोड स्थित निजी सिद्धार्थ इंटरनेशनल स्कूल से जुड़ा है। इस स्कूल के सात शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि उन्हें अप्रैल २०१८ से वेतन ही नहीं दिया गया है। इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश सी हरि शंकर ने नाराजगी जाहिर की। साथ ही कोर्ट ने सिद्धार्थ इंटरनेशनल स्कूल को नोटिस जारी कर दो हफ्ते के भीतर इस मामले पर जवाब दायर करने को कहा है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई एक अक्टूबर को तय की है।
इस शिक्षिकों ने अपने वकील के जरिये अदालत में याचिका दायर कर वेतन दिलाने की गुहार की हुई है। सातों शिक्षकों का आरोप है कि स्कूल प्रशासन ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू ही नहीं किया है। यही नहीं स्कूल के करीब ६० कर्मचारियों का पांच महीने से वेतन रोक कर रखा गया है। स्कूल के कुल ६० कर्मियों में से ४५ अकेले शिक्षक हैं जबकि १५ अन्य विभागों से जुड़े कर्मी हैं। शिक्षकों का कहना है छात्रों से तो मोटी फीस ली जाती है लेकिन कर्मियों की तनख्बाह नहीं दी जाती। ऐसा दूसरे स्कूल में भी किया जाता है।