क्या है सरकार का निर्णय?
2002 में हुए गुजरात दंगों के नरोदा पाटिया मामले में गुजरात की पूर्व मंत्री मायाबेन कोडनानी और बाबू बजरंगी के लिए एक महीने पहले तक फांसी चाहने वाली गुजरात सरकार ने यू-टर्न ले लिया है. उसने इनकी फांसी की मांग को लेकर ऊपरी अदालत में अपील करने संबंधी एसआईटी को दी गई इजाजत रद्द कर दी है. राज्य के विधि विभाग ने मुख्य सरकारी वकील को इस बाबत पत्र लिख कर सूचित किया है. राज्य के वित्त मंत्री नितिन पटेल का कहना है कि इस बाबत आगे कोई भी फैसला महाधिवक्ता की राय लेने के बाद किया जाएगा.
क्या रहा पूरा घटनाक्रम?
गुजरात दंगों के दौरान मोदी सरकार में मंत्री रही माया कोडनानी को विशेष अदालत ने नरोदा पाटिया दंगों के लिए दोषी मानते हुए अगस्त, 2012 में 28 साल कैद की सजा सुनाई थी. दंगों की जांच को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने गुजरात सरकार से कोडनानी समेत दस दोषियों की सजा बढ़ा कर फांसी की मांग के लिए ऊपरी अदालत में अपील करने की इजाजत मांगी थी. 16 अप्रैल को उसे इसकी इजाजत मिल भी गई. लेकिन अब सरकार इस फैसले से पीछे हट गई है. बताया जा रहा है कि उस पर हिंदूवादी संगठनों का जबरदस्त दबाव था. गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को हुए गोधरा कांड के अगले दिन नरोदा पाटिया इलाके में हुई हिंसा में 97 लोग मारे गए थे. अगस्त, 2009 में इस मामले में मुकदमा शुरू हुआ था.
अब क्या करेगी एसआईटी?
अचानक हुए इस घटनाक्रम से एसआईटी अधिकारी असमंजस में हैं. बताते हैं कि एसआईटी ने अपील को लेकर तैयारियां शुरू कर दी थीं, लेकिन अब सरकार के फैसले ने उसे परेशानी में डाल दिया है. सूत्रों के मुताबिक जांच दल के अधिकारी गुजरात सरकार के इस कदम को कानूनी दायरे से बाहर का बता रहे हैं और इसका विरोध करने का मन बना चुके हैं. संभावना है कि गुजरात सरकार के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है.
-प्रदीप सती