राजधानी नई दिल्ली की सीमाओं पर 36 दिनों से आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में केरल विधानसभा ने वीरवार को केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया। इसमें तीनों कृषि कानूनों को तत्काल वापस लेने की मांग की गई।
प्रस्ताव में तीनों कृषि कानूनों को किसान विरोधी और कॉरपोरेट हितैषी बताया गया है। इसमें कहा गया कि ये कानून किसानों को और पीछे ले जाएंगे और उनके लिए गंभीर संकट खड़ा होगा। विधानसभा में इस प्रस्ताव को न सिर्फ माकपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने समर्थन दिया, बल्कि सदन में इकलौते भाजपा सदस्य ओ राजागोपाल ने भी इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। राजागोपाल ने इसे लोकतांत्रिक भावना बताया।
हालांकि उन्होंने प्रस्ताव के कुछ पहलुओं का विरोध किया है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस प्रस्ताव को पेश करते हुए कहा, कॉरपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने कृषि कानूनों में संशोधन किए हैं। मोदी सरकारने इन कानूनों को संसद में ऐसे समय में पेश कर पारित कराया है, जब संकट काल चल रहा है। इन कानूनों को प्रवर समिति के पास भी नहीं भेजा गया। उन्होंने कहा कि अगर ये गतिरोध जारी रहा तो एक उपभोक्ता प्रदेश होने के नाते केरल पर इसका गहरा असर होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा, इन कानूनों में किसानों को किसी तरह का कानूनी संरक्षण नहीं दिया गया है। उनके पास कॉरपोरेट के खिलाफ कानूनी लड़ाई का विकल्प नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा, कृषि राज्यों का मुद्दा है और इसका सीधा असर राज्यों पर होगा, केंद्र को इसके लिए राज्य सरकारों से विचार विमर्श करना चाहिए था। केरल विधानसभा केंद्र सरकार से मांग करती है कि किसान विरोधी इन कानूनों को वापस लिया जाए।
केंद्र सरकार ने प्रस्ताव को बताया व्यर्थ
विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि केरल विधानसभा में प्रस्ताव पास करना व्यर्थ का प्रयास है। उन्होंने कहा, ये कानून संसद से पास हुए हैं और इनके खिलाफ प्रस्ताव लाना देश के सामान्य विचार के खिलाफ है। अगर केरल सरकार इस बात को लेकर सच में गंभीर है कि किसान अपनी फसल एपीएमसी कानून के तहत बेचें तो उसे इसके लिए नया कानून बनाया जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि इससे किसानों की आय में इजाफा होगा।