वर्तमान में केन्द्र सरकार के नारे और श्रम सुधार के नाम पर किये जा रहे बदलाव से बाबा नागार्जुन की पंक्तियाँ बरवस याद आ गयी :-
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है?
कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है?
मैं ऐसा इसीलिए कह रहा हूँ, क्योंकि सत्तापक्ष के लोग ऐसा कह रहे हैं कि श्रम कानून में सुधार कर वे ‘समाज के तमाम वो वर्ग, जो अब तक न्यूनतम मज़दूरी के दायरे से बाहर थे; खासकर असंगठित क्षेत्र के मज़दूर। फिर चाहे वो ठेला चलाने वाले हों, सिर पर बोझा ढोने वाले हों, खेतिहर मज़दूर हों, घरों में सफाई-पुताई करने वाले हों, ढाबे पर काम करने वाले हों, घरों में काम करने वाली महिलाएँ हों या पॉस कॉलोनियों या संस्थानों में पहरेदारी कर रहे सिक्योरिटी गार्ड हों। नया श्रम कानून बनने के बाद हर वर्ग के मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी का अधिकार मिल जाएगा।’ इसलिए सरकार ने वेजेज कोड बिल को पास कर दिया है। सरकार का कहना है कि यह कानून पुराने पड़ चुके कानून की जगह लेगा, जिससे हर वर्ग के मज़दूरों का हित सधेगा। इसीलिए श्रम कानून में बदलाव का सरकार का फैसला ऐतिहासिक है। पास किये गये बिल में 32 श्रम कानूनों को चार कोड्स में समाहित किया जा रहा है, जिसमें मिनिमम वेजेज एक्ट, पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट, पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट और एक्वल रैम्यूरेशन एक्ट को शामिल किया गया है। लेकिन अधिकांश श्रमिक संगठन नये श्रम कानून का विरोध कर रहे हैं।
श्रमिक संगठनों का मानना है कि इस तरह का श्रम कानून में परिवर्तन मज़दूरों के नहीं, मालिकों के हित में है। जिसे श्रमिक संगठन कॉर्पोरेट सेक्टर को फायदा पहुँचाने के तौर पर देख रहे हैं। अब हम देखते हैं कि इस बिल का विरोध कर रहे मज़दूर संगठनों का क्या कहना है और वे इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? सेन्टर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन के महासचिव तपन सेन ने जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि भाजपा सरकार अपने कॉर्पोरेट बॉस को मौज़ूदा श्रम कानून की जगह श्रम सुधार के नाम पर पुन: भुगतान करने में शीघ्रता दिखा रही है। साथ ही चार लेबर कोड लाकर मौज़ूदा श्रम कानून में प्रदत्त मज़दूरों के अधिकार और प्रावधानों को खत्म कर रही है। इसीलिए भाजपा सरकार इस कानून को वापस ले। वहीं ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महासचिव अमजीत कौर और न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव के महासचिव गौतम मोदी ने कहा कि भाजपा सरकार श्रम सुधार के नाम पर जिस श्रम कानून को बदलने की कोशिश कर रही है, वह श्रमिकों के अहित में है। इसीलिए श्रमिक संगठनों की माँग है कि बिल को वापस लिया जाए। नेशनस एलांयस आप जर्नलिस्ट और दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट के अध्यक्ष एस.के. पांडे और महासचिव सुजाता मधोक ने बताया कि इस कोड बिल के तहत सबसे पहले तो वॢकंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 को खत्म किया जा रहा है। साथ ही वेज बोर्ड के प्रावधानों को भी खत्म किया जा रहा है। वैसे ही पहले मालिकों ने तमाम पत्रकारों को ठेके पर ला दिया है। इस कोड के ज़रिये वे मालिकों के इस कृत्य पर मोहर लगा दिया है। अब मज़दूर अपना हक माँग ही नहीं सकता है।
सरकार पक्ष का दावा है कि कई बार श्रमिकों को उनका वेतन और पारिश्रमिक महीने के अन्त में नहीं मिलता है। कई बार तो दो-तीन महीने तक नहीं मिलता है, जिससे उनके परिवार वाले लोग परेशान हो जाते हैं। सभी को न्यूनतम मज़दूरी मिले और वह मज़दूरी समय पर मिले। यह हमारी सरकार की •िाम्मेदारी है; जिसे हम इस बिल के ज़रिये सुनिश्चित कर रहे हैं। मासिक वेतन वाले को अगले महीने की सात तारीख, साप्ताहिक काम करने वालों को सप्ताह के आिखरी दिन और दिहाड़ी पर काम करने वालों को उसी दिन वेतन मिले। यही इस बिल का प्रावधान है।
वहीं लगभग सभी श्रमिक संगठनों का मानना है कि 178 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से न्यूनतम वेतन यानी मासिक 4628 रुपये मिलेगा। लेकिन श्रमिक संगठनों की माँग है कि न्यूनतम वेतन 18000 रुपये हों। लेकिन सरकार इसे एक चौथाई पर लेकर आ रही है। हमारी माँगे मानने की बजाय वो नेशनल मिनिमम वेज फिक्स करने की कोशिश कर रही है। लेकिन सरकार का दावा है कि फ्लोर वेज त्रिपक्षीय वार्ता के ज़रिये तय किया जाएगा। साथ ही आम लोगों के सुझाव को भी इसमें शामिल किया जाएगा। लेकिन श्रमिक संगठनों का दावा है कि सरकार ने कोडिफिकेशन की प्रक्रिया में त्रिपक्षीय वार्ता को तवज़्ज़ों नहीं दी है। श्रमिक संगठनों का कहना है कि जिन कोड पर थोड़ी बात हुई थी। उस पर भी उनके किसी पक्ष को स्वीकार नहीं किया गया।
श्रमिक संगठन एक स्वर में कह रहा है कि सरकार यह प्रयास कर रही है कि मालिक जो सुविधा माँग रहे हैं, वह सुविधा उन्हें दी जा रही है। मज़दूरों का आज का अधिकार कि वह अपने श्रमिक संगठनों के माध्यम से शिकायत दर्ज कर सकते हैं। उससे यह अधिकार छीना जा रहा है। यह न सिर्फ श्रमिकों के िखलाफ है, बल्कि उन पर हमला है। ऑक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ कोड पर अभी आरम्भिक स्तर पर चर्चा हो रही थी। अभी जबकि वह चर्चा आगे भी नहीं बढ़ी है। वेज कोड के ज़रिये वेज को केलकुलेट करने का क्राइटेरिया बदल रहे हैं। 15वीं इंडियन लेबर कॉन्फ्रेस में जो क्राटेरिया बनाया गया था। उसे नज़रअंदाज किया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट में पूर्व में एक मामला आया था, जिसमें माँग किया गया था कि इंडियन लेबर कॉन्फ्रेस में जो क्राटेरिया तय किया गया था, उसमें 25 प्रतिशत और जुडऩा चाहिए; जिससे वो परिवार की शिक्षा और अन्य ज़रूरतों को पुरा कर सके। उसी को आधार मानकर सातवें वेतन आयोग ने 18,000 रुपया केलकुलेट किया था। जबकि श्रमिक संगठनों ने 26,000 रुपये की माँग की थी। लेकिन उस कमिटी ने 21,000 रुपये मान लिये थे। हमने सभी श्रमिकों के लिये 18,000 रुपये माँगे। उसकी जगह सरकार ने उसे 5,000 रुपये से भी नीचे ला दिया है। सरकार की इस तरह की दोहरी नीति समस्त कार्यबल को बाहर फेंकने का तरीका है।
इसी तरह इस वेज कोड में फिक्ड टर्म इंप्लायमेंट आ गया है, जिससे वेज कभी फिक्स ही नहीं हो पाएगा। क्योंकि आपने कह दिया है कि आप पाँच घंटे, पाँच दिन या 10 दिन के लिए काम लिया है; उतने का ही कॉन्ट्रेक्ट होगा, तो वेज कैसे केलकुलेट होगा। ऑक्यूपेशनल सेफ्टी हेल्थ को लेकर 13 कानून थे, उसे मिलाकर एक जगह ला दिया गया है और उसमें साफतौर पर इंगित किया गया है कि 10 कर्मचारी होने पर ही लागू होगा। इसका सीधा-सा अर्थ है कि 93 प्रतिशत कार्यबल इससे बाहर हैं। जो लोग दिहाड़ी मज़दूर या कॉन्ट्रेक्ट वर्कर हैं, वह इससे बाहर हैं। सरकार को करना यह चाहिए था कि जो मज़दूर कानून से बाहर हैं, उसके लिए कानून लाए। लेकिन हुआ उलटा है, जो मज़दूर इस कानून के तहत अन्दर सुरक्षित थे, वह असुरक्षित हो गये और जो असुरक्षित थे वह असुरक्षित ही रहेंगे। यह झूठ बोला जा रहा है कि सभी को सेफ्टी और सिक्योरिटी मिल जाएगा। श्रमिकों पर स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरे आने वाला है। क्योंकि आप बीड़ी उद्योग के मज़दूर, पत्थर तोडऩे वाले मज़दूर, एटोमिक एनर्जी या न्यूक्लियर प्लांट में काम करने वाले मज़दूर, खादान में काम करने वाले मज़दूर, बिजली प्रोडक्शन में काम करने वाले मज़दूर या सीवर में काम करने वाले मज़दूरों की एक साथ तुलना नहीं कर सकते हैं। इन सब की दिक्कतें अलग-अलग हैं और उनसे फैलने वाली बीमारियाँ और उसका इलाज अलग-अलग है; जिसमें सरकार ने वर्क कंडीशन और वेलफेयर दोनों को अलग कर दिया है। इसीलिए यह कोड बहुत ही हानिकारक है।
कोड फॉर इंडस्ट्रीयल रिलेशन
जिसमें सरकार ने सीधा-सीधा श्रमिक संगठनों पर हमला बोला है। केन्द्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने राज्य सभा में बताया कि नये कानून में प्रावधान है कि मजदूरों को हड़ताल करने के लिये कम-से-कम 14 दिन पहले अनुमति लेना अनिवार्य होगा। सरकार ने प्रस्तावित इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड बिल में ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, इंडस्ट्रीयल इम्पलायमेंट (स्टेंडिंग ऑडर) एक्ट 1946, इंडस्ट्रीयल डिस्प्यूट एक्ट 1947 को मिलाकर केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय श्रम कानूनों के लिये चार लेबर कोड लाया है।
जिसमें श्रमिकों के हड़ताल का अधिकार छीन लिया है। साथ हीं साथ हड़ताल से पहले होने वाले गतिविधियों पर भी नकेल कसा गया है। इसमें कहा गया है कि 50 प्रतिशत लोग लीव लेकर भी हड़ताल करते हैं तब भी उसे हड़ताल मानेंगे और उसके खिलाफ कारवाई करेंगे। अगर आप समूह में प्रबंधक के पास जायेंगे, उसे भी व्यवधान माना जायेगा। उसकी भी इजाजत नहीं दी जायेगी। इस तरह श्रमिक संगठनों को खत्म करने पर आमादा हैं। जिससे से श्रमिक अपनी अधिकारों की आवाज बुलंद न कर सके।
इस कोड बिल के तहत महिलाओं के लिये भी नुकसान होने जा रहा है। जोखिम भरे उद्योगों में महिलायों को काम करने की इजाजत दी जायेगी। फैक्ट्री और खादान में रात्री की पारी में काम करने की इजाजत पहले ही दे दी गई थी। अब कोड में डालकर इसको सुनिश्चत किया जा रहा है। इसके साथ ही मौजूदा सोशल सेक्यूरीटी के प्रावधानों को समाप्त करने की साजिश रची जा रही है।
इन तमाम तथ्यों को देखते हुये कहा जा सकता है कि श्रमेव जयते के नाम पर मोदी सरकार श्रमिकों के अधिकारों को छीन कर श्रमिकों के साथ हास्यास्पद उपहास करने जा रही है। इसी बाबा नागार्जुन की यह पंक्तियाँ किसकी है जनवरी किसका अगस्त है? कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है? बहुत ही विचारनीय है।