केंद्रीय पर्यावरण और जनजातीय मामलों के मंत्रालयों ने संयुक्त रूप से वन संसाधनों के प्रबंधन में आदिवासी समुदायों को अधिक अधिकार देने के लिए ‘संयुक्त परिपत्र ’ पर मंगलवार को हस्ताक्षर किए। जिसके अंतर्गत आदिवासी समुदाय को वन संसाधनों के प्रबंधन में पहले से ज्यादा अधिकार मिल सकेगें।
दिल्ली के पर्यावरण भवन में आयोजित ‘संयुक्त पत्र हस्ताक्षर समारोह’ प्रसंग के इस कार्यक्रम में जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस कार्यक्रम को संबोधित किया। साथ ही, पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो और जनजातीय मामलों की राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरूता व अलग-अलग राज्यों के नेता इस समारोह में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल रहें।
वन अधिकार कानून 2006 के लागू होने के बावजूद वन विभाग के अलग-अलग नियम होने के कारण, राज्यों की पोरेस्ट ब्यूरोक्रेसी द्वारा इस कानून की व्याख्या के कारण अनेक राज्यों ने जनजाति समाज को अपने परंपरागत वन क्षेत्र के पुनर्निर्माण, संरक्षण एवं प्रबंधन के अधिकारों से वंचित रखा है। इसी कारण 2007 से अब तक इस सामुदायिक वन अधिकार का क्रियान्वयन 10 प्रतिशत भी नहीं हुआ है।
इस मौके पर पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि, “आदिवासीयों ने जंगल की रक्षा की है और आज भी कर रहे है। इसीलिए सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के अंतर्गत वासियों को मिलने वाले अधिकार उन्हें मिलने चाहिए। सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के संरक्षण, संवर्धन, पुनर्निर्माण और जीविका बढ़ाना ये चारों काम करने की जिम्मेदारी केवल अधिकारियों की नहीं बल्कि इसमें वहां की ग्राम सभा की भी भूमिका है। इसीलिए वन क्षेत्र योजना भी ग्राम सभा के दायरे होनी चाहिए।“
कई वर्षों से कल्याण आश्रम व जनजाति समाज की मांग कर रहा था कि, वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन संसाधनों का अधिकार ग्राम सभा को दिया जाए। और आज की इस पहल से देश के अन्य राज्यों में यह सामुदायिक अधिकार देने का कार्य गति पकडेंगा।