जिंदगी और मौत के बीच का अंतर मैं अपने पेशे में हर रोज देखती हूं. पेशे से डॉक्टर हूं और धर्म से मुसलमान. एक इंसान की जिंदगी की अहमियत बहुत करीब से जाना और समझा है मैंने. इस पेशे में होना और इसको ईमानदारी के साथ निभाना दो अलग बातें हैं. अलग इसलिए क्योंकि इसमें होने के लिए मैं दुनिया के दिए हुए ज्ञान की आभारी हूं, लेकिन इसको ईमानदारी से निभाने का श्रेय मैं अपने धर्म को देती हूं.
संसार में हर व्यक्ति अपनी सोच के कारण दूसरों से अलग है, यह सोच उसे उसके परिवार और धर्म से मिली होती है. समय के साथ ही व्यक्तिगत सोच, सही और गलत का फैसला करने की क्षमता पैदा होती है. मेरे लिए मुसलमान होना सिर्फ पांच समय नमाज पढ़ना, जकात देना या हज करनाभर नहीं है, बल्कि मेरे लिए मेरी सोच का सही होना, एक सही मुसलमान होने की पहचान है. अगर मैं अपने धर्म का हर तरह पालन करूं, लेकिन साथ ही दूसरों के लिए मन में बुरे भाव रखूं और दुख पहुचाऊं तो यह सही नहीं होगा, न मैं अच्छी इंसान न सही मुसलमान. बड़े दुख और आश्चर्य का अनुभव होता है आज यह देखकर कि एक इंसान दूसरे इंसान की जान की कीमत भूल जाता है.
हर किसी को अपनी बात रखने का हक है पर इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं कि आप उससे असहमत हों तो उसकी जान ले लें
धर्म के नाम पर जो लोग हत्याएं करते हैं उनकी निंदा करने के लिए शब्द किसी भी भाषा में कम पड़ेंगे. जीवन अमूल्य है, फिर चाहे वह किसी गरीब का हो, अमीर का, हिन्दू का, ईसाई का हो या मुसलमान का. और फिर जब जीवन देनेवाला ईश्वर है तो उसको छीनने का अधिकार भी केवल ईश्वर को ही है. यह बात समझ से बाहर है कि एक-दूसरे को मौत के घाट उतारने वाले यह अतिवादी कौन-सा मकसद पूरा करना चाहते हैं. ये भूल चुके हैं कि अपनी बात को सही या दूसरों की बात को गलत ठहराने के लिए हजारों लोगों की जान लेना नाजायज है. मैं एक मुसलमान हूं, जहां तक मैंने अपने धर्म को जाना और समझा है, इस्लाम में किसी भी व्यक्ति को किसी का भी जीवन छीनने का हक नहीं है. मेरे ख्याल से दूसरे धर्म भी इसकी इजाजत नहीं देते. इस्लाम कहता है कि जिस शख्स ने किसी एक भी बेगुनाह को कत्ल किया उसने पूरी इंसानियत का कत्ल किया है. इसी तरह जिसने किसी एक इंसान की जिंदगी बचायी है उसने पूरी इंसानियत को बचा लिया है. मेरी समझ से यह कोई अलग ही धर्म है जो सिर्फ अपने निजी मकसद के लिए कुछ लोगों ने खड़ा कर लिया है. इस दुनिया में हर किसी को अपनी बात रखने का हक है पर इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं कि आप जिससे असहमत हों उसकी जान ले लें.
हर सुबह जब मैं अपने घर से निकलकर अस्पताल पहुंचती हूं तो कभी यह नहीं सोचती कि मेरा धर्म क्या है और जो मरीज मेरे पास आया है उसका धर्म क्या है. क्योंकि मेरे लिए वह केवल एक मरीज है, जो अपनी परेशानी लेकर मेरे पास आया है. मेरी पूरी कोशिश उसके दुख के निवारण की होती है. अपने अस्पताल में मैं 99 फीसदी गैर-मुसलमानों के साथ काम करती हूं. और उन गैर-मजहब के लोगों से मेरी जो बातचीत हुई, उससे मैंने जाना कि बाकी लोग भी मेरे जैसी सामान्य सोच ही रखते हैं. यह लोग बिलकुल मेरी तरह हैं, मेरी सोच वाले, इंसानियत को मानने वाले. हाल ही में पेरिस में शार्ली हेब्दो पर जो हमला हुआ या उससे पहले पाकिस्तान में सैंकड़ों मासूम स्कूली बच्चों की दरिंदगी के साथ हत्या की गई, यह और इस जैसी हर घटना की सिर्फ निंदा ही की जा सकती है. इस्लाम की आड़ में ऐसा करने की इजाजत किसी को नहीं है. अगर इन हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोग यह मानते हैं कि इस तरह के हमले करने में इस्लाम की जीत है, तो यह उनका भ्रम है. सच्चाई तो यह है कि यह इस्लाम की हार है.