मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसान नेताओं और सरकार के बीच सोमवार को करीब चार घंटे चली बैठक फिर बेनतीजा रही है। हालांकि, एक और बैठक 8 जनवरी को रखी गयी है।
किसान नेता राकेश टिकैत ने बैठक के बाद ‘तहलका’ को फोन पर बताया – ‘सरकार किसी भी सूरत में हमारी मुख्य मांगें मानने को तैयार नहीं है। जब तक क़ानून वापस नहीं होंगे, हम घर नहीं जाएंगे।’ उनके मुताबिक बैठक में तीनों कानूनों और एमएसपी को लेकर बात तो हुई लेकिन सरकार के पक्ष की तरफ ने कहा कि क़ानून वापस नहीं हो सकते हैं।
बता दें आज सुबह बैठक से पहले कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने उम्मीद जताई थी कि आज की बैठक में हम एक सकारात्मक समाधान तक पहुंचेंगे और सभी मुद्दों पर चर्चा करेंगे। किसानों ने रविवार को यह साफ़ कर दिया था कि उन्हें कानून रद्द करने से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा। उधर सिंघू बार्डर पर किसान संगठनों का विरोध प्रदर्शन जारी है। आज विरोध प्रदर्शन का 40वां दिन है।
राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में किसान संगठनों और सरकार के बीच सातवें दौर की वार्ता हुई। किसान पहले ही कह चुके हैं कि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे आंदोलन तेज कर देंगे। सातवें दौर की वार्ता से पहले भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा था – ‘कई मुद्दों पर चर्चा होनी है। सरकार को समझना चाहिए कि किसान इस आंदोलन को अपने दिल में ले गया है और कानूनों को निरस्त करने से कम नहीं समझेगा। सरकार को स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू करना चाहिए और एमएसपी पर कानून बनाना चाहिए। हम चाहते हैं कि आज की बैठक का लाइव प्रसारण हो।’
बता दें छठे दौर की वार्ता 30 दिसंबर को हुई थी। तब सरकार बिजली की दरों में वृद्धि न करने और पराली जलाने पर दंड के मामले में सहमत हो गयी थी। लेकिन तीन कृषि कानूनों पर कोई सहमती नहीं बन पाई थी। तीन कृषि कानूनों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर ही असली गतिरोध है। किसान एमएसपी पर कानूनी गारंटी चाहते हैं, जो सरकार देना नहीं चाहती।
उधर दिल्ली सीमा पर आंदोलन कर रहे किसाओं की मौत का सिलसिला जारी है। खराब मौसम के बीच अब तक दिल्ली बॉर्डर पर 57 किसानों की जान जा चुकी है। कड़ाके की ठंड और बारिश के बाद भी किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं।