किसानों की जीत के मायने

किसानों और हरियाणा सरकार के बीच तनातनी ख़त्म हो गयी है। सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के लिए हरियाणा के कुरुक्षेत्र में धरने पर बैठे किसान पुलिस के लाठीचार्ज के बाद सडक़ों पर उतर आये थे। बता दें कि किसान आन्दोलन ख़त्म करने के लिए केंद्र सरकार ने किसानों से एमएसपी की गारंटी क़ानून बनाने का वादा किया था; लेकिन ऐसा किया नहीं। किसानों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज की देश भर में निंदा हुई और हरियाणा के किसानों के समर्थन में पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी हरियाणा पहुँचने लगे थे।

बात सूरजमुखी के उचित दामों को लेकर शुरू हुई थी; लेकिन सरकार की हेकड़ी से मामला बढ़ गया। एक बार को तो लगा कि आन्दोलन बड़ा हो जाएगा। भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार को बड़े आन्दोलन की चेतावनी दी थी। किसानों लाठीचार्ज से नाराज़ किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि अगर लाठीचार्ज होगा, तो जाम भी होगा।

केंद्र सरकार की ओर से तय एमएसपी के हिसाब से वित्त वर्ष 2022-23 में सूरजमुखी (बीज) का भाव 6,400 रुपये प्रति कुंतल था, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में यानी अब इसका भाव 6,760 रुपये प्रति कुंतल है। लेकिन  पिछली एमएसपी पर भी ख़रीद न होने से सूरजमुखी 4,000 से 4,500 रुपये प्रति कुंटल बेचने को किसान मजबूर थे। इसी लूट के ख़िलाफ़ अपना हक़ माँगने के लिए किसानों ने सरकार से बात करनी चाही थी, जो पहले असफल रही थी। लेकिन अब सरकार एमएसपी पर सूरजमुखी लेने को तैयार हैं।

सरकार के प्रतिनिधि के तौर डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि सूरजमुखी की फ़सल न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर पर (6400 रुपये प्रति कुंतल) ही ली जाएगी। किसानों की यह जीत सिद्ध करती है कि हरियाणा सरकार को उनकी अहमियत का एहसास हो चुका है। बता दें कि पिछले दिनों एमएसपी पर सूरजमुखी ख़रीद की माँग को लेकर किसानों की पिपली अनाजमंडी में एमएसपी दिलाओ किसान बचाओ महारैली निकाली थी। हरियाणा सरकार तो जैसे किसानों से पहले ही दुश्मनी माने हुए है, उसने पिछले किसान आन्दोलन की तरह ही किसानों पर इस बार भी लाठीचार्ज कराया। इससे पहले सरकार ने किसान नेताओं से बातचीत के लिए समय माँगा; लेकिन वह सिरे नहीं चढ़ पायी। इसके बाद किसान कुरुक्षेत्र में धरने पर बैठ गये थे। हाईवे पर उतरे, जहाँ उन पर 6 जून को लाठीचार्ज हुआ। इसके साथ ही पुलिस ने भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के प्रमुख नेता गुरनाम चढ़ूनी समेत उनकी किसान यूनियन के नौ किसान नेताओं को गिर$फ्तार करके 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इन किसान नेताओं पर पुलिस ने दंगा भडक़ाने, ग़ैर-क़ानूनी रूप से भीड़ इकट्ठी करने, सरकार के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचने समेत कई संगीन धाराओं में केस दर्ज किये थे।

हालाँकि किसानों के आगे हरियाणा सरकार को झुकना पड़ा और उसे सूरजमुखी की एमएसपी पर ख़रीदी के अलावा किसान नेताओं की रिहाई की माँग भी माननी ही पड़ी। ऐसा लगता है कि हरियाणा के विधानसभा चुनावों में कम समय बचे होने के चलते सरकार ने किसानों के आगे झुकना पड़ा, वरना उसने पहले-पहल लाठीचार्ज कराकर किसानों को डराने की कोशिश की।

किसानों पर लाठीचार्ज के बाद हरियाणा के किसान रणदीप सिंह ने कहा था कि सरकार सिर्फ़ किसानों पर लाठीचार्ज कराने में आगे है, किसानों की समस्याओं से उसे कोई लेना-देना नहीं है। पिछली बार की तरह ही सरकार ने शान्तिपूर्वक अपनी माँग कर रहे किसानों पर अत्याचार किया। बुजुर्ग और निहत्थे किसानों पर लाठीचार्ज कराया। दर्ज़नों किसान इस लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल हुए। भाजपा की सरकारें किसानों से दुश्मनों जैसा व्यवहार करने में अग्रणी हैं। हरियाणा पुलिस ने सीधे-सादे किसानों की कभी इज़्ज़त नहीं करी। अब सरकार ने हार मानी ही, तो पहले ही मान लेना चाहिए था। लेकिन अपने हक़ की लड़ाई लडऩे के लिए आगे बढऩे वाले किसानों पर हर बार पुलिस जिस तरह बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज करती है, हम इसका विरोध करते हैं।

किसानों के समर्थन में धरना स्थल पर पहुँचे पहलवान बजरंग पूनिया भी पहुँचे थे। उन्होंने कहा था कि पहले किसान यूपी में घटना के जिम्मेदार अजय मिश्रा टेनी के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। हम बृजभूषण के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। किसी पर एक्शन नहीं हुआ। किसानों को सडक़ पर खड़े देखकर दु:ख होता है। हम खिलाड़ी भी किसान परिवारों से हैं। हम जितने भी खिलाड़ी हैं, हम किसानों के साथ हैं। भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) की महिला प्रदेश अध्यक्ष सुमन हुड्‌डा ने भी किसानों का समर्थन करते हुए कहा था कि भाजपा सरकार तानाशाही पर उतरी हुई है। किसान मजबूर होकर पिपली की धरती से एमएसपी दिलाओ-किसान बचाओ आन्दोलन कर रहे हैं। यही कुरुक्षेत्र की धरती है, जहाँ से महाभारत की शुरुआत हुई थी।

किसानों पर लाठीचार्ज के बाद हरियाणा के किसानों ने सरकार के ख़िलाफ़ हल्ला बोल आन्दोलन की शुरुआत कर दी थी। माना जा रहा था कि अगर हरियाणा सरकार किसानों की यह माँग नहीं मानती, तो फिर यह आन्दोलन देशव्यापी हो सकता था। अब सरकार के पिछले साल की एमएसपी पर हामी भरने पर किसान अपने-अपने घरों को लौट गये हैं।

सरकारों को सोचना चाहिए कि किसानों को खेती-बाड़ी में बहुत बड़ा $फायदा नहीं होता। दिन-रात मेहनत करने के बाद उन्हें एमएसपी के हिसाब से भी अगर फ़सलों का भाव नहीं मिलेगा, तो फिर वे कहाँ जाएँगे। एमएसपी और किसान नेताओं की रिहाई के अलावा किसानों ने रबी के मौसम में हुई बरसात के कारण ख़राब हुई फ़सलों का मुआवज़ा 50,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब देने की माँग की थी; लेकिन उस पर कोई बात खुलकर नहीं हुई।

हालाँकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने किसानों को फ़सल नुक़सान का मुआवज़ा देने की बात पहले ही कह दी थी; लेकिन वह किसानों की माँग से काफी कम है। हरियाणा सरकार ने पहले ही दावा किया था कि उसने सूरजमुखी ख़रीद के लिए भी धनराशि जारी की है। लेकिन किसानों को कहना है कि उन्हें सरकार द्वारा तय एमएसपी के हिसाब से भी सूरजमुखी के दाम नहीं मिल रहे थे।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान चंद्रसेन का कहना है कि सरकार को समझना होगा कि अगर वो किसानों की माँगें अनसुनी करके उन पर हर बार पुलिस से अत्याचार कराती रहेगी, तो किसान कैसे चुप रहेंगे। क्योंकि अब अगर किसानों को मजबूर किया, तो जो आन्दोलन होगा, तो फिर थमेगा नहीं।

उनका कहना है कि एमएसपी किसानों का न्यूनतम हक़ है, जो उन्हें हर हाल में मिलना ही चाहिए। क्योंकि एमएसपी सरकार ही तय करती है। इसलिए सरकार को बिना किसी शर्त के एमएसपी का गारंटी क़ानून संसद में पारित करना चाहिए। क्योंकि पहले से ही कई तबक़े सरकार से ख़फा हैं। पहलवान भी एक भाजपा नेता के ख़िलाफ़ मोर्चे पर हैं।