किसानों की आवाज़ सुने केंद्र सरकार

भारत में केंद्र सरकार ने विभिन्न कम्पनियों को अपने हर उत्पाद की एमआरपी यानी मैक्सिमम रिटेल प्राइस वसूलने की छूट दे रखी है; लेकिन किसानों को अपने फ़सल उत्पादों का मूल्य तय करने का अधिकार नहीं है। सरकार किसानों को एमएसपी यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस भी ख़ुद तय करती है और उस पर भी सभी फ़सल उत्पादों को नहीं ख़रीदती। फ़सल उत्पादों की यह एमएसपी इतनी कम है कि किसानों की लागत भी वापस नहीं मिल पाती।

सही एमएसपी देना तो दूर की बात, किसानों से उनका यह हक़ भी छीनने के लिए केंद्र सरकार ने 2020 में लॉकडाउन का फ़ायदा उठाते हुए तीन नये काले कृषि क़ानून संसद में पास कर दिये थे। इन काले कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ 25 नवंबर, 2020 को किसानों ने धरना शुरू कर दिया। हालाँकि यह धरना पंजाब में इससे पहले ही शुरू हो चुका था। बाद में यह आन्दोलन किसानों का सबसे बड़ा आन्दोलन बन गया और केंद्र सरकार ने इस आन्दोलन के रोकने के लिए किसानों पर हर तरह से अत्याचार किया। इस बीच सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत हुई; लेकिन कोई हल नहीं निकला। सरकार की चालबाज़ियों से तंग आकर किसानों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया। जनवरी, 2021 में इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने पर सहमति जताते हुए 11 जनवरी, 2021 को एक जाँच कमेटी गठित करने का केंद्र सरकार को आदेश दिया। वहीं 12 जनवरी, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों काले कृषि क़ानूनों को स्थगित कर दिया।

इसके बाद 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने का न केवल ऐलान, बल्कि किसानों की माँगें मानने का वादा भी किया। इसके बाद 9 दिसंबर, 2021 को किसान संगठनों ने आन्दोलन स्थगित करने का फ़ैसला लिया और 11 दिसंबर को किसान अपने-अपने घर लौट गये। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से किये वादे अभी तक नहीं निभाये हैं। केंद्र सरकार के द्वारा किसानों के साथ किया गया यह धोखा इस बार पाँच राज्यों के चुनावों के अलावा 2024 के लोकसभा चुनाव में भारी पड़ सकता है। अपनी माँगों को लेकर बार-बार सडक़ों पर उतरने को मजबूर किसानों को अपने ही देश में सरकार ने दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है और पूँजीपतियों की पैरों में एक दासी की तरह बैठी है।

आन्दोलन की चेतावनी

देश भर के किसान केंद्र सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके किसानों से किये गये वादों को याद दिलाने दिल्ली कूच करने के विचार से नवंबर में इकट्ठे होने लगे थे। इसके लिए देश भर से हज़ारों किसान चंडीगढ़, मोहाली और पंचकुला पहुँचने लगे थे। इसके अलावा राज्य सरकारों के घेराव की भी तैयारी थी। तय हुआ था कि जो किसान दिल्ली नहीं आ सकेंगे, वे अपने-अपने राज्यों में विधानसभाओं, राजभवनों का घेराव करेंगे। लेकिन किसान संगठनों की कई बैठकों के बाद नवंबर में दिल्ली कूच करने की योजना टालकर आन्दोलन स्थगन की तारीख़ 11 दिसंबर तक का केंद्र सरकार को किसानों ने अल्टीमेटम दिया है। अगर सरकार ने इस समय तक किसानों की माँगें पूरी नहीं कीं, तो फिर देश में एक बड़ा आन्दोलन फिर शुरू होगा, जो माँगें पूरी होने तक ख़त्म नहीं होगा।

विदित हो कि किसान आन्दोलन को स्थगित हुए पूरे दो साल हो चुके हैं; लेकिन केंद्र सरकार ने किसानों से किये गये वादों को पूरा नहीं किया है, जिसमें एमएसपी की माँग सर्वोपरि है। नवंबर में किसानों के जुटान को देखते हुए चंडीगढ़ सीमा पर भारी पुलिस बल, रैपिड एक्शन फोर्स और अर्धसैनिक बल की तैनाती कर दी गयी थी। इस धरने में 33 किसान संगठन शामिल हुए। किसानों ने बड़े पैमाने पर ट्रैक्टर-ट्राली, ट्रेलर और अपने दूसरे वाहन निकाल लिये थे।

किसानों के साथ देश भर मज़दूर भी इस धरने में शामिल होने लगे थे। इस धरने का नाम महापड़ाव रखा गया था। अभी तो किसानों ने दिल्ली कूच का विचार टाल दिया; लेकिन अगर किसानों की माँगें केंद्र सरकार ने पूरी नहीं कीं, तो 11 दिसंबर से देश में बड़ा आन्दोलन शुरू हो सकता है। इस बार ये आन्दोलन केंद्र सरकार की मज़दूर विरोधी, किसान विरोधी, जन विरोधी व राष्ट्र विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ होगा, जिसमें किसानों और मज़दूरों की माँगों को लेकर किसान यूनियनों के अलावा मज़दूर संगठनों के संयुक्त रूप से हिस्सा लेंगे।

पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी उप राज्यपाल के निवास का सैकड़ों किसानों-मज़दूरों ने घेराव किया था। राज्य और केंद्र सरकार की मज़दूर-किसान विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की। इस बार किसानों के समर्थन में पिछले आन्दोलन की तरह ही वकील, बुद्धिजीवी, छात्र और कलाकार भी जुटेंगे। संयुक्त ट्रेड यूनियन का कहना है कि यह सरकार किसानों-मज़दूरों के ह$कों पर हमला कर रही है। जो किसानों-मज़दूरों के पक्ष में बोलता है, उसे केंद्र सरकार ईडी, सीबीआई और अन्य जाँच एजेंसियों के ज़रिये परेशान कराती है। भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) का कहना है कि सरकार किसानों से वादाख़िलाफ़ी कर रही है। पुराने मुक़दमों में किसानों को बुलाया जा रहा है और उन्हें चुप कराने का प्रयास हो रहा है। अगर सरकार हमारी माँग नहीं माँगती हैं, तो हम इस सरकार को ही बदल देंगे।

किसानों की माँगें

विदित हो कि इस बार किसानों ने कुछ माँगें उठायी हैं, जिनमें सभी को सामाजिक सुरक्षा (इलाज, बुढ़ापा पेंशन, दुर्घटना बीमा, मृत्यु बीमा आदि) देना। बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 वापस लेना। ठेकाकरण बंद करके स्थायी और सम्मानजनक जीवन जीने लायक रोज़गार देना। सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों का निजीकरण बंद करना। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मौलिक सेवाओं का निजीकरण बंद करना। फ़सल की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करना और एमएसपी गारंटी क़ानून बनाना। सभी फ़सलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी ख़रीद सुनिश्चित करना।

इसके अलावा घोषित न्यूनतम वेतन बढ़ाकर तय करना, जिसमें  अकुशल मज़दूरों के लिए 17,494 रुपये, अर्धकुशल मज़दूरों के लिए 19,279 रुपये और कुशल मज़दूरों के लिए 21,215 रुपये की माँग पूरी करना। ईएसआई, पीएफ और बोनस क़ानून में संशोधन कर वेतन की सीमा को बढ़ाकर 31,000 रुपये करना। सामान्य न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये मासिक लागू करना। कम-से-कम 10,000 रुपये मासिक पेंशन लागू करना। ई-श्रम कार्ड में पंजीकृत सभी 32 लाख असंगठित क्षेत्र के मेहनतकशों को सामाजिक सुरक्षा योजना बना कर लागू करना।

इसके अलावा असंगठित क्षेत्र के पुरुषों और महिलाओं को कामगार के रूप में मान्यता प्रदान करना। घरेलू कामगार, रेहड़ी-पटरी कामगार, घर खाता कामगार, कचरा प्रबंधक कामगार, निर्माण श्रमिक, आशा, आँगनबाड़ी और मिड-डे मील वर्कर, ई-रिक्शा, ऑटो चालक तथा परिवहन क्षेत्र के अन्य चालक-परिचालक, पल्लेदार आदि तमाम कामगारों के वेतन तथा सामाजिक सुरक्षा के लिए क़ानून बनाना। कार$खानों / संस्थानों में सुरक्षा सुनिश्चित करना। महिला श्रमिक के लिए समान वेतन की नीति लागू करना। उनका उत्पीडऩ रोकना और उनके साथ काम में भेदभाव बंद करना। 13 महीने चले किसान आन्दोलन को दबाने के लिए बनाये गये फ़र्ज़ी मुक़दमे वापस लेना। सरकारी विभागों को बेचने वाली नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना रद्द करना। सन् 2013 के भूमि अधिग्रहण क़ानून को लागू करते हुए अधिग्रहित ज़मीन के बदले चार गुना मुआवज़ा देना। मृतक के परिवार के एक सदस्य को रोज़गार देना। भूमिहीनों को ज़मीन देना और 10 फ़ीसदी अधिग्रहित विकसित भूमि को वापस करना। लखीमपुर खीरी में किसानों व पत्रकार की हत्या के मुख्य साजिशकर्ता अजय मिश्रा टेनी को केंद्रीय गृह राज्य मंत्रिमंडल से हटाना, उन पर मुक़दमा दर्ज करना। उनके बेटे को सज़ा देना आदि शामिल हैं।

पंजाब में बढ़ेगा गन्ने का भाव

हाल ही में पंजाब के किसानों को पहले सडक़ पर और बाद में रेलवे लाइन पर उतरकर प्रदर्शन करना पड़ा। धरने की वजह थी- पंजाब में गन्ने का सही ख़रीदी मूल्य देना। इसके लिए किसान कुछ दिन जालंधर-फगवाड़ा क्षेत्र में दिल्ली-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे ट्रैक पर धरने पर बैठे और बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आश्वासन देकर शान्त किया। पंजाब की आम आदमी पार्टी इकाई और किसान नेताओं ने बैठक के बाद संयुक्त बयान में कहा कि बैठक सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई।

किसान नेताओं ने कहा कि जहाँ तक गन्ने की दर बढ़ाने की बात है, पंजाब हमेशा आगे रहा है। आने वाले दिनों में गन्ना किसानों को रेट और इस साल की शुरुआत में बाढ़ के कारण हुए नुक़सान के मुआवज़े के सम्बन्ध में अच्छी ख़बर मिलेगी। हालाँकि पंजाब सरकार और किसानों ने यह नहीं बताया कि गन्ने का नया ख़रीदी मूल्य पंजाब में क्या मिलेगा? 30 नवंबर तक पंजाब की चीनी मिलें चालू होनी हैं। किसान नेताओं का कहना है कि गन्ने का नया मूल्य 400 रुपये प्रति कुंतल के लगभग हो सकता है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसके संकेत दिये हैं। किसानों की माँग है कि गन्ने का मूल्य 400 रुपये प्रति कुंतल से अधिक होना चाहिए।

अगर पड़ोसी राज्यों की बात करें, तो हरियाणा में गन्ने का मूल्य 386 रुपये है। वहीं उत्तर प्रदेश में अभी तक 325 रुपये प्रति कुंतल ही किसानों का गन्ना ख़रीदा जा रहा है।