‘कारगिल में घुसपैठिए’
कहने को तो ये कुल तीन शब्द हैं
लेकिन अभी तो मेरे पास
एक अक्षर तक नहीं है भाषा में
तेरा खाता खुला कहां है?
तुझे खबर न हो
तेरी खिलखिलाहट और हंसी
तेरा घुटनों के बल चलना और गिरना
तेरा हमें पहचानना और मुस्काराना
तेरा दूध के लिए रोना,
सिर्फ तेरे ही नहीं
हमारे अपने जीवन का भी आगे बढऩा है।
जाड़ों में देवताओं और पुरखों के आर्शीपुष्पों की वर्षा के बीच
जब तू आया था
एक नए किरणाघात, एक नए स्वर,
एक नए रंग की तरह इस संसार में
तब, उन्ही दिनों के आसपास
ये हमारी सरहदों में घुसे थे
सर्द हवा और बर्फीली आंधियों के बीच
ठीक उस समय जब मेरी दूध गंध
तेरी नन्ही उंगलियों में फंसे
खिलौने और झुनझुने
तेरी शैतान होती आंखें
सब कुछ अनश्वर लग रहा है
तभी सरहद पर बर्फीली चोटियों के आसपास
वे मर रहे हैं, मार रहे हैं, मारे जा रहे हैं
तेरे शब्दकोष में न हों, अभी कोई शब्द
तेरी सच-कम-सपना- अधिक देखने वाली आंखों में
अभी समा न पाई हो यह
दुनिया अपनी सारी रंगतों के साथ,
चिडिय़ों, बरतनों, झुनझुनों, हवा की सरसराहट
चीजों के गिरने, हमारे प्यार-पूचकार के अलावा
तूने भले न सुनी हो और कोई आवाज़
पर हम सब, हम और तू भी,
मेरे पोते,
एक ऐसी दुनिया में हैं जहां हर-रोज़
कुछ सुंदर बेवजह नष्ट हो रहा है,
धमाकों और विस्फोटों के साथ।
2
साहस एक पवित्र शब्द है।
बलिदान एक पवित्र शब्द है।
प्रतिरोध एक पवित्र शब्द है।
पर युद्ध को पवित्र शब्द कहना संभव नहीं
भले ही वह हम पर थोपा ही क्यों न गया हो!
युद्ध के साथ चली आती है मृत्यु,
भले युद्ध के बाद,
उसकी सारी तबाही-बरबादी के बाद
संसार में बचता है फिर भी जीवन ही, मृत्यु नही!
शहादत को याद करता और अकसर भुलाता हुआ
जीवन ही बचता है,
मेरेे लाडले,
युद्ध के बाद-
फिर भी युद्ध एक पवित्र शब्द नहीं है।
हर युद्ध के साथ कुछ सुंदर और पवित्र नष्ट होता है।
युद्ध अकसर होता है भाइयों और पड़ोसियों के बीच
हमसे लडऩेे कहीं और से दुश्मन नही,
भाई और पड़ोसी ही आते हैं
इसलिए युद्ध एक पवित्र शब्द
कभी नहीं हो पाता
संसार का सारा सच तेरी
निश्छल आंखों में समा गया है
और तू अपने सपने में सोया मुस्करा रहा है
हम अपने धूल-धक्कड़ और
कीचड़-खून सने सच में लिथड़े हैं।
सब कह रहे हैं सयाने और जिम्मेदार कि अब
मारने और मरने के अलावा
किसी और के लिए समय नहीं रह गया है।
फिर भी, मंै। एक अधेड़ कवि,
बिना थके-हारे और
बिना किसी कायर उल्लास में
शामिल हुए
जानता हूं कि अभी भी न सिर्फ तेरे लिए
और दुनिया के तमाम बच्चों के लिए
बल्कि सबके लिए सुंदर और
पवित्र को बचाने के लिए
प्रार्थना में हाथ उठाने और
सिर झुकाने का समय है
प्रार्थना भी एक लड़ाई है
निश्छल सपनों और कीचड-खून सने सच के बीच
उस जगह को बचाने की
जहां से हम सुंदर और पवित्र की ओर लौट सकते हैं
बिना जाने-समझे
निशब्द
मेरे पोते,
प्रार्थना में अपने अभय हाथ उठा।
(अपने साढ़े छह महीने के पोते के लिए युद्धगीत)
कवि: अशोक वाजपेयी
कविता संकलन: कम से कम (2015-2018)
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली