वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को हराने के लिए दुनिया भर में क्या करें? क्या नहीं? के बारे में सरकारी विज्ञापन लगातार अखबारों में छप रहे हैं, टीवी पर प्रसारित हो रहे हैं और लोगों के बीच जागरूकता फैलाने बाबत सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। डाक्टर्स भी बार-बार लोगों को कोविड-19 (कोरोना वायरस) की रोकथाम के बारे में महत्त्वपूर्ण टिप्स दे रहे हैं। कोरोना से बचाव के संदर्भ में अधिक ज़ोर 20 सेंकेड वाले हैंडवॉश यानी हाथ धोने पर दिया जा रहा है। इसमें उचित तरीके से हाथ धोना भी बताया जा रहा है। हाथ धोने के लिए साबुन या सेनेटाइजर या एल्कोहल युक्त स्क्रब का इस्तेमाल करें। टीवी पर महान् क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदलुकर को हैंडवॉश करते हुए दिखाया जा रहा है, ताकि आम लोग सचिन से प्रेरित होकर कोरोना वायरस को हराने के लिए बार-बार हाथ धोने की आदत डाल लें। लेकिन हैंडवॉश की एक अन्य तस्वीर भी है। इन्हीं दिनों मुझे मुल्क की राजधानी दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय बस्ती में अपने घर से थोड़ी दूरी पर स्थित मदर डेयरी के आऊटलेट के बाहर तीन बच्चे दिखाई दिये। वे आने-जाने वालों से पैसे माँग रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि वे कहाँ रहते हैं? स्कूल जाते हैं या नहीं? उनके माता-पिता क्या करते हैं? उनके कपड़े व बदन साफ नहीं थे। उनसे पूछा कि आजकल वे कितनी बार हाथ धोते हैं और साबुन के साथ धोते हैं या नहीं? उनके जबाव साफ बता रहे थे कि न तो बार-बार हाथ धो रहे हैं और न ही साबुन का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके पास घरों में पानी तक की बुनियादी सुविधा नहीं है। ऐसे बच्चे, लोग दुनिया के उन करोड़ों लोगों में शमिल हैं, जो इस पहुँच से बाहर हैं।
बाल अधिकारों को बढ़ावा देने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ ने हाल ही में इस नाज़ुक समय में राष्ट्र सरकारों का ध्यान ऐसे करोड़ों लोगों की ओर दिलाया है, जो इस अहम सुविधा से वंचित हैं। कोविड-19 का मुकाबला करने में हैंडवॉश सरीखा सुराक्षात्मक उपाय अहम भूमिका निभाता है। लेकिन नवीनतम आँकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में पाँच में से तीन लोगों के पास ही हाथ धोने वाली बुनियादी सुविधाएँ हैं। यानी 40 फीसदी लोग इस सुविधा से वंचित हैं। यूनिसेफ के कार्यक्रम निदेशक संजय विजिसकेरा का कहना है कि साबुन से हाथ धोना सबसे सस्ते व सबसे प्रभावशाली उपायों में से एक है। साबुन से हाथ धोकर आप खुद को और दूसरों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा सकते हैं। लेकिन अभी तक अरबों लोगों की इस सबसे बुनियादी उपाय तक पहुँच नहीं है। विश्व की 40 फीसदी आबादी अर्थात् 3 अरब लोगों के पास घरों में पानी व साबुन से हाथ धोने की सुविधा नहीं है। सबसे कम विकसित देशों में करीब तीन-चौथाई लोगों के घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाएँ नहीं हैं। 47 फीसदी स्कूलों में पानी व साबुन से हाथ धोने की सुविधा नहीं है। इस सुविधा के नहीं होने से विश्व भर के एक-तिहाई स्कूलों में 900 मिलियन स्कूली बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। और सबसे कम विकसित देशों के आधे स्कूलों में तो बच्चों के लिए हाथ धोने तक की जगह नहीं है। 16 फीसदी स्वास्थ्य देखभाल सेवा केंद्रों में यानी छ: में से एक केंद्र में प्रयोग में लाने लायक शौचालय नहीं था। देखभाल केंद्रों में, जहाँ मरीज़ों का इलाज होता है; वहाँ किसी भी जगह पर हाथ धोने की सुविधा नहीं थी। शहरी आबादी पर विशेष रुप से वायरल श्वसन संक्रमण का खतरा बना रहता है। यह जनसंख्या घनत्व और भीड़-भाड़ वाले इलाकों, जैसे- बाज़ार, सार्वजनिक परिवहन या पूजा स्थलों पर अक्सर जमा होने वाली जनता के कारण होता है। जो लोग शहरी गरीब बस्तियों में, जो कि सबसे खराब अनौपचारिक बस्तियाँ हैं; खासकर वहाँ की आबादी अधिक जोखिम में है।
भारत में 20 फीसदी शहरी लोग यानी 9.1 करोड़ लोगों के घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाओं की कमी है। भारत की आर्थिक राजधानी व मायानगरी मुम्बई की बात करें, तो स्लम में रहने वाले लोगों ने हाथ धोने वाले व्हटसअप वीडियो तो देखे हैं, मगर उनका अगला सवाल साफ पानी तक पहुँच की कमी वाला होता है। यहाँ रहने वाले लोग प्लास्टिक के बड़े-बड़े ड्रमों में पानी भरते हैं और यह पानी पाइप के ज़रिये उनकी बस्ती तक पहुँचता है। मगर पानी किस दिन और कितनी देर तक आएगा? यह सुनिश्चित नहीं है। यही हाल दिल्ली का है। यहाँ कई इलाकों में केवल एक घंटे तक पानी आता है। लोग इस पानी का इस्तेमाल बहुत ही ज़रूरी कार्यों, जैसे- खाना बनाने और पीने आदि में करते हैं। उनका कहना है कि वे बार-बार साबुन से हाथ धोने का खर्च वहन नहीं कर सकते। भारत में करीब 66 फीसदी आबादी गाँवों में रहती है। कई अध्ययन बताते हैं कि ग्रामीण भारत में हर चौथा व्यक्ति बच्चों को खिलाने से पहले हाथ नहीं धोता। गरीबी और अन्य कई कारणों से घरों में पानी व साबुन से वंचित होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। भारत के कई बड़े शहर, जिसमें बेंगलूरु भी शमिल है; पानी की कमी से जूझ रहा है। वहाँ पानी का गम्भीर संकट है। चेन्नई भी ऐसे हालात से गुज़र रहा है। भारत विश्व का ऐसा मुल्क है, जो सबसे अधिक भूजल का इस्तेमाल करता है। यहाँ पाइपलाइन से पानी की बर्बादी के आँकड़े भी चिन्ता का विषय हैं और पानी की रिसकालिंग (रिसाव रोकने) को लेकर भी उत्साहजनक माहौल नज़र नहीं आता।
सब सहारा अफ्रीका में शहरी इलाकों में 63 फीसदी लोग यानी 258 मिलियन (2,580 लाख) लोगों के पास हाथ धोने की सुविधा नहीं है। उदाहरण के लिए 47 फीसदी शहरी दक्षिण अफ्रीकी यानी 18 मिलियन (180 लाख) लोगों के पास घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाएँ तक नहीं हैं; जबकि सबसे अमीर शहरी निवासियों के पास हाथ धोने वाली सुविधाओं तक पहुँच की सम्भावना 12 गुना से भी अधिक है। जिन लोगों के पास पैसा है, वे गरीब लोगों की तुलना में हैंडवॉश, निजी, सामुदायिक हाईजीन पर खर्च करके अपना बचाव बेहतर ढंग से कर सकते हैं। मध्य व दक्षिण एशिया में शहरी इलाकों के 22 फीसदी लोग अर्थात् 153 मिलियन लोगों के पास हाथ धोने की सुविधा की कमी है। करीब 50 फीसदी बंाग्लादेशी अर्थात् 29 मिलियन (290 लाख) लोगों के पास घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाओं की कमी है।
पूर्व एशिया में 28 फीसदी शहरी इंडोनेशियाई अर्थात् 41 मिलियन (410 लाख) और 15 फीसदी शहरी फिलीपींस अर्थात् 7 मिलियन (70 लाख) लोगों के पास घरों में मूलभूत हाथ धोने वाली सुविधाएँ नहीं हैं। गौर करने वाली बात यह है कि विश्व के बहुत-से हिस्सों में बच्चों, अभिभावकों, अध्यापकों, स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं की और समुदाय के अन्य सदस्यों के घरों, स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों, स्कूलों व दूसरी जगहों पर लोगों की हाथ धोने वाली बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच नहीं है। एक बात अहम है कि हाथ धोना स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को संक्रमण से बचाने के लिए और स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में कोविड-19 व अन्य संक्रमणों के प्रसार की रोकथाम में भी अहम है। कोरोना वायरस से लडऩे के लिए साबुन से हाथ धोना अहम है। लेकिन दुनिया के तीन अरब लोगों के पास घरों में पानी और साबुन से हाथ धोने वाली मूलभूत सुविधाएँ नहीं है। यह सब राष्ट्र सरकारों के सामने कोरोना को हराने के रास्ते में एक बहुत बड़ी चुनौती है।