उत्तर प्रदेश में इन दिनों जन सामान्य को बिजली के भारी संकट से दो-चार होना पड़ रहा है। शहरों से लेकर गाँवों तक में बिजली की आँखमिचौली का खेल किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि आख़िर क्यों ऐसा हो रहा है। बिजली कब आएगी एवं कब चली जाएगी? इसका किसी को कुछ नहीं पता।
हर दिन घंटों के कट लगना सामान्य बात हो चुकी है। बिजली का यह संकट किसकी देन है? कुछ नहीं कहा जा सकता। बिजली विभाग के एक अधिकारी ने नाम प्रकाशित न करने की अपील करते हुए कहा कि बिजली माफ़िया योगी सरकार की नाक के नीचे से सारा खेल कर रहे हैं। बिजली माफ़िया किसकी मिलीभगत से ये खेल कर रहे हैं? इस प्रश्न के उत्तर में अधिकारी ने कहा कि बिना सरकार की इच्छा के कहीं कुछ भी सम्भव होता है क्या? बिजली संकट कब तक रहेगा? इस प्रश्न का उत्तर अधिकारी का मौन था, जिसका अर्थ हम निकाल सकते हैं कि कुछ पता नहीं। जेठ की भरी गर्मी के बाद आषाढ़ की सड़ी गर्मी शुरू हो चुकी है एवं तापमान 40 डिग्री से ऊपर है। घरों में रुकना दूभर है। गाँवों में जिनके पास सोलर प्लेट लगी हैं, वे अपनी कुछ समस्या उसी के सहारे काट रहे हैं। मगर जिनके पास बिजली के अतिरिक्त कोई साधन नहीं है, वे बिजली आने की राह ही देखते रहते हैं। शहरों में बिजली का संकट गाँवों की अपेक्षा थोड़ा कम है; मगर सामान्य नहीं है। शहरों में भी कई कई घंटों तक बिजली गुल रहना सामान्य बात हो चुकी है। गर्मी से बेहाल गाँवों के लोग पेड़ों की छाँव में हाथों में हाथों से बने पंखे लेकर गर्मी दूर करने का निरर्थक प्रयास करने को विवश हैं।
किसानों का दु:ख बढ़ा
धौंराटांडा के किसान रवि कहते हैं कि बिजली के संकट ने उत्तर प्रदेश के किसानों का दु:ख दोगुना कर दिया है। इस वर्ष धान की पौध में पानी कम लगने से उसकी बढ़त कम हुई है। अब धान लगाने का समय चल रहा है। पानी ही नहीं होगा, तो धान कैसे लगेंगे? जिन किसानों ने धान लगा दिये हैं, उनकी धान फ़सल पानी की कमी से पीली पडऩे की स्थिति में हैं, उसकी बढ़वार नहीं हो रही है। बारिश हो नहीं रही है एवं बिजली आ नहीं रही है।
डीजल की महँगाई ने खेती को इतना महँगा कर दिया है कि उससे अच्छा किसान चावल ख़रीदकर खा ले। खेतों की जुताई, मज़दूरों की मज़दूरी, पानी एवं खाद की लागत आदि सबको जोड़ें तो एक बीघा धान की लागत 3,000 से 3,500 रुपये तक आती है, जबकि एक बीघा खेत में कड़े परिश्रम के बाद 4,500 से 5,000 रुपये का धान निकल पाता है। अगर मौसम बिगड़ा अथवा आवारा पशुओं ने खेती उजाड़ दी, तो लागत भी नहीं लौटती। अगर मान भी लें कि खेती अच्छी हो गयी, तो भी एक बीघा में छ: महीने की कड़ी मेहनत के बाद 1,000 से 1,500 रुपये ही मिलते हैं। अगर किसान अपनी मेहनत जोड़ें, तो घाटा अगर खेत की भी छ: महीने की क़ीमत जोड़ें, तो उससे भी बड़ा घाटा दिखेगा। मगर किसानों के भाग्य ही फूटे हुए हैं। कभी किसानों को मौसम की मार झेलनी पड़ती है, तो कभी सरकार की बेरुख़ी की मार झेलनी पड़ती है। सामान्य-सी बात है कि धान के खेतों में लगातार पानी रहना चाहिए। अगर धान के खेतों में पानी नहीं रहता है, तो वो चटकने लगते हैं। इससे धान के पौधे पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। धान के पौधे तभी ठीक से विकसित होते हैं, जब उनमें लगाने के समय से लेकर बाली में भरपूर दाना पडऩे तक पानी रहता है।
पूरे प्रदेश में बिजली संकट
उत्तर प्रदेश के सभी 75 जनपदों में बिजली संकट है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर एवं प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी लोग बिजली संकट से त्रस्त हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बिजली संकट पर अपने मातहतों की फटकार लगा रहे हैं; मगर कोई सार्थक प्रयास न कर सकना उनकी विवशता है अथवा विफलता? इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मगर इतना अवश्य है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बिजली आपूर्ति के तमाम दावे विफल हो चुके हैं। 24 घंटे बिजली देने के दावे गाँव-गाँव तक बिजली पहुँचाने के दावे एवं पिछली सरकारों से अधिक बिजली आपूर्ति के दावे की हवा निकल चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के अतिरिक्त आम आदमी पार्टी के नेता सांसद संजय सिंह ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ एवं उनकी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
उनके अनेक प्रश्नों के उत्तर देने में सरकार असमर्थ दिख रही है। शाहजहाँपुर निवासी महेश शर्मा का कहना है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार 24 घंटे शहरों में, 22 घंटे तहसीलों में एवं 20 घंटे गाँवों में बिजली देने के अपने ही वादे पर नहीं टिक सकी है। अब तो बिजली संकट है, सामान्य बिजली आपूर्ति के दिनों में भी सरकार के वादे के अनुरूप बिजली कभी नहीं आयी। घंटों के कट पहले लगते थे, अब शहरों में 4-4 घंटे से अधिक समय के कट लग रहे हैं, तो गाँवों में 12 से 14 घंटे तक बिजली कटौती हो रही है। कहीं-कहीं तो 24 घंटे दूर, कई-कई दिन तक बिजली नहीं रहती है।
ऊर्जा मंत्री ने झाड़ा पल्ला
उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा का एक ट्वीट इन दिनों चर्चा में है। ऊर्जा मंत्री ने इसमें कहा है कि 2012-17 के बीच बिजली की अधिकतम माँग 13,598 मेगावॉट थी एवं अब 2023 में बिजली की माँग बढक़र 27,611 मेगावॉट हो गयी है। जून 2022 में बिजली की अधिकतम माँग 26,369 मेगावॉट की थी। वर्तमान में न्यूनतम बिजली की माँग 22,000 से अधिक मेगावॉट है। ये माँग अप्रत्याशित एवं ऐतिहासिक है। आज तक बिजली की इतनी माँग नहीं हुई थी। इस वजह से कुछ दिक़्क़तें आ रही हैं, जिन्हें ठीक करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
ऊर्जा मंत्री ने अपनी नाकामी का भाँडा मौसम पर भी फोड़ते हुए कहा है कि 2012 में अधिकतम तापमान 40 डिग्री तक ही रहता था; मगर तापमान बढ़ते-बढ़ते 2023 में 47 डिग्री तक जा पहुँचा है। इस वजह से भी बिजली की खपत बढ़ी है। ऊर्जा मंत्री की अजब-ग़ज़ब बातें कितनी सही हैं, कितनी हास्यास्पद? यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
नियमित कर्मचारी हुए कम
एक टीवी चैनल की मानें, तो वर्तमान में पूरे उत्तर प्रदेश में सरकारी एवं संविदा पर लगभग 10,500 कर्मचारी कार्यरत हैं। इमें 37,000 कर्मचारी नियमित हैं जबकि 68,000 कर्मचारी संविदा पर है। मगर बिजली विभाग में कम से कम 2,65,000 कर्मचारियों की आवश्यकता है।
सन् 2012 में बिजली विभाग में 42,000 नियमित कर्मचारी थे। इसका अर्थ यही हुआ कि पूर्ववर्ती सरकारों से अधिक सरकारी नौकरियाँ देने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिजली विभाग में नियमित कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की जगह उलटा छ: वर्षों में 5,000 कर्मचारी कम कर दिये। स्थिति यह है कि संविदा पर कार्य करने वाले उन कर्मचारियों को भी नियमित नहीं किया जा रहा है, जो अर्हता रखते हैं।
ठिरिया गाँव के निवासी राकेश कुमार बताते हैं कि कहीं अगर ट्रांसफार्मर फुक जाए अथवा फ्यूज उड़ जाए, तो उसे जोडऩे वाले बिजली कर्मचारी की घंटों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। संविदा पर काम करने वाला कर्मचारी जब कुछ ठीक करने आता है, तो चाय पानी का ख़र्च लिये बिना काम नहीं करता। वह (कर्मचारी) कहता है कि मामूली वेतन पर काम तो हम संविदा वाले कर्मचारी करते हैं। नियमित कर्मचारियों का वेतन भी तीन गुना है, काम भी चौथाई है। जान जोखिम में तो संविदा वाले कर्मचारी ही अपनी डालते हैं।
मातहतों पर बरसे मुख्यमंत्री
बिजली आपूर्ति ठप रहने के चलते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीते दिनों अपने मातहतों पर बरसे। मुख्यमंत्री ने एक आपात स्थिति में प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा, पॉवर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष एम. देवराज एवं बिजली विभाग के कुछ मुख्य अधिककारियों को तलब करके निर्देश दिये कि ज़िला मुख्यालयों में 24 घंटे, तहसील मुख्यालयों में 22 घंटे एवं गाँवों में 18 घंटे बिजली की आपूर्ति हर स्थिति में सुनिश्चित की जाए। मुख्यमंत्री ने ऊर्जा मंत्री समेत सभी अधिकारियों को अतिरिक्त बिजली की व्यवस्था करने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने उन्हें जनपदों में बिजली व्यवस्था की निगरानी करने एवं बिजली आपूर्ति, अव्यवस्था सुधारने, क्षतिग्रस्त स्थानों पर जाकर कमियों को दूर करने के भी निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा है कि प्रत्येक जनपद में बिजली आपूर्ति की स्थिति की समीक्षा की जाए एवं जहाँ भी कमी हो, वहाँ उसे दूर किया जाए।
इससे पूर्व ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने शक्तिभवन में बिजली आपूर्ति व्यवस्था की समीक्षा की, कमियाँ पाये जाने पर सम्बन्धित अधिकारियों की कड़ी फटकार लगायी। सरकार ने विद्युत सम्बन्धी समस्या के समाधान के लिए कस्टमर केयर सेंटर के टोल फ्री नंबर 1912 पर शिकायत करने के लिए उपभोक्ताओं से कहा है। अगर इस नंबर पर काल करने पर समय पर समस्या दूर नहीं होती है, तो उपभोक्ता बिजली विभाग से हर्ज़ाने की माँग भी कर सकता है। मगर एक उपभोक्ता को वित्तीय वर्ष में दी गयी फिक्स अथवा डिमाण्ड चार्ज के 30 प्रतिशत तक हर्ज़ाना मिल सकता है। इस आधार पर अगर कोई शहरी घरेलू उपभोक्ता हर्ज़ाने की माँग करता है, तो उसके द्वारा हर माह 110 रुपये प्रति किलोवॉट चार्ज दिया जाता है, जिसके अनुरूप वो पूरे वर्ष में 1,320 रुपये फिक्स चार्ज देता है। इस आधार पर उसे 396 रुपये तक अथवा उससे कम ही हर्ज़ाना मिलेगा। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (प्रदर्शन का मानक) विनियमावली-2019 का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए ऑनलाइन प्रणाली विकसित की गयी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों का कितना असर होगा, ये तो बाद की बात है। वर्तमान में प्रश्न ये हैं कि महँगी बिजली ख़रीद रहे उत्तर प्रदेश के बिजली उपभोक्ता बिजली के लिए तरस क्यों रहे हैं? उत्तर प्रदेश सरकार बिजली आपूर्ति में असफल क्यों है? कब तक प्रदेश इस तरह अँधेरे में रहेगा? उत्तर प्रदेश में डबल इंजन सरकार फेल क्यों है?