आखिरकार कपड़ा पर लगाये जाने वाले जीएसटी को क्यों स्थगित करना पड़ा। जबकि जूता और स्टेशनरी में बढ़ाया गया जीएसटी जारी रखा गया है। कपड़ा व्यापारियों ने बताया कि कपड़ा के व्यापारियों ने गांव से लेकर शहर तक सरकार और जीएसटी को लेकर जमकर विरोध किया था, कपड़ा की दुकानें बंद कर दी थी। कपड़ा व्यापारियों के विरोध को भांपते हुये सरकार ने फिलहाल फरवरी माह तक कपड़ा पर बढ़ाये गये जीएसटी को स्थगित कर दिया है। अगामी फरवरी में वित्त मंत्रालय में जीएसटी को लेकर बैठक में फैसला लिया जायेगा कि जीएसटी को बढ़ाया जाये या स्थगित किया जाये।
बताते चलें, कपड़ा, जूता और स्टेशनरी पर 5 से बढ़ा कर 12 प्रतिशत तक बढ़ार्इ गर्इ जीएसटी को 1 जनवरी 2022 से लागू किया जाना था। जिसको लेकर व्यापारियों ने विरोध किया था। भारतीय व्यापार मंडल के अध्यक्ष विजय प्रकाश जैन का कहना है कि कपड़ा व्यापारियों ने सड़को पर उतरकर विरोध किया था। सरकार जान चुकी थी कि अगर समय रहते कपड़ा व्यापारियों की मांगों को नहीं माना तो ये आंदोलन का रूप भी ले सकती है। इसलिये सरकार ने कपड़ा व्यापारियों की मांगों को माना है और बढ़ाये गये जीएसटी को फरवरी माह तक के लिये स्थगित कर दिया है। उनका कहना है कि अगर स्टेशनरी और जूता व्यापारी सड़को पर उतरतें और अपनी मांगों को लेकर सरकार के समक्ष रखते तो उनकी मांगों को जरूर माना जाता। लेकिन ऐसा नहीं होने से स्टेशनरी और जूता पर बढ़ाया गया जीएसटी यथावत है।
जूता व्यापारी पंकज सूद का कहना है कि कोरोना काल चल रहा है आर्थिक मंदी के चलते जूता का व्यापार कम है। रहा सवाल विरोध का तो सरकार को खुद समझना चाहिये। कि व्यापारियों की आर्थिक स्थिति बिगड रही है। ऐसे में जूता पर जीएसटी थोपें जाने के कारण विपरीत असर पड़ेगा। स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले रतन गुप्ता का कहना है कि कोरोना काल में स्टेशनरी का काम लगभग बंद सा है। क्योंकि स्कूल और काँलेजों के बंद होने के कारण पढ़ाई आँनलाईन होने की वजह से दुकानों पर ग्राहक कम आ रहे है। रहा सवाल जीएसटी बढ़ाये जाना का तो उससे महंगे समान होने से बिक्री पर विपरीत असर पड़ेगा।
सरोजनीनगर मार्केट अध्यक्ष अशोक रंधावा का कहना है कि सरकार की नीतियां व्यापारी विरोधी है। उनका कहना है कि कपड़ा पर बढ़ाये गये जीएसटी को हटाया नहीं है बल्कि स्थगित किया है। क्योंकि आने वाले दिनों में पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव है। उनका कहना है कि देश में कपड़ा का कारोबार है बढ़ा है। लाखों की संख्या में व्यापारी और उससे जुड़े लोगों को देखते हुये वोट बैंक को नापते और मापते हुये सरकार ने सियासी दांव चला है। इसलिये कपड़ा पर जीएसटी को हटाया गया है। अशोक रंधावा का कहना है कि सरकार को जूता और स्टेशनरी पर बढ़ाये गये जीएसटी को वापस लेना चाहिये।