कथनी कुछ, करनी कुछ

रिलायंस समूह से जुड़ी संस्था रिलायंस फाउंडेशन तरह-तरह के जनहितकारी काम करती है ऐसा इसकी वेबसाइट बताती है. इस संस्था की प्रमुख और रिलायंस समूह के मुखिया मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी महिलाओं और कन्याओं के कल्याण से जुड़े कई कार्यक्रमों में भाग लेते हुए टेलिविजन पर अक्सर दिख जाती हैं. रिलायंस फाउंडेशन, फिल्म स्टार आमिर खान के लोकप्रिय टीवी प्रोग्राम सत्यमेव जयते – जिसमें कन्या भ्रूण हत्या सहित महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों को दिखाया गया था – में भी सहयोग करती है. मगर इसी रिलायंस समूह से जुड़ी एक अन्य कंपनी पर कुछ साल पहले कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे जिससे जुड़ा मामला अभी भी अदालत में चल रहा है.

रिलायंस ने कई क्षेत्रों में कारोबारी सफलता के कई नए रिकॉर्ड स्थापित करने के बाद 2002 में दूरसंचार के क्षेत्र में कदम रखा था. इस क्षेत्र में काम करने के लिए एक नई कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम को 31 जुलाई, 2002 को रजिस्टर्ड कराया गया. कंपनी गठन के कागजों की पड़ताल के बाद तहलका ने पाया कि इसकी शुरुआत में दो लोग इसमें बराबर के साझेदार थे. इनमें एक थे मुकेश अंबानी और दूसरे मनोज एच मोदी. मोदी अभी मुकेश अंबानी वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के निदेशक मंडल में हैं. बाद में जब मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच 2005 में विवाद पैदा हुआ तो रिलायंस इन्फोकॉम का स्वामित्व अनिल अंबानी के पास आ गया. इस संबंध में कंपनी के दस्तावेजों में 26 जून, 2005 को बदलाव किया गया. कंपनी के नए निजाम ने इसका नाम बदलकर रिलायंस कम्युनिकेशंस कर दिया.

इसके पहले ही कर लो दुनिया मुट्ठी मेंकी टैगलाइन के साथ रिलायंस इन्फोकॉम ने रिलायंस इंडिया मोबाइल के नाम से मोबाइल सेवा की शुरुआत कर दी थी. इस मोबाइल सेवा के तहत ही आर वर्ल्ड के नाम से मूल्य वर्धित सेवाओं का एक सेक्शन शुरू किया था. इसमें वूमंस वर्ल्ड सेक्शन के तहत कुछ सेवाएं मुहैया कराई जा रही थीं जिनमें से एक का नाम प्लान अ बेबीथा. प्लान अ बेबीके तहत ग्राहकों को बताया जा रहा था कि कैसे अपने होने वाले बच्चे का लिंग निर्धारित कर सकते हैं. इसमें यह साफ तौर पर बताया जा रहा था कि किस समय सेक्स करने से और किस तरह की डाइट लेने से लड़का या लड़की होगी. इसके अलावा इसके तहत कुछ सवालों का जवाब देकर गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग निर्धारण की सुविधा भी दी जा रही थी. इसके लिए एक खास तरह के चीनी कैलेंडर का इस्तेमाल कंपनी कर रही थी. इस चीनी कैलेंडर में गर्भ धारण का वक्त और गर्भ धारण करने वाले की उम्र डालने के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग बताया जाता था.

कुछ समय तक रिलायंस यह सेवा अपने ग्राहकों को मुहैया कराती रही और पैसे बनाती रही. लेकिन इसी बीच रिलायंस की इस सेवा पर उच्चतम न्यायालय में वकालत करने वाले रवि शंकर कुमार की नजर पड़ी और उन्होंने संबद्ध एजेंसियों के पास रिलायंस की इस सेवा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. वे तहलका को बताते हैं, ‘रिलायंस की यह सेवा प्री-कांसेप्शन ऐंड प्री-नेटल डायगनॉस्टिक टेक्नीक्स (पीएनडीटी) एक्ट, 1994 के प्रावधानों के खिलाफ थी. साथ ही रिलायंस की यह सेवा सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 और भारतीय टेलीग्राफ कानून, 1885 के प्रावधानों के भी खिलाफ थी.’ उन्होंने 2004 के अक्टूबर में दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग और केंद्र सरकार के परिवार कल्याण विभाग के पास रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ शिकायत कर इस मामले में उचित कार्रवाई की मांग की. रिलायंस इन्फोकॉम मुंबई में रजिस्टर्ड थी इसलिए केंद्रीय परिवार कल्याण विभाग ने महाराष्ट परिवार कल्याण विभाग को इस मामले की जांच का निर्देश दिया.

इसके बाद यह मामला नवी मुंबई महानगरपालिका के संबंधित अधिकारी को सौंपा गया और शिकायत की जांच के बाद नवी मुंबई महानगरपालिका ने 4 नवंबर, 2004 को रिलायंस इन्फोकॉम को नोटिस जारी किया. तहलका के पास इस नोटिस की एक प्रति है. इस नोटिस में यह माना गया है कि रिलायंस इन्फोकॉम ने प्लान अ बेबीसेक्शन के तहत जो सेवाएं मुहैया कराई हैं, वे पीएनडीटी एक्ट की धारा 22(2) का उल्लंघन हैं. नोटिस का जवाब देने के लिए कंपनी को 15 दिन की मोहलत दी गई. इसके बाद नवी मुंबई महानगरपालिका ने 8 नवंबर, 2004 को रिलायंस इन्फोकॉम को एक और नोटिस भेजा. इसमें कंपनी को बताया गया कि अब भी देश के कुछ हिस्सों में उसकी वेबसाइट पर प्लान अ बेबीसेक्शन दिख रहा है. नोटिस में कंपनी से कहा गया कि वह यह सुनिश्चित करे कि यह सामग्री अब उसकी वेबसाइट पर नहीं दिखे.

‘पुलिस रिलायंस और मुकेश अंबानी को बचाना चाहती है. कंपनी कानून में प्रावधान है कि ऐसे अपराध से न तो मालिक पल्ला झाड़ सकता है और न ही कंपनी’

दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग के पास जो शिकायत भेजी गई थी उसका नतीजा यह हुआ कि रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ अदालत में मुकदमा दर्ज करा दिया गया. इस मामले की सुनवाई के लिए पहली तारीख 23 दिसंबर, 2004 मुकर्रर की गई. इसके बाद अदालत के निर्देश पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 30 जनवरी, 2005 को रिलायंस के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. जिस वक्त एफआईआर दर्ज हुई, उस वक्त न तो रिलायंस इन्फोकॉम के कर्ता-धर्ता मुकेश अंबानी और न ही कंपनी के किसी और अधिकारी को अभियुक्त बनाया गया. कंपनी के खिलाफ पीएनडीटी एक्ट की धारा-22 के उल्लंघन के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया. दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग ने मुकदमा दर्ज कराते हुए यह कहा कि यह मामला न सिर्फ पीएनडीटी एक्ट और आईटी एक्ट के उल्लंघन का है बल्कि इससे कन्या भ्रूण हत्या को भी बढ़ावा मिलता है और रिलायंस के इस कदम से समाज में कन्याओं की स्थिति पर आघात हुआ है. विभाग ने अदालत से यह मांग की कि कंपनी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए.

इसके बाद स्पेशल सेल ने मामले की जांच शुरू की. इस मामले में पुलिस द्वारा 4 दिसंबर, 2007 को अदालत में दाखिल आरोप पत्र के मुताबिक – इस आरोप पत्र की एक प्रति तहलका के पास है – 8 अप्रैल, 2005 को रिलायंस इन्फोकॉम के प्रेसिडेंट महेश प्रसाद से पुलिस ने पूछताछ की थी. इस पूछताछ में उन्होंने बताया कि उनके कार्यकाल में ही प्लान अ बेबीसेवा की शुरुआत हुई थी. इस सेवा की सामग्री कंपनी के कंज्यूमर एप्लीकेशंस के प्रमुख सुनील जैन की देखरेख में कंपनी की प्रोडक्ट मैनेजर मनीषा राठौर ने तैयार करनी शुरू की थी. बकौल महेश प्रसाद कुछ समय बाद इन दोनों ने कंपनी की नौकरी छोड़ दी और इनकी जगह क्रमशः कृष्ण मोहन दुरबा और किंजल पोपट ने ली और इस सेवा से संबंधित बची हुई सामग्री इन दोनों ने मिलकर तैयार की.

रवि शंकर कुमार ने रिलायंस इंडिया मोबाइल पर गर्भ निर्धारण के लिए उपलब्ध कराई जा रही सेवा के जो वीडियो बनाए थे उन्हें पुलिस ने हैदराबाद की जीईक्यूडी लैब में जांच के लिए भेज दिया. लैब ने जांच करने के बाद वीडियो को सही पाया. इस दरमियान स्पेशल सेल मामले की जांच करती रही और इस मामले से जुड़े विभिन्न पक्षों से सवाल-जवाब करती रही. शुरुआत में इस मामले की जांच खुद स्पेशल सेल के एसीपी एन सेरिंग ने की लेकिन बाद में यह मामला कई सब इंस्पेक्टरों से होता हुआ जनवरी, 2007 में सब इंस्पेक्टर धर्मेंद्र कुमार के पास पहुंच गया. धर्मेंद्र कुमार ने कृष्ण मोहन दुरबा और किंजल पोपट से पूछताछ की और दोनों ने माना कि यह सेवा उनके कार्यकाल में शुरू हुई थी. रिलायंस की इस सेवा के लिए सॉफ्टवेयर तैयार करने का काम बेंगलुरु की कंपनी वेरिटी टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी ने किया था. इसके बाद स्पेशल सेल ने वेरिटी से वे सारे दस्तावेज और ईमेल जब्त किए जो रिलायंस से इस कंपनी को भेजे गए थे और प्लान अ बेबीसेवा से संबंधित थे.

मगर तीस हजारी कोर्ट में दाखिल किए गए इस आरोप पत्र से यह भी साफ हो जाता है कि पुलिस इस मामले में सिर्फ प्यादों पर निशाना साध रही है. इसमें न तो रिलायंस इन्फोकॉम के उस वक्त के मुख्य प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी का नाम शामिल है और न ही कंपनी का. मामले में कंपनी के पांच अधिकारियों और सॉफ्टवेयर मुहैया कराने वाली कंपनी के दो अधिकारियों को ही आरोपित बनाया गया है. इस बारे में रवि शंकर कुमार कहते हैं, ‘इससे साफ है कि पुलिस कंपनी और कंपनी के मालिक को बचाना चाहती है. यह सच है कि जिन अधिकारियों को आरोपितों की सूची में डाला गया है वे रिलायंस के इस अपराध के गुनहगार हैं. लेकिन कंपनी कानून में यह स्पष्ट प्रावधान है कि ऐसे अपराध में सिर्फ अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर न तो कंपनी का मालिक पल्ला झाड़ सकता है और न ही कंपनी.जिन अधिकारियों के नाम आरोप पत्र में हैंउनमें महेश प्रसाद, कृष्ण मोहन दुरबा, सुनील जैन, मनीषा राठौर, किंजल पोपट और वेरिटी टेक्नोलॉजीज के ऋषित झुनझुनवाला और रवि चंद्रा एन शामिल हैं. इनके खिलाफ न सिर्फ पीएनडीटी एक्ट के तहत आरोप तय किया गया बल्कि भारतीय दंड संहिता की धारा 420/511 में भी आरोप तय किए गए. इस आरोप पत्र में पुलिस ने अदालत को यह बताया था कि सुनील जैन और मनीषा राठौर से पूछताछ नहीं हो पाई है क्योंकि दोनों देश से बाहर हैं. इसके बाद अदालत के निर्देश पर पुलिस ने मनीषा राठौर से पूछताछ की और उनके खिलाफ अलग से एक आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया. सुनिल जैन के खिलाफ भी तीस हजारी कोर्ट में एक आरोप पत्र दाखिल किया गया.

पिछले तकरीबन साढ़े सात साल से इस मामले में अदालत से तारीखें मिलती जा रही हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई न तो किसी अधिकारी के खिलाफ हो पाई और न ही कंपनी के खिलाफ. इस मामले की आखिरी सुनवाई बीते 26 जुलाई को हुई थी और अगली सुनवाई 27 सितंबर, 2012 को होनी है. रवि शंकर कुमार कहते हैं, ‘यह मामला बताता है कि कन्या भ्रूण हत्या को लेकर हमारी व्यवस्था कितनी गंभीर है. एक तरफ तो सरकार इसके खिलाफ कई तरह के अभियान चलाती है लेकिन जब रिलायंस जैसी देश की एक बड़ी कंपनी पैसे कमाने के लिए इसको बढ़ावा देने वाली सेवा मुहैया कराती है तो उसे बचाने में पूरा तंत्र लग जाता है.’

रिलायंस और मुकेश अंबानी को बचाने में पूरा तंत्र कैसे लग गया, यह बताते हुए वे कहते हैं, ‘रिलायंस जो सेवा मुहैया करा रही थी वह आईटी एक्ट की धारा 67 का उल्लंघन है. इसमें पांच साल तक की कैद का प्रावधान है. लेकिन इस मामले में रिलायंस के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत मुकदमा ही नहीं दर्ज किया गया. साथ ही ऐसे मामले की जांच डीएसपी से नीचे के स्तर का अधिकारी नहीं कर सकता, लेकिन इस मामले की जांच सब इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारियों ने ही की है. इससे पता चलता है कि पूरा तंत्र किस तरह से रिलायंस और मुकेश अंबानी को बचाने में लगा हुआ है.’ रवि शंकर कुमार कहते हैं, ‘अगर इस मामले में सिर्फ अधिकारियों को सजा होती है तो इससे समाज में यह संदेश जाएगा कि यह व्यवस्था ताकतवर लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती. यह सीधे तौर पर आपराधिक षडयंत्र का मामला है और पीएनडीटी एक्ट का इससे बड़ा उल्लंघन देश में इसके पहले कभी नहीं हुआ है.