पिछले क़रीब पौने दो साल से देश जिन मुसीबतों में घिरा है, उनसे निकलना आसान नहीं लग रहा है। क्योंकि न तो कोरोना वायरस पूरी तरह गया है और न ही देश की आर्थिक स्थिति पहले जैसी हो पायी है। ऊपर से महँगाई लगातार बढ़ रही है। सन् 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद देश को एक नयी दिशा देने का स्वर्णिम अवसर भाजपा की मोदी सरकार के हाथ में था; लेकिन अपने वादे के विपरीत संकटमय परिस्थियाँ पैदा करने के हालात इस सरकार में बने हैं। आज हालात इस क़दर बिगड़ चुके हैं कि उन्हें अब ठीक करना आसान नहीं लग रहा है। अब जब पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं, केंद्र सरकार सोच रही है कि उत्तर प्रदेश में विकास की हवा चलाने की कोशिशों और कृषि क़ानूनों की वापसी के ज़रिये ख़फ़ा जनता उससे फिर से ख़ुश हो जाएगी। लेकिन वह इस बात को नहीं समझ रही है कि बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी, सरकार के दर्ज़नों मंत्रालयों की नाकामी, भाजपा शासित राज्यों में पैदा हुईं तरह-तरह की दिक़्क़तों से जनता में उसके ख़िलाफ़ जो आक्रोश है, उसका बदल अब सत्ता के बदल से ही लोग पूरा करना चाहते हैं।
देश में जबसे कोरोना महामारी फैली है, महँगाई तेज़ी से बढ़ी है। अब कोरोना के नये वायरस ओमिक्रोन वारियंट के चलते देश के कई राज्यों में अलर्ट जारी कर दिया गया है। बड़ी बात यह है कि कोरोना महामारी के फैलने का जैसे ही ख़तरा बढ़ता है, महँगाई बढ़ जाती है। कोरोना के इस नये वायरस को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया कह चुके हैं कि कोरोना क़ाबू में है; लेकिन ख़त्म नहीं हुआ है।
सवाल उठता है कि तो क्या कोरोना महामारी की जिस लहर की आशंका जतायी जा रही थी, वह फिर से आएगी? क्या ओमिक्रॉन इस तीसरी लहर की दस्तक है? अभी तो बाज़ारों में जिस तरह की भीड़ है, जिस तरह से बड़ी संख्या में लोग बिना मास्क के घरों से निकल रहे हैं, और जिस तरह से कोरोना टीका इस नये वायरस पर बेअसर बताया जा रहा है, उससे तो यही डर है कि यह नया वायरस भी कहीं दूसरी लहर की तरह तबाही न मचा दे! क्योंकि इस वायरस से निपटने के लिए कोई दवा या टीका ईजाद नहीं किया जा सका है। दूसरा, सरकारी व निजी अस्पतालों में व्यवस्थाएँ पहले से ही चरमरायी हुई हैं। लगता नहीं कि सरकार इस नये वायरस को लेकर कोई ख़ास तैयारी कर पा रही है। अभी तक सभी को टीके भी नहीं लग सके हैं। बच्चों के लिए तो कोई टीका बना भी नहीं है। कहने का मतलब यह है कि अगर कोरोना की यह लहर तेज़ी से बढ़ी, तो हम एक बड़ी बर्बादी की ओर फिर से जा सकते हैं, जिसमें जन-धन का बड़ा नुक़सान पूरे देश को उठाना पड़ेगा।
चिन्ता इस बात की है कि देश की अर्थ-व्यवस्था जो कि एक बार बुरी तरह धरातल पर जाने के बाद धीरे-धीरे सँभल ही रही है, कहीं वह फिर से न बिगड़ जाए। हालाँकि हम जन साधारण के चिन्ता करने से कोई बड़ा फ़ायदा नहीं होने वाला। हमारे क़लम उठाने से इतना भर हो सकता है कि शायद देश के कुछ लोग जागरूक हो जाएँ, बाक़ी काम तो सरकार का ही है। लेकिन मेरा मानना है कि देश की तरक़्क़ी और लोगों के हित में सरकार के साथ हमें भी अपने स्तर पर कोशिशें करनी चाहिए। क्योंकि देश किसी एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि सबके सहयोग से ही चलता है। यह ज़िम्मेदारी तब और बढ़ जाती है, जब हालात सामान्य न हों। लेकिन सरकार की ज़िम्मेदारी बड़ी और प्रमुख है।
आज अगर महँगाई को ही लें, तो यह जनता के हाथ में तो क़तर्इ नहीं है। लेकिन सरकार इसे रोकने में असफल है। फिर सवाल तो उठेंगे ही। केवल पेट्रोल-डीजल के दोगुने हो चुके दामों में 5-10 रुपये कम करने भर से महँगाई कम नहीं होगी। महँगाई से राहत तभी मिल सकती है, जब सरकार हर चीज़ को कम-से-कम मुनाफ़े में बेचने के लिए कम्पनियों को बाध्य करे। जिस तरह सरकार किसानों के उगाये खाद्यान्नों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने से भी कतराती दिख रही है, उसी तरह उसे हर चीज़ बनाने वाली कम्पनी को उसका न्यूनतम समर्थन मूल्य देने भर की सहमति देनी होगी। बड़ी हैरत होती है कि किसानों को उसकी लागत के बराबर भी खाद्यान्नों के दाम भी कई बार नहीं मिलते, जबकि कम्पनियाँ सैकड़ों गुना लाभ अपने बनाये उत्पादों पर कमाती हैं। अभी पिछले दो साल में महँगाई जिस क़दर बढ़ी है, उसके लिए भले ही सरकार कोरोना महामारी में सभी धन्धों के बन्द होने और वैश्विक मंदी की आड़ लेती फिरे; लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं, बल्कि एक बहाना ही है। क्योंकि सच यही है कि कोई भी सरकार महँगाई पर रोक नहीं लगाना चाहती, सिवाय किसानों से सब कुछ सस्ते में ख़रीदने के अलावा। जो खाद्यान्न किसान से 10 रुपये किलो ख़रीदा जाता है, बाज़ार में उसकी क़ीमत 40 से 50 रुपये किलो हो जाती है। कहने का मतलब यह है कि सरकार कम्पनियों और बिचौलियों के मुनाफ़ा कमाने पर रोक नहीं लगा पा रही है, जिसके चलते महँगाई तेज़ी से बढ़ती जा रही है।
पिछले सात साल में, ख़ासकर कोरोना-काल में जिस तेज़ी से महँगाई बढ़ी है, वह पहले कभी नहीं बढ़ी। अब ओमिक्रॉन वारियंट आने के बाद से महँगाई बढऩे की ख़बरों ने लोगों को एक बार बेचैन करना शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि अगले साल से माचिस से लेकर गैस सिलेंडर समेत कई चीज़ों के दाम बढ़ जाएँगे।
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं)