दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में 272 वॉर्ड है। अब एमसीडी के एकीकरण के बाद यह संख्या 250 हो जाएगी। किंतु दिल्ली के तीनों निकायों के लिए केंद्र सरकार विधेयक पेश करने को तैयार है साथ ही वॉर्डों को सीमित करने की संभावना पर विचार भी चल रहा है। एमसीडी चुनाव को लेकर जो भी अटकलों का दौर चल रहा हो, लेकिन इसके पीछे सियासी दांव-पेंच साफ देखें जा सकते है।
जानकारों का कहना है कि जब से आप पार्टी का उदय हुआ है। तब से आप पार्टी को लेकर कांग्रेस और भाजपा में इस बात की होड़ लगी है। कि आप पार्टी को कैसे चुनाव में कमजोर किया जाये। आप पार्टी के बढ़ते जनाधार और एमसीडी में आप पार्टी की जीत की संभावना को देखते हुए सीटों के कम करने पर सियासत की जा रही है।
एमसीडी की राजनीति को लेकर के. डी. सुरेश का कहना है कि एमसीडी का दिल्ली की सियासत में अहम भूमिका है। क्योंकि जो निगम का पार्षद होता है वो कई मामलों में विधायक से कहीं ज्यादा लोकल स्तर पर ज्यादा काम कराने में हस्तक्षेप कर सकता है। सो पार्षद का दिल्ली में बड़ा ही महत्व है। बताते है कि एमसीडी में जो भी सीटों को कम करने के बीच जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास किया जायेगा। कुछ इस तरह से सियासी ताना-बाना चुना जायेगा जिससे एक पार्टी को विशेष रूप से सियासी लाभ मिल सकें।
फिलहाल सीटों के कम होने या ज्यादा होने से राजनीतिक दलों पर क्या असर पड़ता है। लेकिन इतना तो जरूर है कि आप पार्टी से ही कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला होगा। फिलहाल राजनीतिक दलों की नजरें अब एमसीडी चुनाव की तारीख पर है कि कब चुनाव की तारीख का ऐलान होता है।