तेलगु फिल्मों के सुपरस्टार रहे एनटी रामाराव ने 1982 में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) का गठन किया था. कांग्रेस विरोध की बुनियाद पर गठित हुई यह पार्टी आंध्र प्रदेश में इतनी तेजी से लोकप्रिय हुई कि कांग्रेस को विधानसभा चुनाव के ठीक चार महीने पहले अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा. इसके बावजूद पार्टी 1983 का चुनाव हार गई. फिल्मों के महानायक से करिश्माई नेता बने एनटीआर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
उस समय यह चर्चा जोरों पर थी कि कांग्रेस एनटीआर सरकार को अस्थिर करना चाहती है. टीडीपी में कई पूर्व कांग्रेसियों की उपस्थिति से ऐसी आशंकाओं को और बल मिल रहा था. इसी बीच टीडीपी सरकार में वित्त मंत्री भास्कर राव ने अगस्त, 1984 में अचानक यह घोषणा करके कि उनके साथ टीडीपी के ज्यादातर विधायक हैं, राज्यपाल के सामने दावा पेश कर दिया कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए. भास्कर राव पहले कांग्रेस में रह चुके थे और राज्य में तत्कालीन राज्यपाल ठाकुर रामलाल भी कांग्रेस के पूर्व नेता थे. राज्यपाल ने आश्चर्यजनक रूप से तुरंत ही एनटीआर को बर्खास्त करके भास्कर राव को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया. आजाद भारत में किसी राज्यपाल की विवादित भूमिका का यह सबसे बड़ा उदाहरण था. इस घटना के बाद रामलाल और कांग्रेस टीडीपी सहित तमाम विपक्षी पार्टियों के निशाने पर आ गए. एनटीआर अपने सभी 200 (कुल 294 में से) विधायकों को लेकर राजभवन में भी पहुंचे लेकिन उसके बाद भी उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया.
एनटीआर के इस कदम से कांग्रेस दबाव में आ गई और इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए कांग्रेसनीत तत्कालीन केंद्र सरकार (श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं) ने राज्यपाल को हटा दिया. डॉ शंकरदयाल शर्मा आंध्र प्रदेश के नए राज्यपाल नियुक्त किए गए. डॉ शर्मा ने तुरंत ही एनटीआर को दोबारा मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त कर दिया. लेकिन कुछ ही दिन बाद मुख्यमंत्री ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी. राज्य में जब दोबारा चुनाव हुए तो एक बार फिर टीडीपी ने भारी बहुमत से चुनाव जीता. कांग्रेस के समर्थन से हुए इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम का पार्टी की छवि पर इतना बुरा असर पड़ा कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब देश में आम चुनाव हुए तब कांग्रेस को हर राज्य में भारी बहुमत मिला लेकिन आंध्र प्रदेश में उसका सूपड़ा साफ हो गया. टीडीपी ने यहां 30 लोकसभा सीटें जीतीं और पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल बन गई.