समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता देवेंद्र कुमार का कहना है कि उत्तर प्रदेश की जनता ये सोचकर प्रसन्न रह सकती है कि योगीराज में रामराज आ गया है; मगर ये विचार करने भर से अच्छा लगता है। वास्तविकता में योगीराज में रामराज दिखता ही नहीं है। जिधर देखो लोग महँगाई, कमायी न होने एवं अपराधियों के आतंक से दु:खी हैं। हर दिन अपराध हो रहे हैं जो थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। जनता की पीड़ा दिखाने वाले पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। सरकार की कमियाँ दिखाने वाले पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। पुलिस दबंगई पर उतरी हुई है। सरकारी व्यवस्था चरमरा गयी है। कोई काम आसानी से नहीं होता है। बुलडोजर केवल विरोधियों को निपटाने के लिए है।
देवेंद्र कुमार की बातों पर पूर्णता सहमति तो नहीं जतायी जा सकती; मगर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में अपराध नहीं रुके हैं। भाजपा की छत्रछाया में जीने वाले भाजपा एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीतियों का विरोध करने वालों पर हमला करने से भी नहीं चूकते हैं। अभी सुलतानपुर जनपद में एक पत्रकार के साथ ऐसा ही हुआ।
पीडि़त पत्रकार को ही जेल
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पूरे प्रदेश के पत्रकारों को खुली चेतावनी देनी चाहिए कि कोई भी पत्रकार सरकार की अव्यवस्था को न दिखाये। अगर दिखाएगा, तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होगी। यह शब्द एक पत्रकार के हैं, जिनका नाम लिखना यहाँ उचित नहीं होगा। ये शब्द एक पत्रकार के क्यों हैं? इस पर जाने से पहले सुल्तानपुर जनपद के कूरेभार थाना क्षेत्र के सराय गोकुल गाँव की एक घटना को समझना होगा, जो अभी कुछ दिन पहले 5 जुलाई को ही घटी है।
इस गाँव में बने एक एएनएम सेंटर की बदहाली तथा इस स्वास्थ्य सेंटर की सच्चाई दिखाने वाले एक यू-ट्यूबर पत्रकार ललित यादव की पहले पिटाई हुई एवं बाद में उन्हें ही पुलिस ने गिर$फ्तार कर लिया। सच्चाई दिखाने पर ललित यादव पर एक महिला स्वास्थ्यकर्मी एएनएम जनक लली त्रिपाठी ने चप्पल एवं लाठी से हमला कर दिया। इसके बाद पुलिस ने पत्रकार के विरुद्ध हथियार लेकर एएनएम के कमरे में घुसने, स्वास्थ्य रजिस्टर फाडऩे, रंगदारी माँगने, वैक्सीन फेंकने, एएनएम से अश्लीलता करने एवं अंत में तमंचा दिखाकर एएनएम को धमकी देकर भाग जाने, सार्वजनिक संपत्ति नु$कसान निवारण अधिनियम के मामले लगाकर आईपीसी की धाराओं- 384, 354, 353, 504, 506 व 2/3 में एफआईआर दर्ज कर उन्हें गिर$फ्तार कर लिया। जबकि पत्रकार की रिपोर्टिंग का वीडियो स्पष्ट दिखा रहा है कि पत्रकार ललित यादव ने ऐसा कुछ नहीं किया है।
ललित यादव ने रिपोर्ट के दौरान यही कहा है कि छ: महीने बाद अस्पताल खुला है। दो से तीन फुट की घास इसके मैदान में उग आयी है। कार की पार्किंग यहाँ की हुई है। इसके साथ ही ललित यादव कमरे की ओर अपने कैमरामैन के साथ जाकर डॉक्टर के बारे में पूछते हैं। इस पर अंदर बैठी स्वास्थ्यकर्मी महिला ललित यादव को चप्पल दिखाती है। उन्हें चप्पल से मारती है। ईंट भी मारने के लिए उठाती हैं। उसके बाद लाठी से भी पत्रकार को पीटती है। पत्रकार भी महिला के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराता है एवं महिला भी रिपोर्ट दर्ज कराती है। पुलिस ने पत्रकार को तुरन्त गिर$फ्तार कर लिया, महिला एएनएम से पूछताछ तक नहीं की। पुलिस ने खेल यह किया कि जनता में मामला आने के बाद पत्रकार की एफआईआर अगले दिन दर्ज की, जिससे पुलिस बदनामी से बच सके एवं पत्रकार को दोषी साबित किया जा सके। अब मामला तूल पकड़ गया है। रवि यादव का कहना है कि योगी सरकार यादवों से दुश्मनी पाले बैठी है। पत्रकार यादव समुदाय से है, इसलिए उसे जेल हुई। मुख्यमंत्री योगी मुसलमानों से, दलितों से एवं पिछड़े वर्गों से ईष्र्या करते हैं। उन्हें केवल राजपूतों एवं ब्राह्मणों से ही प्यार है। पत्रकार को पीटने वाली एएनएम ब्राह्मण समुदाय की है, इसलिए उसके विरुद्ध कार्रवाई पुलिस नहीं कर रही है।
उपमुख्यमंत्री बोले, जाँच होगी
रामराज की परिभाषा को सच सिद्ध करने के लिए योगी सरकार कई मामलों में न्याय की मिसाल प्रस्तुत करती रहती है; मगर कुछ मामलों में रावणराज की मिसाल प्रस्तुत हो जाती है। पत्रकार के साथ हुए दुव्र्यवहार एवं जेल मामले में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने संज्ञान लेते हुए कहा है कि इस मामले की जाँच के आदेश दिये गये हैं। सुल्तानपुर में एएनएम सेंटर में पत्रकार के साथ महिला स्वास्थ्यकर्मी द्वारा अभद्र व्यवहार किये जाने व चप्पल व लाठी से पीटने सम्बन्धी प्रकरण का संज्ञान लेते हुए मेरे द्वारा दिये गये आदेश के क्रम में मुख्य चिकित्साधिकारी, सुल्तानपुर द्वारा प्रकरण की जाँच हेतु एसीएमओ की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर दी गयी है। जाँच रिपोर्ट एक सप्ताह के अंदर माँगी है। दोषी स्वास्थ्यकर्मी के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाएगी।
सुना है कि इस मामले की भनक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी लग गयी है। भाजपा समर्थक नरेश सिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी किसी भी हाल में अन्याय बर्दाश्त नहीं करते। वह प्रदेश में ऐसी किसी भी घटना को बर्दाश्त नहीं करते, जिससे प्रदेश व सरकार की छवि धूमिल हो एवं उनकी न्यायप्रिय छवि पर कोई धब्बा लगे। मुख्यमंत्री योगी बहुत न्यायप्रिय एवं संवैधानिक नीतियों को मानने वाले हैं।
अखिलेश ने सरकार को घेरा
पत्रकार पर हमले एवं उसे जेल भेजे जाने की घटना का वीडियो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीटर पर डालते हुए योगी सरकार की कड़ी निंदा की है। उन्होंने लिखा है कि भाजपा के शासनकाल में उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पताल की दुर्दशा का हाल उजागर करने वाले एक मीडियाकर्मी को स्वास्थ्यकर्मी द्वारा पीटे जाने की घटना को आपराधिक मामले की तरह देखा जाए। अगर हर ज़िले में एक भी ऐसा साहसी पत्रकार हो जाए, तो उत्तर प्रदेश की सच्चाई सबको पता चल जाए।
अनेक पत्रकार किये गये प्रताडि़त
मिर्जापुर के पत्रकार पवन जायसवाल को कौन भूल सकता है, जिन्होंने मिड-डे मील योजना के तहत एक विद्यालय में बच्चों को नमक रोटी खिलाये जाने का समाचार दिखाने के बाद माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री से कामकाज का ब्यौरा माँग लिया। इस पर बौखलायी प्रदेश पुलिस ने पवन जायसवाल को अपराधियों की तरह हथकड़ी पहनाकर रस्सियों से पीछे हाथ बाँधकर ले जाकर जेल में डाल दिया था। बाद में पत्रकारों, विपक्षी दलों एवं जनता के दबाव के चलते उन्हें आरोपों से मुक्त किया गया। मगर इसके एक वर्ष के अंतराल के लगभग पत्रकार पवन जायसवाल ने कैंसर से दम तोड़ दिया। कई अन्य पत्रकारों के साथ भी योगी राज में पुलिस का कुपित रूप सामने आया है। कई पत्रकारों की हत्या हो चुकी है।
भारतीय पत्रकारों की स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले देश के प्रमुख एनजीओ राइट एंड रिस्क एनालिसिक ग्रुप के एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2020 में भारत में 228 पत्रकारों को सच उजागर करने पर निशाना बनाया गया। इन पत्रकारों में उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक 37 पत्रकारों को प्रताडऩा झेलनी पड़ी। वर्ष 2020 में देश में कुल 13 पत्रकारों की हत्या हुई, जिनमें सबसे अधिक छ: पत्रकार उत्तर प्रदेश के थे। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक-2021 में 180 देशों में प्रेस स्वतंत्रता में भारत का 142वाँ स्थान था। पिछले वर्ष रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने मीडिया की स्वतंत्रता का हनन करने वाले विश्व के 37 शासकों के नामों की सूची जारी की थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है।
पत्रकारों के हनन में उत्तर प्रदेश आगे
उत्तर प्रदेश में योगीराज में कई पत्रकारों पर हमले चर्चा में रहे हैं। किसान आंदोलन के समय लखीमपुर में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र के पुत्र आशीष मिश्र ने किसानों पर गाड़ी चढ़ाकर उन्हें मारने वाली सच्चाई दिखाने वाले स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप को भी कुचल दिया था। सहारनपुर में बदमाशों ने स्थानीय पत्रकार सुधीर सैनी की हत्या कर दी थी। बलरामपुर में दबंगों ने पत्रकार राकेश सिंह निर्भीक एवं उनके साथी पिंटू साहू को जीवित जला दिया था। प्रतापगढ़ जनपद के पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की एक नशा तस्कर ने हत्या कर दी। नशा तस्कर से हत्या की धमकी मिलने पर भी पुलिस ने पत्रकार को सुरक्षा नहीं दी थी। हाथरस कांड को कवरेज देने गये केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था।
उन्नाव के मुख्य विकास अधिकारी दिव्यांशु पटेल ने एक टीवी रिपोर्टर की पिटाई मतदान केंद्र पर धाँधली दिखाने के चलते की थी। बिजनौर में दबंगों के डर से दलित परिवार के पलायन का समाचार दिखाने वाले पाँच पत्रकारों- आशीष तोमर, शकील अहमद, लाखन सिंह, आमिर खान एवं मोइन अहमद के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई कौन भूल सकता है। ऐसे अनगिनत मामले उत्तर प्रदेश सरकार में पत्रकारों के विरुद्ध देखे गये हैं। पत्रकारों के वैश्विक संगठन कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट के एशिया प्रतिनिधि कुनाल मजुमदार ने उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के विरुद्ध घटी घटनाओं का दस्तावेज़ीकरण किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है- ‘उत्तर प्रदेश में पुलिस छोटे-छोटे मामलों में भी पत्रकारों के पीछे पड़ जा रही है। ऐसा नहीं लगता कि हम लोग लोकतांत्रिक परिवेश में रह रहे हैं।’