उत्तर प्रदेश कई दर्शनीय स्थलों एवं अच्छे जीटी रोड के लिए जाना जाता है। उत्तर प्रदेश की सडक़ व्यवस्था दो तरह की है, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्गों की व्यवस्था भारत सरकार की है एवं शेष सडक़ें उत्तर प्रदेश सरकार निर्मित कराती है। एक ओर राष्ट्रीय राजमार्ग अत्यधिक अच्छे हैं एवं अभी लगातार अच्छे किये जा रहे हैं; तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार की सडक़ों में गड्ढे, धूल, कंकरीट आदि का मिलना आम बात है।
भौजीपुरा क्षेत्र के व्यवसायी सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि यहाँ की सडक़ें कभी गड्ढामुक्त नहीं हो सकतीं। दूसरी बार योगी जी मुख्यमंत्री हैं, मगर सडक़ों पर उनका ध्यान ही नहीं है। सडक़ों के निर्माण की बात तो छोडि़ए, सडक़ों में कई साल पहले पड़े गड्ढे बड़े होकर छोटा तालाब बनने लगे हैं। सडक़ों की मरम्मत हर वर्ष होनी चाहिए, मगर उनके गड्ढे तक नहीं भरे जाते। विधायक, मंत्री सब अपनी महँगी गाडिय़ों में फर्राटा भरते हुए निकल जाते हैं, उन्हें गड्ढों से कोई लेना-देना नहीं।
बहरोली गाँव के निवासी जितेंद्र कुमार बहरोली से नगरिया तक थ्री-व्हीलर से प्रतिदिन सवारियाँ ढोते हैं। जितेंद्र कुमार कहते हैं कि इस 12 किलोमीटर की सडक़ पर इतने गड्ढे हैं कि उन्हें गिनने में 10 दिन का समय लग जाएगा। मगर सरकार को रोड टैक्स वसूलने से मतलब है एवं पुलिस वालों को ह$फ्ता वसूलने से मतलब है, सडक़ बनवाने से किसी को मतलब नहीं है। नूंदना गाँव के रहने वाले रमेश कहते हैं कि नूंदना से मिलक तक जाने वाली सडक़ कई वर्ष से जगह-जगह टूटी पड़ी है, मगर कोई इसे बनवाने वाला नहीं है। जालिम नगला निवासी धर्मेंद्र कहते हैं कि हमारे गाँव से बहुत दूर नहीं इधर भौजीपुरा तक जाने में एवं उधर शाही तक जाने में सडक़ों का बुरा हाल है। सडक़ों पर बजरी-ही-बजरी है, गड्ढे-ही-गड्ढे हैं। ट्रक चालक राकेश कहते हैं कि रामपुर से शाहजहाँपुर तक पीलीभीत से बदायूँ तक राजमार्गों पर भी कई जगह बजरी, धूल एवं गड्ढे मिलते हैं। इन गड्ढों के कारण गाडिय़ाँ पलट जाती हैं। दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। इतने पर भी सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं देती है।
लखनऊ में भी टूटी हुई हैं सडक़ें
उत्तर प्रदेश में जहाँ तक भी देखो, गाँवों एवं छोटे जनपदों में कई सडक़ें टूटी हुई मिलेंगी। मगर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी सडक़ों का टूटा होना हैरान करता है। लखनऊ शहर की छोटी सडक़ों तक पर गड्ढे हैं। कहीं कहीं सडक़ें खुदी पड़ी रहती हैं। सडक़ निर्माण विभाग की नींद तब टूटती है, जब कोई बड़ा नेता अथवा मंत्री किसी मार्ग से होकर निकलने वाला होता है। उस समय रातों-रात सडक़ें बन जाती हैं। लखनऊ जनपद में आने वाले गाँवों तक जाने वाली सडक़ों की दशा भी बहुत अच्छी नहीं है। इस बार बरसात में सडक़ों की दशा और बिगड़ गयी है। जब भी बरसात हो जाती है सडक़ों पर कीचड़ एवं पानी जमा हो जाता है। कई सडक़ों पर तो दलदल जमा हो जाती है।
गड्ढों से बढ़ीं सडक़ दुर्घटनाएँ
अनहोनी को टाला नहीं जा सकता मगर सडक़ दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। मास्टर नंदराम कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में सडक़ दुर्घटाओं से असमय जितनी दर्दनाक मौतें होती हैं, उससे हृदय काँप उठता है। मेरी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से विनती है कि वो सडक़ों को ठीक कराने का कष्ट करें। प्रदेश भर का तो नहीं पता मगर हमारे क्षेत्र में कई सडक़ों पर गड्ढे-ही-गड्ढे हैं। कोई जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान नहीं देना चाहता। इससे एक निश्चित दूरी तय करने में समय अधिक लगता है एवं दुर्घटनाएँ भी होती रहती हैं। समाचार पत्रों में हर दिन चार-पाँच सडक़ दुर्घटनाओं के समाचार आते हैं।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 से अधिक सडक़ हादसे इस वर्ष हो रहे हैं। बीते वर्ष केंद्रीय सडक़ एवं परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक सडक़ दुर्घटनाओं वाला देश है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रति एक लाख लोगों में से 32 लोग सडक़ दुर्घटना के शिकार होते हैं। भारत में वर्ष 2022 में कुल 4,12,432 सडक़ दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 1,53,972 लोगों की मौत हुई। अनुमानित तौर पर भारत की कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से उत्तर प्रदेश में छ: प्रतिशत से अधिक दुर्घटनाएँ होती हैं। उदाहरण के रूप में वर्ष 2022 में जनवरी एवं फरवरी में हुई सडक़ दुर्घटनाओं की अपेक्षा वर्ष 2023 में जनवरी एवं फरवरी औसत 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। आश्चर्य होता है कि जिन राजमार्गों पर बड़े अधिकारियों, मंत्रियों, नेताओं एवं स्वयं सडक़ परिवहन विभाग के अधिकारियों की कारें सरपट दौड़ती रहती हैं, उन सडक़ों की दशा भी बहुत अच्छी नहीं है। मगर कार में बैठकर उन्हें इन गड्ढों से कोई लेना-देना नहीं रहता।
जागरूकता से ही इतिश्री
टूटी हुई सडक़ों पर दुर्घटनाएँ होने की संभावना हर समय रहती है। लोगों को जागरूक करने के लिए सडक़ परिवहन विभाग एवं प्रदेश सरकार नियम बनाकर इतिश्री कर देते हैं। नियमों का पालन भी कई लोग नहीं करना चाहते तो कई मजबूर होकर नियम तोड़ते हैं। सडक़ परिवहन विभाग लोगों को जागरूक तो करता हैं, मगर सडक़ों की व्यवस्था पर किसी का ध्यान नही जाता। आरटीओ विभाग को एवं पुलिस को गाडिय़ों का चालान काटने से समय नहीं मिलता। दुर्घटाएँ होने पर बीमा कम्पनियाँ वाहन एवं व्यक्तिगत हानि की भरपाई करती हैं। कई जनपदों में लोक निर्माण विभाग की अनेक सडक़ों पर गड्ढे-ही-गड्ढे हैं। गाँवों की सडक़ें सबसे बुरी दशा में हैं, जिनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। इससे गाँव के लोगों को चलने में समस्या आती है एवं दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है।
महानगर बरेली में लोकनिर्माण विभाग की 82.73 किलोमीटर की लम्बाई की 33 सडक़ों को गड्ढामुक्त करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने मार्च 2023 को 11.30 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी, मगर अभी तक अनेक सडक़ें गड्ढामुक्त नहीं हो सकी हैं। प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, ग्रेटर नोएडा, बुलंदशहर, कानपुर, लखनऊ, आगरा गोरखपुर जैसे जनपदों की सभी सडक़ें गड्ढामुक्त नहीं हैं। पिछले वर्ष मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 नवंबर तक प्रदेश की सभी सडक़ों को गड्ढामुक्त करने के निर्देश दिये थे, जिन पर कोई अमल नहीं हुआ।
बजट कम नहीं
उत्तर प्रदेश में सडक़ों के निर्माण एवं उनकी मरम्मत के लिए बजट की कमी नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने कार्यकाल में हर वर्ष सडक़ों के निर्माण एवं उनकी मरम्मत हेतु बजट बढ़ाते हैं, मगर अधिकारी इस पैसे का उपयोग कैसे करते हैं? सडक़ एवं परिवहन मंत्री बजट उपयोग करने वालों पर निगरानी रखते हैं अथवा नहीं? ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर मुख्यमंत्री के संज्ञान में बात जाने पर भले ही मिल जाएँ।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संभवत: नहीं पता हो कि उनके राज्य में लोगों के सामने इतनी समस्याएँ हैं, अन्यथा यह दशा नहीं होती। इस बार वित्त वर्ष 2023-24 का बजट प्रस्तुत करते हुए प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने सडक़ों एवं सेतुओं के निर्माण हेतु 21,159.62 करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था प्रस्तावित की थी। इसमें सडक़ों के रखरखाव हेतु 3,000 करोड़ रुपये एवं राज्य सडक़ निधि से निर्माण हेतु 2,500 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भी उन्होंने रखा था।
लापरवाही कहाँ?
समाचारों से पता चला है कि अब राज्य के जनपदों की सडक़ों को 15वें वित्त एवं राज्य वित्त आयोग से निर्मित कराया जाएगा। शहरों की सडक़ों को विशेषकर चमकाया जाएगा। मास्टर नंदराम कहते हैं कि काम चाहे कोई करे मगर जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए। जनता इसके लिए कई तरह के कर तरह-तरह के माध्यमों से सरकार को देती है। सरकार को भी चाहिए जनता के कर के बदले जनता को सुविधाएँ मुहैया कराए। कुछ स्थानों से समाचार मिले हैं कि सम्बन्धित विभाग फुल डेप्थ रिक्लेमेशन तकनीक से गाँवों की सडक़ें बना रहा है। देश में सबसे पहले यह तकनीक केवल उत्तर प्रदेश सरकार ने उपयोग की है।
बारिश से टूट गयीं सडक़ें
बारिश से सडक़ें टूटना कोई नयी बात नहीं है। मगर उत्तर प्रदेश में तो सडक़ें बिना बारिश के भी उखड़ जाती हैं। कई स्थानों पर पाया गया है कि सडक़ पडऩे के एक-दो महीने के अंदर बजरी उखडऩे लगती है।
सडक़ परिवहन विभाग के एक कर्मचारी ने नाम प्रकाशित न करने की विनती करते हुए बताया कि सडक़ें इस कारण से शीघ्र उखडऩे लगती हैं, क्योंकि उन्हें बनाने में डामर एवं बजरी का उपयोग कम किया जाता है। अगर सडक़ों को निर्मित करते समय नीचे टूटा हुआ पत्थर बिछाकर उस पर एक मोटी परत की बजरी को अधिक डामर में लपेटकर बिछाया जाए एवं उसके ऊपर से महीन बजरी की पतली परत पर सही मात्रा में डामर डाला जाए, तो सड़क़ें कई वर्ष तक ख़राब नहीं होतीं।
सडक़ को दी श्रद्धांजलि
जुलाई, 2023 के पहले सप्ताह में उत्तर प्रदेश सरकार ने नगरों एवं महानगरों में टूटी सडक़ों की मरम्मत करने का कार्य सम्बन्धित निकायों दिया था। प्रदेश सरकार ने नगरों एवं महानगरों की सडक़ों को बनाने में योगदान देने वाले नगरायुक्तों एवं अधिशासी अभियंताओं को निर्देश दिये थे कि वे सडक़ों को गड्ढामुक्त करके अपने हस्ताक्षर वाले प्रमाण-पत्र जारी करेंगे। मगर सडक़ें गड्ढामुक्त नहीं हो सकीं।
कहा जा रहा है कि बारिश में टूटी सडक़ों का सर्वे हो रहा है। कानपुर में टूटी सडक़ों को लेकर डेढ़ माह पहले समाजवादी पार्टी व्यापार प्रकोष्ठ, कानपुर के व्यापारियों ने सडक़ के गड्ढों श्रद्धांजलि दी। व्यापारियों ने निराला नगर में टूटी सडक़ पर अगरबत्ती जलाकर एवं फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दी। समाजवादी पार्टी व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष अभिमन्यु गुप्ता ने कहा कि इन टूटी हुई खूनी सडक़ों से पूरा कानपुर त्रस्त है। कानपुर का व्यापारी वर्ग विशेषकर इस समस्या से अत्यधिक पीडि़त है।