भकभकाती भूमिका –
आ गई! चली गई! की आवाज गली-गली में रह-रह कर सुनाई दे रही है. गोकि मां भगवती का जयकारा हो रहा हो. ‘कटौती’ सबसे ज्यादा घृणित शब्द है इन दिनों. चिलचिलाती गर्मी में हम ऐसे उबल रहे हैं कि जैसे बंदे न हो के हम अंडे हों! बेड पर नहीं छत पर पड़े हैं. आधे जागे, आधे सो रहे हैं. ऐसा नहीं कि हमही गर्मी-बिजली का रोना रो रहे हैं. रो तो चोर भी रहे हैं. वे भी लाइट और गर्मी के मारे हैं. रतजगे हों तो कैसे फिर सेंध लगे! डॉक्टर कह रहे हैं कि तेज धूप से इलेक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस हो रहा है. बीमारी में भी ‘लाइट’. तपती गर्मी में तप रहे हैं. ऋषि मुनि तप करने हिमालय निकल लेते और ठंडे-ठंडे में मजे से तप करते थे और हम यहीं शहर में ही पड़े-पड़े तप रहे हैं. न पानी है, न लाइट है. बेबसी के घंूट पी रहे हैं. पानी तो तब आए, जब लाइट आए. लाइट तो तब आए, जब नदियों में पानी हो. इसलिए हमारे पूर्वजों ने सह-अस्तित्व पर इतना जोर दिया. इंजीनियर बताते है कि बांध सूख रहे हैं. मगर यहां हम बिजली के मारों के सब्र के बांध टूट रहे हैं. उसका क्या! रात की गई अभी तक नहीं आई! उमस में कसमसा रहे हैं. आजकल हर आदमी बर का छत्ता है. छेड़ो तो डंक मार देगा. दिमाग का फ्यूज उड़ा हुआ है. किसी से पता पूछने में भी डर लगता है. क्या पता! पता पूछने पर ही भड़क जाए और बात फौैजदारी तक बढ़ जाए. जिन पोलों से बिजती आती है, वे निष्प्राण खडे़ मौजूदा हालातों के पोल खोल रहे हैं. जिन तारों से करंट दौड़ने की व्यवस्था की गई थी, वह व्यवस्था तार-तार है, फिलहाल. बिजली आ नहीं रही, मगर बिजलियां दिल पर गिरा रही है. अजब मंजर है! इतनी गर्मी की दूध टिकता नहीं और आइसक्रीम जमती नहीं. पंखा झल्ल रहे हैं और झल्ला रहे हैं. हर कोई एक दूसरे को बता रहा ‘बहुत गर्मी है!’ हर कोई एक दूसरे से पूछ रहा है ‘लाइट आ रही है!’. टपकते हुए पसीने को देखकर एकबारगी लगता है कि बंदा लीक कर रहा है. इस सूखे गर्म मौसम में ऐसा नहीं है कि सब सूखा है. इसमें भी रस है. बेल, गन्ने, मौसमी वगैरह के रस की बात नहीं कर रहा. मैं शास्त्रों में वर्णित रस की बात कर रहा हूं. इस मौसम में करुण रस यहां-वहां देखने को मिल रहा है. करंट तारों में उतरता नहीं, तो लोग सड़क पर उतरते हैं. लाइट के लिए फाइट करनी पड़ रही है. बिलबिलाए लोग बिजली के उपकेंद्रों का घेराव करते हैं और पुलिस लाठियां बरसाती है. अजब मंजर है! मोबाइल, लेपटाप चार्ज नहीं हो रहे, मगर लाठी चार्ज हो रहा है. जिम्मेदार जवाब देने से हिचक रहे हैं और हमारा सब्र जवाब दे रहा है. पावर कट का उनके लिए क्या मानी जो पावर में हैं. अभी विद्युत विभाग को कोसने का समय है, बरसात में इसका स्थान नगर निगम ले लेगा. यहां बारहों महीनों किसी न किसी विभाग को कोसने का सर्वोत्तम समय बना ही रहता है. इस मौसम की सूरत ने बड़े-बडे़ सूरमाओं की सूरत बिगाड़ दी है. शस्स… सुना है कि बिजली विभाग में सब छुट्टी ले कर कहीं भागने की सोच रहे हैं! जले-भुनो का कोपभाजन कौन बने! ‘इंसान का क्या भरोसा’ के जुमले को आजकल ‘बिजली का क्या भरोसा’ ने ओवरटेक कर लिया है.
आलोचक का हस्तक्षेप – इतनी लंबी भूमिका की क्या आवश्यकता है लेखक की दुम. इन दिनों की व्याप्त स्थितियों का एक पंक्ति में वर्णन करो। संक्षेपण करो! संक्षेपण करो!
लो सुन सखा आचोलक!
संक्षेपण- कहीं दीप जले कहीं दिल.