इस तरह तो अनाज के पड़ जाएँगे लाले

लॉकडाउन ने न केवल उद्योग धन्धों पर बुरा असर डाला है, बल्कि देश की बुनियादी अर्थ-व्यवस्था यानी कृषि कार्यों को भी चौपट कर दिया है। क्योंकि जैसे ही रबी की फसलों के कटने का समय आया, सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से देश में 21 दिन का लॉकडाउन कर दिया। ऐसे में खेतों में खड़ी रबी की फसलें खराब होना स्वाभाविक है। इससे किसान कितने परेशान हैं? बता रहे हैं राजीव दुबे :-

कोरोना वायरस का इलाज न मिलने से दुनिया भर के साथ-साथ भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। जैसा कि सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की अर्थ-व्यवस्था का मुख्य साधन आज भी खेती-बाड़ी है। हमारे देश में कृषि से प्राप्त आय पर न केवल 70 प्रतिशत लोग निर्भर हैं, बल्कि कृषि उत्पादों से सरकार को भी अच्छी-खासी आय होती है। लेकिन इस बार मौसम की मार पडऩे के बाद कोरोना वायरस के डर से किये गये लॉकडाउन ने बची हुई फसलों को काटने का भी मौका किसानों को नहीं दिया। इन दिनों रबी की कई फसलें खेतों में पकी खड़ी हैं और खेतों में ही झडऩे की स्थिति में हैं। इन फसलों में गेहूँ तो प्रमुख है ही, साथ ही सरसों, चना, मसूर, अलसी, अरहर आदि हैं। इतना ही नहीं इस मौसम की सब्ज़ियाँ और फल भी खेतों में खराब हो रहे हैं।

हालाँकि 27 मार्च को लॉकडाउन के नियमों में तब्दीली करके सरकार ने दैनिक उपयोग की वस्तुओं, खासतौर पर खाद्यान्नों के रास्ते खोल दिये, लेकिन अनेक अनाज, सब्ज़ी और फल मण्डियाँ बन्द सी पड़ी हैं और फसलें खेतों में सड़-झड़ रही हैं। इससे न केवल किसानों को बड़ा नुकसान हो रहा है, बल्कि देश के सामने खाद्यान्न संकट भी खड़ा हो रहा है। अगर यही हाल रहा, तो खाद्यान्न निर्यात करना तो दूर, देशवासियों को भी अन्न, फल, सब्ज़ियों के लिए तरसना पड़ेगा।

यहाँ अगर हम रबी की फसलों, खासकर भोजन का सबसे ज़रूरी माध्यम गेहूँ की बात करें, तो यह चिन्ता का विषय बन जाता है। क्योंकि मार्च के आिखरी सप्ताह में ही गेहूँ की अधिकतर फसल कटने को तैयार हो गयी थी। अप्रैल आते-आते तो देश के हर भाग में गेहूँ की फसल कटने लगती है। लेकिन इस बार 80 फीसदी गेहूँ की फसल खेतों में ही है। कुछ छोटे-मोटे किसानों ने भले ही गेहूँ की कटाई करके फसल उठा ली हो, लेकिन 80 फीसदी गेहूँ अब भी खेतों में ही है, जिसमें अधिकतर गेहूँ कटने को खड़ा है। बड़े किसानों को यह चिन्ता खाये जा रही है कि आिखर उनकी फसल कैसे कटेगी? क्योंकि बड़े खेतों को हाथों से काट पाना आसान नहीं होता है, इसलिए बड़े खेतों से गेहूँ और धान की फसल उठाने के लिए हार्वेस्टर, थ्रेसिंग मशीनों और ट्रैक्टर आदि की मदद लेनी पड़ती है। ऐसे में न तो देश भर के दूर-दराज़ के क्षेत्रों में मशीनें गेहूँ की कटाई के लिए जा पा रही हैं और न ही उनके चालक घरों से निकल पा रहे हैं।

दरअसल अधिकतर हार्वेस्टर और थ्रेसिंग मशीनें पंजाब में हैं। इतना ही नहीं गेहूँ कटाई की इन आधुनिक मशीनों, खासकर हार्वेस्टर के अधिकतर चालक भी पंजाब में ही मिलते हैं। हालाँकि थोड़े-थोड़े पंजाबी लोग (सिख) हर राज्य में बसे हुए हैं। लेकिन उनकी संख्या इतनी कम है कि न तो उनके पास मौज़ूद संसाधन उस जगह की फसलों की कटाई के लिए के पर्याप्त हो पाते हैं और न वे खुद इतना अधिक काम कर सकते हैं, क्योंकि इन सिखों के पास अपनी ही खेती-बाड़ी बहुत होती है। ऐसे में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र तक पंजाब से गेहूँ कटाई की मशीनें और उनके चालक जाते हैं।

इधर, लेबी (सरकारी गेहूँ खरीद के केंद्र) भी बन्द है। ऐसे में जिन छोटे किसानों ने गेहूँ उठा लिए हैं, उन्हें उसके सही दाम नहीं मिल रहे हैं। क्योंकि हर साल 1 अप्रैल से सरकारी अनाज गोदामों के ज़रिये लेबी खोल दी जाती थीं, जहाँ किसान खुद आकर सरकारी मूल्य पर अपना अनाज बेच दिया करते थे। इन दिनों सरकार गेहूँ की प्रमुखता से खरीदारी करती है। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते न तो अधिकतर गेहूँ ही कट पाया है और जिन छोटे किसानों ने गेहूँ उठा लिया है, उन्हें पैसे की ज़रूरत के चलते उसे किसी भी हाल में बेचना पड़ रहा है, जिसका फायदा गाँवों से गेहूँ खरीदने वाले छोटे व्यापारी उठा रहे हैं। किसानों ने बताया कि सरकार ने गेहूँ की कीमत 1,9 25 रुपये निर्धारित की है, लेकिन सरकारी खरीदारी न होने के कारण गाँवों में छोटे खरीदारों और दलालों का आना-जाना शुरू हो गया है। ये लोग 1,600 रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों से गेहूँ खरीद रहे हैं। मजबूरी में किसान इन लोगों के हाथों गेहूँ बेचने को लाचार हैं।

हाल ही में अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव विजू कृष्णन ने कहा कि गेहूँ को मंडियों में ले जाने को लेकर समस्या है। लॉकडाउन में कृषि गतिविधियों को छूट देने की बात महज़ कहने भर की है, सच तो यह है कि किसानों को काफी मुश्किल आ रही है। उन्होंने कहा कि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिसमें कोई भी फसल खेत से सीधे मण्डी में पहुँच सके।

खेतों में खड़ी गेहूँ की फसल और कटाई की स्थिति जानने के लिए तहलका के विशेष संवाददाता ने किसानों से बातचीत की।  उत्र प्रदेश के बुन्देलखण्ड के किसानों ने कहा कि पता नहीं इस महामारी से कब छुटकारा मिलेगा? एक ओर तो सरकार कह रही है कि किसानों और गरीबों को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी। अब इससे ज़्यादा परेशानी भी क्या होगी कि खेतों में फसल खड़ी है और उसे उठा तक नहीं पा रहे हैं। सरकार को सोचना चाहिए कि यह कोई एक दिन की मेहनत नहीं है, पूरे छ: महीने की मेहनत है। इसमें लगायी हुई लागत का बड़ा हिस्सा कर्ज़ का है। फसल ही नहीं बचेगी, तो कैसे गुज़ारा होगा। क्या किसानों पर कर्ज़ का बोझ और नहीं बढ़ जाएगा? छोटे किसान, जिनके पास 2-4, 10-20 बीघा खेती है, किसी तरह गेहूँ काटकर उठा भी लेंगे, लेकिन जिनके पास बड़ी खेती है, वे क्या करें? बड़े किसान ते हार्वेस्टर के सहारे ही बैठे हैं। किसानों का जीवन ही कृषि पर निर्भर है।

झाँसी ज़िले के धवाकर गाँव के निवासी चन्द्रपाल सिंह का कहना है कि सरकार ने कोरोना वायरस को लेकर जो सख्ती बरती है, उससे किसी किसान को आपत्ति नहीं है। लेकिन सरकार और पुलिस को तो किसानों की समस्या का खयाल भी रखना चाहिए, ताकि खेतों में खड़ी पकी फसल किसानों के घर तक तो आ जाती। गेहूँ काटने के लिए मशीनें खेतों में नहीं पहुँच पा रही हैं। ऐसे में बड़े किसान क्या करें? अगर दो सप्ताह और ऐसा ही रहा, तो छोटे किसानों का नुकसान तो होगा ही, हर बड़े किसान का लाखों का नुकसान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पहले ही बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ दी है, ऊपर से यह लॉकडाउन। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से अपील की है कि वह किसानों की समस्या को जानने के लिए ऐसे अधिकारियों को ज़िम्मेदारी सौपे, जो किसानों की समस्याओं का समाधान हो सकें। क्योंकि जिन किसानों ने थोड़ा-बहुत गेहूँ उठा लिया है, वे बाज़ार बन्द होने के कारण मण्डी में उसे बेच नहीं पा रहे हैं और लेबी भी नहीं खुली हैं। उन्होंने बताया कि इतना ही नहीं किसानों को गेहूँ भरने के लिए वारदाना (बोरियाँ) भी नहीं मिल रहा है। उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले के सुदामा पुरी गाँव के चिंतामन का कहना है कि किसानों को सुनवाई किसी भी पार्टी की सरकार कभी भी नहीं हुई। ऐसा ही हाल इन दिनों है। कोरोना वायरस के चलते किये गये लॉकडाउन से किसानों को न तो मज़दूर मिल पा रहे हैं और न ही फसल कटाई के लिए आवश्यक मशीनें, जिसकी वजह से गेहूँ की फसल पूरी तरह बर्बादी की कगार पर है।  उन्होंने कहा कि कुछ बड़े किसानों को छोड़ दें, तो बाकी के अधिकतर किसान मज़दूरों से या खुद गेहूँ की फसल समय से कटवाकर, उसकी थ्रेसिंग कराकर उठा लेते थे। इस बार न तो पर्याप्त मशीनें मिल रही हैं और न ही मज़दूर। इस बार महामारी के कारण मज़दूर घर से नहीं निकल पा रहे हैं, वहीं कुछ शहरों में ही फँसे हैं। सरकार को एक ठोस नीति के तहत अन्नदाता की समस्या को समझते हुए कोई ठोस पहल करनी चाहिए, ताकि कम-से-कम गेहूँ की फसल कटकर घरों और मण्डियों तक पहुँच सके। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो किसानों के सामने विकट आॢथक संकट खड़ा हो जाएगा।

किसान जनक और बब्लू पाल कहते हैं कि सरकारी खरीदारी बन्द है। किसानों के पास तो पहले ही तंगी रहती है। वे फसल कटते ही बाज़ार में बेचने को मजबूर रहते हैं। इस बार हम जैसे कुछेक छोटे किसानों ने गेहूँ जैसे-तैसे उठा लिया, लेकिन अब लेबी न खुलने की वजह से छोटे  खरीदारी गाँवों में आकर सस्ते दाम में गेहूँ खरीद रहे हैं। जबकि गेहूँ की खरीदारी जब सरकार करती है, तब ये लोग भी थोड़े-बहुत कम दाम करके अनाज खरीदते हैं। लेबी बन्द होने का ये लोग फायदा उठा रहे हैं और किसान हमेशा की तरह लुट रहे हैं।

किसान नेता रामबाबू का कहना है कि सरकार ने अगर इसी तरह खरीदारी में और किसानों को फसल की कटाई करने के लिए छूट देने में देरी की, तो फसल खेत में ही खड़ी-पड़ी रह जाएगी। उस पर अगर बारिश हो गयी, तो किसानों की सारी की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। महिला किसान रामवती और सुन्दरी ने बताया कि बुन्देलखण्ड में चैत्र महीना आते ही फसल की कटाई होने लगती है। लेकिन इस बार ऐसी विपदा आ पड़ी है कि कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें? उन्होंने बताया कि खेती के साथ वह सब्ज़ियाँ भी उगाती हैं, जिन्हें पास के शहरों में ले जाकर बेचती हैं। इस बार न तो वाहन चल रहे हैं और न लोगों को बाहर जाने दिया जा रहा, जिसके चलते वह सब्ज़ी गाँव में ही  औने-पौने दामों में बेच रही हैं।

मज़दूर गयादीन कांछी ने बताया कि उनका पूरा परिवार दिल्ली में मज़दूरी करने यही सोचकर गया था कि मार्च के आिखरी सप्ताह तक अपनी फसल काटने के लिए वह परिवार सहित घर चला जायेगा और फसल काट-बेचकर फिर दिल्ली चला आयेगा। लेकिन अचानक हुए लॉकडाउन वह परिवार को लेकर घर नहीं पहुँच पा रहा है। ऐसे में उसकी पकी फसल खेतों में ही झड़ रही है। गयादीन कांछी ने सरकार से माँग की है कि वह कोरोना वायरस की जाँच करवाकर उसे और उसके परिजनों को दिल्ली से उनके गाँव जाने दे, अन्यथा उसका बड़ा नुकसान हो जाएगा, जिसकी भरपाई साल-दो साल तक नहीं हो सकेगी। गयादीन ने कहा कि अगर ऐसा हुआ, तो वह और उसका परिवार आॢथक तंगी से जूझने लगेगा।

कृषि मंत्री दे चुके हैं राहत का आश्वासन

इधर, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों को राहत देने का आश्वासन दे चुके हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान किसानों को मंडी जाकर अपनी फसल उत्पाद बेचने की मौज़ूदा व्यवस्था में राहत देने का फैसला किया है। फेसबुक पर जारी एक वीडियो के ज़रिये कृषि मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि वे ऐसी पहल करें, जिससे अगले तीन महीने किसान अपनी फसल उत्पाद बेचने के लिए मण्डियों तक लाने की जगह अपने-अपने गोदामों से सीधे बेच सकें। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को फसल बेचने में किसी भी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने किसानों से भी कहा कि इसके लिए वे इनाम प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि सरकार की इस पहल से किसानों को अपनी फसल बेचने में कोई परेशानी नहीं होगी।

इतना ही नहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-नाम) प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने के लिए तीन नयी सुविधाएँ भी लॉन्च कीं। इस दौरान कृषि मंत्री ने कहा कि कि कोरोना वायरस के संक्रमण के इस दौर में इसकी आवश्यकता है। इससे किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए खुद थोक मण्डियों मजबूर होकर आना नहीं पड़ेगा। वे अपनी कृषि उपज को वेयरहाउस में रखकर वहीं से बेच सकेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि एफपीओ अपने संग्रह से उत्पाद को लाये बिना व्यापार कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ई-नाम प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने के लिए लॉजिस्टिक मॉड्यूल के नये संस्करण को भी जारी किया गया है, जिससे देश भर के पौने चार लाख ट्रक जुड़ सकेंगे।

कृषि मंत्री तोमर द्वारा लॉन्च किये गये तीन सॉफ्टवेयर मॉड्यूल हैं- (1) ई-नाम में गोदामों से व्यापार की सुविधा के लिए वेयरहाउस आधारित ट्रेडिंग मॉड्यूल, (2) एफपीओ का ट्रेडिंग मॉड्यूल, जहाँ एफपीओ अपने संग्रह से उत्पाद को लाये बिना व्यापार कर सकते हैं और (3) इस जंक्शन पर अंतर्मण्डी तथा अंतर्राज्यीय व्यापार की सुविधा के साथ लॉजिस्टिक मॉड्यूल का नया संस्करण, जिससे पौने चार लाख ट्रक जुड़े रहेंगे। कृषि मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में 14 अप्रैल, 2016 को ई-नाम पोर्टल शुरू किया गया था, जिसे अपडेट करके काफी सुविधाजनक बनाया गया है। उन्होंने कहा कि ई-नाम पोर्टल पर 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में पहले से ही मौज़ूद 585 मंडियों को एकीकृत किया गया है। जल्द ही 415 मंडियों को भी ई-नाम से जोड़ा जाएगा, जिससे ई-नाम पोर्टल पर कुल 1000 मंडियाँ हो जाएँगी।

फसलों को कब तक उठाना है ज़रूरी

मौसम के हिसाब से तो अधिकतर रबी की फसलें अब तक खेतों से कटकर घरों या गोदामों तक पहुँच जानी चाहिए थीं। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते काफी देरी हो रही है। ऐसे में सभी पकी फसलों, खासकर गेहूँ, चना, मसूर, सरसों, अरहर को जल्द-से-जल्द काटकर उठाने में ही फायदा है, अन्यथा किसानों के हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। क्योंकि रबी की अधिकतर फसलें पकने के बाद स्वत: ही खेतों में झडऩे लगती हैं। तापमान और फसलों की कटाई के मौसम के हिसाब से देखें, तो अगर 20-21 अप्रैल तक गेहूँ की फसल काटकर नहीं उठायी गयी, तो उपज का बड़ा हिस्सा किसानों के हाथ में नहीं आयेगा, क्योंकि इस समय तक फसल खेत में ही झडऩे लगेगी। बल्कि सरसों, मसूर और अरहर अगर खेतों में खड़ी है, तो वह झडऩे भी लगी होगी। ऐसे में अगर ये फसलें 20-21 अप्रैल के बाद भी खेतों में खड़ी रहती हैं, तो किसानों को नुकसान होने के साथ-साथ लोगों को खाद्यान्न की भी किल्लत भी उठानी पड़ेगी।

किसान इन बातों का रखें ध्यान

कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने के खतरों के मद्देनज़र सरकार ने किसानों अपील की है कि वे कोरोना वायरस से बचाव के सभी तरीके अपनाकर ही फसलों की कटाई करें और इन्हीं सुरक्षा नियमों का पालन करते हुए उन्हें बेचें, ताकि इस महामारी का फैलने से रोका जा सके।

हम बताना चाहते हैं कि फसल काटने से पहले और फसल काटने के बाद या बीच में खाना खाने से पहले सभी किसान और मज़दूर अपने हाथों को अच्छी तरह धो लें। फसल काटने के औज़ार एक-दूसरे से साझा न करें और कटाई करते समय दूरी बनाये रखें। चेहरे को मास्क या कपड़े से ढँककर रखें। कृषि संयंत्रों एवं उपकरणों की नियमित सफाई करते रहें। इसके साथ ही जब फसल बेच रहे हों, तब उचित दूरी और सफाई का विशेष ध्यान रखें।