आज़ाद, आनंद सोनिया की समिति से बाहर ; जितिन पर कार्रवाई चाहती है   यूपी के लखीमपुर की कांग्रेस इकाई 

लगता है कांग्रेस कार्यकरिणी की बैठक के बाद भी पार्टी में अभी तनातनी बनी हुई है। दो नए घटनाक्रम बताते हैं कि कांग्रेस में अभी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। पहली बात पार्टी की तरफ से मोदी सरकार की तरफ से जारी अध्यादेशों पर विचार के लिए बनाई गयी एक कमेटी है जिसमें वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा को शामिल नहीं किया गया है। दूसरे कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस की लखीमपुर खीरी इकाई ने सोनिया गांधी को नामित करते हुए चिट्ठी पर दस्तखत करने वाले नेताओं में एक जितिन प्रसाद पर कार्रवाई की मांग की गयी है। उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी हैं, लिहाजा यह मांग बहुत मायने रखती है।

गुलाम नबी आज़ाद, जिन्हें गांधी परिवार के सबसे नजदीक नेताओं में से एक माना जाता है, हाल में लिखी एक चिट्ठी के बाद पार्टी के भीतर नेताओं के निशाने पर हैं। इसमें कभी कोई दो राय नहीं रही है कि आज़ाद कांग्रेस के उन नेताओं में हैं जो पार्टी से बाहर की बात सोच भी नहीं सकते। शायद यही कारण भी है कि जब 23 नेताओं के दस्तखत वाली चिट्ठी सामने आई और उसमें आज़ाद का नाम सबसे ऊपर देखा गया तो बहुत से लोगों को हैरानी हुई है। कुछ ऐसा ही आनंद शर्मा के बारे में भी कहा जा सकता है।

हाल के सालों में जो महत्वपूर्व समितियां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बनाई हैं, उनमें आज़ाद का नाम हमेशा रहा है। खासकर ऐसी समितियां, जिन्हें मोदी सरकार के खिलाफ या उसके फैसलों के ख़िलाफ कुछ रणनीति तैयार करने का जिम्मा दिया गया। अब चिट्ठी मामले के बाद बनाई पहली समिति से उनका नाम बाहर होने से जाहिर होता है कि गांधी परिवार में उनके प्रति नाराजगी है। आज़ाद का नाम उसमें होता तो यह मान लिया जाता कि कांग्रेस में चिट्ठी वाला अध्याय समाप्त हो गया।

कांग्रेस ने गुरुवार को मोदी सरकार की ओर से जारी किए अध्यादेशों पर विचार के लिए एक समिति बनाई है। इसमें गांधी परिवार के कई करीबी नेताओं को तो जगह मिली है, लेकिन गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा इससे बाहर रखे गए हैं। अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की बनाई इस समिति में पी चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश, अमर सिंह और गौरव गोगोई हैं। जयराम रमेश को समिति का संयोजक बनाया गया है। समिति को केंद्र की ओर से जारी प्रमुख अध्यादेशों पर चर्चा और पार्टी का रुख तय करने का जिम्मा सौंपा गया है।

आज़ाद और आनंद शर्मा के समिति में न होने से यह संकेत जा रहा है कि गंधी परिवार उनसे नाराज है। इसमें कोई दो राय नहीं सोनिया व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं चाहेंगी कि आज़ाद जैसे नेता को अलग-थलग किया जाये, लेकिन उनका नाम समिति में न होने से यह तो पता चल रहा है कि आज़ाद सोनिया के सामने पत्र को लेकर अपनी स्थिति अभी ठीक से साफ़ नहीं कर पाए हैं। वैसे ख़बरें रही हैं कि चिट्ठी और सीडब्ल्यूसी की बैठक के दौरान के समय में सोनिया ही नहीं राहुल गांधी ने भी आज़ाद से फोन पर बात की थी।

आज़ाद पर तब दाबाव बन गया जब सीडब्ल्यूसी की बैठक में 23 नेताओं के पत्र की भाषा को ”भाजपा के हित साधने वाली भाषा” बताया गया। आज़ाद ने सफाई दी थी, लेकिन मामला अभी सुलटा नहीं है, ऐसा संकेत मिल रहा है। कहते हैं कि आज़ाद चिट्ठी लिखने ववालों को भाजपा से जोड़ने से नाराज हैं, और उन्होंने इस्तीफे तक की भी पेशकश की थी। कपिल सिब्बल ने भी बैठक के दौरान इस मसले को ट्वीट करके जगजाहिर किया था, हालांकि बाद में उन्होंने ”राहुल ने भाजपा के साथ” वाला ट्वीट हटा लिया था।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस का बहुत बड़ा वर्ग गांधी परिवार के साथ है और वह मानता है कि गांधी परिवार के बाहर कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं है। बहुत साल पहले जब दिग्गज नेता शरद पवार गांधी परिवार के खिलाफ विद्रोह के लिए उठे थे तो उन्हें कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं मिला था, लिहाजा उन्हें अपनी अलग पार्टी बनाई पड़ी। आखिर 2004 में पवार सोनिया गांधी से ही समझौता करके कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा बने और आज तक हैं। आज भी यह माना जाता है कि पवार वापस कांग्रेस में लौटने के ”इच्छुक” रहे हैं।

संसद के मानसून सत्र से पहले कांग्रेस के बीच जो शुरू हुआ है, उसे निश्चित ही पार्टी के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता। आज़ाद वो नेता जो हैं संसद के भीतर हमेशा कांग्रेस के बुलंद आवाज रहे हैं। लेकिन अभी तो साफ़ दिख रहा है कि कांग्रेस के भीतर कुछ पक रहा है। निश्चित ही उनकी और अन्य की चिट्ठी ने पार्टी के बीच नाराजगी पैदा की है। आनंद शर्मा को भी अगर किनारे करने के संकेत जाते हैं तो निश्चित ही उनके अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में भी उनकी स्थिति कमजोर होगी।

उधर यह मामला इसलिए भी बढ़ता दिख रहा है कि गुरुवार को उत्तर प्रदेश कांग्रेस की लखीमपुर खीरी इकाई ने सोनिया गांधी को संबोधित करते हुए प्रस्ताव रखा है कि पार्टी नेता जितिन प्रसाद पर कार्रवाई की जाए। इकाई ने बल्कि चिट्ठी लिखने वाले सभी नेताओं के खिलाफ ही कार्रवाई करने की मांग की है। इकाई के प्रस्ताव में लिखा है- ”पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले उत्तर प्रदेश के जितिन प्रसाद एकमात्र व्यक्ति हैं।  उनका पारिवारिक इतिहास गांधी परिवार के खिलाफ रहा है और उनके पिता स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर इसे साबित किया था। इसके बावजूद सोनिया गांधी ने जितिन प्रसाद को लोकसभा का टिकट दिया और मंत्री बनाया।”

लखीमपुर खीरी इकाई का यह प्रस्ताव इस मायने में भी अहम है कि यूपी की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी हैं। इस प्रस्ताव में जितिन के चिट्ठी का हिस्सा बनाने को ”घोर अनुशासनहीनता” बताया गया है और जिला कांग्रेस कमेटी ने लिखा है कि उनके (जितिन) के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

कहना मुश्किल है कि इन कथित ”बागी” नेताओं की क्या रणनीति है, लेकिन पूर्व के तमाम उदाहरण बताते हैं कि असली कांग्रेस गांधी परिवार के ही आसपास रही है। इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और सोनिया गांधी के समय में हुए इस तरह के ”विद्रोह” इसका उदाहरण हैं। एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि शायद यह नेता किसी ”बाहरी” के संपर्क में हैं और ऐसी विवादित चिट्ठी लिखी है। उन्होंने कहा – ”लेकिन यह सब किनारे लग जायेंगे, क्योंकि पार्टी के लाखों-लाख कार्यकर्ता गांधी परिवार के साथ रहेंगे। इन्हीं में से कुछ नेता हैं जिन्होंने राहुल गांधी को अध्यक्ष के नाते फेल करने की कोशिश की थी।”

जिन वरिष्ठ नेताओं का नाम चिट्ठी में सामने आया है, उनमें से कमोवेश सभी ऐसे हैं जो एक-दूसरे को ही अपना नेता नहीं मानते रहे हैं। ऐसे में यह नेता किसे नेता बनाएंगे और और उनमें सर्वसम्मति कैसे बनेगी, यही सबसे बड़ा सवाल है। यही कारण भी है कि पार्टी के बहुत समझदार नेता गांधी परिवार में से ही नेता चुनने के पक्ष में रहे हैं। हाँ, यह अवश्य सच है कि पिछले कुछ सालों में पार्टी नेताओं ने ज़मीन पर काम करना बंद कर दिया है, जिससे जनता से पार्टी का संपर्क कमोवेश टूट गया है।

लेकिन इसका एक बड़ा कारण पार्टी नेताओं की आरामपरस्ती और खुद के लिए राज्य सभा की सीट का इंतजाम करने तक सीमित हो जाना भी है। यह लोग दिल्ली से बाहर निकलते नहीं है। न केंद्र सरकार के खिलाफ उनके कोई मजबूत ब्यान ही आते हैं। ज़मीन पर इन महीनों में देखा जाए तो राहुल गांधी ही हैं जो लगातार मोदी सरकार के खिलाफ आबाज बुलंद करते रहे हैं। लेकिन इन नेताओं ने उनका भी समर्थन करते रहने की जहमत नहीं उठाई है।