बेमौसम बारिश, तेज़ अंधड़ और ओले गिरने से पंजाब, हरियाणा समेत राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में गेहूँ और सरसों आदि की फ़सलों को व्यापक स्तर पर नुक़सान पहुँचा है। पंजाब और हरियाणा के ज़्यादातर ज़िलों में 25 प्रतिशत से लेकर 75 प्रतिशत तक गेहूँ की फ़सलें ज़मीन पर बिछ गयी हैं। इससे गेहूँ का दाना न केवल पतला होगा, वरन् वह काला पड़ जाएगा।
दोनों राज्यों के कुछ ज़िलों में गेहूँ की फ़सल न केवल ज़मीन पर गिर गयी, बल्कि कुछ दिनों तक पानी में डूबी रही। यह एक तरह से पूरी बर्बादी ही है। रबी की फ़सल के दौरान जनवरी से मार्च अंत तक बेमौसम बारिश आती ही है; लेकिन इस बार वह अपने साथ आँधी और ओलावृष्टि लेकर आयी। दो से तीन दिन तक रुक-रुक हुई बारिश ने फ़सल को धूप भी नहीं लगने दी।
जनवरी के दौरान बारिश गेहूँ और सरसों की फ़सल वरदान की तरह होती है। लेकिन उस दौरान यह कम हुई; लेकिन इससे दोनों फ़सलों में जैसे जान आ गयी थी। उस दौरान कृषि विभाग ने बंपर उत्पाद की संभावना जतायी थी। फरवरी में बारिश और तेज़ आँधी के बावजूद फ़सलों को आंशिक नुक़सान हो रहा था। सोचा यह जा रहा था कि इसके बाद लगातार धूप रहने से सब कुछ ठीक हो जाएगा; लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फिर मध्य मार्च के बाद और अप्रैल के पहले सप्ताह तक दोनों राज्यों में जैसे प्राकृतिक आपदा ने पाँव ही पसार लिये।
मार्च के अन्त और अप्रैल के पहले सप्ताह में ज़ोरदार बारिश, अंधड़ और ओलावृष्टि ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया। ज़रूरत के समय जो किसान आसमान की ओर टकटकी लगाकर बादलों के छाने का इंतज़ार करता है वह किसान इस दौरान उनक छँटने का इंतज़ार करता दिखा। प्राकृतिक आपदाएँ कृषि के लिए हमेशा आफ़त ही बनती रही हैं। बहुत बार रबी या ख़रीफ़ की पूरी फ़सल ही चौपट होती रही है। पर अब स्थिति कुछ बदली है।
केंद्र और राज्य सरकारों की फ़सल बीमा योजना से आंशिक भरपाई की उम्मीद जगी है। पंजाब और हरियाणा सरकारों ने 100 प्रतिशत फ़सल ख़राब पर 15,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवज़े की घोषणा की है। राशि बढ़ाने के लिए दोनों राज्यों में किसान संगठनों ने ब्लाक, ज़िला और राज्य स्तर पर प्रदर्शन भी किये। मुआवज़ा राशि में पिछले साल से कुछ बढ़ोतरी की है; लेकिन किसान की लागत के मुक़ाबले यह बहुत कम है। साथ ही कई जगह बीमा राशि के न मिलने या बहुत ही कम मिलने के मामले सामने आये हैं। किसान संगठन 100 प्रतिशत फ़सल ख़राब पर 50,000 रुपये प्रति एकड़ की माँग कर रहे थे।
दोनों राज्यों में इसके लिए विशेष सर्वेक्षण हो रहा है। सीधी भाषा में इसे गिरदावरी कहा जाता है जहाँ राजस्व विभाग के पटवारी, क़ानूनगो और गिरदावर आपदा में फ़सल ख़राब की खेतों में जाकर जाँच करते हैं और पूरी रिपोर्ट सरकार को देते हैं। इसके बाद सरकारी स्तर पर घोषणा के मुताबिक, मुआवज़ा राशि तैयार होकर बाँटी जाती थी।
प्राकृतिक आपदाएँ पहले भी आती रही हैं। फ़सल ख़राब पर सर्वे आदि भी हुए; लेकिन जब मुआवज़ा मिला तो वह हज़ारों तक ही सीमित रहा। पहले मुआवज़ा राशि का वितरण की कोई समय सीमा नहीं होती थी। कहने को सरकार समय बताती थी; लेकिन वेसा होता नहीं था। महीनों बाद किसान को यह राशि मिल पाती थी। एक तरह से कहें तो ज़्यादातर किसानों का सरकारी मुआवज़े से भरोसा ही उठ चुका था। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने वादा किया है कि 15 अप्रैल तक ख़राब फ़सलों का पूरा सर्वेक्षण करा लिया जाएगा। मई में मुआवज़ा राशि किसानों के खाते में पहुँचने लगेगी। छोटे और मझोले किसानों का हिसाब किताब फ़सल बेचने के बाद ही चलता है। रबी के बाद ख़रीफ़ फ़सल की तैयारी के लिए उसे पैसे चाहिए। फ़सल ठीक हुई तो बात ठीक, अगर आपदा में फ़सल बर्बाद हो गयी, तो वह मुआवज़ा राशि के इंतज़ार में नहीं बैठ सकता। आढ़ती या अन्य किसी से ब्याज पर राशि उठाएगा। यह क्रम दशकों से चला आ रहा है और यही मुख्य वजह है कि किसान उभर नहीं पा रहा है। बिना प्राकृतिक आपदा के किसान क़र्ज़ के बोझ में दबे हैं।
आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से पंजाब देश का सबसे ज़्यादा अन्न उत्पादन करने वाला है; लेकिन विडंबना यह कि सबसे ज़्यादा ख़ुदकुशी की घटनाएँ इसी प्रदेश में हुई है। पंजाब के किसान सुखचैन सिंह ने बताया बेमौसम बारिश से उनकी आधी से ज़्यादा फ़सल बर्बाद हो गयी। सरकारी टीम ने पूरा ब्योरा बनाकर भेजा। उम्मीद थी सरकार से अच्छी राशि मिलेगी; लेकिन चेक मिला 4,500 रुपये का। सरकारे वादा करती है, सार्वजनिक मंचों से घोषणाएँ करती हैं; लेकिन किसान को हक़ीक़त में बहुत कुछ मिलता नहीं है।
कुछ प्रभावशाली लोगों को भले ठीक मुआवज़ा मिल जाए, छोटे और सीमांत किसान तो मुआवज़े के मामले में भगवान भरोसे ही रहते हैं। गेहूँ जैसा ही हाल सरसों का रहा बारिश और तेज़ आँधी ने फूलों पर मार की, जिससे उत्पाद में कमी आएगी। कुछ स्थानों पर सरसों की कटाई होने के बाद ढेरियाँ सूखने कें लिए खेतों में लगायी हुई थी। लगातार बारिश से वे भीग गयीं और काफ़ी नुक़सान हो गया। सरसों के रेट नमी और तेल की मात्रा के हिसाब से तय होते हैं। बारिश से भीगी सरसों सरकारी मानकों पर खरी नहीं होगी। लिहाज़ा निजी व्यापारी कम दामों पर ख़रीद करेंगे।
किसानों के पास बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हरियाणा के कई गाँवों में सरसों की फ़सल की हालत कुछ ऐसी ही हुई। दोनों राज्यों में ज़्यादातर रक़बा (क्षेत्रफल) गेहूँ का है। पंजाब में 130 लाख टन और हरियाणा में 85 लाख टन गेहूँ उत्पाद होने की उम्मीद लगायी गयी थी; लेकिन आपदा से यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। केंद्र और दोनों राज्य सरकार को ख़रीद में कुछ रियायत देनी होगी, वरना किसान लुट जाएगा। जो गेहूँ दो माह पहले 3,000 प्रति कुंतल तक पहुँच गया था वह अब सरकारी ख़रीद भाव 2,150 से भी कम पर आसानी से बिक नहीं सकेगा। ऐसे उत्पाद को सरकारी एजेंसियाँ समर्थन मूल्य पर नहीं ख़रीद सकती लिहाज़ा औने पौने दामों पर बिकेगा। प्राकृतिक आपदा को देखते हुए सरकारी ख़रीद में कुछ नरमी बरते जाने की बातें चल रही हैं; लेकिन ऐसा होगा इसकी संभावना धरातल पर बहुत कम है।
इस बार पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्ट्रबेंस) ने उत्तर भारत की ज़्यादातर खेती को तबाह करके रख दिया है। इसकी मार महाराष्ट्र जैस राज्यों में भी पड़ी; लेकिन ज़्यादा मार हर बार की तरह उत्तर क्षेत्र ही रहा। हरियाणा के रोहतक ज़िले के गाँव करोर के महिपाल के मुताबिक, गेहूँ और सरसों की फ़सल आपदा ने चौपट कर दी है। छोटे बड़े सभी किसान बारिश, आँधी और ओलावृष्टि से प्रभावित हुए है। ज़िले के बड़े क्षत्र में 100 प्रतिशत तक फ़सलें ख़राब हुई है। धरती पर बिछी गेहूँ दो दिन तक पानी में भीगी रही उसमें अंकुरित होने लगे हैं। वह किसी काम नहीं रही। सरसों की ढेरियाँ पानी में पड़ी रही लिहाज़ा दाना काला हो गया। जनवरी से अप्रैल के पहले सप्ताह तक आयी इस प्राकृतिक आपदा से नुक़सान का अंदाज़ा इस बात से लग सकता है कि हरियाणा में 17 लाख एकड़ से ज़्यादा फ़सल के नुक़सान का इंद्राज हो चुका है। अभी यह संख्या और बढ़ सकती है। राज्य सरकार का ई-फ़सल क्षतिपूर्ति पोर्टल अभी खुला है। जो किसान इस विधि से नुक़सान का ब्योरा नहीं दे सकते वे सेवा केंद्र पर इसकी जानकारी सरकार तक पहुँचा सकते हैं। राज्य के पंचकुला और हिसार में आपदा से आंशिक नुक़सान हुआ वहीं अन्य सभी ज़िलों में 25 से 75 प्रतिशत तक गेहूँ और सरसों की फ़सलें ख़राब हुई हैं। राज्य सरकार ने स्टाफ की कमी को देखते हुए क्षतिपूर्ति सहायकों की नियुक्ति की हैं। ये सहायक गाँव के पढ़े-लिखे युवक होंगे, जिन्हें 500 एकड़ में राजस्व टीम के साथ काम करना होगा। इन्हें इसके लिए 5,000 रुपये मानदेय देने की व्यवस्था भी की गयी है। ऐसा नहीं कि सरकार तुरन्त प्रभाव से मुआवज़ा राशि का वितरण शुरू कर देगी। जिन किसानों ने ख़राब हुई फ़सल का ब्योरा दिया है, तो मुआवज़ा राशि उनके खातों में पहुँच जाएगी। किसान उत्पाद को मंडी में बेचेगा, वह कितना प्रतिशत होगा और सर्वे में उसका नुक़सान क्या आँका गया है इसका मिलान किया जाएगा। इसके बाद वास्तव में जो अंतर आएगा मुआवज़ा उसी हिसाब से मिलेगा। सरकारी प्रयासों के बावजूद भी रबी फ़सल पर आयी प्रकृतिक आपदा से किसानों पर बड़ी आर्थिक मार पड़ी है।
चक्रवाती तूफ़ान
पंजाब के फ़ाज़िल्का ज़िले में चक्रवाती तूफ़ान ने गाँव बकेनवाला और आसपास में भयंकर तबाही मचायी। इससे क़रीब तीन दर्ज़न कच्चे, अधपक्के मकान धराशायी हो गये, जिससे एक दर्ज़न लोग घायल हो गये। 10 से 15 मिनट के इस बवंडर ने लोगों को दहला दिया। इसकी तीव्रता इतनी ज़्यादा थी कि गाँव का ढाई एकड़ का पूरा बाग़ ही तहस-नहस हो गया। राज सिंह के सैकड़ों पेड़ ज़मीन से उखड़ गये। उन्हें छ: से सात लाख रुपये का आर्थिक नुक़सान हुआ है। दो से तीन किलोमीटर के क्षेत्र में तूफ़ान रास्ते में जो भी आया उसे उड़ा ले गया।