हाल के कुछ सालों के दौरान आतंकवाद का दायरा देश भर में फैला है. उत्तर प्रदेश इसके सबसे बड़े पीड़ित और कथित संरक्षक के तौर पर उभरा है. सूबे के एक जिले को तो बाकायदा आतंकगढ़ की उपाधि ही दे दी गई थी. जैसे जैसे आतंक की वारदातें बढ़ी वैसे-वैसे इसके आरोपितों की संख्या भी बढ़ती गई. राज्य की आम जनता में आतंकवाद और मुसलमान के आपसी संबंध का स्टीरियोटाइप जमता गया. जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट.
इस समय 100 के करीब ऐसे आरोपित उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद हैं जिन पर आतंकवाद फैलाने या फिर आतंक को मदद देने का आरोप है. संवेदनशील मामला होने के बावजूद इस मुद्दे पर खूब राजनीतिक रोटियां भी सेकी गईं. कुछ ही दिन पहले संपन्न हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दौरान जेलों में बंद आरोपित मुसलिम युवा भी मुख्य चुनावी मुद्दा थे. राज्य में सत्तारूढ़ हुई समाजवादी पार्टी ने तो बाकायदा अपने घोषणा पत्र में इसे शामिल किया था. सपा ने राज्य की विभिन्न जेलों में आतंकवाद के आरोप में बांद मुस्लिमों की रिहाई का रास्ता तैयार करने का वादा किया था. सरकार बने चार माह बीत चुके हैं लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. सामाजिक संगठनों ने भी सरकार पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. कुछ ऐसे मामले हैं जिनमें आरोपित बरी हो चुके हैं, कुछ में पुलिस आरोपपत्र तक दाखिल नहीं कर पायी और कुछ मामले ऐसे भी हैं जिन्हें शुद्ध रूप से पुलिस प्रताड़ना का मामला सिद्ध किया जा सकता है. आगे के पन्नों पर कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं जो आतंकवाद के नाम पर की जा रही पुलिस और सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई की पोल खोलते हैं. इससे आतंकवाद की नकेल कसने के लिए बने आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े होते हैं.
अजीजुर्रहमान, 32
अलीपुर,
पश्चिम बंगाल (फिलहाल लखनऊ जेल में)
हमारी पुलिस रस्सी का सांप और राई को पहाड़ बनाने की कला में महिर है, अजीजुर्रहमान की कहानी पढ़कर कोई भी इस बात पर यकीन करने लगेगा. उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स के कुछ अधिकारी और जवान 26 जून 2007 को पश्चिम बंगाल के अलीपुर जिले में जाते हैं. वहां पुलिस कस्टडी में बंद अजीजुर्रहमान को लेकर लखनऊ आ जाते हैं. एसटीएफ का दावा है कि 22 जून को अजीजुर्रहमान अपने एक अन्य साथी जलालुद्दीन के साथ आरडीएक्स लेकर लखनऊ आया था. यहां आकर दोनों अलग हो गए. 23 जून को जब अजीजुर्रहमान चारबाग रेलवे स्टेशन पर अपने साथी जलालुद्दीन का इंतजार कर रहा था तभी उसे पता चला कि जलालुद्दीन को पुलिस ने पकड़ लिया है. अजीजुर्रहमान तुरंत चारबाग से निकल कर संजय गांधी पीजीआई पहुंचा. वहां उसने अपने पास मौजूद आरडीएक्स छुपा दिया. वहां से वापस चारबाग लौटकर वह पश्चिम बंगाल भाग गया.
अब घटना के दूसरे पहलू पर नजर डालते हैं जिसके बाद एसटीएफ की पूरी कहानी पानी मांगने लगती है. कोर्ट में अजीजुर्रहमान के मामले की पैरवी कर रहे एडवोकेट शोएब बताते हैं, ‘यूपी एसटीएफ अजीजुर्रहमान को अलीपुर पुलिस की कस्टडी से लेकर आई. इसका अर्थ है कि वह पहले से ही वहां पुलिस की गिरफ्त में था. अलीपुर पुलिस थाने के दस्तावेज बताते हैं कि पुलिस ने 22 जून 2007 को उसे डकैती की योजना बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया था. उसी दिन यानी 22 जून को ही उसे अलीपुर जिले की एसीजेएम कोर्ट में पेश किया गया.’ यहां उत्तर प्रदेश एसटीएफ के दावे की पोल खुलने लगती है. जिस अजीजुर्रहमान के बारे में यूपी एटीएस दावा कर रही है कि 22 जून को वह लखनऊ में वारदात करने के लिए आया था उसी दिन वह अलीपुर एसीजेएम कोर्ट में कैसे पेश हो सकता है. इसके बाद की पूरी कहानी ताश के महल की तरह भरभरा कर गिर जाती है. मसलन जब वह पश्चिम बंगाल पुलिस की हिरासत में था तब 23 जून को पीजीआई के पास वह आरडीएक्स कैसे छुपा सकता है. शोएब कहते हैं. पूरे मामले में इतना स्पष्ट विरोधाभास होने के बावजूद न तो कोर्ट के पास इस मामले पर ध्यान देने की फुर्सत है न ही राजनीतिक दलों के पास. पिछले पांच साल अजीजुर्रहमान ने सिर्फ इंतजार में काट दिए हैं. अभी भी सुनवाई और सजा का फैसला होना बाकी है.
शौकत अली, 45
श्रीनाथपुर, जिला-प्रतापगढ़
उत्तर प्रदेश
शौकत पूर्व माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक हैं. लेकिन 2008 के बाद स्थानीय लोगों की नजर में उनकी एक और पहचान भी बन चुकी है- एक आतंकवादी की. शौकत को यह पहचान उत्तर प्रदेश की एटीएस और दूसरी जांच एजेंसियों ने दी है. वैसे तो उत्तर प्रदेश हो या देश का कोई दूसरा हिस्सा, किसी भी आतंकी घटना में शौकत का नाम अभी तक नहीं आया है, लेकिन पूछताछ के नाम पर कभी उनको लश्कर-ए-तैयबा का एरिया कमांडर बना दिया जाता है तो कभी जाली भारतीय मुद्रा का तस्कर या इंडियन मुजाहिदीन का सदस्य.
शौकत के आतंकवाद के साथ कथित रिश्तों के तार 2008 में हुई एक घटना से जुड़े हैं. इलाहाबाद पुलिस ने अगस्त 2008 में आमिर महफूज नाम के एक व्यक्ति को जाली नोटों के साथ गिरफ्तार किया. इलाहाबाद पुलिस को आमिर महफूज के बहनोई मौलाना अशफाक की तलाश थी. अशफाक मालेगांव का रहने वाला है. यहां पर शौकत का आमिर से रिश्ता जुड़ता है. अशफाक की शादी आमिर महफूज की बहन से हुई थी और इस शादी में शौकत ने मध्यस्थ की भूमिका अदा की थी. यह मध्यस्थता ही शौकत को भारी पड़ी. पुलिस ने जाली नोटों की तस्करी के आरोप में आमिर को जेल भेज दिया था. इस घटना को बीते चार साल होने को आ रहे हैं. पुलिस आज तक आमिर और शौकत का आपस में कोई रिश्ता साबित नहीं कर सकी है. शौकत के खिलाफ उसने कोई मामला भी दर्ज नहीं किया है लेकिन आए दिन उन्हें पूछताछ के लिए तलब करती रहती है, जब तब उनके घर में छापे डालती रहती है. स्थानीय पुलिस और मीडिया ने उन्हें एक आतंकी के तौर पर स्थापित कर दिया है.
एटीएस के अधिकारी आए दिन शौकत के घर और स्कूल में उनसे पूछताछ के लिए पहुंचने लगे. शौकत बताते हैं, ‘हेमंत नाम के एक एटीएस अधिकारी हैं. वे कभी तलहा अब्दाली तो कभी किसी और का नाम लेकर आए दिन मेरे घर और स्कूल में आ धमकते थे. इससे लोग मुझ पर शक करने लगे. आतंकवादी होने के शक में एक तरह से मेरा सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया.’ लोकसभा चुनाव के समय पूछताछ का सिलसिला थोड़ा थम सा गया था लेकिन चुनाव के बाद फिर से वही हालात हो गए हंै. पूछताछ के नाम पर एटीएस कभी उन्हें लखनऊ तो कभी प्रतापगढ़ में तलब करती रहती है.
शौकत और उनके परिवार के साथ एटीएस के लोग अजब-गजब खेल खेलते रहे. कुछ माह पूर्व शौकत की पत्नी फरीदा महजबीन द्वारा संचालित स्कूल में एक कुरियर आया. यह शौकत के नाम था जिसे इलाहाबाद से भेजा गया था. उर्दू में लिखे गए इस पत्र का मजमून यह था कि शौकत को लश्कर-ए-तैयबा का एरिया कमांडर बना दिया गया है और कुछ हथियार स्कूल में छुपा दिए गए हैं. पत्र में यह भी लिखा था कि लश्कर की महिला विंग भी कायम हो चुकी है. शौकत बताते हैं, ‘मैंने तत्काल पत्र मिलने की सूचना डीएम और एसपी प्रतापगढ़ को दी.’ हालांकि इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. एटीएस अधिकारी हेमंत को जब इस बात की जानकारी हुई कि शौकत ने पत्र मिलने की सूचना डीएम और एसपी को दे दी है तो शौकत पर उनका गुस्सा फूट पड़ा.’ शौकत के मुताबिक हेमंत ने उनसे कहा कि पत्र के बारे में डीएम व एसपी को बताने की क्या जरूरत थी. आज तक यह बात साफ नहीं हो सकी है कि पत्र किसने और किस उद्देश्य से लिखा था. शौकत कहते हैं, ‘यदि मैं वास्तव में दहशतगर्द हूं तो मुझे जेल में क्यों नहीं डाल देते. सालों से चल रही पूछताछ का नतीजा ये है कि अब स्कूल में मेरे साथी अध्यापक भी मुझसे कट कर रहते हैं.’
सज्जादुर रहमान, 25
छातरू, जिला-किश्तवाड़
जम्मू कश्मीर
सज्जादुर रहमान 23 नवंबर 2007 को लखनऊ और फैजाबाद की कचहरियों में हुए बम विस्फोट का आरोपित है. जिस समय यह विस्फोट हुए थे उस समय सज्जाद देवबंद के दारुल उलूम में मौलाना की तालीम हासिल कर रहा था. सज्जाद के पिता गुलाम कादिर को आज भी 22 दिसंबर 2007 का वह मनहूस दिन याद है जब छातरू पुलिस ने घर से गिरफ्तार करके सज्जाद को यूपी पुलिस के हवाले किया था. तहलका से बातचीत में कादिर बताते हैं कि दिसंबर में सज्जाद बकरीद की छुट्टियां मनाने घर गया था. 21 दिसंबर को बकरीद थी और 22 दिसंबर की सुबह ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. मेहनत मजदूरी कर परिवार का पेट पालने वाले कादिर को यह भी नहीं पता चला कि उनके बेटे को किस जुर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. एक सप्ताह सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाने के बाद उन्हें पता चला कि उनके बेटे को उत्तर प्रदेश की पुलिस ले गई है.
सज्जाद की गिरफ्तारी के पीछे रची गई पुलिसिया कहानी में कई छेद हैं. दारुल उलूम के कागजात बताते हैं कि यूपी पुलिस जिस 23 नवंबर को कचहरी ब्लाट में सज्जाद के शामिल होने की बात कह रही थी उस दिन वह अपने मदरसे में था. हाजिरी रजिस्टर में भी उसकी उपस्थिति दर्ज है. सज्जाद का मामला कितना कमजोर है इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि गिरफ्तारी के साढ़े तीन साल तक पुलिस सज्जाद के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र तक दाखिल नहीं कर सकी. इसके मद्देनजर सबूतों के अभाव में न्यायालय ने सज्जाद को लखनऊ कचहरी ब्लाट के आरोप से बरी कर दिया. इस मामले से बरी होने के बावजूद अब तक सज्जाद की रिहाई नहीं हो सकी है क्योंकि फैजाबाद कचहरी ब्लाट के मामले में वह अभी भी आरोपित है.
जुलाई में बेटे से मिलने आए गुलाम कादिर सवाल करते हैं, ‘जब दोनों ही मामले एक साथ हुए थे और एक मामले में उसे बरी कर दिया गया है तो दूसरे मामले में उसे लटकाए रखने का क्या मतलब है.’ मेहनत मजदूरी कर परिवार का पेट पालने वाले कादिर बताते हैं कि हर बार बेटे से मिलने के लिए आने में इतना पैसा खर्च हो जाता है कि कभी भेड़-बकरी बेच कर आने की व्यवस्था करनी पड़ती है तो कभी लोगों से उधार लेकर.