हाल के दिनों में जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि देखी गयी है। जम्मू-कश्मीर के राजौरी ज़िले में एक मुठभेड़ में विशेष बलों के दो कैप्टन सहित सेना के पाँच जवान शहीद हो गये। गोलीबारी के दौरान लश्कर-ए-तैयबा के एक कमांडर सहित दो आतंकवादी भी मारे गये। आधिकारिक आँकड़ों से पुष्टि होती है कि हाल के दिनों में जम्मू क्षेत्र में आठ ग्रेनेड और 13 सुधारे हुए विस्फोटक उपकरण हमले के दौरान दर्ज किये गये थे। इस साल अप्रैल-मई में पुंछ और राजौरी सीमावर्ती ज़िलों में घात लगाकर किये गये दो आतंकी हमलों में 10 जवान शहीद हो गये थे। अकेले 2023 में अब तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से सम्बन्धित हिंसा में 80 से अधिक आतंकवादियों के मारे जाने और 25 से अधिक सुरक्षाकर्मियों के शहीद होने सहित कम-से-कम 120 लोगों की मौत हुई है।
वरिष्ठ पत्रकार राकेश रॉकी द्वारा लिखित आवरण कथा ‘आतंकी हमलों से मुक्त नहीं हुई घाटी’ में बताया गया है कि कैसे केंद्र शासित प्रदेश का जम्मू क्षेत्र आतंकवाद के नये केंद्र में बदल गया है। क्योंकि आतंकवादी घने जंगलों के पीछे छिप गये हैं। हाल के वर्षों में कई मुठभेड़ों के कारण जम्मू-कश्मीर के पीर पंजाल का पहाड़ी-जंगली इलाक़ा सुरक्षा बलों के लिए एक नया सिरदर्द बन गया है। हालाँकि कुल मिलाकर हाल के वर्षों में घाटी में हिंसा में कमी आयी है। फिर भी आतंकवादियों से निपटने और चुनावी प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बनाने के लिए आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभी और सख़्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
यह बात स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के आतंकी मंसूबे मज़बूती से क़ायम हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की टुकडिय़ों में उच्च प्रशिक्षित विदेशी आतंकवादियों की घुसपैठ गम्भीर चिन्ता का विषय है। यह सच है कि अब स्थानीय आतंकी भर्ती नहीं हो रही है। लेकिन कई विदेशी प्रशिक्षित आतंकवादी कथित तौर पर राजौरी और पुंछ के सीमावर्ती ज़िलों में प्रवेश कर चुके हैं। पाकिस्तानी सेना द्वारा कथित तौर पर सेवानिवृत्त कर्मियों को सीमा पार भेजने के बीच भारत के लिए सतर्कता की स्थिति में किसी भी कमी की कोई गुंजाइश नहीं है। राजौरी में हाल ही में 31 घंटे चली मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा का एक शीर्ष कमांडर और उसका सहयोगी मारा गया था, जबकि सेना के दो कैप्टन सहित पांच लोग शहीद हुए थे। यह आतंकी हमला जम्मू-कश्मीर में जटिल स्थिति की ओर इशारा करता है।
आधिकारिक आँकड़ों में कहा गया है कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आतंकवादी हमलों में पुलिस और सुरक्षा बलों के बीच हताहतों की संख्या में वास्तव में 13 प्रतिशत की कमी देखी गयी है। लेकिन यह भी सच है कि अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के बाद भी विभिन्न आतंकी हमलों में देश के 29 सुरक्षाकर्मियों ने अपनी शहादत दे दी और 32 अन्य घायल हो चुके हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुच्छेद-370 के निरस्त होने से पहले लगभग चार साल की अवधि की तुलना में केवल एक हथियार छीनने के अलावा 19 पथराव की, 16 हड़ताल की घटनाएँ और कई बंद के आह्वान हुए हैं; जिनमें क्रमश: 80 प्रतिशत, 62 प्रतिशत और 42 प्रतिशत की गिरावट आयी है। फिर भी आतंकवादियों की समर्थन प्रणाली को ख़त्म करने के लिए जम्मू संभाग में ‘360 डिग्री सुरक्षा तंत्र’ को मज़बूत करने की सख़्त ज़रूरत है।