यह बेहद दयनीय स्थिति है कि एक तरफ बफर स्टॉक में 50 फीसद प्याज सड़ गया है, दूसरी तरफ प्याज के कीमतें लगातार बढक़र उपभोक्ताओं के आँसू निकलवा रही हैं। प्याज के बफर स्टॉक में सडऩे पर तो कोई कुछ नहीं बोल रहा; लेकिन केन्द्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री राम विलास पासवान इसको प्राकृतिक प्रकोप कह रहे हैं। बाज़ार में प्याज की आसमान छूती कीमतों की वजह जानने के लिए तहलका में स्वतंत्र लेखक ने सबसे अधिक प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र के अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य महासचिव अजित नवले से बात की।
बातचीत में अजीत नवले ने बताया कि हम पहले से यही बात रखते आ रहे हैं कि प्याज का मामला जो बार-बार आ रहा है। शहरों में ऑफ सीजन में इसकी कीमत बढ़ जाती है। किसान को फिर भी कुछ नहीं मिलता। प्याज का सवाल उत्पादन में कमी का कोई सवाल नहीं है। हमारे देश में जितनी प्याज की ज़रूरत है, हमारे किसान उतना प्याज उगाते हैं। महाराष्ट्र में तीन मौसम में प्याज आती है; जिस कारण बाज़ार में नियमित आपूर्ति करना सम्भव है। लेकिन हम यही बात बार-बार कह रहे हैं कि ये उत्पादन में कमी का मामला नहीं है, बल्कि आपूर्ति-तंत्र में जो धोखाधड़ी का सवाल है। इस आपूर्ति तंत्र में जब तक सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी, यह ऐसे ही चलता रहेगा। इससे किसानों को उसकी मेहनत का अचित दाम नहीं मिलेगा और दूसरी तरफ उपभोक्ताओं की जेब ढीली होती रहेगी। इसमें बिचौलिए मालामाल होते रहेंगे।
महाराष्ट्र में तीन चार •िाले में •यादा प्याज का उत्पादन होता है। उसमें नासिक, नगर और पुणे का कुछ भाग है। जहाँ देश के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत प्याज महाराष्ट्र में उत्पादन होता है। हमारे जितने भी •िाले हैं, उसमें से महज ढाई •िाले में इतनी बड़ी तादाद में प्याज बनती है। हमें यह मालूम है कि जब प्याज का उत्पादन होता है, तो उस समय किसान एक साथ उसको बाज़ार में लेकर आता है। हमारे यहाँ के किसान बहुत ही छोटे भूमिखण्ड वाले किसान हैं। मान लीजिए किसी किसान के पास तीन या चार एक ज़मीन है, तो वह किसान पूरे चार एकड़ में प्याज नहीं लगाता है। वह 15-20 गुट्ठा (गट्ठा) या •यादा-से-•यादा आधे एकड़ में प्याज बोता है। इन छोटे किसानों से यह उम्मीद की जाए कि अपने उत्पादन के लिए खुद बफर स्टॉक बनाये। यह असम्भव है। जब प्याज की फसल पकती है, तो वह उसे सीधे मण्डी में लेकर आता है। नहीं तो उसकी प्याज या तो बारिश के कारण या ओले के कारण खराब हो जाएगी। मण्डी में व्यापारी या बड़े-बड़े स्टॉक करने वाले लोग या उस समय न सिर्फ महाराष्ट्र में उस समय प्याज पूरे देश भर में आपूर्ति की जाती है। वहाँ का स्थानीय व्यापारी प्याज को खरीदकर आपूर्ति करने का काम करते हैं। वहाँ से पूरे देश के बड़े-बड़े बफर स्टॉक करने वाले व्यापारी प्याज खरीदकर इसका स्टॉक करते हैं। महाराष्ट्र में बहुत बड़े-बड़े स्टॉक आपको अधिक नहीं मिलेंगे; थोड़े-बहुत हैं। लेकिन पूरे भारत में इसकी आपूर्ति की जाती है। जहाँ इसका बफर स्टॉक किया जाता है। सीजन के समय ये लोग बहुत कम कीमत पर किसानों से प्याज खरीदते हैं। उसका स्टॉक करते हैं और जैसे ही अब किसानों के पास प्याज नहीं रहता है, तो थोड़ी कमी होती है। ये लोग नियोजित कमी दिखाकर प्याज को स्टॉक से बाज़ार में लाते हैं और मनमानी कीमत उपभोक्ताओं से वसूलते हैं और मुनाफाखोरी कर करोड़ों रुपये कमाते हैं। यह दोनों तरफ लूट मचाते हैं। एक तरफ किसान को लूटते हैं और दूसरी तरफ ग्राहकों को।
प्याज बहुत •यादा सड़ जाता है; यह मैं नहीं मानता। बड़े-बड़े व्यापारी जो बफर स्टॉक रखते हैं, वे इसका हिसाब लगाते हैं। मान लीजिए आप किसानों से चार या पाँच रुपये के हिसाब से खरीदी हुई प्याज की कीमत अगर सौ रुपये मिल जाती है, तो अगर कुछ सड़ती भी है या कुछ बर्बाद भी होती है, फिर भी व्यापारी फायदे में ही रहता है। स्टॉक होल्डर वैज्ञानिक तौर-तरीके के हिसाब से कितना प्याज सड़ गयी है, उस हिसाब से ही व्यापारी बाज़ार में प्याज को लाते हैं। उनकी नीति है कि किस सीजन में किस कीमत में बाज़ार में प्याज लानी है? उससे कम कीमत पर वे बाज़ार में नहीं लाएँगे। वे लोग अस्सी रुपये से सौ रुपये तक बनाये रखेंगे। इसके लिए उनकी आपसी समझ भी है। यह एक नियोजित मामला है। देश को जितनी प्याज की ज़रूरत है, किसान उतना उत्पादन करता है; लेकिन आपूर्ति में घपला है।
किसान सभा इसके लिए बार-बार माँग करती है कि इसके लिए उनको कानून की धमकी देकर या उनको दण्डित करके यह मसला बिलकुल हल होने वाला नहीं है। हम यह कह रहे हैं कि सरकार को वितरण प्रणाली में पुख्ता हस्तक्षेप करना चाहिए। कुछ इस प्रकार की यंत्रणा सरकार को करना चाहिए, जिस प्रकार की बात निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में कही। लेकिन सिर्फ भाषण किया उसमें कुछ हुआ नहीं। पिछली बार स्वर्गीय जेटली जी ने भाषण किया। कुछ हुआ नहीं। कृषि मंत्री हमारे देश में हैं, ऐसा हमारे किसानों को महसूस ही नहीं होता है। किसानों से जाकर अगर पूछेंगे कि कौन है आपका केन्द्रीय कृषि मंत्री? तो उन्हें यह तक नहीं मालूम होता है। सिर्फ वे हमारे प्रधानमंत्री जी का नाम ही बता पाएँगे। निर्मला सीतारमण ने भाषण किया था कि हरेक प्याज उत्पादक गाँव में आप अगर सरकारी गोदाम खड़ा करेंगे। सरकारी अनुदान के चलते आप किसानों को ज़मीन भी देंगे और भण्डारण की भी व्यवस्था करेंगे। अगर वहाँ किसान अपने उत्पादन को भण्डारण कर पाता है, तो यह एक तरीके से किसानों को राहत मिलेगी। जब ऑफ सीजन रहेगी, तो किसानों को दो पैसे •यादा मिलेंगे। फिर सरकार एक सीमा तय कर पाएगी कि ठीक है, ऑफ सीजन है; लेकिन आप 30 या 40 रुपये से ऊपर प्याज नहीं बेचेंगे। जो किसान और ग्राहक दोनों के हित में होगा। यह हस्तक्षेप सरकार की तरफ से होना चाहिए। तब आज की तरह की स्थिति पैदा नहीं होगी।
सरकार की तरफ से कीमत निर्धारण नहीं होना चाहिए। हम किसान सभा कह रही है कि सरकार अपर लिमिट तय न करे। प्याज कोई जीवन आवश्यक चीज़ नहीं है। जो प्याज नहीं खायेगा वह जीवित ही नहीं रहेगा। किसानों पर अत्याचार करेंगे। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उस पर और निर्बल लादेंगे। आप कहेंगे कि प्याज की कीमत सरकार तय करेगी, सब्ज़ी की कीमत सरकार तय करेगी, सुगर की कीमत सरकार तय करेगी और जो किसानों को सहायता करना है, नहीं करेगी। इस बात का किसान सभा समर्थन नहीं करती है। हम कतई यह नहीं कहेंगे कि प्याज की कीमत पर सरकार हस्तक्षेप करे। हम कह रहे हैं कि जो बिचौलिये, मुनाफाखोर धोखाधड़ी कर रहे हैं। उस व्यवस्था को दुरुस्त कीजिए। सरकार को खुद खरीद के लिए आगे आना चाहिए। जैसे कि पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश में धान या गेहूँ की खरीद होती है। उस तरह से सहायता कीमत सरकार दे। फिर जब बाज़ार में सॉटेज हो तो वह स्टॉक प्याज को बाज़ार में ला सकती है। दूसरी तरफ किसान अपने खेद में ही स्टोर कर पाये। इसकी योजना बनाकर कुछ अनुदान देकर किसानों को सक्षम बनाये, जिससे वह अपने प्याज को स्टोर कर पाये।
हम किसान सभा सबसे पहले किसानों के लिए माँगेंगे कि प्याज के उत्पादन मूल्य को सबसे पहले मानिए। किसानों को स्वामिनाथन आयोग की तर्ज पर आप डेढ़ गुना दाम तय कीजिए। प्याज उत्पादकों को इतना मिलेगा, जो हमारा हक भी है। अगर सरकार प्याज को जीवन आवश्यक वस्तु के दायरे में ला चुकी है। तब उनकी •िाम्मेदारी बनती है कि वे प्याज की न्यूनतम सहायता राशि दे। लेकिन नहीं दे रही है। प्याज की कोई सहायता राशि सरकार ने घोषित नहीं किया है। हम कह रहे हैं कि पहला यह सुनिश्चित कीजिए कि किसानों को इससे नीचे कीमत नहीं मिलेगा। यह रहा न्यूनतम सहायता और अब सरकार अधिकतम कीमत के लिए भी आये और ग्राहकों को राहत देने के लिए खुद स्टोर करे। खुद खरीदें। जैसे कुछ हद तक दिल्ली सरकार कर रही है। केरल सरकार कर रही है। कुछेक स्टोरेज व्यवस्था सरकार बनाये और दूसरी ओर नफाखोरी को ध्वस्त करने के लिए कुछ नियम कायदे भी बनाये; जिसके चलते इस मुनाफाखोरी को रोका जाए।
जहाँ तक महाराष्ट्र सरकार का सवाल है अभी नयी सरकार बनी है, पता नहीं वह क्या करेगी? इससे पहले भाजपा की फणनवीस सरकार ने किसानों के साथ बहुत •यादती की है। जब बहुत दाम गिरे बाज़ार में बहुत •यादा प्याज एक साथ आयी, तो सरकार ने किसानों को रोने के लिए मजबूर किया। उसने किसानों की कुछ मदद नहीं किया और सिर्फ धोषणा की की हम किसानों को एक रुपये प्रति किलो देंगे। वास्तव में एक रुपये प्रति किलो भी सरकार ने नहीं दिया। उसमें बहुत सारी शर्तंे लगायी और किसानों को छोड़ दिया और कोई मदद नहीं किया। जब दाम गिरती है, तो सरकार खड़ी नहीं रहती है। जब दाम बढ़े तो निर्यात पर पाबंदी लगा दी सरकार ने। पहले पूरे निर्यात मूल्य पर लगायी, फिर पूरे निर्यात पर लगायी। इस तरह किसानों को कम कीमत पर बेचने के लिए बाध्य किया। महाराष्ट्र सरकार ने दोनों तरफ से किसानों के साथ धोखाधड़ी की। महाराष्ट्र में 100 रुपये प्याज की स्थिति कभी नहीं बनती है। मुम्बई या कुछ मेट्रोपोलिटन सिटी में 60-70 रुपये तक प्याज की कीमत बढ़ जाती है। महाराष्ट्र की सरकार उस समय ग्राहकों के लिए भी कुछ नहीं करती। न तो व्यापारियों को कम कीमत पर बेचने के लिए कहती है, न ही स्टॉक के निर्धारण के लिए कुछ करती है। किसानों के हित के िखलाफ करती है। यह हमारे महाराष्ट्र का अनुभव है।