कोरोना वायरस की वजह से भारतीय अर्थ-व्यवस्था धीरे-धीरे महामंदी की ओर बढ़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत के विकास अनुमान को कम करके 5.2 फीसदी कर दिया है, जो पहले 5.7 फीसदी था।
एक और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी कोरोना वायरस के अर्थ-व्यवस्था पर पडऩे वाले नकारात्मक असर को देखते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत की आॢथक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 5.3 फीसदी कर दिया है, जो पहले 6.6 फीसदी था। मूडीज ने मार्च 2020 में समाप्त हो रहे वित्त वर्ष के लिए भी विकास दर के अनुमान को 5.8 फीसदी से घटाकर 4.9 फीसदी कर दिया है। एक अन्य रेटिंग एजेंसी फिच ने भी वित्त वर्ष 2019-20 के लिए भारत के विकास दर के 4.6 फीसदी पर रहने की सम्भावना जतायी है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए विकास दर के 5.6 फीसदी और 2021-22 के लिए 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। देशी ब्रोकरेज कम्पनी यूबीएस सिक्योरिटीज ने भी देशव्यापी लॉकडाउन और महामारी की व्यापकता को देखते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत के विकास दर को 5.1 फीसदी से घटाकर 4 फीसदी कर दिया है, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 के लिये भारत के विकास दर को 4.8 फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान जताया है।
अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव
कोरोना वायरस की वजह से भारत की घरेलू माँग बुरी तरह से प्रभावित हुई है। आपूर्ति शृंखला बाधित है। सेवा, एमएसएमई और रियल एस्टेट क्षेत्र की हालात खस्ताहाल हैं। अंतर्राजीय और अंतर्राष्ट्रीय कारोबार ठप पड़ चुका है। सेवा क्षेत्र से जुड़े नाई, ब्यूटी पार्लर, पेशेवर, किराना एवं जेनरल स्टोर्स, मेडिकल स्टोर्स, रिक्शा, ऑटो रिक्शा, कैब ड्राइवर, बढ़ई, लोहार, बिजली मिस्त्री, होटल व रेस्तरां, सिक्योरिटी गाड्र्स आदि बेरोज़गार हो गये हैं। एक अनुमान के मुताबिक, लगभग 400 मिलियन लोगों को घर बैठना पड़ा है. देश की करीब 75 मिलियन सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमी (एमएसएमई) लगभग 180 मिलियन लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराते हैं, लेकिन आज की तारीख में उनके पास काम नहीं है। भारत में रियल एस्टेट सबसे अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है, लेकिन निर्माण गतिविधियों के ठप्प पडऩे के कारण निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों के लिए रोज़ी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, भारत में खुदरा क्षेत्र में लगभग 60 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ है, जिनमें से तकरीबन 40 फीसदी यानी 24 लाख लोगों की नौकरी आगामी महीनों में जा सकती है। देश भर के सभी मॉलस, सुपर मार्केट्स और अन्य खुदरा दुकानों को 15 अप्रैल तक के लिए बन्द कर दिया गया है। आवश्यक वस्तुओं को छोडक़र अन्य सभी प्रकार के उत्पादों का उत्पादन बन्द है। सूचना और प्रोद्योगिकी समेत दूसरे क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर कामगारों की नौकरी जाने का खतरा बना हुआ है। हालाँकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कम्पनियों से अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं काटने और उनकी छँटनी नहीं करने के लिए कहा है। लेकिन भारी नुकसान की वजह से कारोबारी शायद ही प्रधानमंत्री की बात को अमल में लायें; क्योंकि अनिश्चितता के माहौल में कामगारों को नौकरी से धीरे-धीरे निकाला जाने लगा है। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, आगामी 6 महीनों में खुदरा क्षेत्र की कमाई में 90 फीसदी तक की कमी आ सकती है। भारत में 5 लाख से भी ज़्यादा स्टोरस, जैसे- वी-मार्ट, शॉपर्स स्टॉप, फ्यूचर ग्रुप, एवेन्यू सुपरमार्ट्स आदि हैं, जो कोरोना वायरस के कारण बन्द हैं। खुदरा क्षेत्र के अलावा एमएसएमई क्षेत्र, कोर्पोरेट्स, पेशवरों आदि की आय में भी भारी गिरावट आने का अंदेशा है।
राहत देने की पहल
कोरोना वायरस से निपटने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 26 मार्च को 1.7 लाख करोड़ रुपये प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत देने की घोषणा की है। सरकार की कोशिश है कि 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान कोई भूख से नहीं मरे। इस योजना के तहत डॉक्टर, पारामेडिकल कर्मचारियों आदि का 50 लाख का बीमा किया जाएगा; क्योंकि यह वर्ग अपनी जान को जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचा रहा है। लगभग 80 करोड़ गरीब लोगों को अगले तीन महीनों तक 5 किलो गेहूँ या चावल और दाल मुफ्त देने का प्रस्ताव है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 2,000 रुपये की िकस्त 8.7 करोड़ किसानों के खाते में अप्रैल के पहले पखवाड़े में अंतरित की जायेगी. मनरेगा के तहत दी जा रही मज़दूरी को 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये प्रतिदिन किया गया है, ताकि मज़दूरों को आॢथक परेशानी का कम सामना करना पड़े। बुजुर्ग, गरीब विधवा और गरीब दिव्यांग को आगामी 3 महीनों तक 1,000 रुपये दिये जाएँगे। उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को अगले तीन महीनों तक मुफ्त में गैस सिलेंडर देने का प्रस्ताव है। 20 करोड़ महिला जनधन खाताधारकों के खातों में अगले तीन महीनों तक हर महीने 500 रुपये जमा किये जाएँगे, ताकि वे मुश्किल वक्त का सामना कर सकें। कर्मचारी अपने भविष्य निधि खाते से 75 फीसदी या 3 महीनों के वेतन के बराबर पैसों की निकासी कर सकेंगे, जिसे उन्हें वापिस नहीं जमा करना होगा। इससे एक बड़े वर्ग को आॢथक मदद मिलेगी। महिलाओं द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह को अब 20 लाख रुपये तक ऋण बिना संपाॢश्वक प्रतिभूति के रूप में दिया जायेगा, जिससे स्व-रोज़गार का दायरा बढ़ेगा। 15,000 रुपये तक मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों या कामगारों का भविष्य निधि अंशदान अगले तीन महीनों तक सरकार देगी। निर्माण क्षेत्र से जुड़े 3.5 करोड़ पंजीकृत कामगारों को आॢथक मदद देने के लिए 31,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसके पहले 24 मार्च को भी सरकार ने एटीएम शुल्क एवं खातों के न्यूनतम बैलेंस को खत्म कर और आयकर व जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की अवधि बढ़ाकर लोगों के घाव पर कुछ मरहम लगाया था।
मंदी से उबारने में बैंकों की भूमिका
कोरोना वायरस के साथ लड़ाई में बैंक अहम् भूमिका निभा रहे हैं। देशव्यापी लॉकडाउन होने के बावजूद बैंककर्मी आम लोगों की वित्तीय जरुरतों को पूरा करने के लिए बैंक जा रहे हैं। जबकि उनके संक्रमित होने का खतरा बहुत ही ज़्यादा है; क्योंकि करेंसी या पासबुक में कोरोना वायरस चिपके हुए रह सकते हैं। फिर भी कुछ राज्यों, जैसे- बिहार और उत्तर प्रदेश में पहले की तरह बैंकिंग कामकाज किये जा रहे हैं। बैंकिंग अवधि में बैंककर्मियों को कोई राहत नहीं दी गयी है। भारतीय स्टेट बैंक समेत कई बैंक शाखा के 5 किलोमीटर के दायरे में घर-घर जाकर बैंकिंग सेवा उपलब्ध करा रहे हैं। कोरोना वायरस से जंग जीतने के बाद अर्थ-व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की मुख्य ज़िम्मेदारी बैंकों की होगी। कोरोना वायरस के कारण भारतीय अर्थ-व्यवस्था को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुँचा है। आॢथक गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ चुकी है।
कारोबार तथा लोगों की मुक्त आवाजाही पर निर्भर क्षेत्र जैसे, यात्री विमानन, नौवहन, होटल, रेस्तरां आदि बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता के कारण वाहन व दवा उद्योग, मोबाइल, इलेक्ट्रोनिक्स व कम्प्यूटर बनाने वाली कम्पनियाँ भी प्रभावित हुई हैं। इन सभी क्षेत्रों के पुनर्वास के लिए कारोबारियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने की ज़रूरत है। अधिकांश कामगारों और कारोबारियों का कामकाज बन्द होने या रोज़गार छीन जाने के कारण वे आॢथक रूप से कमज़ोर हो गये हैं। ऐसे लोगों के लिए फिलवक्त बैंकों से लिये गये ऋण की िकस्त एवं ब्याज देना संभव नहीं है। इसलिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने 27 मार्च 2020 को मौद्रिक समीक्षा के दौरान सभी मियादी ऋणों पर िकस्त एवं ब्याज चुकाने को 3 महीनों के लिए टाल दिया है। अर्थात् वैसे कर्ज़दार जो ऋण की िकस्त और ब्याज देने में असमर्थ हैं, वे 3 महीनों के बाद िकस्त और ब्याज दे सकते हैं। इसमें पर्सनल लोन भी शामिल है। सनद रहे, 3 महीनों तक िकस्त और ब्याज नहीं चुकाने पर भी ऋण खाते गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) नहीं होंगे। इसी तरह वॄकग कैपिटल के ऋण की ब्याज अदायगी में भी 3 महीनों की राहत दी गयी है। गौरतलब है कि इस तरह के ऋण मुख्य तौर पर कारोबारी अपने कारोबार को चलाने के लिए लेते हैं। रिजर्व बैंक द्वारा घोषित की गयी राहत का फायदा क्रेडिट कार्ड ग्राहकों को भी मिलेगा। क्रेडिट कार्ड ग्राहक भी खर्च राशि का भुगतान 3 महीनों के बाद कर सकेंगे। माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक की इस व्यवस्था से आम आदमी, कारोबारी और बैंक तीनों को सीधे तौर पर फायदा मिलेगा। अगर रिजर्व बैंक यह व्यवस्था नहीं करता, तो बड़ी संख्या में ऋण खाते एनपीए में तब्दील हो जाते, जिससे बैंक और अर्थ-व्यवस्था दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता साथ ही साथ बैंक के कर्ज़दार चूककर्ता बन जाते और बकाया की वसूली के लिए उनके खिलाफ बैंक को कानूनी कार्रवाई करनी पड़ती। ज्ञात हो कि रिजर्व बैंक ने इन प्रावधानों को आवश्यक रूप से लागू नहीं किया है। इससे मानना या नहीं मानना बैंकों पर निर्भर करेगा। वैसे, अनेक बैंकों ने इन प्रावधानों को अमलीजामा पहना दिया है।
बैंक आमतौर पर बचत और मियादी जमा के माध्यम से पूँजी इकट्ठी करते हैं, लेकिन मौज़ूदा समय में बैंकों को और भी ज़्यादा सस्ती पूँजी की आवश्यकता है। कारोबारियों को सस्ती दर पर ऋण मिल सके के लिए केंद्रीय बैंक ने रेपो दर को 75 बेसिस पॉइंट कम किया है साथ ही साथ संवाधिक तरलता अनुपात यानी सीआरआर को भी 4 फीसदी से घटाकर 3 फीसदी कर दिया है. इससे बैंकिंग प्रणाली में 3.74 लाख करोड़ रुपये आने का अनुमान है। यह पूँजी बैंकों को सस्ती दर पर मिल रही है। इसलिए, बैंक मियादी जमा (फिक्स डिपॉजिट) के ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं; क्योंकि अभी मियादी जमा पर ज़्यादा ब्याज देने से बैंकों को नुकसान हो रहा है। बैंक को जमा और ऋण के बीच के स्प्रेड से मुनाफा होता है। ऋण पर मिलने वाले ब्याज से बैंकों की आय होती है, जबकि जमा पर ग्राहकों को ब्याज देने से खर्च। इस प्रकार ऋण पर जमा के मुकाबले ज़्यादा ब्याज दर होने से ही बैंक को मुनाफा हो सकता है। चूँकि बैंक ऋण के ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं, इसलिए नफा और नुकसान के बीच संतुलन बनाये रखने के लिए उन्हें जमा ब्याज दरों में कटौती करनी पड़ेगी। सुकन्या जमा योजना के तहत ब्याज दर का निर्धारण केंद्र सरकार करती है। अभी सरकार राजस्व की कमी से जूझ रही है, इसलिए उसे कल्याणकारी जमा योजनाओं में ज़्यादा ब्याज देना सम्भव नहीं है।
फिलहाल, बैंकों के पास सस्ती पूँजी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, इसलिए वे आसानी से आमजन और कारोबारियों को सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। भारतीय स्टेट बैंक समेत कई बैंकों ने विविध ऋणों के ब्याज दरों में कटौती की है। ऋण सस्ती दर पर मिलने से क्रेडिट ग्रोथ और आॢथक गतिविधियों, दोनों में तेज़ी आने का अनुमान है। इसके अलावा कोरोना वायरस से प्रभावित कम्पनियों के नये मामलों को ऋण शोधन एवं दिवालिया संहिता के तहत राष्ट्रीय कम्पनी विधि न्यायाधिकरण में नहीं लाना होगा, ताकि स्थिति के सामान्य होने पर कम्पनियाँ अपने कारोबार को जारी रख सकें। ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए बैंकों द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ज़रूरतमंद लोगों को अधिक-से-अधिक संख्या में ऋण देना होगा; क्योंकि कोरोना वायरस के कारण लाखों लोगों को अपना रोज़गार गँवाना पड़ा है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत महिलाओं द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह को 20 लाख रुपये का ऋण बैंकों द्वारा बड़े पैमाने पर वितरित करनी होगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आत्मनिर्भर बनकर दूसरों को भी रोज़गार मुहैया करा सकें। बैंक दूसरी योजनाओं के माध्यम से भी लोगों को वित्तीय सहायता दे सकते हैं। आॢथक गतिविधियों में तेज़ी लाने के लिए सभी के द्वारा आय अर्जित करना ज़रूरी है। जब लोगों की आय बढ़ेगी तभी माँग और खपत में तेज़ी आयेगी, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी होगी और अर्थतंत्र का पहिया सुचारू रूप से घूमता रहेगा।
निष्कर्र्र्ष
पहले से ही मंदी के दौर से गुज़र रही भारतीय अर्थ-व्यवस्था की कमर कोरोना वायरस ने पूरी तरह से तोड़ दी है। आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ चुकी हैं। लाखों की संख्या में लोगों का रोज़गार जाने की आशंका है. असंगठित क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो चुका है। मज़दूरों एवं कामगारों के लिए भूखों मरने वाली स्थिति है। ऐसे में सरकार द्वारा 1.70 लाख करोड़ रुपये की मदद से कमज़ोर तबके के लोगों की राहत मिलेगी। हालाँकि अर्थ-व्यवस्था को फिर से गुलाबी बनाने के लिए सरकार द्वारा कारोबारियों को भी राहत पैकेज देना होगा। इसके आलावा बड़ी संख्या में रोज़गार सृजित करने और आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लाने के लिए बैंकों को सस्ती दर पर आमजन और कारोबारियों को कर्ज़ भी उपलब्ध कराना होगा।