नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित और विश्वभर में अमेरिका में नागारिक अधिकारों के संघर्ष को एक पहचान दिलाने वाले डॉ. मार्टिन लूथर ङ्क्षकग जूनियर ने 1965 में सेलमा में दिये अपने भाषण में कहा था- ‘जब कोई इंसान सही के हक में आवाज़ उठाने, इंसाफ के लिए खड़ा होने और सच का साथ देने से इन्कार करे; समझो वह मर चुका है।’ लगता है कि उनके ये विचार इस दुनिया के इंसानों की बार-बार परीक्षा लेते हैं।
ताज़ा मामला उन्हीं के देश अमेरिका का है और अमेरिका के अखबारों ने मार्टिन लूथर ङ्क्षकग के इस विचार को पूरे पेज के एक ब्लैक एंड व्हाइट विज्ञापन में प्रकाशित किया। इस विज्ञापन की पृष्ठभूमि यह है कि अमेरिका के मिनियापोलिस में 25 मई को 46 वर्षीय जॉर्ज फ्लॉयड नामक एक अश्वेत की बीच सडक़ पर दिनदिहाड़े एक श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा की गयी क्रूर व अमानवीय कार्रवाई से मौत हो गयी। जॉर्ज फ्लायड का कथित अपराध यही बताया जा रहा है कि उसने सिगरेट का एक पैकेट खरीदने के लिए नकली डॉलर दुकानदार को दिया और उस दुकानदार ने पुलिस को बुला लिया। जॉर्ज की ऐसी मौत के बाद अमेरिका ही नहीं, दुनिया के कई मुल्कों में विरोध-प्रदर्शन हुए। प्रसिद्ध रैपर जे-जेड ने पुलिस हिंसा में मारे गये अश्वेतों के परिजनों के साथ मिलकर जॉर्ज फ्लायड के सम्मान में अमेरिकी अखबारों में यह विज्ञापन प्रकाशित करवाया था। दुनिया की महाशक्ति अमेरिका के वर्तमान हालात चिन्ताजनक हैं। वहाँ कोरोना संक्रमण से मरने वालों का आँकड़ा एक लाख को पार कर गया है, जो विश्व में सबसे अधिक है।
एक तरफ कोरोना संक्रमितों का आँकड़ा रोज़ बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर जॉर्ज फ्लायड की हत्या के बाद श्वेत-अश्वेत यानी रंगभेद वाले मसले ने एक बार फिर वहाँ तनाव पैदा करने के साथ-साथ लोगों को इस मसले पर एकजुट होने व सरकार पर कई तरह के दबाव डालने वाला माहौल बनाने का काम किया है। अमेरिका चाहे विश्व का सबसे पुराना लोकतांत्रिक मुल्क है; मगर वहाँ रंगभेद वाला मसला बार-बार सिर उठाता रहता है और सबसे अधिक शक्तिशाली व अर्थ-व्यवस्था में नम्बर एक पर गौरवान्वित होने वाले इस मुल्क को विश्वभर में शॄमदा करता रहता है। अश्वेत अमेरिकियों के साथ श्वेत अमेरिकी पुलिस अधिकारियों, कानून का अमल कराने वाले अधिकारियों की बर्बरता बार-बार सुॢखयाँ बनती हैं; मगर अपराध करने वालों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। लेकिन 25 मई को हुई बर्बर घटना के विरोध में तमाम अमेरिकी राज्यों में लोग चाहे वे अश्वेत हों या श्वेत; सडक़ों पर नज़र आये। यह विरोध-प्रदर्शन अमेरिका के अलावा लंदन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, ब्राजील, पेरिस में भी देखने को मिला।
अमेरिका में इस विरोध-प्रदर्शन ने हिंसक रूप भी ले लिया; जिसके चलते 12 से अधिक प्रमुख शहरों में कफ्र्यू लगाना पड़ा। यही नहीं, नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बंकर में ले जाया गया। 131 साल बाद यह पहला मौका था, जब व्हाइट हाउस की बत्ती बन्द की गयी। बेशक व्हाइट हाउस में बना बंकर गुप्त और सुरक्षित है; लेकिन राष्ट्रपति का वहाँ शरण लेना ही इस बात को दर्शाता है कि उस समय वहाँ स्थिति कैसी होगी? अमेरिका में नस्ली हिंसा और सामाजिक अन्याय के खिलाफ ज़बरदस्त प्रदर्शन पर काबू पाने के लिए वहाँ के राष्ट्रपति ने सडक़ों पर सेना की तैनाती की धमकी दी थी; लेकिन अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए सेना की तैनाती का विरोध किया। रक्षा मंत्री एस्पर ने कहा कि कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए सेना की तैनाती अंतिम विकल्प के रूप में की जानी चाहिए। यही नहीं, अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने राष्ट्रपति डोनाल्ड को मुल्क को बाँटने वाला अमेरिका का पहला राष्ट्रपति करार दिया। उन्होंने कहा कि ट्रंप सेना और नागारिकों के बीच गलत ढंग से संघर्ष पैदा कर रहे हैं। उन्होंने यह कहा कि डोनाल्ड ट्रंप मेरे जीवन में पहले राष्ट्रपति हैं, जो अमेरिकी लोगों को एकजुट करने की कोशिश नहीं करते। यहाँ तक कि कोशिश का दिखावा भी नहीं करते। वह बाँटने की कोशिश करते हैं।
यही नहीं, ह्यूस्टन पुलिस प्रमुख ने तो एक टीवी साक्षात्कार में राष्ट्रपति ट्रंप से साफ कहा कि मैं अमेरिका के राष्ट्रपति को पूरे देश की पुलिस की तरफ से कह देना चाहता हूँ कि अगर आपके पास कुछ ठोस कहने को नहीं है, तो अपना मुँह बन्द रखें। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाचेलेट ने पुलिस के हाथों हुई इस मौत की आलोचना की है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ऐतेनियो गुतरेस ने कहा कि नस्लवाद को अवश्य खारिज करना चाहिए। उन्होंने हर तबके के नेताओं से सामाजिक एकजुटता पर ज़ोर देने की अपील की, ताकि हर समूह खुद को महत्त्वपूर्ण समझे।
पोप फ्रांसिस का कहना है कि उन्होंने जॉर्ज फ्लायड की हत्या को अमेरिका में ‘अशान्तिपूर्ण सामाजिक असंतोष’ को बड़ी चिन्ता के साथ देखा है। पोप ने अपने साप्ताहिक सम्बोधन में कहा कि हम जातिवाद को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं कर सकते या आँखें बन्द नहीं कर सकते। हमें हर मानव के जीवन की रक्षा भी करनी है। खेल जगत के दिग्गज हों या संगीत की दुनिया या दिग्गज, या टेक कम्पनियाँ; हर कोई इस आन्दोलन के साथ किसी-न-किसी रूप में एकजुटता दिखा रहा है। 6 जून को पॉप स्टार मैडोना बैसाखी के सहारे लंदन में चल रहे प्रदर्शन के प्रति समर्थन जताने पहुँची।
गूगल के मुख्य कार्यकारी निदेशक सुन्दर पिचई ने जॉर्ज फ्लायड की मौत पर अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के साथ एकजुटता दिखाते हुए कहा है कि गूगल नस्लीय समानता का समर्थन करता है। यही नहीं, गूगल नस्ली भेदभाव से निपटने के लिए 3.7 करोड़ डॉलर लगभग 260 करोड़ रुपये की आॢथक मदद देगा। सुन्दर पिचई ने सभी कर्मचारियों को भेजे ईमेल में नस्ली हिंसा में जान गँवाने वाले लोगों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए आठ मिनट 46 सेकेंड का मौन रखने की अपील भी की थी। पिचई ने लिखा था- ‘यह नस्ली हिंसा के खिलाफ संाकेतिक विरोध है। जॉर्ज फ्लॅायड मरने से पहले इतनी ही देर तक साँस लेने के लिए तड़पता रहा। मौन रखना फ्लॉयड और अन्य लोगों के साथ हुए अन्याय की याद दिलाता रहेगा।’
अमेरिका में अश्वेतों के साथ अन्याय के बारे में वहाँ के अखबार इन दिनों दुनिया भर के पास जानकारी पहुँचा रहे हैं और अपनी सरकार पर भी सवाल उठा रहे हैं। द इकोनॉमिस्ट अखबार में बताया गया है कि अमेरिका में हर साल पुलिस की गोली से लगभग एक हज़ार लोगों की जान चली जाती है। मरने वालों की संख्या में अश्वेत अधिक होते हैं। यही नहीं अश्वेतों को सज़ा मिलने की सम्भावना भी अधिक रहती है। एक ही जुर्म के लिए उन्हें गोरों की तुलना में सज़ा भी अधिक मिलती है। जेलों में एक-तिहाई कैदी अश्वेत हैं। स्कूलों, स्वास्थ्य, रोज़गार में भी नस्ली भेदभाव नज़र आता है। कथित रंगभेद वाले स्कूलों में 15 फीसदी बच्चे अश्वेत हैं, तो श्वेत बच्चे एक फीसदी से भी कम हैं। अमेरिका में अश्वेत नवजातों की मृत्यु-दर श्वेत नवजातों की मृत्यु-दर की तुलना में दोगुनी है।
इसी तरह गर्भावस्था या प्रसव के दौरान श्वेत महिलाओं की तुलना में अश्वेत महिलाओं की मुत्यु-दर ढाई गुना अधिक है।
अमेरिका में अश्वेत बच्चों की औसत आयु भी भारत और बांग्लादेश में पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में कम है। यही नहीं, वर्तमान कोरोना महामारी के दौरान भी अश्वेतों के साथ जाँच में भेदभाव की खबरें आ रही हैं। इस महामारी से मरने वालों की कुल संख्या में अश्वेतों की तादाद श्वेतों से ज़्यादा है। ज़्यादातर मामलों में अश्वेतों का कोरोना टेस्ट नहीं कराया जा रहा है। कोरोना के कारण जो आॢथक अस्थिरता के हालात पैदा हुए और उससे जिन लोगों की नौकरियाँ चली गयीं, उनमें अश्वेत अधिक हैं। द न्यूयॉर्क टाइम्स ने हाल ही में छापा है कि करीब 10 में से आठ अमेरिकियों ने माना है कि नस्लवाद और भेदभाव बड़ी समस्या है। 2015 के बाद अर्थात् 5 साल में ऐसा मानने वालों की संख्या में 26 फीसदी का इज़ाफा एक सकरात्मक बदलाव कहा जा सकता है। 71 फीसदी श्वेत ऐसा मानते हैं। नस्लवाद और भेदभाव पर अमेरिकी इतिहास की यह सबसे बड़ी सहमति है। 10 में से 6 अमेरिकी यह भी मानते हैं कि पुलिस भी श्वेतों की तुलना में अश्वेतों के साथ अधिक बर्बरता करती है। दरअसल रंगभेद को लेकर अमेरिकी पुलिस अक्सर सवालों के घेरे में रहती है और लोग चाहते हैं कि गलत, अनुचित कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, उन्हें सज़ा दी जाए। मगर हकीकत जानना ज़रूरी है। मैपिंग पुलिस वायलेंस संगठन के अनुसार, अमेरिका में 2013 से 2019 के बीच हत्याओं में शमिल 99 फीसदी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अदालत में मामले पेश नहीं किये गये।
इन मामलों की जाँच में ढील बरती जाती है। अमेरिका में लोग, नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संगठन पुलिस की जवाबदेही तय करने, पुलिस बजट में कटोती करने और पुलिस सुधार पर अधिक ज़ोर दे रहे हैं। जॉर्ज फ्लायॅड को इंसाफ दिलाने की मुहिम में शमिल लोगों, दिग्गज हस्तियों के दबाव के कारण ही उसकी हत्या के मुख्य आरोपी जॉर्ज शॅाविन पर थर्ड डिग्री हत्या वाले केस को दूसरी डिग्री की हत्या वाले केस में बदलना पड़ा। यही नहीं, अन्य तीन पुलिस वालों पर हत्या के लिए उकसाने और उसमें मदद देने के आरोप तय किये गये हैं।
दोषी करार दिये जाने पर चारों पुलिसकॢमयों को अधिकतम 40 साल जेल की सज़ा हो सकती है। आई कांट ब्रीथ यानी मैं साँस नहीं ले पा रहा, ब्लैक लाइव्स मैटर्स विरोध-प्रदर्शन, मुहिम के बीच अमेरिका में पुलिस सुधार की कवायद तेज़ हो गयी है। 8 जून को नैंसी पेलोसी के नेतृत्व में डेमोक्रेट सांसदों ने अमेरिकी कांग्रेस में एक ऐसा बिल पेश किया, जिसमें पुलिस के बल प्रयोग करने के साथ ही बिना वारंट तलाशी लेने या पूछताछ करने पर रोक लगााने का प्रावधान किया गया है। जॉर्ज फ्लॉयड की छ: साल की बेटी ज़ियाना से एक व्यक्ति ने पूछा- ‘तुम्हारे पिता ने क्या किया?’ ज़ियाना का जबाव था- ‘उसके पिता ने दुनिया बदल दी।’