अमृतसर लोकसभा सीट से भाजपा के अरुण जेटली और कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच का मुकाबला वैसे तो कई आरोपों प्रत्यारोपों के बीच लड़ा जा रहा है. लेकिन जिस एक मुद्दे को कांग्रेस की तरफ से सबसे ज्यादा उछाला जा रहा है वह है अरुण जेटली के बाहरी होने का मसला. कांग्रेस जनता को समझा रही है कि जेटली को वोट मत दीजिए. यह आदमी जीत जाएगा तो फुर्र हो जाएगा. आपके बीच अमृतसर में नहीं रहेगा.
अमृतसर सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जेटली के मन में कोई तीन साल पहले से ही कुलबुला रही थी, लेकिन पूर्व क्रिकेटर एवं अमृतसर से तीन बार सांसद नवजोत सिंह सिद्धू के न तो सीट खाली करने की कोई संभावना दिखाई दे रही थी और न ही उनसे सीट झपटने की कोई तरकीब सूझ रही थी. लेकिन पिछले दो सालों में सिद्दू और भाजपा की पंजाब में सहयोगी अकाली दल के बीच हुए संघर्ष खासकर अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल के साले एवं रसूखदार मंत्री विक्रम मजीठिया से उनकी भिड़ंत उनके अमृतसर से राजनीतिक विस्थापन का कारण बनी.
सिद्दू की पत्नी और भाजपा विधायक नवजोत कौर सिद्दू कहती हैं, ‘स्थानीय भाजपा ने अकालियों के साथ मिलकर हमारे खिलाफ षड़यंत्र किया है. ठीक है. हमें टिकट नहीं दिया गया. लेकिन हमसे पार्टी का चुनाव में प्रचार करने की उम्मीद क्यों की जा रही है. हम अमृतसर में चुनाव प्रचार नहीं करेंगे. हमसे कहा गया कि सिद्दू को हटाना गठबंधन की मजबूरी है. तो ठीक है गठबंधन बचाएं आप.’
खैर, सिद्दू का अमृतसर से टिकट कटवाने के बाद जेटली को यहां से जिताना अब अकाली दल के लिए नाक का प्रश्न बन गया है. अमृतसर की नौ विधानसभा सीटों में से चार अकाली दल के पास हंै. अमृतसर पंजाब के माझा क्षेत्र में आता है. यहां अकाली दल का अच्छा खासा प्रभाव है. साथ में अमृतसर में सिखों की जनसंख्या 67 फीसदी के करीब है. ऐसे में अकाली दल को सीट निकालने का भरोसा है.
कुछ समय पहले तक जेटली की अमृतसर से जीत में किसी को कोई बाधा दिखाई नहीं दे रही थी. लेकिन कांग्रेस पार्टी द्वारा सीट से राज्य के अपने कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के उतारने पर मामला कांटे का हो गया है. हालांकि अमरिंदर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक नहीं थे, लेकिन पार्टी हाईकमान के कहने पर वे राजी हुए. एएनआई से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार रॉबिन कहते हैं, ‘पहले ये जेटली के लिए केकवॉक था लेकिन कैप्टन के आने के बाद मुकाबला कड़ा हो गया है.’
खैर, कांग्रेस ने जेटली के खिलाफ बाहरी होने का जो सबसे बड़ा मुद्दा उठाया है उसका जवाब देने की जेटली भरसक कोशिश कर रहे हैं. पंजाबी में चुनावी सभाओं से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के साथ ही जेटली लगातार अमृतसरी जनता को बता रहे हैं कि उनकी पैतृक जड़ें पंजाब से ही निकलती हैं.
जेटली भले ही बाहरी हों लेकिन वे पंजाब और अमृतसर के लिए कितने फायदेमंद हो सकते हैं, शायद यही बताने के लिए अकाली नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल आम जनता को संबोधित करते हुए कहते हैं, ‘जेटली कल की केंद्र सरकार में उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बनने वाले हैं. ऐसा होने पर पंजाब के विकास के लिए फंड की कमी नहीं पडेगी. ऐसे में अमृतसर का खूब विकास होगा.’
राज्य में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री होने के अलावा एक और महत्वपूर्ण कारण है जिस पर कांग्रेस को भरोसा है कि वह अमरिंदर सिंह के पक्ष में जाएगा. अमरिंदर सिंह ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में कांग्रेस पार्टी और संसद सदस्यता से उस समय त्यागपत्र दे दिया था. ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि स्वर्ण मंदिर के इस शहर में अमरिंदर को सिखों का अभूतपूर्व समर्थन जरूर मिलेगा.
रॉबिन कहते हैं, ‘जेटली के साथ एक दिक्कत और है कि वे अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से अकालियों पर आश्रित हैं. इसके अलावा जेटली की छवि एक बेहद सॉफ्ट नेता की है जो अमृतसर की तबीयत से मेल नहीं खाती. यहां की जनता आक्रामक नेताओं को पसंद करती है. जिसके तेवर तीखे हों. इस मामले में भी कैप्टन जेटली पर भारी पड़ते दिख रहे हैं.’
अमृतसर लोकसभा सीट के इतिहास को देखें तो इस सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आरएल भाटिया छह बार जीत कर संसद जा चुके हैं. हालांकि 2004 में जब भाजपा ने इस सीट से नवजोत सिद्दू को उतारा तब से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है. लेकिन भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि 2009 के लोकसभा चुनावों में सिद्धू कांग्रेस के ओम प्रकाश सोनी से मात्र 6900 वोटों से जीत सके. इसके अतिरिक्त पिछले पांच सालों में बीजेपी सांसद सिद्दू के खिलाफ स्थानीय जनता में काफी नाराजगी देखी गई. ऐसे में कइयों को यह भी आशंका है कि कहीं इस नाराजगी का ठीकरा जेटली पर न फूटे.