अमृतपाल सिंह का अब तक पुलिस पकड़ से बाहर पंजाब पुलिस की नाकामी तो है; लेकिन कार्रवाई ने उसका हौव्वा ख़त्म करके राज्य में फिर से आतंकवाद की अटकलों पर विराम लगा दिया है। अमृतपाल को छोडक़र संगठन के ज़्यादातर सक्रिय सदस्य गिरफ़्तार हो चुके हैं। राइफलें, पिस्तौलें और कारतूसों के अलावा दर्ज़नों बुलैट प्रूफ जैकेटे आदि बरामद हुई हैं। पंजाब पुलिस ने अमृतपाल सिंह के 353 समर्थकों को गिरफ़्तार किया गया था, जिनमें से 197 को 30 मार्च को छोड़ दिया। हालाँकि आरोप है कि पुलिस ने उन्हें भी पकड़ा, जो अमृतपाल के समर्थक हैं ही नहीं, फिर भी उन पर एनएसए लगा दिया गया।
बहरहाल, अमृतपाल को भगाने में सहयोग देने वाले आधा दर्ज़न लोगों को भी पुलिस ने गिरफ़्तार किया। कहा जा रहा है कि नशा विरोधी मिशन के नाम पर संगठन बहुत कुछ ग़लत कार्रवाई भी कर रहा था। अगर मिशन पंजाब के युवाओं को नशे की लत से छुटकारा दिलाने का था, तो फिर आनंदपुर खालसा फोर्स का गठन किसलिए हुआ? क्या वारिस पंजाब दे संगठन व अमृतपाल विदेशी ताक़तों के इशारे पर पंजाब की शान्ति भंग करने की दिशा में बढ़ रहे थे?
पंजाब पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया शुरुआती जाँच में अमृतपाल के पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई से तार जुड़े होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बात की पुष्टि तो अमृतपाल के गिरफ़्तार होने और पूछताछ के बाद हो सकती है; लेकिन यह तय है कि संगठन को बाहर से पैसों की मदद मिल रही थी। आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा का वरदहस्त भी अमृतपाल पर बताया जाता है। बहुत कुछ ग़लत हो रहा था, वरना अमृतपाल सिंह को इस तरह छिपकर भागने की ज़रूरत भी नहीं थी। वैसे अमृतपाल का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। कुछ समय पहले संगठन की गतिविधियों की आलोचना करने पर एक व्यक्ति की बुरी तरह से पिटाई कर दी थी। पीडि़त ने अमृतपाल समेत पाँच लोगों पर प्राथमिकी दर्ज करायी थी। पुलिस ने इस सिलसिले में लवप्रीत सिंह तूफ़ान को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था। इसे निर्दोष बताते हुए अमृतपाल सिंह ने पुलिस को छोडऩे की चेतावनी दी थी। ऐसा न करने पर ही अजनाला थाने जैसी घटना हुई। जरनैल सिंह भिंडरावाले को अपना आदर्श मानने वाले अमृतपाल के खालसा राज को लेकर क्या क्या मंसूबे थे? इसका ख़ुलासा तो विस्तृत पूछताछ के बाद ही होगा; लेकिन समय पर पुलिस की कार्रवाई नि:संदेह अच्छा क़दम कहा जा सकता है। अजनाला थाने के शक्ति प्रदर्शन के बाद अमृतपाल को दूसरा भिंडरावाले के नये अवतार के तौर पर देखा जाना लगा था। वारिस पंजाब दे के पोस्टरों में अमृतपाल और दीप सिद्धू के अलावा भिंडरावाले का फोटो है। कार्रवाई में साये की तरह अमृतपाल के साथ रहने वाले उनके चाचा हरजीत सिंह भी गिरफ़्तार हो चुके हैं। सवाल यह कि आख़िर पंजाब पुलिस अमृतपाल सिंह को भारी पुलिस बल भी गिरफ़्तार करने में सफल क्यों नहीं हो सका, जबकि उसका लक्ष्य ही उसे गिरफ़्तार करना था। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसी संदर्भ में मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि 80,000 पुलिस बल के बावजूद आरोपी की गिरफ़्तारी न होना हैरान करने वाली घटना है। इसे राज्य पुलिस पर अपरोक्ष टिप्पणी कहा जा सकता है।
पंजाब ने सन् 1984 के बाद आतंकवाद का भयावह दौर देखा है। तीन दशक से ज़्यादा के इस दौर में आतंकवाद की कई घटनाएँ राज्य में हुई; लेकिन उस दौर की काली छाया प्रदेश में जगह नहीं बना सकी। विदेशों में बैठे खालिस्तान समर्थक व संगठन रॉकेट लॉन्चरों से हमले जैसी गतिविधियाँ अंजाम देते रहे हैं, बावजूद इसके राज्य में अमन चैन क़ायम है। पिछले छ: माह के दौरान राज्य में बहुत कुछ बदलने लगा। गुमनाम-सा संगठन वारिस पंजाब दे अचानक पैठ बनाने लगा, तो इसकी मुख्य वजह अमृतपाल सिंह की कट्टरपंथी विचारधारा थी। अमृतसर ज़िले के गाँव जल्लूपुर खेड़ा का एक युवक 10 साल के बाद दुबई से अपने गाँव लौटता है, तो कुछ समय बाद उसे वारिस पंजाब संगठन की उसे ज़िम्मेदारी दे दी जाती है। जरनैल सिंह भिंडरांवाले के पैतृक गाँव रोडे में बाक़ायदा उसे पगड़ी (दस्तारबंदी) पहनाकर अध्यक्ष बनाया जाता है। वह दर्ज़नों हथियारबंद लोगों के घेरे में रहने लगा। देखते-ही-देखते हज़ारों समर्थकों का कारवाँ बन गया। अपने साक्षात्कारों में वह खुलेआम खालसा राज की बात कहता था। खालिस्तान सोच पर प्रतिक्रिया में वह कहता, जब देश में हिंदू राष्ट्र की बात होती है, तो फिर उनकी बात का विरोध क्यों? वारिस पंजाब दे संगठन के नाम से ही स्पष्ट है कि इसे किस सोच के आधार पर बनाया गया होगा। लोकतांत्रिक देश का कोई हिस्सा, राज्य या क्षेत्र का क्या कोई वारिस हो सकता है?
संगठन ने पहली बार अजनाला थाने में शक्ति प्रदर्शन कर बता दिया कि अब इसकी सोच को रोकना बहुत मुश्किल है। अमृतपाल के नेतृत्व में हज़ारों हथियारबंद समर्थकों ने पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया, जिसमें कई घायल हुए। भारी दवाब के चलते पुलिस ने अमृतपाल के समर्थक लवप्रीत सिंह तूफ़ान को मारपीट के मामले में छोड़ दिया था। राज्य में क़ानून व्यवस्था बिगडऩे के आरोप लगते रहे हैं; लेकिन अजनाला थाने की घटना ने आम लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या अब फिर से आतंकवाद अपनी जड़े जमाने में सफल हो जाएगा। संगठन की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए राज्य सरकार ने अभी तक सीधे तौर पर अमृतपाल पर कार्रवाई करने से गुरेज ही किया; लेकिन अब बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान पुलिस कार्रवाई के बाद कह रहे हैं कि राज्य की शान्ति व्यवस्था हर हालत में क़ायम रखी जाएगी। इसे भंग करने की कोशिश किसी भी हालत में सफल नहीं होने दी जाएगी। ऐसा करने वाला संगठन या व्यक्ति कोई भी हो ठोस कार्रवाई की जाएगी। सबसे बड़ा सवाल यह कि आम आदमी पार्टी की सरकार वारिस पंजाब दे संगठन और अमृतपाल की गतिविधियों को कमोबेश नज़रअंदाज़ कर रही थी, वह अब आक्रामक क्यों नज़र आ रही थी। इसकी बड़ी वजह केंद्र सरकार है। अजनाला थाने की घटना के बाद क़ानून व्यवस्था की लचर व्यवस्था को लेकर आलोचना झेल रहे भगवंत मान ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाक़ात की थी। इस बातचीत के बाद पंजाब को अतिरिक्त केंद्रीय सुरक्षा बल मुहैया कराया गया। इसके बाद घटनाक्रम तेज़ी से बदला और अमृतपाल की गिरफ़्तारी की रणनीति बनी; लेकिन योजना ठीक से नहीं बनी।
18 मार्च को एक कार्यक्रम में जाने के दौरान अमृतपाल को गिरफ़्तार किया जाना था, इसमें जोखिम ज़्यादा था, जबकि इससे पहले वह अपने घर जल्लूपुर खेड़ा में ही था। उसके पास हथियारबंद लोग रहते थे; लेकिन वहाँ निश्चित तौर पर गिरफ़्तारी हो सकती थी। अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह के मुताबिक, पुलिस उसे गुपचुप तरीक़े से गिरफ़्तार कर उसके साथ कोई अनहोनी करना चाहती है। उन्हें अब भी लगता है कि पुलिस ने अमृतपाल को पकड़ लिया है और कुछ भी कर सकती है। 18 मार्च की कार्रवाई से पहले पुलिस के पास अमृतपाल और उसके संगठन की ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों के बारे में कोई सुबूत नहीं था; लेकिन अब बहुत कुछ है। उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) लग चुका है। देश विरोधी लोगों, संगठनों और ताक़तों के बूते अगर अमृतपाल के मंसूबे कुछ और थे, तो उसकी मुश्किलें बहुत बढऩे वाली है।
कौन है अमृतपाल?
अमृतसर ज़िले का गाँव जल्लूपुर खेड़ा अमृतपाल सिंह की वजह से कुछ ज़्यादा ही चर्चित हो गया है। 10वीं पास करने के बाद अमृतपाल ने कपूरथला से मेकेनिकल इंजीनियरिंग डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश लिया था; लेकिन वह इसे पूरा नहीं कर सका। सन् 2012 में वह दुबई में संधू ट्रांसपोर्ट कम्पनी में काम करने लगा। उसने अपने को ऑपरेशन मेनेजर के तौर पर बता रखा था। अगस्त, 2022 में वह दुबई से यहाँ आया। उसके बाद से लगातार सक्रिय था। परिजनों के मुताबिक, पहले वह आम युवक की तरह ही था; लेकिन पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामलों के बाद उसका रुझान इस तर$फ हो गया। संगठन का प्रमुख बनने के बाद फरवरी, 2023 किरणदीप कौर से उसकी शादी हुई है।
एक और मामला
नंगल अंबिया गुरुद्वारा के ग्रंथी रणजीत सिंह ने अमृतपाल और उसके चार साथियों के ख़िलाफ़ सिर के पास पिस्तौल सटाकर धमकी देने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करायी है। रिपोर्ट के मुताबिक, 18 मार्च को गुरुद्वारा परिसर में एक ब्रेजा कार रुकी। उसमें से चार लोग बाहर आये। इनमें से एक अमृतपाल था। उसने कहा कि पुलिस उनका पीछा कर रही है, वह उसे कपड़े दे। इनकार करने पर उसने पिस्तौल सिर से सटा दी। कपड़े और वेश बदलकर वह यहाँ से गया। जाते-जाते उसने पुलिस को किसी तरह की सूचना देने पर बुरा अंजाम भुगतने की धमकी दी।