भारत विरोध के केंद्र बन रहे हैं ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा

हाल के दिनों में खालिस्तानी समूह भारत और बाहर विशेष रूप से इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में, दोनों जगहों पर अपना विरोध बढ़ा रहे हैं। पहले भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र मुख्य रूप से पाकिस्तान माना जाता था और इस पड़ोसी देश को ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह, जो इस समय भगोड़ा घोषित है; के उदय के लिए दोषी ठहराया गया था।

भारत के बाहर, राजनयिक मिशनों पर हमला किया गया है, जिसमें हाल ही में लंदन और सैन फ्रांसिस्को भी शामिल है। ऑस्ट्रेलिया और अन्य जगहों पर कई हिंदू मंदिरों में तोडफ़ोड़ की गयी है। सिख वर्तमान में कनाडा की आबादी का लगभग 1.4 फ़ीसदी या संख्या में क़रीब 5,00,000 हैं। खालिस्तान उस काल्पनिक राज्य का नाम है, जिसे कुछ अलगाववादी समूह भारत के उन क्षेत्रों को काटकर स्थापित करने का प्रस्ताव रखते हैं, जहाँ सिख धर्म बहुसंख्यक है। कुछ सिख अलगाववादी संगठन कनाडा, इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशों में अपनी उपस्थिति और प्रभाव बढ़ा रहे हैं, जहाँ सिख प्रवासी काफ़ी संख्या में हैं। समस्या की उत्पत्ति यह है कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन, सिख फॉर जस्टिस, पंजाब में खालिस्तान समर्थक नेता अमृतपाल सिंह पर कार्रवाई के बीच एक तथाकथित ‘जनमत संग्रह 2020’ आयोजित कर रहा है।

ब्रिटेन में घटनाएँ

कभी क़ानून-व्यवस्था और शालीन व्यवहार का गढ़ रहे लंदन में अब एक के बाद एक घटना देखने को मिल रही हैं। इस बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो के साथ एक व्यक्ति भारतीय ध्वज को खालिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे के साथ उच्चायोग की दीवारों को फाँदते हुए दिख रहा है। घटना के कुछ दिन बाद भारतीय मूल के समुदाय के सदस्य लंदन में भारतीय उच्चायोग के बाहर एकजुटता दिखाने के लिए एकत्र हुए। प्रदर्शन में हर तरफ़ से लोग शामिल थे। कुछ व्यक्तिगत क्षमता में, जबकि अन्य एक संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। कुछ ने प्रदर्शन के दौरान अपने गालों पर तिरंगा रंगा हुआ था।

हमलों के विरोध में भारत द्वारा ब्रिटेन के एक राजनयिक को तलब करने के एक दिन बाद सैन फ्रांसिस्को वाणिज्य दूतावास में एक और घटना की ख़बरें सामने आयीं, जिससे हलचल मची। पुलिस विरोध-प्रदर्शन को रोकने के लिए आयी। हालाँकि आन्दोलनकारी ‘भारत सरकार, शर्म करो, शर्म करो’ के नारे लगाते रहे। भारतीय उच्चायोग में तोडफ़ोड़ के बाद भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने ट्वीट कर इस घटना की निंदा की। उन्होंने लिखा- ‘मैं भारतीय उच्चायोग के लोगों और परिसर के ख़िलाफ़ आज के अपमानजनक कृत्यों की निंदा करता हूँ, पूरी तरह से अस्वीकार्य।’

ब्रिटिश उप उच्चायुक्त क्रिस्टीना स्कॉट को घटना के मद्देनज़र विदेश मंत्रालय में तलब किया गया था। विदेश मंत्रालय ने कहा- ‘लंदन में भारतीय उच्चायोग के ख़िलाफ़ अलगाववादी और चरमपंथी तत्त्वों द्वारा की गयी कार्रवाई पर भारत के कड़े विरोध को व्यक्त करने के लिए नई दिल्ली में यूके के सबसे वरिष्ठ राजनयिक को आज देर शाम तलब किया गया। ब्रिटिश सुरक्षा की पूर्ण अनुपस्थिति के लिए एक स्पष्टीकरण माँगा गया था, जिसने इन तत्त्वों को उच्चायोग परिसर में प्रवेश करने की अनुमति दी थी।’ विदेश मंत्रालय ने कहा कि राजनयिक को वियना कन्वेंशन के तहत यूके सरकार के बुनियादी दायित्वों की याद दिलायी गयी। विदेश मंत्रालय ने कहा- ‘ब्रिटेन में भारतीय राजनयिक परिसरों और कर्मियों की सुरक्षा के प्रति ब्रिटिश सरकार की उदासीनता को भारत अस्वीकार्य मानता है।’ ब्रिटिश सरकार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं का एक छोटा समूह एक झूठी कहानी फैला रहा है कि सिखों को सताने के लिए ब्रिटेन भारत के साथ मिलीभगत कर रहा है। हालाँकि इसमें कहा गया है कि खालिस्तान समर्थक आन्दोलन से ब्रिटेन को मौज़ूदा ख़तरा कम है; लेकिन यह भविष्य में बढ़ सकता है। यह ‘यूके के सिख समुदायों से उभर रहे खालिस्तान समर्थक उग्रवाद’ के बारे में एक चेतावनी है।

यह समूह ब्रिटिश नागरिक जगतार सिंह जोहल की रिहाई के लिए पैरवी करके ब्रिटेन में सिखों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें आरएसएस नेता और सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा की लक्षित हत्या में उनकी भूमिका के लिए जलंधर से गिरफ़्तार किया गया था। जोहल के समर्थक पंजाब में खालिस्तान समर्थक हत्याओं में उनकी भूमिका का उल्लेख किए बिना #freejagginow हैशटैग के साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काफ़ी सक्रिय हैं।

कनाडा में गतिविधियाँ

एक अन्य घटना में कनाडा में एक भारतीय मूल के पत्रकार समीर कौशल को सरे, ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनकारियों द्वारा घेर लिया गया था। कौशल ने कहा कि वह भारतीय उच्चायुक्त की यात्रा को कवर करने के लिए सरे में थे, जब एक खालिस्तान समर्थक समूह ने उन्हें धमकी दी और उनके साथ मारपीट की। रेडियो एएम600 के समाचार निदेशक समीर कौशल ने ट्वीट में कहा- ‘सरे आरसीएमपी (पुलिस) इस पूरे मामले में मूकदर्शक बनी रही, भले ही विरोध हिंसक हो गया था। पुलिस उन्हें रोकने के बजाय मुझे अपनी सुरक्षा के लिए छोडऩे के लिए कहती रही। 

भारत ने मतदान की और कनाडा सरकार के इसे होने देने की अनुमति देने की कड़ी निंदा की है। नई दिल्ली ने कड़े शब्दों में बयान जारी कर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के प्रशासन से ऐसे समूहों को प्रतिबंधित करने का आह्वान किया। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा- ‘हमें यह बेहद आपत्तिजनक लगता है कि चरमपंथी तत्त्वों द्वारा राजनीतिक रूप से प्रेरित अभ्यासों को एक मित्र देश में होने दिया जाता है।’ बागची ने कहा- ‘तथाकथित खालिस्तान जनमत संग्रह कराने के लिए भारत विरोधी तत्त्वों के प्रयासों पर हमारी स्थिति जगज़ाहिर है और कनाडा सरकार को नई दिल्ली और कनाडा दोनों में अवगत करा दिया गया है।’ जबकि कनाडा सरकार ने कहा है कि वह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करती है, उसने वोट रोकने से इनकार कर दिया है।

यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कनाडा ने हाल ही में खालिस्तान समर्थकों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों में वृद्धि देखी गयी है, जिन्होंने कुछ हिंदू मंदिरों में तोडफ़ोड़ की है। पिछले सितंबर में विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कनाडा में भारतीयों के ख़िलाफ़ घृणा अपराधों के बढऩे और भारत विरोधी गतिविधियों की निंदा करते हुए कड़ी भाषा में अपनी चिन्ता व्यक्त की। समूह वैंकूवर, कैलगरी, एडमोंटन, विन्निपेग, टोरंटो और मॉन्ट्रियल में आयोजन कर रहे हैं, या पहले ही आयोजित कर चुके हैं। इन शहरों के अलावा उन्होंने उग्रवाद के लिए जेल में बंद कैदियों की रिहाई के लिए आंतरिक पंजाब से चंडीगढ़ की ओर जाने वाली सडक़ों को अवरुद्ध करके पंजाब में भी आन्दोलन शुरू किया है। पंजाब-चंडीगढ़ सीमाओं को अवरुद्ध करने वाले समूहों में विश्वास-आधारित समूहों और किसान संघों से जुड़े विविध संगठनों के मुट्ठी भर लोग शामिल हैं।

ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान में उछाल

इसने यह भी कहा है कि पाकिस्तान में मौलवियों की बयानबाज़ी ब्रिटिश मुसलमानों को भारत के ख़िलाफ़ कट्टरपंथी बना रही है। ऐसी ही हालत ऑस्ट्रेलिया में हो रही है, जहाँ खालिस्तान समूह हाल ही में समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि पंजाब और हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में खालिस्तान के निर्माण के लिए समर्थन जुटाने के लिए खालिस्तान समर्थक ऑस्ट्रेलिया में फैल गये हैं। सूत्रों ने बताया कि इस साल 29 जनवरी को हुए खालिस्तान जनमत संग्रह का समर्थन सोशल मीडिया के ज़रिये हैशटैग #freepunjab, #khalistanzindabad, #freepoliticalprisoners और #freesikhprisoners के ज़रिये किया गया। ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान जनमत संग्रह के लिए वेबसाइट और मतदाता पंजीकरण कार्ड अमेरिका में बनाया गया था, जो दुनिया भर में खालिस्तानी नेटवर्क के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध दिखाता है।

पंजाब में दबिश

खालिस्तान समर्थक संगठन ‘वारिस पंजाब डे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह पहले ही कह चुके हैं कि भारत सरकार का समर्थन करने वाला कोई भी व्यक्ति चाहे वह हिंदू, सिख या मुस्लिम हो, दुश्मन है। उन्होंने हाल ही में चेतावनी दी थी- ‘अगर सरकार हमारी माँगों को नहीं सुनती है और सिखों को जेल से रिहा नहीं करती है, तो हम अपनी कार्रवाई को बदल देंगे’, जिससे और अधिक हिंसा का संकेत मिलता है। खालिस्तान को लेकर ब्रिटिश सरकार ने पिछले हफ़्ते जो महसूस किया था, वह अब ऑस्ट्रेलिया में होने लगा है। कनाडा, जिसने अलगाववादियों को खुली छूट दी थी, ने पहले ही खालिस्तान जनमत संग्रह के कारण समुदायों के बीच सामाजिक तनाव में बड़ी वृद्धि के साथ हिंसा में वृद्धि देखी है, जिसे खुले तौर पर पाकिस्तान द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।

पंजाब पुलिस द्वारा अमृतपाल सिंह और उनके ‘वारिस पंजाब दे’ ग्रुप के सदस्यों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करने के बाद यह गतिविधि तेज़ हो गयी। 100 से अधिक अमृतपाल समर्थकों को गिरफ़्तार किया गया है; लेकिन अलगाववादी गिरफ़्तारी से बचने में कामयाब रहे और फ़रार हैं।