साल 2022 में सवा दो लाख भारतीय अमीर देश छोडक़र चले गये विदे
देश के पाँच ट्रिलियन की इकोनॉमी बनने की चर्चाओं के बीच ख़बर है कि 2022 में देश के 2,25,000 भारतीयों ने देश की नागरिकता छोड़ दी है। पिछले 11 साल में यह सबसे बड़ी संख्या है, क्योंकि 2011 में इससे लगभग आधे 1,22,819 लोगों, जिनमें अधिकतर अमीर हैं; ने देश की नागरिकता छोड़ दी थी। देश छोडऩे वाले भारत के इन अमीरों में ज़्यादातर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, दुबई और सिंगापुर जैसे देशों में बसने को तरजीह दे रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण हाल के वर्षों में भारत में ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों का बढ़ता शिकंजा भी है।
निश्चित ही भारत के लिए यह अच्छी ख़बर नहीं कही जा सकती है। विशेषज्ञों का मत है कि असमानता के कारण यह अमीर देश छोडक़र जा रहे हैं। असमानता को लेकर हाल में एक रिपोर्ट आयी थी, जिसमें दुनिया भर में भारत को ग़रीब और असमानता वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश की कुल पूँजी का 57 फ़ीसदी हिस्सा सिर्फ़ 10 फ़ीसदी अमीरों के हाथों में है, जबकि देश की कुल पूँजी में देश की आबादी के 50 फ़ीसदी के पास महज़ 13 फ़ीसदी ही हिस्सा है। निश्चित ही यह आँकड़े विचलित करने वाले हैं।
वल्र्ड इनिक्वैलिटी लैब की रिपोर्ट में भारत को ग़रीब और असमान देश बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का मध्य वर्ग अमीरों की तुलना में लगभग ग़रीब है। देश की कुल कमायी में मध्य वर्ग का हिस्सा 29.5 फ़ीसदी है और 33 फ़ीसदी पूँजी सबसे अमीर 10 फ़ीसदी लोगों के हाथ में है। कमायी में सबसे अमीर एक फ़ीसदी लोगों का हिस्सा 65 फ़ीसदी है।
एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के लाखों अमीर बेहतर व्यापार माहौल और बेहतर जीवन (लाइफ स्टाइल) के लिए देश छोड़ रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अमीरों के पलायन की संख्या देखें, तो भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा नंबर हैं। हाल के वर्षों में, ख़ासकर नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद अक्सर यह कहा गया है कि विदेशों से भारत में निवेश बढ़ा है। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि जब विदेशी निवेशक भारत की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं, तो भारत के अमीर क्यों देश छोडक़र विदेश जा रहे हैं?
भारत के अमीर व्यक्ति भारत छोडक़र ऐसे देशों में जाना चाहते हैं, जहाँ वह सुरक्षित महसूस कर सकें। कुछ रिपोर्टर यह भी दावा करते हैं कि अपोलो टायर्स के वाइस चेयरमैन और एमडी नीरज कँवर जैसे लोग पिछले 10 साल में भारत छोडक़र विदेश जाने वालों में शामिल हैं। सिर्फ़ सन् 2020 एक ऐसा साल रहा, जब भारतीय अमीरों के विदेश जाने की संख्या एक लाख से कम, 85,256 थी। हालाँकि इसका कारण कोरोना से लगी पाबंदियाँ थीं।
भारतीयों अमीरों के देश छोडक़र विदेश जाने के यह आँकड़े हाल में सामने आये, जब संसद में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक सवाल के लिखित जवाब में साल-दर-साल भारतीयों के देश की नागरिकता छोडऩे की सूची जारी की। जानकारों के मुताबिक, भारतीय देश छोडक़र विदेश में बसने के लिए रेसिडेंस बाई इंवेस्टमेंट का रास्ता अपनाते हैं। अर्थात् वे जिस देश में जाते हैं, वहाँ निवेश के लिए उन्हें नागरिकता मिलती है।
इन भारतीय अरबपतियों को एचएनआई या डॉलर मिलिनेयर्स कहा जाता है। इन लोगों के भारत छोडऩे के कई कारण सामने आये हैं, जिनमें भारत में ईडी, इनकम टैक्स के छापे भी एक कारण हैं; क्योंकि बहुत-से बिजनेसमैन मानते हैं कि यह छापे राजनीतिक कारणों से ज़्यादा होते हैं।
इसके अलावा यह अमीर इन देशों में बेहतर अवसर मिलने की उम्मीद करते हैं। साथ ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ, बेहतर लाइफस्टाइल और बच्चों के बेहतर शिक्षा शामिल हैं। हाल में हेनले वैश्विक नागरिक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में हाई नेट वर्थ (एचएनआई) ग्रुप के $करीब 3.55 लाख के $करीब लोग हैं। भारत से बाहर जाने वाले ज़्यादातर लोगों में वे लोग शामिल हैं, जो दिल्ली और मुंबई जैसी जगहों में रहते हैं। हैरानी की बात है कि दिल्ली से बाहर जाने वालों का एक मुख्य कारण प्रदूषण है। इसके अलावा कोलकाता, बेंगलूरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, गुडग़ाँव, अहमदाबाद जैसे शहर भी अमीरों को ज़्यादा नहीं भाते।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, एचएनआई अमीरों के मामले में भारत के अमेरिका, चीन और जापान के बाद चौथा नंबर है। विशेषज्ञों के मुताबिक, हाल के वर्षों में निवास के ज़रिये निवेश की माँग में बढ़ोतरी हुई है और इस मामले में यूएस के ईबी-5 वीजा की माँग तेज़ी से बढ़ी है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया का ग्लोबल टैलेंट इंडिपेंडेंट वीजा, पुर्तगाल का गोल्डेन वीजा और ग्रीस का रेसिडेंस बाई इंवेस्टमेंट प्रोग्राम भी भारतीय अमीरों में काफ़ी लोकप्रिय है।
भारत पिछले साल पुर्तगाल गोल्डन वीजा लेने वालों में तीसरे स्थान पर रहा। इन देशों में रेजिडेंट बनने का आधार आवेदक की प्रॉपर्टी की वैल्यू (न्यूनतम धन) और आप कितने लोगों को रोज़गार दे सकते हो, इस पर निर्भर करता है। इन देशों के इस मामले में अपने-अपने क़ायदे हैं, जिनके अनुसार ही आपको निवासी का अधिकार हासिल हो सकता है। इन देशों के नियमों के मुताबिक, एक निश्चित अवधि के बाद उस देश का पासपोर्ट आवेदक को मिलता है। पुर्तगाल के मुक़ाबले आवेदक को अमेरिका में ज़्यादा धन निवेश करने की ज़रूरत रहती है और वहाँ ईबी-5 वीजा होता है। अमेरिकी नागरिकता के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है।
भारत पर असर
निश्चित ही इसका व्यापक असर देश की इकोनॉमी पर पड़ता है। भारत से विदेश जाने वाले इन लोगों में कई काफ़ी प्रतिभाशाली भारतीय होते हैं। उनके देश छोडऩे के कारण उनकी ऊर्जा और योग्यता से भारत वंचित रह जाता है। मोदी सरकार लगातार कह रही है कि भारत पाँच ट्रिलियन की इकोनॉमी की तरफ़ बढ़ रहा है; लेकिन अमीरों के इस तरह देश छोडक़र विदेशों में जा बसने से निश्चित ही भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। बहुत-से विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्तमान हालत में देश की इकोनॉमी को पाँच लाख करोड़ डॉलर तक पहुँचाने में शायद लक्ष्य से कहीं ज़्यादा वक़्त लगे।
इसका असर स्टार्टअप्स इकोसिस्टम पर भी होगा। साथ ही तेज़ी से बिलियन डॉलर वैल्यूएशन वाली कम्पनियाँ ऊपर नहीं उठ पाएँगी। देश छोडक़र विदेश में जाने वाले अमीरों की जो संख्या सरकार के आँकड़ों से सामने आयी है, उससे तो सरकार के बेहतर इकोनॉमी के दावों पर सवालिया निशान लगता है। सरकार लगातार कह रही है कि देश में व्यापार करना पहले से सुगम हुआ है। देश की आर्थिक रफ़्तार तेज़ है और यहाँ उन्नति के पहले से बेहतर अवसर हैं। लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है कि सरकार के दावे यदि सही हैं, तो लाखों की संख्या में अमीर भारत छोडक़र क्यों जा रहे हैं?
ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि साल 2020 में देश छोडऩे वालों की सूची में भारत से ऊपर सिर्फ़ चीन था। उसके बाद रूस था। सरकार का दावा रहा है कि देश में रहन-सहन में बेहतरी आयी है। यदि यह सही है, तो फिर क्यों इतने लोग देश छोड़ गये? चीन और रूस के अमीर यदि देश छोड़ते हैं, तो बात इसलिए समझ आती है कि उन देशों में राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है। चीन के जैक मा जैसे बड़े व्यापारी को देश छोडक़र जाने को इसी कारण से मजबूर होना पड़ा था। इन देशों में अमीरों पर स$ख्ती करने और उन्हें दबाये जाने की रिपोर्ट हाल में काफ़ी आयी है।
भारत में पहले माहौल अलग था; लेकिन अब माना जाता है कि आप सरकार के $िखलाफ़ नहीं बोल सकते। तो क्या भारत भी चीन और रूस जैसी स्थितियों की तरफ़ बढ़ रहा है? वैसे भारत में दशकों से व्यापारियों को सरकार ने संसाधन उपलब्ध करवाये हैं। उनके हिसाब से नियम तक बनाये गये हैं। सस्ती ज़मीन दी गयी, ताकि वे कारोबार कर सकें। बैंकों से आसान शर्तों पर ऋण मिला है। यहाँ तक कि सत्ता में बैठे लोगों तक उनकी बेहतर पहुँच रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि कुछ तो कारण होगा कि यह अमीर भारत छोडक़र जा रहे हैं।
कब, कितने अमीर गये विदेश?
वर्ष संख्या
2011 1,22,819
2012 1,20,923
2013 1,31,405
2014 1,29,328
2015 1,31,489
2016 1,41,603
2017 1,33,049
2018 1,34,561
2019 1,44,017
2020 85,256
2021 1,63,370
2022 2,25,620