'अब लोग भूल चुके हैं कि मार्च लूट क्या होती है’

बिहार के वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री  सुशील कुमार मोदी, इर्शादुल हक से बातचीत में विपक्ष के इन आरोपों को खारिज करते हैं कि पैसों के इस्तेमाल में सरकारी मशीनरी पूरी तरह नाकारा साबित हुई है

विपक्ष का आरोप है कि सरकार सुनियोजित तरीके से मार्च लूट (वित्त वर्ष समाप्ति से ठीक पहले सभी विभागों द्वारा अपने बजट और व्यय आदि को पूरी तरह से दुरुस्त करने की कवायद)पर आमादा है. इस पर आप क्या कहेंगे?

ऐसे आरोप वही लोग लगा रहे हैं जिनकी सरकार में मार्च लूट की परंपरा थी. पिछले छह वर्षों से हमारी सरकार है, मार्च लूट की संस्कृति हमने खत्म कर दी है. अब तो हाल यह है कि नई पीढ़ी के लोगों को पता भी नहीं कि मार्च लूट क्या होती है? जबकि उनके दौर में 31 मार्च को सचिवालय रात भर खुला रहता था और सरकार पैसों को अलग-अलग मदों में खर्च दिखाने की कोशिश में लगी रहती थी.

विपक्ष के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी कहते हैं कि सरकारी मशीनरी पूरी तरह नाकारा है, वह पैसे खर्च ही नहीं कर पा रही है.

उन्हें अपना दौर याद आ रहा होगा. उस दौर में कुल बजट का 50 से 60 प्रतिशत धन ही खर्च होता था. हमारे सामने तो स्थितियां ऐसी हो चुकी हैं कि हम जितना खर्च करने की स्थिति में हैं उतनी राशि हमारे पास उपलब्ध ही नहीं हो पाती.

विपक्ष का यह भी आरोप है कि बजट के पैसे इसलिए खर्च नहीं हो पाए कि नौकरशाही और कई मंत्री पहले ही अपना कमीशन तय कर लेते हैं. इस कारण काम करने वाली एजेंसियां हाथ खड़े कर लेती हैं.

भ्रष्टाचार बीते जमाने की बात है. जहां तक पैसे के खर्च में देरी का मामला है तो यह सिर्फ बिहार की बात नहीं है. तमाम राज्यों में दिसंबर तक की प्रगति एक जैसी होती है क्योंकि जुलाई से मध्य नवंबर तक बरसात के कारण काम नहीं हो पाता. 15 नवंबर से फरवरी मार्च तक ही ज्यादातर काम होते हैं. पैसों का खर्च भी इन्हीं महीनों में होता है. आप ही बताइए, जब काम ही रुका रहेगा तो पैसे कहां से खर्च
हो पाएंगे.

कई विभागों ने तो अब तक एक पैसा भी खर्च नहीं किया.

पहले बात को समझिए, जो हम कह रहे हैं. हम बजट का प्रावधान सभी विभागों के लिए करते हैं. लेकिन इनमें वित्त, वाणिज्य कर और निबंधन जैसे विभाग भी हैं जहां पैसे खर्च नहीं हुए या बहुत कम हुए. पर ध्यान देने की बात है कि ये विभाग पैसे जुटाने वाले हैं. यहां खर्च करने की संभावनाएं बहुत ही सीमित होती हैं. इसलिए इन विभागों में खर्च नहीं हुआ तो यह कोई बुरी बात नहीं है. बल्कि यह तो अच्छा है कि हम इन विभागों से पैसा लेकर दूसरे विभागों को पैसे देकर उसका उपयोग करते हैं. इनमें सड़क और भवन निर्माण जैसे विभाग शामिल हैं.

लेकिन भवन, पथ निर्माण या शिक्षा जैसे विभागों में भी जो खर्च का प्रतिशत है वह भी तो संतोषजनक नहीं है.

मैंने कहा न कि दिसंबर से फरवरी, मार्च के महीनों में ही ज्यादातर निर्माण कार्य होते हैं. इसलिए हम इन विभागों में अभी भी काफी तेजी से काम कर रहे हैं.

क्या 31 मार्च तक सरकार बाकी 70 प्रतिशत पैसों का इस्तेमाल कर लेगी?

हां, बिल्कुल कर लेगी. हमारी कोशिश यह है कि खर्च न कर सकने वाले विभागों के पैसे भी, एक विशेष प्रावधान के तहत, दूसरे कामकाजी विभागों में इस्तेमाल हो जाएं. कला-संस्कृति, वन एवं पर्यावरण और निबंधन जैसे विभागों से पैसे लेने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.

आपकी सरकार केंद्र सरकार पर आरोप लगाती है कि वह राज्य सरकार के हिस्से की राशि आवंटित नहीं कर रही है. जबकि अभी तक राज्य सरकार कुल बजट का मात्र 30 प्रतिशत ही खर्च कर पाई है जबकि वित्त वर्ष समाप्त होने की कगार पर है.

सर्व शिक्षा अभियान पर हमें केंद्र सरकार ने साढ़े सात हजार करोड़ रुपये आवंटित किए. पर हमें दिए मात्र 1400 करोड़. मुझे लगता है कि सरकार हमें और मात्र एक हजार करोड़ रुपये ही दे पाएगी. केंद्र सरकार ने तमाम राज्यों  के लिए सर्व शिक्षा अभियान के लिए 38 हजार करोड़ का बजट बनाया पर उसने राज्यों को दिए महज 21 हजार करोड़ रुपये (हालांकि सुशील मोदी का यह दावा संदिग्ध है, वित्तमंत्री के बजट भाषण में भी 21 हजार करोड़ का ही जिक्र है). इस प्रकार 17 हजार करोड़ रुपये का गैप हो गया. ऐसी स्थिति में हम स्वाभाविक तौर पर बजट में किए गए प्रावधान के अनुसार खर्च नहीं कर पाएंगे. इसी तरह की स्थिति ग्रामीण सड़कों की भी है. इन क्षेत्रों में भी हमें  तयशुदा पैसे नहीं मिल पा रहे हैं.