अंग्रेजी लेखक जॉन लिली ने कहा था कि प्रेम और युद्ध में सब जायज है. करीब पांच सदी पहले जब उन्होंने इस कहावत की शुरुआत की तब उनके लिए ये दोनों शब्द ठीक अपने मूल अर्थ में ही थे. राजनीति तब आज के स्वरूप में नहीं थी. यदि होती तो निश्चित है कि लिली प्रेम के साथ राजनीति की बात कर रहे होते और तब उनके जेहन में कहीं-न-कहीं भारतीय राजनीति जरूर होती. फिलहाल हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश विधानसभा के हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र की. पूरे भारत में प्रदेश की विधानसभा उन गिनी-चुनी लोकतांत्रिक संस्थाओं में से है जहां संसदीय मर्यादाएं तोड़ने की परंपरा हाल के महीनों तक नहीं देखी गई थी, लेकिन ताजा शीतकालीन सत्र की कार्रवाई कुछ इस तर्ज पर चली है कि शायद अगली बार यहां जूते-चप्पल भी चलें तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.
दस दिन चला विधानसभा का शीतकालीन सत्र इस मायने में ऐतिहासिक साबित होने जा रहा था कि भाजपा के पिछले आठ साल के कार्यकाल में पहली बार कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाई थी. 2003 में दिग्विजय सिंह सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस की विपक्ष के रूप में भूमिका लगभग दयनीय ही रही है. हालांकि कुछ समय पहले पार्टी में हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद से ऐसी संभावनाएं दिखने लगी थीं कि शायद कांग्रेस अपनी मरणासन्न हालत से उबर जाए. कांतिलाल भूरिया को पार्टी अध्यक्ष और अजय सिंह (स्व. अर्जुन सिंह के बेटे) को प्रतिपक्ष का नेता बनवाकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कृष्ण की भूमिका में आ गए थे. ऐसे में भूरिया के साथ अजय सिंह के सामने यह विधानसभा सत्र खुद को स्थापित करने के साथ ही भाजपा सरकार को घेरने का सबसे अच्छा मौका था. दूसरी तरफ पिछले दिनों कई विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस को पटखनी देने वाली भाजपा के लिए जीत से जुड़ा उन्माद छिटकने और भ्रष्टाचार के मसलों पर खुद की छवि पाक-साफ बताने का अवसर था. लेकिन पूरे सत्र के दौरान प्रदेश के विधायकों ने जिस तरह जरूरी मसलों से इतर एक-दूसरे की मां, भाई, बहन और सगे संबंधियों से जुड़ी अमर्यादित बातें कीं उसने साबित कर दिया कि उनके लिए विधानसभा सत्र सामूहिक गाली-गलौज के एक सरकारी आयोजन से ज्यादा कुछ नहीं था. यहां हम विधानसभा के शीतकालीन सत्र में हुई ऐसी ही घटनाओं की बानगी दे रहे हैं.
अविश्वास प्रस्ताव पर लगातार चार दिन तक 25 घंटे 20 मिनट तक चली चर्चा की शुरुआत सदन में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने की. प्रतिपक्ष के नेता के रूप में सदन में उनका यह पहला भाषण था. अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उन कथित अच्छाइयों से की जो उनके मुताबिक शिवराज में अब नहीं रहीं. इस समय तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. लेकिन शायद यह तूफान आने के पहले की शांति थी. थोड़े समय बाद ही प्रतिपक्ष के नेता ने अपनी सीट पर रखे फाइलों के उस पुलिंदे में से एक-एक कर फाइलें निकालनी शुरू की और उस पर बोलना आरंभ किया. अजय सिंह ने कथित तथ्यों (जिन्हें भाजपा गलत मानती है) के आधार पर भाजपा सरकार के कथित तौर पर भ्रष्ट मंत्रियों पर हमला शुरू कर दिया. सरकार विपक्ष के हमले से चिंतित तो थी ही कि एकाएक अपने एक वाक्य से अजय सिंह ने सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को परेशान कर दिया और सदन में सन्नाटा फैला दिया.
भ्रष्टाचार के एक मामले का उल्लेख करते हुए प्रतिपक्ष के नेता ने एक शख्स का उल्लेख करते हुए कहा कि मैं जिस आदमी की बात कर रहा हूं उसे भले ही सदन न जानता हो लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उसे बहुत अच्छी तरह जानते हैं. क्योंकि वे शिवराज सिंह के भाई हैं. यहां तक तो ठीक था लेकिन भरे सदन में अजय सिंह ने इसके बाद जो कहा उसने मुख्यमंत्री के चेहरे को पीड़ा और दुख की अनगिनत रेखाओं से पाट दिया. अजय ने कहा, ‘ मैं जिस भाई की बात कर रहा हूं वह मुख्यमंत्री जी की दूसरी मां के पुत्र हैं.’ अभी तक प्रदेश में इस तथ्य से बहुत कम लोग परिचित थे. शिवराज सिंह ने भी कल्पना नहीं कि थी कि राजनीति की इस लड़ाई में बात यहां तक पहुंच जाएगी. भाजपा के विधायकों ने मुख्यमंत्री की पीड़ा को भांप लिया और फिर विपक्ष पर हमला करने की अपनी नई रणनीति तय की जिसने आने वाले दिनों में चर्चा का स्तर इतना गिरा दिया कि हर दूसरी लाइन पर स्पीकर को ‘ इसे विलोपित कर दें ‘ बोलना पड़ता था.
चर्चा जब गाली-गलौज में बदल गई तो कांग्रेस की एक विधायक लोकायुक्त की एक फर्जी तस्वीर सदन में लहराने लगीं
अजय सिंह के भाषण के बाद दूसरे दिन प्रदेश के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सरकार पर हमले का जवाब देना शुरू किया और इसी कड़ी में मामला उस प्रसंग पर पहुंचा जिसमें अजय सिंह ने मुख्यमंत्री की मां का जिक्र किया था. नहले पर दहले की तर्ज मिलाते हुए उनका कहना था, ‘हमें भी पता है कि आपकी (अजय सिंह) अपनी मां के साथ संबंध कैसे हैं, अपने पिता के साथ संबंध कैसे थे, बहन और भाई के साथ कैसे हैं लेकिन हमने आज तक इस बारे में एक शब्द नहीं बोला क्योंकि हमें सदन की गरिमा का ध्यान है…’ सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष के लोग भी सदन की गरिमा और नेताओं के आचरण और भाषा में आ रही गिरावट संबंधी कैलाश विजयवर्गीय के भाषण को बड़ी गंभीरता से सुन ही रहे थे कि अचानक वे बोल पड़े, ‘हमें भी पता है कि आपका बेटा (फिल्म अभिनेता अरुणोदय सिंह) मुंबई में जाकर चूमाचाटी कर रहा है.’
कैलाश के इतना बोलते ही कांग्रेसी विधायक अपने शब्दों और हाव-भाव से उन पर टूट पड़े. पूरा सदन कांग्रेसी और भाजपा विधायकों के शोर में डूब गया. विधानसभा स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी ने बीच-बचाव करते हुए इस वक्तव्य को विलोपित करने का आदेश दिया. लेकिन प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह इससे सहमत नहीं हुए. कांग्रेसी विधायकों ने मांग की कि इस लाइन को रिकॉर्ड में रहने दिया जाए जिससे आने वाली पीढि़यों को पता चले कि संस्कृति का भाषण देने वाले कैलाश की सांस्कृतिक समझ कैसी है.
कैलाश के अलावा एक अन्य भाजपा विधायक ने भी अजय सिंह के पूरे परिवार को घेरा. सदन में जहां अजय सिंह के परिवार की कथित तौर पर अवैध भूमि चर्चा का विषय रही वहीं उनके दादा जी से लेकर उनके पिता अर्जुन सिंह तथा चाचा एवं अन्य रिश्तेदार भी सदन में चर्चा में रहे. ऐसी परंपरा है कि जो व्यक्ति सदन में अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित न हों या फिर इस दुनिया में ही ना हो उस पर आरोप न लगाए जाएं लेकिन इसके बाद भी प्रतिपक्ष के नेता के सगे-संबंधी सत्तापक्ष की तरफ से निशाना बनते रहे. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा वैसे-वैसे सदन की पूरी कार्यवाही अश्लील और आपत्तिजनक होती चली गई. सदन में एक ऐसा वाकया भी सामने आया जिसमें बहुजन समाज पार्टी के एक विधायक कांग्रेस की विधायक इमरती देवी को जातिसूचक शब्द कहने और गाली देने से नहीं चूके. वहीं सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्यों में से एक पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को भी कई बार अपमान का घूंट पीना पड़ा.
भोपाल से कांग्रेस के एकमात्र विधायक आरिफ अकील ने न केवल पूर्व मुख्यमंत्री के चरित्र को लेकर टिप्पणी की बल्कि इसके साथ ही वे एक फोटो सदन में लहराते दिखाई दिए जिसमें कथित तौर पर गौर के साथ एक महिला मौजूद थी. आरिफ अकील के अलावा भी कई अन्य विधायकों ने गौर पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कई आपत्तिजनक, अश्लील और चरित्रहनन करने वाली टिप्पणियां कीं.
ऐसा नहीं है कि सदन में सिर्फ पुरुष सदस्य ही कीचड़ उछाल और चरित्र हनन की प्रतियोगिता में शामिल थे. कांग्रेस की आक्रामक महिला विधायक कल्पना परुलेकर ने भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी को मुख्यमंत्री का गुलाम ठहराते हुए उन्होंने कहा कि जिस विधानसभा का अध्यक्ष भ्रष्ट हो उस विधानसभा का कोई औचित्य नहीं है. ऐसी विधानसभा पर तो ताला डाल देना चाहिए. इस मामले पर बवाल मचाने के साथ ही परुलेकर ने मध्य प्रदेश के लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गणवेश में फोटो दिखाकर सदन में सनसनी फैला दी. अगले दिन सरकार ने कहा कि फोटो फर्जी था. और संघ प्रमुख मोहन भागवत के फोटो से छेड़छाड़ करके भागवत के चेहरे की जगह नावलेकर का चेहरा लगा दिया गया है. इस मामले पर पारुलेकर की बहुत किरकिरी हुई. हालाकि अंत तक उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया कि फोटो फर्जी था. कल्पना के अलावा और भी कई कांग्रेसी विधायक सदन के दौरान स्पीकर का अपमान करने से नहीं चूके. कांग्रेसी विधायक गोविंद सिंह और रोहाणी के बीच की तकरार को देखकर ऐसा लग रहा था मानो कांग्रेसी विधायक स्पीकर से नहीं बल्कि किसी भाजपा विधायक से लड़ रहे हों.
सदन के इस शीतकालीन सत्र में नेताओं के व्यवहार पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी तथा प्रतिपक्ष के नेता समेत अधिकांश नेताओं ने दुख प्रकट किया. सभी ने इस बात को स्वीकार किया कि वर्तमान सत्र में संसदीय परंपराओं, संवैधानिक संस्थाओं तथा मर्यादाओं का पालन नहीं हुआ और कुछ ऐसा हुआ जो न सिर्फ प्रदेश की राजनीतिक सेहत के लिए नकारात्मक है बल्कि उसने प्रदेश की राजनीतिक संस्कृति को कलंकित किया है.
लेकिन इस सामूहिक विलाप में समस्या यह है कि सभी को लग रहा है कि वे और उनकी पार्टी सही थे. उन्होंने संसदीय परंपरा और मर्यादा का पूरा ध्यान रखा. अश्लीलता तो सामने वाले ने फैलाई. ऐसे में भविष्य में क्या सुधार होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं.