शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’
बढ़ते अपराधों से समाज में दहशत फैलती है। आज भारत के हर कोने में अपराध हो रहे हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आने पर अपराधों पर कुछ समय तक रोक लगी थी। परन्तु अब एक बार फिर दिल्ली में अपराधी बेख़ौफ़ हैं। निर्भया कांड के एक दशक बाद गुडिय़ा केस, फिर श्रद्धा के शरीर के टुकड़े हुए तथा उसके बाद कई और हत्याएँ। लूटपाट तथा जेब काटने के मामले में दिल्ली पहले से ही बदनाम रही है। परन्तु हत्या, बलात्कार तथा अन्य जघन्य अपराध भी दिल्ली को बीच-बीच में कलंकित करते रहे हैं।
अपराधी इतने निडर हैं कि वे आये दिन एक से एक जघन्य अपराध को अंजाम दे रहे हैं। दिल्ली सरकार द्वारा लगाये गये सीसीटीवी कैमरों का भी डर अब अपराधियों में नहीं दिखता। केंद्र शासित इस प्रदेश में एक तरफ़ सत्ता की लड़ाई दिल्ली सरकार तथा केंद्र सरकार के बीच जारी है। वहीं दूसरी ओर केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली पुलिस अपराधियों पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रही है।
नाम न बताने की शर्त पर एक मुस्लिम लडक़े ने बताया कि पूर्वी दिल्ली के एक इलाक़े की पुलिस चौकी पर दो युवा पुलिसकर्मियों की दिन में ड्यूटी रहती है। इन युवा पुलिसकर्मियों की पुलिस चौकी के पास ही एक बाल काटने वाली सैलून की फुटपाथ वाली खुली दुकान है। दोनों पुलिसकर्मियों ने इस क्षेत्र में कुछ ऐसे युवाओं से साँठ-गाँठ कर रखी है, जो ख़ुद नशे के तस्कर हैं। इनमें से एक का नाम टूटा है। इस तरह के नशा तस्कर पहले नशीले पदार्थों को सप्लाई नशेडिय़ों को करते हैं और फिर चुपचुप फोटो खींचकर पुलिस चौकी के दोनों पुलिस वालों को देते हैं।
दोनों पुलिस वाले मौक़े पर पहुँचकर नशेडिय़ों को दबोच लेते हैं और उसके बाद उनके घर वालों को फोन करके बुलाते हैं। इसके बाद उन्हें उनके बच्चों को नशीले पदार्थों की तस्करी करने, नशा करने और बलात्कार में फँसाने की धमकी देकर लम्बे समय के लिए जेल भेजने की धमकी देते हैं। दोनों पुलिसकर्मी बिना रिपोर्ट लिखे नशा करने वाले एक युवा के माँ-बाप पर दबाव बनाकर 5,000 से 10,000 तक की वसूली करते हैं। पुलिसकर्मी ये पैसा बाल काटने वाले के हाथ में दिलवाते हैं। होना यह चाहिए कि पुलिस नशा करने वाले को भारतीय दंड संहिता-1860 की धारा-86 के तहत मुक़दमा दर्ज कर जेल भेजे। इसके अतिरिक्त पुलिस नशा करने वाले युवाओं को नशा मुक्ति केंद्र भेज सकती है। लेकिन मुस्लिम युवा द्वारा दी गयी, जानकारी यह साबित करती है कि पुलिस वालों के संरक्षण में अपराधी अपराध करते हैं और उनके चंगुल में फँसे युवाओं के माँ-बाप इसका दंड भरते हैं। इस तरह पुलिस ही अपराध को बढ़ावा देकर अवैध वसूली का काम करती है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली दिल्ली पुलिस को अपराध न रोक पाने की वजह से कई बार न्यायालयों से फटकार पड़ चुकी है, परन्तु इस पर दिल्ली में अपराध बढ़ रहे हैं। रिकॉर्ड बताते हैं कि दिल्ली में पिछले 10 वर्षों में चार गुना डकैती की घटनाएँ बढ़ी हैं। दिल्ली में 2012 में 608 डकैतियाँ पड़ी थीं, जबकि 2021 में 2,333 डकैतियाँ पड़ी थीं। 2021 में दिल्ली में हर दिन औसत 6 डकैतियाँ हुईं। नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो की 2022 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में दिल्ली में 111 प्रतिशत साइबर अपराध बढ़े।
इतना ही नहीं, दिल्ली में 2020 की तुलना में 2021 में सभी तरह के अपराध बढ़े। महिला अपराध, अपहरण, बलात्कार, छेड़छाड़, जेब तराशी, लूट, चेन स्नेचिंग तथा घरेलू हिंसा दिल्ली में बढ़ी है। हत्या के मामले कम होने का दावा करने वाली पुलिस इस बार हत्याओं पर चुप्पी साधे हुए है।
सन् 2021 की नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में महिलाओं पर सबसे अधिक एसिड अटैक के मामले दिल्ली में हुए। हालाँकि एसिड अटैक के मामले में दिल्ली तीसरे नंबर पर रही। सन् 2021 में दिल्ली में 64 गैंगरेप हुए, 1,251 रेप हुए। इनमें सबसे अधिक रेप 18 से 30 वर्ष की महिलाओं से हुए।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि दिल्ली में 5 वर्ष से कम उम्र तक की बच्चियों से लेकर 60 साल से अधिक की उम्र की महिलाओं से भी रेप हुए। यह पुलिस के लिए बेहद शर्मनाक है। रेप तथा गैंग रेप की सबसे अधिक वारदात 1,224 लोगों ने कीं, जिनमें 623 एफआईआर दोस्त, पड़ोसी, रिश्तेदार निकले। इनमें केवल 490 लोग पकड़े गये। रेप तथा गैंगरेप में 111 परिवार के ही लोग शामिल रहे। वहीं 26 मामलों में आरोपी अज्ञात थे। 2021 में पॉक्सो की 1,374 वारदात हुईं। हालाँकि दिल्ली पुलिस के आँकड़े इससे कहीं कम हैं, जो नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो के आँकड़ों से मेल नहीं खाते हैं। दिल्ली पुलिस के अनुसार, 2021 में साइबर ठगी की कुल प्रति दिन औसत 315 शिकायतें पुलिस को मिलीं। इनमें एक-चौथाई शिकायतें लोन से जुड़ी थीं। पुलिस ने लगभग 55.49 करोड़ रुपये अलग-अलग बैंक खाते फ्रीज किये। 291 लोगों को गिर$फ्तार किया। 583 बैंक खाते ब्लॉक किये। पुलिस के अन्य अपराधों के आँकड़े भी नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो से मेल नहीं खाते।
दिल्ली पुलिस का पिछला रिकॉर्ड देखें, तो पता चलता है कि दिल्ली पुलिस में एसआई के नौ प्रतिशत लगभग 654 पद ख़ाली पड़े हैं। पूरी दिल्ली में कुल 6,802 एसआई हैं, जो कि 7,456 होने चाहिए। ऐसे ही दिल्ली में पिछले वर्ष 5,729 कॉन्स्टेबल थे, जबकि 43,191 होने चाहिए। हेड कॉन्स्टेबल भी 21,232 की तुलना में मात्र 18,683 ही हैं। कुल मिलाकर दिल्ली पुलिस में 82,196 पुलिसकर्मी होने चाहिए; लेकिन 72,934 हैं।
प्रश्न यह है कि जिस दिल्ली पुलिस को अपराध रोकने के मामले में अव्वल माना जाता है, वही दिल्ली पुलिस दिल्ली में ही अपराध रोकने में नाकाम क्यों है? क्या दिल्ली पुलिस अपनी संख्या कम बताकर अपनी नाकामी को छिपा सकती है? क्या केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा दिल्ली के उप राज्यपाल वी.के. सक्सेना की नैतिक ज़िम्मेदारी यह नहीं है कि वे दिल्ली की क़ानून व्यवस्था सुधारें? इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई बार गृह मंत्रालय तथा दिल्ली के उप राज्यपाल को पत्र भी लिखा है कि वह दिल्ली की क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करें, जो कि उनकी ज़िम्मेदारी है। परन्तु क्या इससे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तथा दिल्ली के उप राज्यपाल वी.के. सक्सेना पर कोई असर हुआ?
दिल्ली की सत्ता पर पूरी तरह निरंकुश शासन की इच्छा रखने वाले उपराज्यपाल की नैतिक ज़िम्मेदारी क्यों नहीं याद रहती? दिल्ली में बाढ़ को दिल्ली सरकार की नाकामी बताने वाले भाजपा नेता आख़िर दिल्ली में होने वाले अपराधों पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं? दिल्ली पर शासन करने की इच्छा रखने से सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अध्यादेश लाने में अगर केंद्र सरकार को जल्दी थी, तो फिर दिल्ली में अपराध रोकने के लिए कौन आगे आएगा? बात-बात पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफ़े की माँग करने वाले भाजपा नेता दिल्ली में हर दिन होने वाले दर्ज़नों अपराधों पर दिल्ली के उपराज्यपाल और देश के गृह मंत्री से आख़िर इस्तीफ़ा क्यों नहीं माँगते? अगर नैतिक ज़िम्मेदारी तय हो, तो वो ईमानदारी से हर संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की तय होनी चाहिए। इसके लिए दोहरा मापदंड क्यों?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हमले की राजनीति से परहेज़ करके अपनी ओर से पूरे प्रयास करें कि दिल्ली में अपराध रुकें। हालाँकि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है; परन्तु अगर उनके प्रयासों से दिल्ली में अपराध रुकते हैं, तो केंद्र सरकार, विशेष रूप से उप राज्यपाल वी.के. सक्सेना तथा गृह मंत्री अमित शाह की छीछालेदर ख़ुद ही होगी तथा जनता उनके निकम्मेपन की स्वत: ही निंदा करेगी।
दिल्ली पुलिस को भी बढ़ते अपराधों को कम करने के लिए हर ठोस क़दम उठाने की आवश्यकता है। परन्तु सच्चाई यह भी है कि दिल्ली पुलिस किसी का मोबाइल चोरी होने, किसी से छेड़छाड़ होने, किसी पर हमला होने की आशंका तथा किसी के लापता होने के रिपोर्ट दर्ज नहीं करनी चाहती। क्या दिल्ली पुलिस अपराध होने की प्रतीक्षा करती है? मोटे-मोटे अक्षरों ‘दिल्ली पुलिस हमेशा आपकी सेवा में तत्पर’ लिख देने तथा लाउडस्पीकर पर हमेशा इस घोषणा को दोहराने भर से दिल्ली सुरक्षित नहीं हो सकेगी। इसके लिए दिल्ली पुलिस को पूरी निष्ठा तथा लगन से अपराधियों के ख़िलाफ़ क़दम उठाने की आवश्यकता है।