उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव 7 चरणों मेें शांतिपूर्ण संपन्न हो गये है। चुनाव परिणाम 10 मार्च को आने है। चुनाव परिणाम आने के पूर्व जो तामाम सर्वे बता रहे है। कि फलां-फलां पार्टी की सरकार बनेगी और फलां-फलां पार्टी की सरकार नहीं बनेगी। इन्ही सर्वे को लेकर पार्टियों के प्रवक्ताओं के अपने-अपने दावें है।
लेकिन इस बीच एक बात जो सामने निकलकर आ रही है। कि जो छोटे दल है वे अभी से इसी सियासी गुणा-भाग में लग गये है। कि किसी पार्टी को उनके बहुमत की दरकार पड़ सकती है। उसी लिहाज से छोटे दल के नेता अभी चुप्पी साधें हुये है। या फिर कुछ बोल रहे है। उससे ये नहीं लगता है। कि वे चुनाव परिणाम आने के बाद किस के साथ जा सकते है।
उत्तर प्रदेश के इस बार के चुनाव में कुछ ऐसा माहौल देखने को मिला है कि एक दल को एक तरफा चुनाव में जीत हासिल नहीं दिख रही है। यानि की चुनाव के पूर्व ही सपा और भाजपा के बीच कांटे का संघर्ष दिखा है। सात चरणों में हुये चुनाव में अलग-अलग चरण का अपना रूझान देखने को मिला है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा और रालोद गठबंधन का बढ़त रही है। जबकि बुन्देलखंड में भाजपा को बढ़त बतायी जा रही है। पूर्वोचंल में सपा और भाजपा के बीच वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर चुनाव फंसा नजर आ रहा है। पूर्वाचंल की राजनीति के जानकार सुकेश कुमार का कहना है कि चुनाव पूर्व तो अनुमान ही लगया जा सकता है कि कौन सी पार्टी सरकार बनाएंगी और कौन सी नहीं।
लेकिन इतना जरूर है कि चुनाव एक तरफा नहीं हुआ है। भाजपा और सपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने भी अच्छा खासा चुनाव लड़ा है। सुकेश कुमार का कहना है कि पहले इस बात का माहौल बनाया जा रहा था। कि सपा और भाजपा के बीच ही मुकाबला है। लेकिन दूसरे चरण के बाद छोटे दलों को मैसेज गया है कि अगर वे चुनाव में जीत हासिल करते है। तो किसी भी दल को बहुमत कम मिलने पर वे निर्णायक भूमिका निभा सकते है। सो छोटे दलों ने पूरे दम खम के साथ चुनाव लडा है। अब वे उसी उम्मीद के साथ चुनाव परिणाम की आस में है जैसे ही किसी दल को बहुमत से कम सीटें मिलती है। तो वेे अपने समर्थन दें सकते है।